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Sai Literature => सांई बाबा के हिन्दी मै लेख => Topic started by: tana on October 15, 2007, 10:42:24 PM

Title: अवतारी संत ~~~सांईंराम~~~{must read}
Post by: tana on October 15, 2007, 10:42:24 PM
ॐ सांई राम~~~

अवतारी संत ~~~

सांईंराम किसी दिव्य शक्ति के अवतार ही थे। उनके अलौकिक कृत्यों के कारण कोई उन्हे विट्ठल का अवतार मानता था तो कोई शिव का तो कोई साक्षात् परब्रह्म का। उनके अवतारी पुरुष होने के संबंध में 'शिरडी के साईं' खंड काव्य की ये पंक्तियां द्रष्टव्य है-

द्वापर का ही कृष्ण कहो या राम रहा जो त्रेता का।

शिरडी में साई बन आया

गौरव लिए विजेता का॥

विजित हुए थे पाप-ताप सब त्रसित हुए पापाचारी।

अनुगतों और भक्तों का तो बन आया वह भयहारी॥


इस फकीर से प्रतीत होते व्यक्ति की शक्ति अद्भुत थी। उसने कितने कोढि़यों को काया दी, कितने नि:संतान को संतान दी, कितने को असाध्य आधि-व्याधियों से मुक्ति दी, इसकी गणना नहीं हो सकती। यह कोई कल्पित गाथा नहीं है। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है जिसे उस समय के गण्यमान्य व्यक्तियों ने अपनी पुस्तकों तथा अपने आलेखों में अंकित किया। ये सामग्रियां आज भी उपलब्ध है। साई ने असंख्य चमत्कार किए जिनमें एक-दो का उल्लेख ही हम यहां कर पाएंगे।

साई कहां पैदा हुए, कब पैदा हुए, यह कोई नहीं जानता। वह अकस्मात् 16-17 वर्ष के युवक के रूप में शिरडी के एक नीम वृक्ष के नीचे लोगों को दिखाई पड़े थे। मुख से एक ऐसी कान्ति फूटती थी मानो वह एक विलक्षण सिद्ध पुरुष हों। अपनी निरन्तर उपस्थिति से उन्होंने नीम-वृक्ष को भी धन्य कर दिया।

'श्री साईं सच्चरित्र' के अनुसार~~~

सदा निंबवृक्षस्य मूलाधिवासात्।

सुधास्त्राविणं तिक्तमप्यप्रियं तम्।

तरुं कल्पवृक्षाधिकं साधयन्तम्।

नमामीश्वरं सद्गुरुं साईनाथम्।


मैं सद्गुरु साईनाथ का नमन करता हूं, जिनका सामीप्य पाकर नीम-वृक्ष तिक्त होकर भी सदा अमृत-वर्षण करता है। यह पेड़ कल्पवृक्ष से भी अधिक फलदाई है।

नीम-वृक्ष के नीचे विराजने की पुष्टि इन मोहक काव्य पंक्तियों से भी होती है~~~

नीम वृक्ष के नीचे ही थी

लगी पालकी बालक की।

वय होगी सोलह-सत्रह की

तेजस्वी भवपालक की॥


साई साम्प्रदायिक सद्भाव के साक्षात् प्रतीक थे। वह हिंदू और मुसलमान दोनों थे। मुलिम वेशभूषा थी, सदा 'अल्लाह मालिक' जपते थे, एक मसजिद को ही अपना आवास बनाया था पर इसे नाम दिया था 'द्वारिका माई'। इसी जगह मुसलमानों का 'उर्स' महोत्सव होता था तो रामनवमी का कार्यक्रम भी क्रियान्वित होता था। निस्संदेह यह सर्वज्ञाता कृष्ण की द्वारिका के महत्व से अच्छी तरह परिचित था जो 'स्कन्द पुराण' में यों वर्णित है-चतुर्वर्णामपि वर्गाणां यत्र द्वाराणि सर्वत:। अतो द्वारावतीत्युक्ता विद्वद्भिस्तत्व वादिभि:॥

चारो वर्णों के लोगों के लिए जिसके द्वार सर्वत्र खुले है उसे ही तत्व ज्ञानी विद्वान द्वारिका कहते हैं।

साईं बाबा की 'द्वारिका माई' के द्वार भी सदा उद्घाटित थे-गरीब-अमीर, साधु-असाधु और हिंदू-मुसलमान सबके लिए।

साईं बाबा इस मसजिद को नित्य संध्या दीपों से सजाते थे जिसके लिए वह आस-पास के दुकानों से तेल मांगते थे। एक दिन दुकानदारों ने निश्चय किया कि अब मुफ्त में तेल नहीं देंगे। साईं ने सभी मिट्टी के दीयों में तेल के बदले पानी भर दिया। दीप जल उठे और मसजिद रात भर प्रकाश से जगमग करती रही। दुकानदारों की आंखें खुल गई।

एक बार शिरडी में हैजे का घोर प्रकोप हुआ। साई बैठकर चक्की में गेहूं पीसने लगे। यह देखकर कई लोग उपस्थित हो गए। चार औरतों ने चक्की लेकर स्वयं पीसना शुरू किया। पर्याप्त आटा हो गया तो साई ने उसे गांव की सीमाओं पर छिड़कवा दिया। हैजा गायब। लोगों को लग गया कि बाबा ने गेहूं के रूप में हैजे को ही पीस डाला।

शिरडी को 'उदी' (धूनी का भस्म) की महिमा तो न्यारी है। सहस्रों किलोमीटर दूर भी इनके भक्त इस 'उदी' के द्वारा रोगों और संकटों से मुक्त हो जाते है। यह सत्य है कि कई पूर्णरूपेण समर्पित भक्तों के यहां बाबा के चित्रों से उदी झड़ती है।

शिरडी आने वाले लोगों की संख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है। नवरात्र एवं निर्वाणोत्सव पर तो दर्शन में कई-कई दिन लग जाते है।

शिरडी आज देश के प्रमुख तीन-चार तीर्थों में एक है।


जय सांई राम~~~