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Main Section => Inter Faith Interactions => Kabir Vani => Topic started by: tana on February 08, 2008, 04:04:42 AM

Title: नीति के दोहे~~~
Post by: tana on February 08, 2008, 04:04:42 AM
ॐ साईं राम~~~

नीति के दोहे~~~

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।

राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।


जब मैं था तब हरि‍ नहीं, अब हरि‍ हैं मैं नाहिं।

प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।


जिन ढूँढा तिन पाइयॉं, गहरे पानी पैठ।

मैं बौरी ढूँढ़न गई, रही किनारे बैठ।।


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो दिल खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।।


सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।।


बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।

हिये तराजू तौल‍ि के, तब मुख बाहर आनि।।


अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।


काल्‍ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्‍ब।

पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब्‍ब।


निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय।

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।


दोस पराए देख‍ि करि, चला हसंत हसंत।

अपने या न आवई, जिनका आदि न अंत।।


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्‍यान।

मोल करो तलवार के, पड़ा रहन दो म्‍यान।।


सोना, सज्‍जन, साधुजन, टूटि जुरै सौ बार।

दुर्जन कुंभ-कुम्‍हार के, एकै धका दरार।।


पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़।

ताते या चाकी भली, पीस खाए संसार।।


कॉंकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय।

ता चढ़ मुल्‍ला बॉंग दे, बहिरा हुआ खुदाए।।

जय साईं राम~~~
Title: Re: नीति के दोहे~~~
Post by: pankajg on July 22, 2011, 01:05:57 AM
nice collection,much better if u can explain meaning as well,most of verses are clear,but unable to understand few.
Title: Re: नीति के दोहे~~~
Post by: PiyaSoni on September 03, 2011, 03:47:25 AM
ॐ साईं राम !!


जैसो गुन दीनों दई ,तैसो रूप निबन्ध ।

ये दोनों कहँ पाइये ,सोनों और सुगन्ध ॥


अपनी-अपनी गरज सब , बोलत करत निहोर ।

बिन गरजै बोले नहीं ,गिरवर हू को मोर ॥


जैसे बंधन प्रेम कौ ,तैसो बन्ध न और ।

काठहिं भेदै कमल को ,छेद न निकलै भौंर ॥


स्वारथ के सबहिं सगे ,बिन स्वारथ कोउ नाहिं ।

सेवै पंछी सरस तरु , निरस भए उड़ि जाहिं ॥


मूढ़ तहाँ ही मानिये ,जहाँ न पंडित होय ।

दीपक को रवि के उदै , बात न पूछै कोय ॥


बिन स्वारथ कैसे सहे , कोऊ करुवे बैन ।

लात खाय पुचकारिये ,होय दुधारू धैन ॥


होय बुराई तें बुरो , यह कीनों करतार ।

खाड़ खनैगो और को , ताको कूप तयार ॥


जाको जहाँ स्वारथ सधै ,सोई ताहि सुहात ।

चोर न प्यारी चाँदनी ,जैसे कारी रात ॥


अति सरल न हूजियो ,देखो ज्यौं बनराय ।

सीधे-सीधे छेदिये , बाँको तरु बच जाय ॥


कन –कन जोरै मन जुरै ,काढ़ै निबरै सोय ।

बूँद –बूँद ज्यों घट भरै ,टपकत रीतै तोय ॥


ॐ श्री साईं नाथाय नमः 
Title: Re: नीति के दोहे~~~
Post by: PiyaSoni on September 05, 2011, 01:14:01 AM
ॐ श्री साईं नाथाय नमः !!

कारज धीरे होत है ,काहे होत अधीर ।
समय पाय तरुवर फरै ,केतिक सींचौ नीर ॥

उद्यम कबहूँ न छाड़िये , पर आसा के मोद ।
गागर कैसे फोरिये ,उनयो देकै पयोद ॥

क्यों कीजे ऐसो जतन ,जाते काज न होय ।
परबत पर खोदै कुआँ , कैसे निकरै तोय ॥

हितहू भलो न नीच को ,नाहिंन भलो अहेत ।
चाट अपावन तन करै ,काट स्वान दुख देत ॥

चतुर सभा में कूर नर ,सोभा पावत नाहिं ।
जैसे बक सोहत नहीं ,हंस मंडली माहिं ॥

हीन अकेलो ही भलो , मिले भले नहिं दोय ।
जैसे पावक पवन मिलि ,बिफरै हाथ न होय ॥

फल बिचार कारज करौ ,करहु न व्यर्थ अमेल ।
तिल ज्यौं बारू पेरिये,नाहीं निकसै तेल ॥

ताको अरि का करि सकै ,जाकौ जतन उपाय ।
जरै न ताती रेत सों ,जाके पनहीं पाय ॥

हिये दुष्ट के बदन तैं , मधुर न निकसै बात ।
जैसे करुई बेल के ,को मीठे फल खात ॥

ताही को करिये जतन ,रहिये जिहि आधार ।
को काटै ता डार को ,बैठै जाही डार ॥


साईं राम !!