ऊँ सांई राम
हे ज्ञानी का करो बड़ाई । हमते नाहिं एछूटजिव जाई ।।
इतने युग भये का तुम देखा । ज्ञानी हंस ने ऐको पेखा ।।
का तुम करो का शब्द तुम्हारा । तीन लोक परलय कर डारा ।।
साधु सन्त हम देखी रीति । परलय पर सकल जग जीती ।।
करम रेख बांधै सब साधा । सुर नर मुनि सकलो जग बांधा ।।
अर्थ - इतने युग हो गये, क्या एक भी जीव को सतलोक आते देखा । बड़ी ताकत से जीव को मैंने बांधा हुआ है । छूटने नहीं दूंगा । तुम और तुम्हारा शब्द क्या कर लेगा । मैं तीन लोक का नाश कर देता तहूँ । निरंजन ने कई बार सृष्टि का प्रलय भी किया है । यह सब काम साहिब के नहीं है, परम पुरुष के नहीं है । इस पर साहिब ने कहा भी है जो रक्षक तहं चीन्हत नाहीं, जो भक्षक तहं ध्यान लगाई । इस पर भी कर्मों में जीव को बांधे हुए हूं । आम आदमी की क्या बात है । सुर, नर, मुनि सारे संसार को बांधे हुए हूं । एक भी जीव को जाने नहीं दूंगा । निरंजन ने साहिब से यह कहा ।
जय सांई राम