ऊँ सांई राम
ज्ञानी कहै काल अन्यायी । शब्द बिना तू खाय चबाई ।।
अब तुम कस खैहो बटसारा । पुरुष शब्द दीन्हों टकसारा ।।
पांच जनेकी मेटो आसा । पुरुष शब्द भाषोविश्वासा ।।
सुभ अरु असुभ का करे निबेरा । मेटो काल सकल उरझेरा ।।
अर्थ - इसीलिये तो मैं आया हूँ । तुमने एक भी जीव को सतलोक नहीं आने दिया । तब इनके पास में सच्चा नाम नहीं था । ये अपने जोर से पार होना चाहते थे । तुमने इन्हें खा लिया । पर अब मैं परम पुरुष का बड़ा जबरदस्त नाम इन्हें दूंगा और तुम्हारा वश अब जीव पर नहीं चलने दूंगा । अन्दर से विश्वास भी नाम जीव को देता जाएगा । शुभ और अशुभ का ज्ञान भी अन्दर से होता जाएगा । नाम जीव को पूरी सुरक्षा देता चलेगा और तुम्हारे सब बन्धनों से छुड़ाकर अमर लोक ले जायेगा । साहिब ने एक अन्य स्थान पर भी कहा है - सुमिरन पाय सत्य जो वीरा, संग रहूं मैं दास कबीरा । साहिब ने कहा है - कि जिसे नाम दे देता हूँ, साथ हो जाता हूँ ।
जय सांई राम