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Author Topic: ~*सदविचार*~  (Read 337789 times)

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Re: ~*सदविचार*~
« Reply #150 on: August 05, 2013, 01:11:07 AM »
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  • "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #151 on: August 08, 2013, 01:03:11 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #152 on: August 12, 2013, 04:39:20 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #153 on: August 20, 2013, 06:14:20 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #154 on: August 21, 2013, 03:31:33 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #155 on: August 22, 2013, 05:22:55 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #156 on: August 27, 2013, 03:15:25 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #157 on: August 29, 2013, 01:39:55 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #158 on: September 05, 2013, 01:24:16 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #159 on: September 09, 2013, 12:49:41 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #160 on: October 01, 2013, 02:43:09 AM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #161 on: October 29, 2013, 11:18:29 PM »
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    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #162 on: November 13, 2013, 10:23:43 PM »
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    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #163 on: November 24, 2013, 01:50:08 AM »
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  • एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से प्रिय भक्त कौन है?, अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भक्त नारद मुनि की बात, और मुस्कुरा कर बोले ! मेरा सब से प्रिय भक्त उस गांव का एक मामुली किसान है, यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, और फ़िर से एक प्रश्न किया, हे भगवान आप का बडा भक्त तो मै हूँ, तो फ़िर सब से प्रिय क्यो नही??

    भगवान विष्णु जी ने नारद मुनि जी से कहा, इस का जबाब तो तुम खुद ही दोगे, जाओ एक दिन उस के घर रहो ओर फ़िर सारी बात मुझे बताना,नारद मुनि जी सुबह सवेरे मुंह अंधेर उस किसान के घर पहुच गये, देखा अभी अभी किसान जागा है, और उस ने सब से पहले अपने जानवरो को चारा वगेरा दिया, फ़िर मुंह हाथ धोऎ, देनिक कार्यो से निवर्त हुया, जल्दी जल्दी भगवान का नाम लिया, रुखी सूखी रोटी खा कर जल्दी जल्दी अपने खेतो पर चला गया, सारा दिन खेतो मे काम किया और शाम को वापिस घर आया जानवरो को अपनी अपनी जगह बांधा, उन्हे चारा पानी डाला, हाथ पाँव धोये, कुल्ला किया, फ़िर थोडी देर भगवान का नाम लिया, फ़िर परिवर के संग बैठ कर खाना खाया, कुछ बाते की और फ़िर सो गया.

    अब सारा दिन यह सब देख कर नारद मुनि जी, भगवान विष्णु के पास वापिस आये, और बोले भगवन मै आज सारा दिन उस किसान के संग रहा, लेकिन वो तो ढंग से आप का नाम भी नही ले सकता, उस ने थोडी देर सुबह थोडी देर शाम को ओर वो भी जल्दी जल्दी आप का ध्यान किया, और मैं तो चौबीस घंटे सिर्फ़ आप का ही नाम जपता हुं, क्या अब भी आप का सबसे प्रिय भक्त वो गरीब किसान ही है, भगवान विष्णु जी ने नारद की बात सुन कर कहा, अब इस का जबाब भी तुम मुझे खुद ही देना.

    और भगवान विष्णु जी ने एक कलश अमृत से भरा नारद मुनि को थमाया, ओर बोले इस कलश को ले कर तुम तीनो लोको की परिक्रमा कर के आओ, लेकिन ध्यान रहे अगर एक बुंद भी अमृत नीचे गिरा तो तुम्हारी सारी भक्ति और पुण्य नष्ट हो जायेगे, नारद मुनि तीनो लोको की परिक्र्मा कर के जब भगवान विष्णु के पास वापिस आये तो , खुश हो कर बोले भगवान मैंने एक बुंद भी अमृत नीचे नही गिरने दिया, विष्णु भगवान ने पुछा और इस दौरान तुम ने मेरा नाम कितनी बार लिया?मेरा स्मरण कितनी बार किया ? तो नारद बोले अरे भगवान जी मेरा तो सारा ध्यान इस अमृत पर था, फ़िर आप का ध्यान केसे करता.

