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Main Section => Little Flowers of DwarkaMai => Topic started by: JR on April 03, 2007, 10:14:40 AM

Title: Betiyaa
Post by: JR on April 03, 2007, 10:14:40 AM
बेटियाँ  

 विमाता के निरंतर दुर्व्यवहार से सतत आहत होकर भी सौम्या का व्यवहार उनके प्रति गजब की मिठास लिए हुए था जैसे सागर के नमकीन पानी की भाप ग्रहण करने पर भी बादल बदले में मीठे पानी की ही बरसात करते हैं।

बहुत छोटी-सी उम्र में ही स्वमाता का प्यार खो चुकी थी, पर अपने नाम को सार्थक करने का आत्मबोध बचपन से ही कैसे आत्मसात कर चुकी थी ईश्वर ही जाने! विमाता की पुत्री ग्राम्या पर भी अखंड स्नेह-वर्षा करती थी और उसके भी वाग्बाण, तिरस्कार, उपालंभ सहर्ष सहती थी। विमाता के रंग में रंगे पिता की कटुक्तियों को भी अनदेखा करती रहती।

समय बीत रहा था। धीरे-धीरे दोनों कन्याएँ वयःसंधि पार कर विवाह बंधन में बँध चुकी। सौम्या की ससुराल पड़ोस में ही थी, सो बिदाई मानी ही न गई। घर की मुर्गी... ग्राम्या का घर-वर दूर था, गाजे-बाजे के साथ, समारोहपूर्वक, सीमा से परे दान-दहेज देकर बिदा किया गया।

अब माँ-पिता की आयु भी उतार नाप रही थी। कभी कुछ, कभी कुछ शारीरिक शिकायत रहती थी। सौतेली कन्या पड़ोस में ही थी, सहज रूप से सेवा का जिम्मा उसी ने ले लिया। स्नेह, अपनत्व से भावाभिभूत होकर दोनों की सेवा कर रही थी। दूर रहने वाली कभी-कभार हाल पूछने आती। बातों-बातों की पूछताछ में भी माँ-पिता अपने आपको धन्य समझ लेते। छोटी दूर से चार दिनों के लिए आई है, सो उसे यहाँ आराम मिलता रहे ऐसी भी अपेक्षा बड़ी से रहती थी।

अचानक एक दिन माँ का अवसान हो गया। बड़ी कन्या किसी क्षण माँ से प्यार पाए बिना भी दुःखविह्वल हो उठी। आँसुओं के सैलाब का कहीं अंत ना पार। छोटी को खबर गई, उसके आने तक पार्थिव बिदाई रुकी हुई थी। जैसे ही छोटी का आगमन हुआ, दुःखातिरेक से बड़ी ने दौड़कर उसे आलिंगन में बाँधा और फूट पड़ी, 'ग्राम्या, हमारी माँ हमें सदा के लिए छोड़कर चली गई रे... अब हम किसे माँ कहकर पुकारेंगे?'

उसके दुःख भार से किनारा करती हुई ग्राम्या तुच्छता से गुर्राई, 'तेरी माँ तो कब से जा चुकी है। आज तो मेरी माँ गई है।'