निम्नलिखित आवश्यक बिंदु स्वयं पढ़े और जरूरतमंदो को भी सुनाये
●चातुर्मास में भगवान शिव और विष्णु का पूजन दस गुना फलप्रद होता हैं।
●मिथुन (आषाढ़) और कर्क (श्रावण) राशीके सूर्य में जो द्वितीया आये, उसमे उपवास करके भगवान् विष्णु का पूजन करने वाली स्त्री कभी विधवा नही होती।
●20 August , 2016 bhagwaan लक्ष्मीनारायण की पूजा करे।इस व्रत से पति पत्नी कभी अलग नही होते।
●chaturmaas m log alag alag niyam grahen karte hai jaise घी, खट्टा, फल, गुड़ का परित्याग ,तेल का परित्याग , पुष्प आदि के भोगो का परित्याग, इन सभी का फल अलग अलग हैं जो की पूराण में वर्णित हैं।
●सावन में मट्ठा, भाद्रपद में दही, आश्विन मास में दूध का परित्याग करना चाहिय। इस नियम से मनुष्य गौलोक को प्राप्त करता हैं।
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भविष्य पुराण १८ प्रमुख पुराणों में से एक है। इसकी विषय-वस्तु एवं वर्णन-शैलीकी दृष्टि से अत्यन्त उच्च कोटि का है। इसमें धर्म, सदाचार, नीति, उपदेश, अनेकों आख्यान, व्रत, तीर्थ, दान, ज्योतिष एवं आयुर्वेद शास्त्र के विषयों का अद्भुत संग्रह है। वेताल-विक्रम-संवाद के रूप में कथा-प्रबन्ध इसमें अत्यन्त रमणीय है। इसके अतिरिक्त इसमें नित्यकर्म, संस्कार, सामुद्रिक लक्षण, शान्ति तथा पौष्टिक कर्म आराधना और अनेक व्रतोंका भी विस्तृत वर्णन है।भविष्य पुराण में भविष्य में होने वाली घटनाओं का वर्णन है।
यह ग्रंथ बहुत अधिक प्राचीन नहीं है। इस पुराण में दो हज़ार वर्ष का अत्यन्त सटीक विवरण प्राप्त होता है। 'भविष्य पुराण' के अनुसार, इसके श्लोकों की संख्या पचास हज़ार के लगभग होनी चाहिए, परन्तु वर्तमान में कुल अट्ठाईस हज़ार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को चार खण्डों में विभाजित किया गया है- ब्राह्म पर्व, मध्यम पर्व, प्रतिसर्ग पर्व और उत्तर पर्व। 'भविष्य पुराण' की विषय वस्तु में सूर्य की महिमा, उनके परम तेजस्वी स्वरूप, उनके परिवार, उनकी उपासना पद्धति, विविध व्रत-उपवास, उनको करने की विधि, सामुद्रिक शास्त्र, स्त्री-पुरुष के शारीरिक लक्षण, रत्नों एवं मणियों की परीक्षा का विधान, विभिन्न प्रकार के स्तोत्र, अनेक सप्रकार की औषधियों का वर्णन, वर्प विद्या का विशद् ज्ञान, विविध राजवंशों का उल्लेख, विविध भारतीय संस्कार, तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था, शिक्षा-प्रणाली तथा वास्तु शिल्प आदि शामिल हैं जिन पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।