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Author Topic: मीराबाई के भजन  (Read 29786 times)

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Offline Sai Meera

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मीराबाई के भजन
« on: May 18, 2009, 04:31:48 AM »
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  • राग रामकली

    अब तो निभायाँ सरेगी, बांह गहेकी लाज।
    समरथ सरण तुम्हारी सइयां, सरब सुधारण काज॥
    भवसागर संसार अपरबल, जामें तुम हो झयाज।
    निरधारां आधार जगत गुरु तुम बिन होय अकाज॥
    जुग जुग भीर हरी भगतन की, दीनी मोच्छ समाज।
    मीरां सरण गही चरणन की, लाज रखो महाराज॥

    शब्दार्थ :- निभायां =निबाहने से ही। सरेगी =बनेगी। अपरबल =प्रबल, अपार। झयाज = जहाज,आश्रय। निरधारां =निराधारों, असहायों।

    « Last Edit: May 18, 2009, 04:39:42 AM by Sai Meera »
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

    Offline Sai Meera

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #1 on: May 18, 2009, 04:33:00 AM »
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  • अब तौ हरी नाम लौ लागी।
    सब जगको यह माखनचोरा, नाम धर्‌यो बैरागीं॥
    कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी।
    मूड़ मुड़ाइ डोरि कटि बांधी, माथे मोहन टोपी॥
    मात जसोमति माखन-कारन, बांधे जाके पांव।
    स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नांव॥
    पीतांबर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
    गौर कृष्ण की दासी मीरा, रसना कृष्ण बसै॥

    टिप्पणी :- ऐसा जान पड़ता है कि वृन्दावन में श्री जीव गोस्वामी से भेंट होने के बाद चैतन्य महाप्रभु का गुण-कीर्तन इस पद में मीराबाई ने किया था।
    « Last Edit: May 18, 2009, 04:40:01 AM by Sai Meera »
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

    Offline child_of_sai

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #2 on: May 18, 2009, 07:17:59 AM »
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  • bahut achhay hain, sai meera ji....liktay rahna....

    Sai Ram.

    Offline Sai Meera

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #3 on: May 19, 2009, 04:21:42 AM »
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  • राग टोडी

    आओ मनमोहना जी जोऊं थांरी बाट।
    खान पान मोहि नैक न भावै नैणन लगे कपाट॥

    तुम आयां बिन सुख नहिं मेरे दिल में बहोत उचाट।
    मीरा कहै मैं बई रावरी, छांड़ो नाहिं निराट॥

    शब्दार्थ :- जोऊं थारी बाट = तेरी राह देखती हूं। आयां बिनि =बिना आये। उचाट =बेचैनी। निराट = असहाय।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

    Offline Sai Meera

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #4 on: May 19, 2009, 04:22:44 AM »
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  • राग हमीर

    आओ सहेल्हां रली करां है पर घर गवण निवारि॥
    झूठा माणिक मोतिया री झूठी जगमग जोति।
    झूठा आभूषण री, सांची पियाजी री प्रीति॥
    झूठा पाट पटंबरा रे, झूठा दिखडणी चीर।
    सांची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर॥
    छपन भोग बुहाय देहे इण भोगन में दाग।
    लूण अलूणो ही भलो है अपणे पियाजीरो साग॥
    देखि बिराणे निवांणकूं है क्यूं उपजावे खीज।
    कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज॥
    छैल बिराणो लाखको है अपणे काज न होय।
    ताके संग सीधारतां है भला न कहसी कोय॥
    बर हीणो अपणो भलो है कोढी कुष्टी कोय।
    जाके संग सीधारतां है भला कहै सब लोय॥
    अबिनासीसूं बालबा हे जिनसूं सांची प्रीत।
    मीरा कूं प्रभुजी मिल्या है ए ही भगतिकी रीत॥

    शब्दार्थ :- रली करां =आनन्द मनायें। गवण =जाना-आना। दिखणी =दक्षिणी, दक्षिण में बननेवाला एक कीमती वस्त्र। चीर =साड़ी। बुहाय देहे = बहा दो दाग =दोष।अलूणो =बिना नमक का। बिराणे =पराये। निवांण = उपजाऊ जमीन। खीज =द्वेष। कांकर =कंकरीली जमीन। लाखको =लाखों का, अनमोल। हीणो लोह =लोग। बालवा = बालम, प्रियतम।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

    Offline Sai Meera

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #5 on: May 19, 2009, 04:23:47 AM »
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  • बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।।
    ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक।

    गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।।
    मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।

    बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।।
    जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।

    तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।।
    मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।

    मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #6 on: May 19, 2009, 04:24:24 AM »
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  • राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
    तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।

    निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
    पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।

    बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
    मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।

    मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #7 on: May 19, 2009, 04:25:05 AM »
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  • आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी।
    चित्त चढ़ो मेरे माधुरी मूरत उर बिच आन अड़ी।

    कब की ठाढ़ी पंथ निहारूँ अपने भवन खड़ी।।
    कैसे प्राण पिया बिन राखूँ जीवन मूल जड़ी।

    मीरा गिरधर हाथ बिकानी लोग कहै बिगड़ी।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #8 on: May 20, 2009, 04:45:18 AM »
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  • राग वृन्दावनी

