राम-नाम कै पटंतरै, देबे कौं कछु नाहिं ।
क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं ॥
भावार्थ - सद्गुरु ने मुझे राम का नाम पकड़ा दिया है । मेरे पास ऐसा क्या है उस सममोल का, जो गुरु को दूँ ?क्या लेकर सन्तोष करूँ उनका ? मन की अभिलाषा मन में ही रह गयी कि, क्या दक्षिणा चढ़ाऊँ ? वैसी वस्तु कहाँ से लाऊँ ?