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Main Section => Inter Faith Interactions => Kabir Vani => Topic started by: JR on April 22, 2008, 01:24:59 AM

Title: बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार ।
Post by: JR on April 22, 2008, 01:24:59 AM
बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार ।
दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न पार ॥



भावार्थ - बैरागी वही अच्छा, जिसमें सच्ची विरक्ति हो, और गृहस्थ वह अच्छा, जिसका हृदय उदार हो । यदि वैरागी के मन में विरक्ति नहीं, और गृहस्थ के मन में उदारता नहीं, तो दोनों का ऐसा पतन होगा कि जिसकी हद नहीं ।