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Author Topic: शिव का स्वरूप~~~  (Read 5386 times)

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Offline tana

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शिव का स्वरूप~~~
« on: November 19, 2007, 09:53:05 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    शिव का स्वरूप~~~
     
    शिव की महिमा अनंत है। उनके रूप, रंग और गुण अनन्य हैं। समस्त सृष्टि शिवमयहै। सृष्टि से पूर्व शिव हैं और सृष्टि के विनाश के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, परंतु जब सृष्टि का विस्तार संभव न हुआ तब ब्रह्मा ने शिव का ध्यान किया और घोर तपस्या की। शिव अ‌र्द्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए। उन्होंने अपने शरीर के अ‌र्द्धभागसे शिवा (शक्ति या देवी) को अलग कर दिया। शिवा को प्रकृति, गुणमयीमाया तथा निर्विकार बुद्धि के नाम से भी जाना जाता है। इसे अंबिका, सर्वलोकेश्वरी,त्रिदेव जननी, नित्य तथा मूल प्रकृति भी कहते हैं। इनकी आठ भुजाएं तथा विचित्र मुख हैं। अचिंत्य तेजोयुक्तयह माया संयोग से अनेक रूपों वाली हो जाती है। इस प्रकार सृष्टि की रचना के लिए शिव दो भागों में विभक्त हो गए, क्योंकि दो के बिना सृष्टि की रचना असंभव है। शिव सिर पर गंगा और ललाट पर चंद्रमा धारण किए हैं। उनके पांच मुख पूर्वा, पश्चिमा, उत्तरा,दक्षिणा तथा ऊध्र्वाजो क्रमश:हरित,रक्त,धूम्र,नील और पीत वर्ण के माने जाते हैं। उनकी दस भुजाएं हैं और दसों हाथों में अभय, शूल, बज्र,टंक, पाश, अंकुश, खड्ग, घंटा, नाद और अग्नि आयुध हैं। उनके तीन नेत्र हैं। वह त्रिशूल धारी, प्रसन्नचित,कर्पूर गौर भस्मासिक्तकालस्वरूपभगवान हैं। उनकी भुजाओं में तमोगुण नाशक सर्प लिपटे हैं। शिव पांच तरह के कार्य करते हैं जो ज्ञानमय हैं। सृष्टि की रचना करना, सृष्टि का भरण-पोषण करना, सृष्टि का विनाश करना, सृष्टि में परिवर्तनशीलतारखना और सृष्टि से मुक्ति प्रदान करना। कहा जाता है कि सृष्टि संचालन के लिए शिव आठ रूप धारण किए हुए हैं। चराचर विश्व को पृथ्वी रूप धारण करते हुए वह शर्वअथवा सर्व हैं। सृष्टि को संजीवन रूप प्रदान करने वाले जलमयरूप में वह भव हैं। सृष्टि के भीतर और बाहर रहकर सृष्टि स्पंदित करने वाला उनका रूप उग्र है। सबको अवकाश देने वाला, नृपोंके समूह का भेदक सर्वव्यापी उनका आकाशात्मकरूप भीम कहलाता है। संपूर्ण आत्माओं का अधिष्ठाता, संपूर्ण क्षेत्रवासी, पशुओं के पाश को काटने वाला शिव का एक रूप पशुपति है। सूर्य रूप से आकाश में व्याप्त समग्र सृष्टि में प्रकाश करने वाले शिव स्वरूप को ईशान कहते हैं। रात्रि में चंद्रमा स्वरूप में अपनी किरणों से सृष्टि पर अमृत वर्षा करता हुआ सृष्टि को प्रकाश और तृप्ति प्रदान करने वाला उनका रूप महादेव है। शिव का जीवात्मा रूप रुद्र कहलाता है। सृष्टि के आरंभ और विनाश के समय रुद्र ही शेष रहते हैं। सृष्टि और प्रलय, प्रलय और सृष्टि के मध्य नृत्य करते हैं। जब सूर्य डूब जाता है, प्रकाश समाप्त हो जाता है, छाया मिट जाती है और जल नीरव हो जाता है उस समय यह नृत्य आरंभ होता है। तब अंधकार समाप्त हो जाता है और ऐसा माना जाता है कि उस नृत्य से जो आनंद उत्पन्न होता है वही ईश्वरीय आनंद है। शिव,महेश्वर, रुद्र, पितामह, विष्णु, संसार वैद्य, सर्वज्ञ और परमात्मा उनके मुख्य आठ नाम हैं। तेईस तत्वों से बाहर प्रकृति,प्रकृति से बाहर पुरुष और पुरुष से बाहर होने से वह महेश्वर हैं। प्रकृति और पुरुष शिव के वशीभूत हैं। दु:ख तथा दु:ख के कारणों को दूर करने के कारण वह रुद्र कहलाते हैं। जगत के मूर्तिमान पितर होने के कारण वह पितामह, सर्वव्यापी होने के कारण विष्णु, मानव के भव रोग दूर करने के कारण संसार वैद्य और संसार के समस्त कार्य जानने के कारण सर्वज्ञ हैं। अपने से अलग किसी अन्य आत्मा के अभाव के कारण वह परमात्मा हैं। कहा जाता है कि सृष्टि के आदि में महाशिवरात्रि को मध्य रात्रि में शिव का ब्रह्म से रुद्र रूप में अवतरण हुआ, इसी दिन प्रलय के समय प्रदोष स्थिति में शिव ने ताण्डव नृत्य करते हुए संपूर्ण ब्रह्माण्ड अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से नष्ट कर दिया। इसीलिए महाशिवरात्रि अथवा काल रात्रि पर्व के रूप में मनाने की प्रथा का प्रचलन है।
     
