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Author Topic: सांच का अंग~~~  (Read 6509 times)

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Offline tana

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  • ~सांई~~ੴ~~सांई~
    • Sai Baba
सांच का अंग~~~
« on: May 12, 2008, 01:10:42 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    सांच का अंग~~~               
     
    लेखा देणां सोहरा, जे दिल सांचा होइ ।
    उस चंगे दीवान में, पला न पकड़ै कोइ ॥1॥

    भावार्थ - दिल तेरा अगर सच्चा है, तो लेना-देना सारा आसान हो जायगा । उलझन तो झूठे हिसाब-किताब में आ पड़ती है, जब साईं के दरबार में पहुँचेगा, तो वहाँ कोई तेरा पल्ला नहीं पकड़ेगा , क्योंकि सब कुछ तेरा साफ-ही-साफ होगा ।

    साँच कहूं तो मारिहैं, झूठे जग पतियाइ ।
    यह जग काली कूकरी, जो छेड़ै तो खाय ॥2॥

    भावार्थ - सच-सच कह देता हूँ तो लोग मारने दौड़ेंगे, दुनिया तो झूठ पर ही विश्वास करती है । लगता है, दुनिया जैसे काली कुतिया है, इसे छेड़ दिया, तो यह काट खायेगी ।

    यहु सब झूठी बंदिगी, बरियाँ पंच निवाज ।
    सांचै मारे झूठ पढ़ि, काजी करै अकाज ॥3॥

    भावार्थ - काजी भाई ! तेरी पाँच बार की यह नमाज झूठी बन्दगी है, झूठी पढ़-पढ़कर तुम सत्य का गला घोंट रहे हो , और इससे दुनिया की और अपनी भी हानि कर रहे हो ।[क्यों नहीं पाक दिल से सच्ची बन्दगी करते हो ?]

    सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
    जिस हिरदे में सांच है, ता हिरदै हरि आप ॥4॥

    भावार्थ - सत्य की तुलना में दूसरा कोई तप नहीं, और झूठ के बराबर दूसरा पाप नहीं ।जिसके हृदय में सत्य रम गया, वहाँ हरि का वास तो सदा रहेगा ही ।

    प्रेम-प्रीति का चोलना, पहिरि कबीरा नाच ।
    तन-मन तापर वारहूँ, जो कोइ बोलै सांच ॥5॥

    भावार्थ - प्रेम और प्रीति का ढीला-ढाला कुर्ता पहनकर कबीर मस्ती में नाच रहा है, और उसपर तन और मन की न्यौछावर कर रहा है, जो दिल से सदा सच ही बोलता है।

    काजी मुल्लां भ्रंमियां, चल्या दुनीं कै साथ ।
    दिल थैं दीन बिसारिया, करद लई जब हाथ ॥6॥

    भावार्थ - ये काजी और मुल्ले तभी दीन के रास्ते से भटक गये और दुनियादारों के साथ-साथ चलने लगे, जब कि इन्होंने जिबह करने के लिए हाथ में छुरी पकड़ ली दीन के नाम पर।

    साईं सेती चोरियां, चोरां सेती गुझ ।
    जाणैंगा रे जीवणा, मार पड़ैगी तुझ ॥7॥

    भावार्थ - वाह ! क्या कहने हैं, साईं से तो तू चोरी और दुराव करता है और दोस्ती कर ली है चोरों के साथ ! जब उस दरबार में तुझ पर मार पड़ेगी, तभी तू असलियत को समझ सकेगा ।

    खूब खांड है खीचड़ी, माहि पड्याँ टुक लूण ।
    पेड़ा रोटी खाइ करि, गल कटावे कूण ॥8॥

    भावार्थ - क्या ही बढ़िया स्वाद है मेरी इस खिचड़ी का ! जरा-सा, बस, नमक डाल लिया है पेड़े और चुपड़ी रोटियाँ खा-खाकर कौन अपना गला कटाये ?

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

     


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