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Author Topic: ~*सदविचार*~  (Read 337720 times)

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Offline PiyaSoni

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Re: ~*सदविचार*~
« Reply #75 on: May 26, 2011, 01:53:38 AM »
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  • ॐ साईं राम~~~


    "जो शक्ति न होते हुए भी मन से हार नहीं मानता , उसको दुनिया की कोई ताकत परास्त नहीं कर सकती |"
    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #76 on: May 27, 2011, 01:01:02 AM »
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  • ॐ साईं राम~~~

    "जिसका ह्रदय पवित्र है, उससे अपवित्रता छू तक नहीं सकती |"
    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #77 on: May 28, 2011, 12:08:04 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    दुर्भावना के वातावरण में पंचशील के सिद्धांत अन्तराष्ट्रीय जगत में भले ही सफल न हुए हो पर पारिवारिक जगत में सदा सफल होते है . यथा -

    1. परस्पर आदर भाव से देखना
    2. अपनी भूल स्वीकार करना
    3. आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
    4. भेदभाव न रखना
    5. विवादो का निष्पक्ष निपटारा
    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #78 on: May 30, 2011, 12:18:02 AM »
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  • कहते हैं हम जो लोगों को देते हैं वही हमें वापस मिला है। अगर हम किसी को प्यार देगें तो ही हमें बदले में प्यार मिल सकता है और अगर किसी से नफरत करेंगें तो बदलें में प्यार की उम्मीद करना बेकार है।

    ~~जय श्री साईं राम~~
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #79 on: May 31, 2011, 12:09:03 AM »
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  • जीवन में अक्सर ऐसे अवसर आते हैं जब बिना सच्चाई जानें ही किसी एक निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं जबकि सच्चाई कुछ और ही होती है। जो हमें दिखता है हम उसी पर यकीन कर लेते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि जो दिख रहा है उसमें कितनी सच्चाई है पहले इस पर विचार किया जाए। तभी हम सही सही निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।

    ~~ॐ सांई राम~~~
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #80 on: June 03, 2011, 05:41:15 AM »
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  • "आयु बढ़ने से या दुर्घटना से सुन्दरता नष्ट हो सकती है पर आत्मिक सुन्दरता कभी नष्ट नही होती है"


    ~~OmSaiRam~~
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #81 on: June 03, 2011, 05:43:34 AM »
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  • "यदि आप अकेले है तो आपका कोई महत्व नही, परन्तु यदि आप संगठन मे स्नेहशील, रमणीक, व सहयोगी होकर रहते हैं तो आप मूल्यवान है। "

    ~~OmSaiRam~~
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #82 on: June 08, 2011, 04:42:52 AM »
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  • इंसान को अगर खुद को बेहतर बनाना है और अपनी किसी बुराई को छोडऩा है तो उसे इस बात की शुरूवात खुद से ही करनी होगी। किसी और के भरोसे आप अपनी किसी बुराई को नहीं छोड़ सकते। बस जरूरत है तो केवल दृढ़ विश्वास की।

    Om Sai Ram
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #83 on: June 10, 2011, 12:33:49 AM »
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  • हमारे सुख-दुःख का कारण दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियाँ नहीं अपितु हमारे अच्छे या बूरे विचार होते हैं।

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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #84 on: June 10, 2011, 12:35:37 AM »
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  • कबीरदास जी एक स्त्री को अनाज पीसते देखकर अपने गुरू निपतिनिरंजन से कहने लगे कि मैं इसलिये रुदन कर रहा हूँ कि जिस प्रकार अनाज चक्की में पीसा जाता है, उसी प्रकार मैं भी भवसागर रुपी चक्की में पीसे जाने की यातना का अनुभव कर रहा हूँ । उनके गुरु ने उत्तर दिया कि घबड़ाओ नही, चक्की के केन्द्र में जो ज्ञान रुपी दंड है, उसी को दृढ़ता से पकड़ लो, जिस प्रकार तुम मुझे करते देख रहे हो ष उससे दूर मत जाओ, बस, केन्द्र की ओप ही अग्रसर होते जाओ और तब यह निशि्चत है कि तुम इस भवसागर रुपी चक्की से अवश्य ही बच जाओगे ।