    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline rajender786

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    • TERE SIVAH KAUN HAI MERA?
    Re: शिव का स्वरूप~~~
    « Reply #1 on: April 01, 2008, 12:06:05 AM »
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  • kafi achha likha hai ..... nice job
    ॐ साई नाथाये  नमः ॐ साई नाथाये  नमः
    ॐ साई नाथाये  नमः
    ॐ साई नाथाये  नमः
    ॐ साई नाथाये  नमः
    ॐ साई नाथाये  नमः
    ॐ साई नाथाये  नमः
    ॐ साई नाथाये  नमः
    ॐ साई नाथाये  नमः

    Offline tana

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    Re: शिव का स्वरूप~~~
    « Reply #2 on: June 24, 2008, 11:10:14 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    ॐ नमोः सांई शिव~~~

    पतित पावन परम पिता परमात्मा शिव,
    गीता ज्ञान दाता दिव्य चक्षु विधाता शिव~~~

    ॐ नमोः सांई शिव~~~

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
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    Offline tana

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    Re: शिव का स्वरूप~~~
    « Reply #3 on: July 03, 2008, 06:32:27 AM »
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  • ॐ सांई राम ~~~

    श्रीरुद्राष्टकम् ~~~

    नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।

    निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥1॥

    निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।

    करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो हं॥2॥

    तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।

    स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥

    चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।

    मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

    प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।

    त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

    कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।

    चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

    न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।

    न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

    न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।

    जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो।

    रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।

    ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥

     

    जय सांई राम ~~~

    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

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    Offline tana

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    Re: शिव का स्वरूप~~~
    « Reply #4 on: July 08, 2008, 10:27:55 PM »
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  • ॐ सांई राम ~~~

    शिव के आठ स्वरुप~~~

    सृष्टि संचालन के लिए शिव आठ रूप धारण किए हुए हैं। चराचर विश्व को पृथ्वी रूप धारण करते हुए वह शर्व अथवा सर्व हैं। सृष्टि को संजीवन रूप प्रदान करने वाले जलमयरूप में वह भव हैं। सृष्टि के भीतर और बाहर रहकर सृष्टि स्पंदित करने वाला उनका रूप उग्र है। सबको अवकाश देने वाला, नृपोंके समूह का भेदक सर्वव्यापी उनका आकाशात्मकरूप भीम कहलाता है। संपूर्ण आत्माओं का अधिष्ठाता, संपूर्ण क्षेत्रवासी, पशुओं के पाश को काटने वाला शिव का एक रूप पशुपति है।

    सूर्य रूप से आकाश में व्याप्त समग्र सृष्टि में प्रकाश करने वाले शिव स्वरूप को ईशान कहते हैं। रात्रि में चंद्रमा स्वरूप में अपनी किरणों से सृष्टि पर अमृत वर्षा करता हुआ सृष्टि को प्रकाश और तृप्ति प्रदान करने वाला उनका रूप महादेव है। शिव का जीवात्मा रूप रुद्र कहलाता है। सृष्टि के आरंभ और विनाश के समय रुद्र ही शेष रहते हैं। सृष्टि और प्रलय, प्रलय और सृष्टि के मध्य नृत्य करते हैं। जब सूर्य डूब जाता है, प्रकाश समाप्त हो जाता है, छाया मिट जाती है और जल नीरव हो जाता है उस समय यह नृत्य आरंभ होता है। तब अंधकार समाप्त हो जाता है और ऐसा माना जाता है कि उस नृत्य से जो आनंद उत्पन्न होता है वही ईश्वरीय आनंद है।

