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Main Section => Inter Faith Interactions => Kabir Vani => Topic started by: JR on March 13, 2008, 02:31:16 AM

Title: ज्ञानी कहै काल अन्यायी । शब्द बिना तू खाय चबाई ।।
Post by: JR on March 13, 2008, 02:31:16 AM
ऊँ सांई राम

ज्ञानी कहै काल अन्यायी ।  शब्द बिना तू खाय चबाई ।।
अब तुम कस खैहो बटसारा ।  पुरुष शब्द दीन्हों टकसारा ।।
पांच जनेकी मेटो आसा ।  पुरुष शब्द भाषोविश्वासा ।।
सुभ अरु असुभ का करे निबेरा ।  मेटो काल सकल उरझेरा ।।

अर्थ - इसीलिये तो मैं आया हूँ ।  तुमने एक भी जीव को सतलोक नहीं आने दिया ।  तब इनके पास में सच्चा नाम नहीं था ।  ये अपने जोर से पार होना चाहते थे ।  तुमने इन्हें खा लिया ।  पर अब मैं परम पुरुष का बड़ा जबरदस्त नाम इन्हें दूंगा और तुम्हारा वश अब जीव पर नहीं चलने दूंगा ।  अन्दर से विश्वास भी नाम जीव को देता जाएगा ।  शुभ और अशुभ का ज्ञान भी अन्दर से होता जाएगा ।  नाम जीव को पूरी सुरक्षा देता चलेगा और तुम्हारे सब बन्धनों से छुड़ाकर अमर लोक ले जायेगा ।  साहिब ने एक अन्य स्थान पर भी कहा है - सुमिरन पाय सत्य जो वीरा, संग रहूं मैं दास कबीरा ।   साहिब ने कहा है - कि जिसे नाम दे देता हूँ, साथ हो जाता हूँ ।

जय सांई राम