माता वैष्णों के दरबार में दोनों समय होने वाली आरती
हे मात मेरी...........हे मात मेरी
कैसे ये देर लगाई है दुर्गे, हे मात मेरी हे मात मेरी ।
भवसागर में गिरा पड़ाहूँ, काम आदि गह में घिरा पड़ा हूँ
मोह आदि जाल में जकड़ा हँ
हे मात मेरी, हे मात मेरी................
न मुझमें बल है न मुझमें विघा
न मुझमें भक्ति न मुझमें शक्ति
शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ । । हे मात मेरी ।। 2 ।।
न कोई मेरा कुटुम्बी साथी, ना ही मेरा शरीर साथी
चरण कमल की नौका बनाकर,
मैं पार हूँगा खुशी मनाकर
यमदूतों को मार भगाकर ।। 2 ।।
सदा ही तेरे गुणो को गाऊँ, सदा ही तेरे स्वरुप को ध्याऊँ
नित्य प्रति तेरे गुणों को गाऊँ ।। हे मात मेरी ।। 2।।
न मैं किसी का न कोई मेरा, छाया है चारों तरफ अँधेरा
पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता हे मात मेरी ।।
शरण में पड़े है हम तुम्हारी, करो ये नैया पार हमारी
कैसे से देर लगाई है दुर्गे हे मात मेरी..........