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Main Section => Inter Faith Interactions => Guru Ki Vani - गुरू की वाणी => Topic started by: rajiv uppal on October 16, 2007, 07:18:40 AM

Title: मानवता के संदेश वाहक श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी
Post by: rajiv uppal on October 16, 2007, 07:18:40 AM
मानवता के संदेश वाहक श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी

 
दिव्य आत्माओं द्वारा रचित एवं उच्चरित गुरु ग्रन्थ साहिब आध्यात्मिक काव्य का एक ऐसा देदीप्यमान संग्रह है, जो न केवल अध्यात्म वरन् जीवन संघर्ष के हर क्षेत्र में मानवीय आदर्शो को अक्षुण्ण रखने का संदेशवाहक है। एक ऐसा संदेशवाहक जिसके संदेश किसी खास धर्म,जाति या देश के लिए न होकर समूची मानवजाति के लिए है। ऐसे बहुलवादीधर्मग्रन्थ का संपादन पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी ने किया। गुरु ग्रन्थ साहिब जी का पहला प्रकाश 16अगस्त 1604को हरिमंदिरसाहिब अमृतसर में हुआ। पंथ की बुजुर्ग और महान शख्सियत बाबा बुढ्ढाजी को पहला ग्रन्थी नियुक्त किया गया। मगर 1705में दमदमा साहिब में दशमेशपिता गुरुगोविंदसिंह जी ने गुरु तेगबहादुरजी के 116शबदजोडकर इसको पूर्ण किया। इस वर्ष हम गुरुग्रन्थ साहिब के समापनाकी 300वींवर्षगांठ मना रहे हैं।

गुरु ग्रन्थ साहिब का संकलन गुरु अर्जुन देव जी की मानव जाति की बडी देन थी। उस वक्त सामाजिक, धार्मिक, नैतिक मूल्यों का निरन्तर क्षरण हो रहा था। मानव हृदय नित अशांत व चिंतातुर हो रहा था। धर्मान्ध मुगल सत्ता से पीडित हर कोई प्रतिक्रिया, प्रतिहिंसा और प्रतिकार की आग में जल रहा था। कथित रचनाकार स्वलिखित आडंबर प्रेरित रचनाओं को गुरुओं की रचना बताकर पेश कर रहे थे। ऐसे में गुरु उपदेशों में अपने जीवन की सार्थकता ढूंढ रहे असंख्य लोगों में भ्रम उत्पन्न हो रहा था। साथ ही तत्कालीन सामाजिक परिवेश में जरूरत थी, ऐसे ग्रंथ की जो आत्म-संशय से जूझ रहे अल्पशिक्षितलोगों को भी अध्यात्मिक मार्गदर्शन दे सके। गुरु अर्जुन देव जी ने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपने पूर्ववर्ती गुरुओं की वाणी को संकलित किया। उनको राग के अनुसार बांट कर परिष्कृत किया। अन्य किसी धर्म के पावन ग्रन्थ में, वे चाहे कितने भी पूजित-वदित क्यों न हो, अन्य वाणियों को स्थान नहीं मिला। मगर गुरु ग्रन्थ साहिब में सर्वधर्म सद्भाव का ऐसा स्फुरण है, जिसके लिए जाति-पाति, धर्म के तमाम भेद गौण है। गौरतलब है कि गुरुग्रन्थ साहिब में मात्र सिख गुरुओं के ही उपदेश नहीं हैं, वरन् 30अन्य हिंदू और मुस्लिम भक्तों की वाणी भी सम्मिलित है। जहां जयदेवजीऔर परमानंदजीजैसे ब्राह्मण भक्तों की वाणी है, वहीं जाति-पांति के आत्महंताभेदभाव से ग्रस्त तत्कालीन समाज में हेय समझे जाने वाली जातियों के प्रतिनिधि दिव्य आत्माओं जैसे कबीर जी, रविदासजी,नामदेव जी, सैणजी, सघनाजी, छीवाजी,धन्नाकी वाणी भी सम्मिलित है। पांचों वक्त नमाज पढने में विश्वास रखने वाले शेख फरीद के श्लोक भी गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। अपनी भाषायी अभिव्यक्ति, दार्शनिकता,संदेश की दृष्टि से गुरु ग्रन्थ साहिब अद्वितीय है। इसकी भाषा की सरलता, सुबोधता,सटीकताजहां जनमानस को आकर्षित करती है। वहीं संगीत के सुरों व 31रागों के प्रयोग ने आत्मविषयकगूढ आध्यात्मिक उपदेशों को भी मधुर व सारग्राही बना दिया है। गुरु ग्रन्थ साहिब जाति, मत, पाखंड और परिपाटी से ऊपर उठने का संदेशवाहक है। यह ग्रन्थ समूची मानवजाति को एक पिता ऐकसके हम बारिक समझ कर साम्प्रदायिक सौहार्द और भाईचारे का सन्देश देता है। इस दिव्य संकलन के सारगर्भित उपदेश धार्मिक सद्भावना की ज्योति जलाते हैं और मानव मात्र में अ‌र्न्तनिहितएकता की ओर हमारा ध्यान खींचते हैं। खत्री ब्राह्मण सूद वैस,उपदेश चहुवरना को साझा, गुरमुखनाम जपैउघरेसै,कल महिघटिघटिनानक माझा।

