जय सांई राम।।।
मैंने पूजा है शब्दों को उनकी वन्दना की है अपनी कल्पनाओं में, मैंने अपनी सांसो को शब्दों का रूप दिया है और जब तक सांसें मेरे भीतर आती रहेंगी तब-तब अपनी असीमित कल्पनाओं से शब्दों की वन्दना कर मैं शिव अंग बन जाउंगा जिसपर किसी ज़हर का असर नहीं कितने कटु-शब्द निकलेंगे मेरी वन्दना मेरी आस्था को भंग करने के लिए लेकिन सब व्यर्थ! क्यूंकि मेरे पवित्र शब्द अमर हैं मेरी कल्पनाये मेरी सोच अमर है, मेरे पास है शब्दों से भरा अमृत प्याला जो मुझसे कोई अलग नहीं कर सकता कोई भी नहीं!!
ॐ सांई राम।।।