ऊँ सांई राम
तासो कहयो सुनो धर्मराई । जीव काज संसार सिधाई ।।
तप्त शिला पर जीव जरावहु । जारि वारि निजस्वाद करावहु ।।
तुम अस कष्ट जीव कह दीन्हा । तबहि पुरुष मोहि आज्ञा कीन्हा ।।
जीव चिताय लोक लै जाऊँ । काल कष्ट से जीव बचाऊँ ।।
अर्थ - साहिब ने कहा, हे निरंजन । तुमने बहुत छल-कपट से जीवों को बांधा हुआ है । तप्त शिला पर उन्हें अनेक कष्ट देकर आनन्द लूट रहे हो । परम पुरुष ने मुझे यहां भेजा है । मैं जीवों को यहां से छुड़ाकर अमर लोक ले जाऊंगा ।
जय सांई राम