जय सांई राम।।।
सम्बन्ध की पहचान
सुबह-सुबह घर की घंटी बजी। उसने दरवाजा खोला। सामने एक बूढ़ा आदमी खड़ा था -बाल अस्त- व्यस्त, दाढ़ी बढ़ी हुई, मैले-कुचैले कपड़े पहने। देखते ही हाथ जोड़कर बोला, बेटा! कल से भूखा हूँ, दो रोटी मिल जाती तो बहुत मेहरबानी होती। भगवान आपका भला करे। न जाने उसके मन में क्या आया, उसने पत्नी को आवाज देकर दो- तीन पराठे उतारने के लिए कहा। गरम-गरम पराठे और थोड़ी सब्जी उसने बूढे को दे दिए।
अगली सुबह फिर घंटी बजी, उसने देखा, वही बूढ़ा हाथ फैलाए खड़ा है। हल्का गुस्सा आया उसे पर कुछ बोला नहीं और भीतर जाकर दो बासी रोटियाँ उसने उस बूढे़ को लाकर दे दीं। फिर बोला, बाबा! और भी घर हैं। बूढे़ ने जैसे कुछ सुना ही नहीं, बस उसकी आँखें चमकती रहीं उन रोटियों को देखकर। वह चला गया।
अगले दिन फिर घंटी बजी सुबह। दरवाजे पर फिर वही बूढ़ा। वही पुराना राग, कल से भूखा हूँ। आपकी दी हुई रोटी ही खाई है बस। बड़ी मेहरबानी होगी.... मकान मालिक गुस्से से फट पड़ा ... तुम्हें पहले ही दिन रोटी देकर गलती की। भागो यहाँ से ...दोबारा नजर आए तो टाँगें तोड़ दूँगा। वह बूढ़ा चरणों में झुका जा रहा था और मकान मालिक गुस्से में बड़बड़ाता किसी प्रकार उसे अपने से दूर करने की चेष्टा कर रहा था।
तभी उस व्यक्ति के कोई दूर के सम्बन्धी आ गए। भिखारी को गौर से देखने लगा। अचानक बोले, भई हो न हो, यह आपके खोए हुए पिता हैं।
वह स्तब्ध रह गया। हाथ तो क्या जुबान ने भी चलना बंद कर दिया। कुछ पुरानी पारिवारिक बातें पूछी गईं, कुछ शरीर के निशान देखे गए, पिता ही थे। मकान का युवा मालिका जिस वृद्ब को थोड़ी देर पहले मारने जा रहा था, अब उसी के चरणों में गिर पड़ा। बड़े प्यार से उन्हें घर के भीतर ले गया, कुर्सी पर बिठाया, पत्नी को बताया कि वही उसके ससुर हैं। उनके रहने के लिए तुरंत एक कमरा ठीक करने के लिए कहा। पिता ने आप बीती सुनाई कि कैसे दंगों में वे अपनी पत्नी व बच्चे से बिछुड़ गए थे।
यह वही व्यक्ति है जिसको कुछ क्षण पहले वह पीटने जा रहा था और अब उसकी आवभगत कर रहा है। ऐसा क्या हुआ जो कि सारी स्थिति में बदलाव आ गया। इस बदलाव का एक ही कारण था -उससे अपने संबंध का ज्ञान। अभी तक तो वह वृद्ध उसके लिए एक भिखारी था। क्योंकि संबंध का ज्ञान नहीं था। जैसे ही संबंध का ज्ञान हुआ, वही वृद्ध अब पिता हो गया व उसकी सेवा सत्कार होने लगा।
इसी प्रकार मनुष्य भी नित्य संबंध के ज्ञान को भूला बैठा है। वह यह भूल गया है उसके असली माता- पिता कौन हैं? वह यहाँ पर किस कारण से आया है? उसे कहाँ जाना है? व उसका वास्तविक स्वरूप क्या है? इसी के ज्ञान के अभाव से मानव निरन्तर सुख- दुख झेल रहा है।
मानव यह भूल गया है कि भगवान कृष्ण ही उसके पिता हैं। उन्हीं की सेवा करना उसका परम धर्म है। अगर मनुष्य उन आनन्दघन श्री कृष्ण की सेवा करेगा तो उसे नित्य आनन्द की प्राप्ति होगी। नित्य आनन्द तो एकमात्र भगवान ही दे सकते हैं। सम्बन्ध ज्ञान के अभाव में हम वह आनन्द खोज रहे हैं अनित्य वस्तुओं में, जो कभी भी नित्य आनन्द का स्त्रोत नहीं हो सकतीं। जरा सोचो, जो स्वयं नित्य नहीं, वह नित्य आनन्द कैसे प्रदान कर सकती हैं?
जब बालक जन्म लेता है, तब उसको पिता व अन्यों से सम्बन्ध का ज्ञान माँ कराती है। माँ ही उसे बताती है कि उसका पिता कौन है। इसी प्रकार वेद और श्रुति हमें बताते हैं कि भगवान ही हमारे पिता हैं। बड़ी अचरज की बात है कि हम जीवन भर इस तथ्य को समझ नहीं पाते। जो इसे जान लेता है, वह मुक्त हो जाता है।
ॐ सांई राम।।।