Welcome,
Guest
. Please
login
or
register
.
Did you miss your
activation email
?
October 09, 2024, 02:44:07 PM
Home
Help
Gallery
Facebook
Login
Register
DwarkaMai - Sai Baba Forum
»
Main Section
»
Inter Faith Interactions
»
Guru Ki Vani - गुरू की वाणी
»
मीरी-पीरी के मालिक...श्री हरिगोबिंद साहिब - प्रकाश-पर्व
Join Sai Baba Announcement List
DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018
« previous
next »
Print
Pages: [
1
]
Go Down
Author
Topic: मीरी-पीरी के मालिक...श्री हरिगोबिंद साहिब - प्रकाश-पर्व (Read 6445 times)
0 Members and 1 Guest are viewing this topic.
PiyaSoni
Members
Member
Posts: 7719
Blessings 21
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ
मीरी-पीरी के मालिक...श्री हरिगोबिंद साहिब - प्रकाश-पर्व
«
on:
July 05, 2013, 12:19:08 AM »
Publish
सिखों के छठे गुरु एवं अकाल तख्त के संस्थापक श्री हरिगोबिंद साहिब का संदेश था कि आध्यात्मिक मूल्यों (पीरी) के साथ राजनीतिक शक्ति (मीरी) भी प्राप्त करनी चाहिए।
पांचवें गुरु और पिता के बलिदान के बाद मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में गुरु हरिगोबिंद साहिब ने सिखों का नेतृत्व संभाला। अत्याचारियों से संघर्ष करने के लिए गुरु जी ने सिखों को शस्त्रधारी बनाने का कार्य आरंभ किया। गुरु-गद्दी पर विराजमान होते समय छठम गुरु ने दो तलवारें धारण कीं। एक ‘मीरी’ अर्थात राजनीतिक शक्ति की और दूसरी ‘पीरी’ अर्थात अध्यात्मिक शक्ति की। गुरु जी ने सिखों को संदेश दिया कि उच्च आध्यात्मिक मूल्य धारण करने के साथ-साथ शारीरिक और राजनीतिक शक्ति भी प्राप्त करें।
गुरु जी के आदेशानुसार सिखों को घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी, नेजेबाजी (भाले से युद्ध कला) आदि का अभ्यास करा सैनिक प्रशिक्षण दिया जाने लगा। शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए ‘मल्ल अखाड़े’ करवाए जाने लगे। कवि और ढाडी वीर रस की कविताओं और ‘वारों’ (साहसिक कथाओं) द्वारा सिखों के मन में उत्साह जगाने लगे।1इस तरह बहुत ही कम समय में एक बड़ी सिख सेना तैयार हो गई। गुरु जी ने अमृतसर में लौहगढ़ नाम का एक किला भी बनवाया। गुरु जी ने 2 जुलाई 1609 ई. को हरिमंदिर साहिब के सामने ‘अकाल बुंगे’ का निर्माण शुरू करवाया। बादशाह के तख्त के मुकाबले इसे ‘अकाल तख्त’ कहा गया।
सिखों की सैनिक तैयारियों ने जहांगीर को चिंतित कर दिया। उसने गुरु साहिब को गिरफ्तार करके ग्वालियर के किले में भेज दिया। वहां पहले से ही 52 राजा बगावत के आरोप में कैद थे। गुरु जी ने जेल का भोजन लेने से इंकार कर दिया। वे एक घसियारे सिख हरिदास द्वारा परिश्रम से जुटाया गया भोजन ग्रहण करते रहे। गुरु जी की कैद ने सिखों को आक्रोशित कर दिया। सिख बाबा बुड्ढा जी एवं भाई गुरदास के नेतृत्व में जत्थे बनाकर ग्वालियर जाते और किले की दीवारों को चूमते, परिक्रमा करते और लौट आते। सिखों के शांतिपूर्ण आंदोलन और न्यायप्रिय सलाहकारों के समझाने पर जहांगीर गुरु जी को रिहा करने के लिए तैयार हो गया।
गुरु जी ने कहा कि वे सिर्फ तभी रिहा होंगे, जब 52 राजाओं को भी रिहा किया जाएगा। यहां जहांगीर ने एक चाल चली। उसने कहा कि जितने राजा गुरु जी का चोला पकड़कर बाहर आ जाएंगे, उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। भाई हरिदास ने गुरु जी के लिए ऐसा चोला तैयार करवाया जिसमें 52 कलियां थीं। हर राजा ने एक-एक कली पकड़ी और किले से बाहर आकर मुक्त हो गए। तब से गुरु जी ‘बंदी छोड़ दाता’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए।गुरु जी और मुगलों में चार युद्ध पिपली साहिब, अमृतसर का युद्ध (1629), हरगोबिंदपुर का युद्ध (1630), नथाणा का युद्ध (1631) एवं करतारपुर का युद्ध (1634) लड़े गए और इन चारों में गुरु हरिगोबिंद साहिब विजयी रहे।1गुरु जी ने इतने सारे महत्वपूर्ण कार्य मात्र 49 वर्ष की छोटी सी आयु में किये। गुरु परंपरा के अनुसार, छठे गुरु ने ज्योति जोत समाने से पांच दिन पूर्व अपने पौत्र गुरु हरिराय जी को गुरुगद्दी सौंप दी !
वाहेगुरु जी का खालसा
वाहेगुरु जी की फ़तेह !!
Logged
"नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "
Print
Pages: [
1
]
Go Up
« previous
next »
DwarkaMai - Sai Baba Forum
»
Main Section
»
Inter Faith Interactions
»
Guru Ki Vani - गुरू की वाणी
»
मीरी-पीरी के मालिक...श्री हरिगोबिंद साहिब - प्रकाश-पर्व
Facebook Comments