DwarkaMai - Sai Baba Forum
Main Section => Inter Faith Interactions => Kabir Vani => Topic started by: JR on March 11, 2008, 08:31:30 AM
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ऊँ सांई राम
कर परनाम ज्ञानी चले, करन हंस के काज ।
जोपै काल न मानि है, तुम्ही पुरुष का लाज ।।
ऊँ सांई राम
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ऊँ सांई राम
तासो कहयो सुनो धर्मराई । जीव काज संसार सिधाई ।।
तप्त शिला पर जीव जरावहु । जारि वारि निजस्वाद करावहु ।।
तुम अस कष्ट जीव कह दीन्हा । तबहि पुरुष मोहि आज्ञा कीन्हा ।।
जीव चिताय लोक लै जाऊँ । काल कष्ट से जीव बचाऊँ ।।
अर्थ - साहिब ने कहा, हे निरंजन । तुमने बहुत छल-कपट से जीवों को बांधा हुआ है । तप्त शिला पर उन्हें अनेक कष्ट देकर आनन्द लूट रहे हो । परम पुरुष ने मुझे यहां भेजा है । मैं जीवों को यहां से छुड़ाकर अमर लोक ले जाऊंगा ।
जय सांई राम
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ऊँ सांई राम
तबै निरंजन बोले बानी । सकल जीव बस हमरे ज्ञानी ।।
तिनसौ साठ पैठ उरझेरा । कैसे हंसन लेव उबेरा ।।
अर्थ - निरंजन ने कहा - कि तुम जीवों को कैसे छुड़ाओगे । सब जीवों को मैंने उलझाया हुआ है । 360 ऐसे स्थान है, जहाँ पर निरंजन ने थोड़ी-2 शक्तियां रखी हुई है । इन्हीं को देख जीव उलझे हुए है । दुनिया में बड़ा बहम है परमात्मा के विषय में । कोई किसी स्थान को मान रहा है तो कोई किसी को । जो जिस चीज को मान रहा है, उससे आगे बढ़ने का प्रयास ही नहीं कर रहा ।
जय सांई राम