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Author Topic: कथनी-करणी का अंग~~~  (Read 7434 times)

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Offline tana

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    • Sai Baba
कथनी-करणी का अंग~~~
« on: April 24, 2008, 12:21:14 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~


    कथनी-करणी का अंग~~~


    जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल ।
    पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल ॥1॥


    भावार्थ - मुँह से जैसी बात निकले, उसीपर यदि आचरण किया जाय, वैसी ही चाल चली जाय, तो भगवान् तो अपने पास ही खड़ा है, और वह उसी क्षण निहाल कर देगा ।

    पद गाए मन हरषियां, साषी कह्यां अनंद ।
    सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥2॥


    भावार्थ - मन हर्ष में डूब जाता है पद गाते हुए, और साखियाँ कहने में भी आनन्द आता है । लेकिन सारतत्व को नहीं समझा, और हरिनाम का मर्म न समझा, तो गले में फन्दा ही पड़नेवाला है ।

    मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग ।
    राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग ॥3॥


    भावार्थ - पहले मैं समझता था कि पोथियों का पढ़ना बड़ा अच्छा है, फिर सोचा कि पढ़ने से योग-साधन कहीं अच्छा है । पर अब तो इस निर्णय पर पहुँचा हूँ कि रामनाम से ही सच्ची प्रीति की जाय, भले ही अच्चै-अच्छे लोग मेरी निन्दा करें ।


    `कबीर' पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाइ ।
    बावन आषिर सोधि करि, `ररै' `ममै' चित्त लाइ ॥4॥


    भावार्थ - कबीर कहते हैं --पढ़ना लिखना दूर कर, किताबों को पानी में बहा दे । बावन अक्षरों में से तू तो सार के ये दो अक्षर ढूँढ़कर ले ले--`रकार' और `मकार'। और इन्हीं में अपने चित्त को लगा दे ।

    पोथी पढ़ पढ़ जग मुवा, पंडित भया न कोय ।
    ऐकै आषिर पीव का, पढ़ै सो पंडित होइ ॥5॥


    भावार्थ - पोथियाँ पढ़-पढ़कर दुनिया मर गई, मगर कोई पण्डित नहीं हुआ । पण्डित तो वही हो सकता है, जिसने प्रियतम प्रभु का केवल एक अक्षर पढ़ लिया ।[पाठान्तर है `ढाई आखर प्रेम का' अर्थात प्रेम शब्द के जिसने ढाई अक्षर पढ़ लिये,अपने जीवन में उतार लियर, उसी को पण्डित कहना चाहिए ।]

    करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड ।
    जानें-बूझै कुछ नहीं, यौंहीं आंधां रूंड ॥6॥


    भावार्थ - हमने देखा ऐसों को, जो मुख को ऊँचा करके जोर-जोर से कीर्तन करते हैं । जानते-समझते तो वे कुछ भी नहीं कि क्या तो सार है और क्या असार । उन्हें अन्धा कहा जाय, या कि बिना सिर का केवल रुण्ड ?


    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

     


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