जय सांई राम
ज़िन्दगी क्या है
फूलों का खेल है कभी पत्थर का खेल है,
इन्सान की ज़िन्दगी तो मुकदर का खेल है,
बहला के अपने पास बुलाकर फरेब से,
नदियों को लूटना तो समन्दर का खेल है
हम जिसको ढूढते है ज़माने में उमर भर
वो ज़िन्दगी तो अपने अन्दर का खेल है
हर लम्हा हौसलों के मुकाबिल हैं हादसे,
दोनो के दरमियान बराबर का खेल है,
कहते है लोग जिसको धनक और कुछ नही,
अश्कों से लिपटी धूप की चादर का खेल है,
दुनिया पुकारती है जिसे घर के नाम से
सच पूछिये तो नीव के पत्थरों का खेल है।
ॐ सांई राम।।।