    शिव,महेश्वर, रुद्र, पितामह, विष्णु, संसार वैद्य, सर्वज्ञ और परमात्मा उनके मुख्य आठ नाम हैं। तेईस तत्वों से बाहर प्रकृति,प्रकृति से बाहर पुरुष और पुरुष से बाहर होने से वह महेश्वर हैं। प्रकृति और पुरुष शिव के वशीभूत हैं। दु:ख तथा दु:ख के कारणों को दूर करने के कारण वह रुद्र कहलाते हैं। जगत के मूर्तिमान पितर होने के कारण वह पितामह, सर्वव्यापी होने के कारण विष्णु, मानव के भव रोग दूर करने के कारण संसार वैद्य और संसार के समस्त कार्य जानने के कारण सर्वज्ञ हैं। अपने से अलग किसी अन्य आत्मा के अभाव के कारण वह परमात्मा हैं। 

    जय सांई राम ~~~
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    Re: शिव का स्वरूप~~~
    « Reply #5 on: July 16, 2008, 06:06:19 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~


    ॐ नमः शिवाय का महत्व~~~
     
    शिव भक्तों का सर्वाधिक लोग प्रिय मंत्र है "ॐ नमः शिवाय"। नमः शिवाय अर्थात शिव जी को नमस्कारपाँचअक्षर का मंत्र है "न", "म", "शि", "व" और "य" । प्रस्तुत मंत्र इन्ही पाँच अक्षरों की व्याख्या करता है। स्तोत्र के पाँच छंद पाँच अक्षरों की व्याख्या करते हैं। अतः यह स्तोत्र पंचाक्षर स्तोत्र कहलाता है। "ॐ" के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का हो जाता है। एक दूसरा स्तोत्र "शिव षडक्षर स्तोत्र इन छः अक्षरों पर आधारित है|

    नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
    नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥

    मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
    मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे "म" काराय नमः शिवायः॥

    शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय|
    श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥

    वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।

    चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥

    यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय|
    दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥

    पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ|
    शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

    ॐ नमोः सांई शिव~~~ॐ नमोः सांई शिव~~~ॐ नमोः सांई शिव~~~
    ॐ नमोः सांई शिव~~~ॐ नमोः सांई शिव~~~ॐ नमोः सांई शिव~~~

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    Re: शिव का स्वरूप~~~
    « Reply #6 on: July 27, 2008, 10:48:40 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    ॐ नमोः शिव सांई~~~

    पतित पावन परम पिता परमात्मा शिव,
    गीता ज्ञान दाता दिव्य चक्षु विधाता शिव~~~

    'शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं। -ब्रह्मवैवर्त पुराण

    ॐ नमोः शिव सांई~~~

    जय सांई राम~~~

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    Re: शिव का स्वरूप~~~
    « Reply #7 on: July 29, 2008, 12:46:59 AM »
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  • ॐ सांई राम ~~~

    शंकर शिव शम्भु साधु संतन हितकारी ॥

    लोचन त्रय अति विशाल सोहे नव चन्द्र भाल ।
    रुण्ड मुण्ड व्याल माल जटा गंग धारी ॥

    पार्वती पति सुजान प्रमथराज वृषभयान ।
    सुर नर मुनि सेव्यमान त्रिविध ताप हारी ॥


    जय सांई राम ~~~

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    Re: शिव का स्वरूप~~~
    « Reply #8 on: August 01, 2008, 04:54:12 AM »
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  • ॐ सांई राम ~~~

    शिव के बारह ज्योतिर्लिंग~~~

    भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग भागों में स्थित हैं। इन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।

    इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मातर के सारे पाप व दुष्क्रत्य समाप्त हो जाते हैं। वे भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं।

    श्री सोमनाथ
    श्री मल्लिकार्जुन
    श्री महाकालेश्वर
    श्री ओंकारेश्वर-श्री ममलेश्वर
    श्री केदारनाथ
    श्री विश्वनाथ
    श्री त्र्यम्बकेश्वर
    श्री वैद्यनाथ
    श्री नागेश्वर
    श्री रामेश्वर
    श्री घुश्मेश्वर
    श्री भीमेश्वर


    जय सांई राम ~~~

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