    भगवान विष्णु ने कहा, हे नारद देखो उस किसान को वो अपना कर्म करते हुये भी नियमित रुप से मेरा स्मरण करता है, क्योकि जो अपना कर्म करते हुये भी मेरा जाप करे वो ही मेरा सब से प्रिय भक्त हुआ, तुम तो सार दिन खाली बैठे ही जप करते हो, और जब तुम्हे कर्म दिया तो मेरे लिये तुम्हारे पास समय ही नही था, तो नारद मुनि सब समझ गये ओर भगवान के चरण पकड कर बोले हे भगवन आप ने मेरा अंहकार तोड दिया, आप धन्य है|

    Offline ShAivI

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: ~*सदविचार*~
    « Reply #164 on: November 29, 2013, 03:05:29 AM »
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  • ॐ साई राम !!!


    एक समय की बात है जब धर्मपुरी नगर के राजा सोमसेन शिकार खेलने के बाद अपने नगर को लोट रहे थे की
    जंगल के बिच में राजा अपने सेनिको से बिछड़ गए और जंगल में अकेले ही अपने नगर की तरफ चल पड़े |

    रस्ते में चलते समय उन्होंने एक आदमी को मुरली बजाते हुए अपने नगर की तरफ जाते हुए देखा तो
    राजा ने कुछ दूर के लिए उसका साथ ले लिया और दोनों साथ साथ चलने लगे बातो ही बातो में राजा ने
    उस व्यक्ति को पूछा की वो कोन है और क्या काम करता है और केसे गुजारा चलता है |

    उस आदमी ने कहा की में एक लकडहारा हु और लकड़ी काटने का काम करता हु और रोजाना चार रुपये
    कमाता हु और पहला रुपया तो कुए में फेंक देता हु दुसरे रुपये से कर्जा चुकता हु तीसरे रुपये को में उधार देता हु
     और चौथे रुपये को में जमीन में गाड़ देता हु | वो अपनी कहानी कह रहा था और राजा उसको इस बारे में
    पूछना चाहता था मगर तभी सेनिक राजा को ढूंढते ढूंढते वह आगये और फिर राजा उनके साथ चला गया |

    राजा ने दुसरे दिन अपने दरबार में सभी लोगो को उस लकडहारे की बात कही और पूछा की वो लकडहारा
     जो चार रुपये खर्च करता है उसको केसे और कहा खर्च करता है जरा खुलासा पूर्वक बताओ लेकिन
    इस बात का जवाब कोई भी नहीं दे सका |

    तो राजा ने सिपाही को आदेश दिया की जाओ और उस लकडहारे को दरबार में मेरे सामने उपस्थित करो |

    सिपाही ने लाकर के राजा के सामने लकडहारे को पेश कर दिया |

    राजा ने उसको कल के उसके जवाब का खुलासा करने को कहा तो उस लकडहारे ने कहा की
    पहला रूपया में कुए में फेकता हु का मतलब ये है की  में पहले रुपये से अपने परिवार का पालन करता हु |

    दुसरे रुपये से में कर्जा चुकता हु यानी की मेरे माता पिता बूढ़े है जिनके इलाज और खर्चे को पूरा करता हु
    और उनका जो उपकार है वो कर्जा मेरे ऊपर है उसको चुकता हु "

    तीसरे रूपये को में उधार देता हु का मतलब  ये है की एक रुपये को में अपने बचो की शिक्षा आदि पर
    खर्चा करता हु ताकि जब में बूढ़ा हो जाऊ तो वो उधार दिया हुवा मेरे को काम आ सके |

    और चौथे रुपये को मै जमीन में गाड़ देता हु इसका मतलब ये हुवा की चौथा रूपया में धर्म ध्यान दान दक्षिणा
    और लोगो की सेवा में खर्चा करता हु ये तब मेरे काम आएगा जब में इस दुनिया से विदा होऊंगा |

    राजा और सभी दरबारियों ने लकडहारे की बाते सुनी और सराहना की राजा ने उस लकडहारे को समान दिया
    और  काफी धन देकर के इज्जत से वापस विदा किया |


    ॐ  साई राम, श्री साई राम, जय जय साई राम !!!

    « Last Edit: November 29, 2013, 04:58:28 AM by ShAivI »

    JAI SAI RAM !!!

     


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