गुरु ग्रन्थ साहिब के अंदर सभी शब्दों में परमपिता परमेश्वर की सर्वव्यापकता,अनेक रूपता को चित्रित किया गया है। गुरुवाणीअनुसार परमात्मा किसी एक धर्म, देश, मत या भाषा से बंधा नहीं है। वास्तव में जब हम परमेश्वर की अनंतता को सीमाओं में बांध देते है,तभी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब में उल्लेखितदार्शनिकताकर्मवाद को मान्यता देती है। गुरुवाणीके अनुसार व्यक्ति अपने कर्मो के अनुसार ही महत्व पाता है। समाज की मुख्य धारा से कटकर संन्यास में ईश्वर प्राप्ति का साधन ढूंढ रहे साधकों को गुरुग्रन्थ साहिब सबक देता है। हालांकि गुरु ग्रन्थ साहिब में आत्मनिरीक्षण,ध्यान का महत्व स्वीकारा गया है, मगर साधना के नाम पर परित्याग, अकर्मण्यता, निश्चेष्टताका गुरुवाणीविरोध करती है। गुरुवाणीके अनुसार ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व से विमुख होकर जंगलों में भटकने की आवश्यकता नहीं है। ईश्वर हमारे हृदय में ही है, उसे अपने आन्तरिक हृदय में ही खोजने व अनुभव करने की आवश्यकता है।

फरीदाजंगल-जंगल किया भवहिवणिकंडा मोडेहिवरनीरब हि आलीअे,जंगल निआठुठेहि॥ईश्वरीय प्रेम के दिव्य संदेश के साथ-साथ गुरुग्रन्थ साहिब हमें अपने सामाजिक सरोकारों के प्रति भी उत्तरदायी होने की सीख देता है। गुरुवाणीब्रह्मज्ञान से उपजी आत्मिक शक्ति को लोककल्याण के लिए प्रयोग करने की प्रेरणा देती है। मधुर व्यवहार और विनम्र शब्दों के प्रयोग द्वारा हर हृदय को जीतने की सीख दी गई है। मिठत नीवी नानकागुण चंगिआईयातत गुरु ग्रंथसाहिबके अंदर धर्म के नाम पर आडंबरों आधार विहीन रीतिरिवाजों और अंधविश्वासों पर कडा प्रहार किया गया है। साथ ही सामाजिक बुराइयों के खिलाफ चेतना भी कायम की गई है।

इस प्रकार गुरु ग्रन्थ साहिब जहां तत्कालीन सामाजिक धार्मिक राजनैतिक परिस्थितियों का आइना है, गुलामी और अत्याचार सहने को अपनी नियति मान चुके लोगों के सोए हुए स्वाभिमान व आत्मबल को जगाने की कोशिश थी। वहीं आधुनिक संदर्भ में इनके सारगर्भित उपदेश उतने ही प्रासंगिक हैं। जीवन क्षेत्र में आने वाली किसी कठिनाई,निराशा या संशय की स्थिति में हम गुरुग्रंथ साहिब से मार्गदर्शन ले सकते हैं।

Title: Re: मानवता के संदेश वाहक श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी
Post by: rajender1555 on October 18, 2007, 03:07:57 AM
verry nice rajiv