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम

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    Dipika Duggal

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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #85 on: June 10, 2011, 12:36:09 AM »
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  • अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुध्द सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है।

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    Offline Dipika

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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #86 on: June 10, 2011, 12:38:48 AM »
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  • जैसा कि मेरे अनुभव में आया कि साई के दर्शन में ही यह विशेषता है कि वितार परिवर्तन तथा पिछले कर्मों का प्रभाव शीघ्र मंद पड़ने लगता है और शनैः शनैः अनासक्ति और सांसारिक भोगों से वैराग्य बढ़ता जाता है । केवल गत जन्मों के अनेक शुभ संस्कार एकत्रित होनेपर ही ऐसा दर्शन प्राप्त होना सुलभ हो सकता है । पाठको, मैं आपसे शपथपूर्वक कहता हूँ कि यदि आप श्री साईबाबा को एक दृष्टि भरकर देख लेंगे तो आपको सम्पूर्ण विश्व ही साईमय दिखलाई पड़ेगा ।

    हेमाडपंत


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #87 on: June 10, 2011, 12:43:25 AM »
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  • किसी ने प्रश्न किया – बाबा, कहाँ जायें । उत्तर मिला – ऊपर जाओ । प्रश्न – मार्ग कैसा है ।
     
    बाबा – अनेक पंथ है । यहाँ से भी एक मार्ग है । परंतु यह मार्ग दुर्गम है तथा सिंह और भेड़िये भी मिलते है ।
     
    काकासाहेब – यदि पथ प्रदर्शक भी साथ हो तो ।

    बाबा – तब कोई कष्ट न होगा । मार्ग-प्रदर्शक तुम्हारी सिंह और भेड़िये और खन्दकों से रक्षा कर तुम्हें सीधे निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचा देगा । परंतु उसके अभाव में जंगल में मार्ग भूलने या गड्रढे में गिर जाने की सम्भावना है । दाभोलकर भी उपर्युक्त प्रसंग के अवसर पर वहाँ उपस्थित थे । उन्होंने सोचा कि जो कुछ बाबा कह रहे है, वह गुरु की आवश्यकता क्यों है । इस प्रश्न का उत्तर है (साईलीला भाग 1, संख्या 5 व पृष्ठ 47 के अनुसार) । उन्होंने सदा के लिये मन में यह गाँठ बाँध ली कि अब कभी इस विषय पर वादविवाद नहीं करेंगे कि स्वतंत्र या परतंत्र व्यकति आध्यात्मिक विषयों के लिये कैसा सिदृ होगा । प्रत्युत इसके विपरीत यथार्थ में परमार्थ-लाभ केवल गुरु के उरदेश में किया गया है, जिसमें लिखा है कि राम और कृष्ण महान् अवतारी होते हुए भी आत्मानुभूति के लिये राम को अपने गुरु वसिष्ठ और कृष्ण को अपने गुरु सांदीपनि की शरण में जाना पड़ा था । इस मार्ग में उन्नति प्राप्त करने के लिये केवल श्रदृा और धैर्य-ये ही दो गुण सहायक हैं ।

    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #88 on: June 10, 2011, 12:50:50 AM »
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  • SAI is the real self within.when self unfolds,life shines.FAITH lands on in the comforting arms of the LORD.Perseverance paves the path ahead.Let him arrange everything for you and you will safely cross the OCEAN OF SUFFERING......

    OmSaiRam
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #89 on: June 11, 2011, 02:44:31 AM »
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  • चार बातें नहीं भूलना चाहिए -

    बडो का आदर करना
    छोटो को सलाह देना
    बुद्धिमानो से सलाह लेना
    और मूर्खो से न उलझना .

    ~~OmSaiRam~~
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