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Author Topic: मीराबाई के भजन  (Read 28580 times)

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Offline Sai Meera

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Re: मीराबाई के भजन
« Reply #15 on: May 23, 2009, 05:10:55 AM »
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  • राग जैजैवंती


    गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय।
    ऊंची नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराय।
    सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय॥
    ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़्‌यो न जाय।
    पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय॥
    कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़ पैंड़ बटमार।
    है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव॥
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।
    जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥

    शब्दार्थ :- लपटीली =रपटीली। म्हांरौ =मेरा। झीणो =सूक्ष्म। सुरत =याद करने की शक्ति। झकोला =झोंका। पैंड़ =डग। गाम =गांव।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #16 on: July 18, 2009, 12:44:55 PM »
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  • गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे॥ध्रु०॥
    स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
    व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
    त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
    मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #17 on: July 18, 2009, 12:45:29 PM »
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  • गोपाल राधे कृष्ण गोविंद॥ गोविंद॥ध्रु०॥
    बाजत झांजरी और मृंदग। और बाजे करताल॥१॥
    मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गलां बैजयंती माल॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपाल॥३॥
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #18 on: July 18, 2009, 12:46:13 PM »
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  • गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा॥

    चरण कंवल को हंस हंस देखूं, राखूं नैणां नेरा।
    निरखणकूं मोहि चाव घणेरो, कब देखूं मुख तेरा॥

    व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिल तूं मीत सबेरा।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा॥


    शब्दार्थ :- नैणा नेरा = आंखों के निकट। चाव = चाह। घणेरो =बहुत अधिक। सवेरा = जल्दी ही।
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #19 on: July 18, 2009, 12:47:04 PM »
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  • घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै॥
    दीपक जोय कहा करूं सजनी, पिय परदेस रहावै।
    सूनी सेज जहर ज्यूं लागे, सिसक-सिसक जिय जावै॥
    नैण निंदरा नहीं आवै॥
    कदकी उभी मैं मग जोऊं, निस-दिन बिरह सतावै।
    कहा कहूं कछु कहत न आवै, हिवड़ो अति उकलावै॥
    हरि कब दरस दिखावै॥
    ऐसो है कोई परम सनेही, तुरत सनेसो लावै।
    वा बिरियां कद होसी मुझको, हरि हंस कंठ लगावै॥
    मीरा मिलि होरी गावै॥

    शब्दार्थ :- दीपक जोय = दीपक जलाकर। नैण =नयन। निंदरा =नींद। कदकी =कबकी। ऊभी =खड़ी। हिवड़ा = हृदय।अकलावै =व्याकुल हो रहा है। सनेसो =
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #20 on: July 18, 2009, 12:47:45 PM »
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  • घर आवो जी सजन मिठ बोला।

    तेरे खातर सब कुछ छोड्या, काजर, तेल तमोला॥

    जो नहिं आवै रैन बिहावै, छिन माशा छिन तोला।

    'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, कर धर रही कपोला॥
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

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    Re: मीराबाई के भजन
    « Reply #21 on: July 18, 2009, 12:48:13 PM »
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  • चरन रज महिमा मैं जानी। याहि चरनसे गंगा प्रगटी।
    भगिरथ कुल तारी॥ चरण०॥१॥
    याहि चरनसे बिप्र सुदामा। हरि कंचन धाम दिन्ही॥ च०॥२॥
    याहि चरनसे अहिल्या उधारी। गौतम घरकी पट्टरानी॥ च०॥३॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलसे लटपटानी॥ चरण०॥४॥
    मैं साईं की मीरा और साईं मेरे घनश्याम है, किसी जनम मोहे दूर न कीजो सुन मेरे घनश्याम तू

     


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