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Main Section => Inter Faith Interactions => Kabir Vani => Topic started by: JR on March 13, 2008, 02:27:19 AM

Title: हे ज्ञानी का करो बड़ाई । हमते नाहिं एछूटजिव जाई ।।
Post by: JR on March 13, 2008, 02:27:19 AM
ऊँ सांई राम

हे ज्ञानी का करो बड़ाई ।  हमते नाहिं एछूटजिव जाई ।।
इतने युग भये का तुम देखा ।  ज्ञानी हंस ने ऐको पेखा ।।
का तुम करो का शब्द तुम्हारा ।  तीन लोक परलय कर डारा ।।
साधु सन्त हम देखी रीति ।  परलय पर सकल जग जीती ।।
करम रेख बांधै सब साधा ।  सुर नर मुनि सकलो जग बांधा ।।

अर्थ - इतने युग हो गये, क्या एक भी जीव को सतलोक आते देखा ।  बड़ी ताकत से जीव को मैंने बांधा हुआ है ।  छूटने नहीं दूंगा ।  तुम और तुम्हारा शब्द क्या कर लेगा ।  मैं तीन लोक का नाश कर देता तहूँ ।  निरंजन ने कई बार सृष्टि का प्रलय भी किया है ।  यह सब काम साहिब के नहीं है, परम पुरुष के नहीं है ।  इस पर साहिब ने कहा भी है जो रक्षक तहं चीन्हत नाहीं, जो भक्षक तहं ध्यान लगाई ।  इस पर भी कर्मों में जीव को बांधे हुए हूं ।  आम आदमी की क्या बात है ।  सुर, नर, मुनि सारे संसार को बांधे हुए हूं ।  एक भी जीव को जाने नहीं दूंगा ।  निरंजन ने साहिब से यह कहा ।

जय सांई राम