    आली, म्हांने लागे वृन्दावन नीको।
    घर घर तुलसी ठाकुर पूजा दरसण गोविन्दजी को॥
    निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को।
    रतन सिंघासन आप बिराजैं, मुगट धर्‌यो तुलसी को॥
    कुंजन कुंजन फिरति राधिका, सबद सुनन मुरली को।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बजन बिना नर फीको॥

    शब्दार्थ :- म्हांने =मुझे। मुगट = मुकुट। फीको = नीरस, व्यर्थ।

    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #9 on: May 20, 2009, 04:46:20 AM »
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  • राग हंस नारायण


    आली , सांवरे की दृष्टि मानो, प्रेम की कटारी है॥
    लागत बेहाल भई, तनकी सुध बुध गई ,
    तन मन सब व्यापो प्रेम, मानो मतवारी है॥
    सखियां मिल दोय चारी, बावरी सी भई न्यारी,
    हौं तो वाको नीके जानौं, कुंजको बिहारी॥
    चंदको चकोर चाहे, दीपक पतंग दाहै,
    जल बिना मीन जैसे, तैसे प्रीत प्यारी है॥
    बिनती करूं हे स्याम, लागूं मैं तुम्हारे पांव,
    मीरा प्रभु ऐसी जानो, दासी तुम्हारी है॥

    शब्दार्थ :- आली =सखी। मतवारी = मतवाली। बावरी =पगली। न्यारी =निराली। दाहे =जला देता है।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #10 on: May 20, 2009, 04:47:11 AM »
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  • राग पीलू


    करुणा सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी॥
    दरसण कारण भई बावरी बिरह-बिथा तन घेरी।
    तेरे कारण जोगण हूंगी, दूंगी नग्र बिच फेरी॥
    कुंज बन हेरी-हेरी॥
    अंग भभूत गले मृगछाला, यो तप भसम करूं री।
    अजहुं न मिल्या राम अबिनासी बन-बन बीच फिरूं री॥
    रोऊं नित टेरी-टेरी॥
    जन मीरा कूं गिरधर मिलिया दुख मेटण सुख भेरी।
    रूम रूम साता भइ उर में, मिट गई फेरा-फेरी॥
    रहूं चरननि तर चेरी॥


    शब्दार्थ :- बावरी =पगली। सुणी =सुनी। जोगण = योगिनी। नग्र बिच = नगर में भभूत =भस्म, राख। यो तन =यह शरीर। टेरि-टेरि = पुकार-पुकारकर सुख भरि = सुख देने वाले। रूम-रूम =रोम-रोम। साता =शांन्ति। फेरा-फेरी =आना-जाना, जनम-मरण।


    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #11 on: May 20, 2009, 04:47:44 AM »
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  • सखी मेरी नींद नसानी हो।
    पिवको पंथ निहारत सिगरी, रैण बिहानी हो।
    सखियन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो।
    बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय, ऐसी ठानी हो।
    अंग-अंग ब्याकुल भई मुख, पिय पिय बानी हो।
    अंतर बेदन बिरहकी कोई, पीर न जानी हो।
    ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो।
    मीरा ब्याकुल बिरहणी, सुध बुध बिसरानी हो।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #12 on: May 23, 2009, 05:08:01 AM »
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  • बादल देख डरी हो, स्याम! मैं बादल देख डरी।
    श्याम मैं बादल देख डरी।
    काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी।
    श्याम मैं बादल देख डरी।
    जित जाऊँ तित पाणी पाणी हुई भोम हरी।।
    जाका पिय परदेस बसत है भीजूं बाहर खरी।
    श्याम मैं बादल देख डरी।
    मीरा के प्रभु हरि अबिनासी कीजो प्रीत खरी।
    श्याम मैं बादल देख डरी

    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

    Offline Sai Meera

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #13 on: May 23, 2009, 05:08:48 AM »
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  • राग गूजरी


    कुण बांचे पाती, बिना प्रभु कुण बांचे पाती।
    कागद ले ऊधोजी आयो, कहां रह्या साथी।
    आवत जावत पांव घिस्या रे (वाला) अंखिया भई राती॥
    कागद ले राधा वांचण बैठी, (वाला) भर आई छाती।
    नैण नीरज में अम्ब बहे रे (बाला) गंगा बहि जाती॥
    पाना ज्यूं पीली पड़ी रे (वाला) धान नहीं खाती।
    हरि बिन जिवणो यूं जलै रे (वाला) ज्यूं दीपक संग बाती॥
    मने भरोसो रामको रे (वाला) डूब तिर्‌यो हाथी।
    दासि मीरा लाल गिरधर, सांकडारो साथी॥

    शब्दार्थ :- कुण =कौन। पाती = चिट्ठी। साथी =सखा, श्रीकृष्ण से आशय है। घिस्या = घिस गये। राती = रोते-रोते लाल हो गई। अम्ब = पानी। म्हने =मुझे सांकडारो =संकट में अपने भक्तों का सहायक।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

    Offline Sai Meera

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #14 on: May 23, 2009, 05:09:33 AM »
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  • कोई कहियौ रे प्रभु आवन की,
    आवनकी मनभावन की।
    आप न आवै लिख नहिं भेजै ,
    बाण पड़ी ललचावन की।
    ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै,
    नदियां बहै जैसे सावन की।
    कहा करूं कछु नहिं बस मेरो,
    पांख नहीं उड़ जावनकी।
    मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे,
    चेरी भै हूँ तेरे दांवन की।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

     


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