पवन की गति मंद पड़ जाती है, जब हनुमान उडान भरते है
आकाश की ऊंचाई नीची लगती है, जब हनुमान विशाल रूप धरते है
सागर की गहराई शर्माती है, जब हनुमान अंजुली मे जल भरते है
तूफान भय से थराते है, जब हनुमान हुंकार भरते है
अगन का तेज शीतल लगता है, जब हनुमान के नेत्र रुधर भरते है
जर्रा भी पर्वत बन जाता है, जब हनुमान दया द्रष्टि धरते है
राग समस्त एक राम नाम में समाते है, जब हनुमान तान भरते है
हनुमान दुःख भंजन, भक्तो की सब पीड़ा हरते है
कर मुक्त विकारो से, जीवन उज्जवल करते है
समस्त जन जो हनुमान के श्री चरणों का ध्यान करते है
हो मुक्त माया के बन्धनों से, प्रभु की प्रीत से बंधते है
जीवन मुक्त हो जाता है, संसार भव सागर तरते है
फिर क्यूँ न saib मान करे, बारम्बार प्रणाम करे
जिसके हनुमान भक्त शिरोमणि देवों मे भी
विशिस्ट स्थान रखते है ............................. !
शुक्रिया बाबा साईं, हनुमान चालीसा तो कई बार पड़ा, पर तुलसीदास जी का क्या तात्पर्य रहा होगा जब उन्होंने कहा :
"भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै"
इसका अर्थ मात्र मानसिक निबलता पर विजय प्राप्ति ही नहीं बल्कि प्रभु नाम की उर्जा और शक्ति का संचय कर विचारो और व्यवहार को शुद्ध और उच्च कर प्रभु भक्ति का पात्र बनना भी है !
हनुमान जी की महिमा अनंत है !
जय हनुमान !
जय जय हनुमान !!
जय श्री साईं राम !!!