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Main Section => Inter Faith Interactions => Guru Ki Vani - गुरू की वाणी => Topic started by: rajiv uppal on January 08, 2008, 08:50:50 AM

Title: माता गुजरीजी की कुर्बानी {MOTHER OF GURU GOBIND SINGH JI}
Post by: rajiv uppal on January 08, 2008, 08:50:50 AM
माता गुजरीजी की कुर्बानी  


नारी शक्ति की प्रतीक, वात्सल्य, सेवा, परोपकार, त्याग, उत्सर्ग की शक्तिस्वरूपा माता गुजरीजी का जन्म करतारपुर (जालंधर) निवासी लालचंद व बिशन कौरजी के घर सन् 1627 में हुआ था।

8 वर्ष की आयु में उनका विवाह करतारपुर में श्री तेगबहादुर साहब के साथ हुआ।

विवाह के कुछ समय पश्चात गुजरीजी ने करतारपुर में मुगल सेना के साथ युद्ध को अपनी आँखों से मकान की छत पर चढ़कर देखा। उन्होंने गुरु तेगबहादुरजी को लड़ते देखा और बड़ी दिलेरी से उनकी हौसला अफजाई कर अपनी हिम्मत एवं धैर्य का परिचय दिया। सन 1666 में पटना साहिब में उन्होंने दसवें गुरु गोबिंदसिंहजी को जन्म दिया।

अपने पति गुरु तेगबहादुरजी को हिम्मत एवं दिलेरी के साथ कश्मीर के पंडितों की पुकार सुन धर्मरक्षा हेतु शहीदी देने के लिए भेजने की जो हिम्मत माताजी ने दिखाई, वह विश्व इतिहास में अद्वितीय है।

सन 1675 में पति की शहीदी के पश्चात उनके कटे पावन शीश, जो भाई जीताजी लेकर आए थे, के आगे माताजी ने अपना सिर झुकाकर कहा, 'आपकी तो निभ गई, यही शक्ति देना कि मेरी भी निभ जाए।'

सन् 1704 में आनंदपुर पर हमले के पश्चात आनंदपुर छोड़ते समय सरसा नदी पार करते हुए गुरु गोबिंदसिंहजी का पूरा परिवार बिछुड़ गया। माताजी और दो छोटे पोतें , गुरु गोबिंदसिंहजी एवं उनके दो बड़े भाईयों से अलग-अलग हो गए। सरसा नदी पार करते ही गुरु गोबिंदसिंहजी पर दुश्मनों की सेना ने हमला बोल दिया।

चमकौर साहब की गढ़ी के इस भयानक युद्ध में गुरुजी के दो बड़े साहबजादों ने शहादतें प्राप्त कीं। साहबजादा अजीतसिंह को 17 वर्ष एवं साहबजादा जुझारसिंह को 14 वर्ष की आयु में गुरुजी ने अपने हाथों से शस्त्र सजाकर मृत्यु का वरण करने के लिए धर्मयुद्ध भूमि में भेजा था।

सरसा नदी पर बिछुड़े माता गुजरीजी एवं छोटे साहिबजादे जोरावरसिंहजी 7 वर्ष एवं साहबजादा फतहसिंहजी 5 वर्ष की आयु में गिरफ्तार कर लिए गए।

उन्हें सरहंद के नवाब वजीर खाँ के समक्ष पेश कर ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया गया और फिर कई दिन तक नवाब, काजी तथा अन्य अहलकार उन्हें अदालत में बुलाकर धर्म परिवर्तन के लिए कई प्रकार के लालच एवं धमकियाँ देते रहे।

दोनों साहबजादे गरजकर जवाब देते, 'हमारी लड़ाई अन्याय, अधर्म एवं जोर-जुल्म तथा जबर्दस्ती के खिलाफ है। हम तुम्हारे इस जुल्म के खिलाफ प्राण दे देंगे लेकिन झुकेंगे नहीं।' अततः 26 दिसंबर 1704 को वजीर खाँ ने उन्हें जिंदा चुनवा दिया।

साहिबजादों की शहीदी के पश्चात बड़े धैर्य के साथ ईश्वर का शुक्राना करते हुए माता गुजरीजी ने अरदास की एवं 26 दिसंबर 1704 को प्राण त्याग दिए।
Title: Re: माता गुजरीजी की कुर्बानी {MOTHER OF GURU GOBIND SINGH JI}
Post by: Dipika on June 14, 2008, 05:40:32 AM
माता गुजरीजी की कुर्बानी {MOTHER OF GURU GOBIND SINGH JI}...........

it brought tears to my eyes...blessed is such a Mother..


Waheguru Satnaam..........

Sai baba let your holy lotus feet be our sole refuge.OMSAIRAM