बुद्वूराम
एक आदमी था उसका नाम था बुद्वूराम । जब वह कमाधमाकर लौटा तो अपनी पत्नी से कहा, मैं विवाह के बाद कभी अपनी ससुराल नहीं गया, क्योंकि मैं कुछ करता धरता नहीं था । अब मैं इस लायक हो गया हूँ कि मैं अपनी ससुराल जा सकता हूँ ।
पत्नी बोली - अच्छा चले जाओ ।
पति ने कहा – लेकिन मैं रास्ता तो भूल गया हूँ, कैसे जाऊँ ।
पत्नी ने कहा – तुम यहाँ से सीधे नाक की सीध में जाओ पहुँच जाओगे ।
वह एकदम नाक की सीध में चला गया । रास्ते में एक बरगद का पेड़ पड़ा । उसने उसे डाँट कर कहा मेरे रास्ते से हट जा, नहीं तो तेरे ऊपर चढ़कर जाऊँगा । भला पेड़ क्यों हटता वह पेड़ पर चढ़ गया और उसकी जटा पकड़ कर लटक गया । सोचने लगा, कि अब उतरुँ कैसे, यदि कूदा तो लग जायेगी ।
इतने में एक राहगीर हाथी पर चढ़कर उस पेड़ के नीचे से गुजरने लगा । वह राहगीर से बोला अरे भाई, मुझे पेड़ से उतार लो । जो कहोगे वही करुँगा जो माँगो वही दूँगा । तुम्हारे हाथी, घोड़े धोऊँगा, पौछूंगा ।
राहगीर ने सोचा ठीक है इसे उतार लेते है । वह हाथी पर खड़ा हो गया और उसके पैर पकड़ कर उतारने लगा । तभी अभ्यासवश उसके मुँह से अगत-अगत शब्द निकल पड़े । इतना सुनते ही हाथी आगे बढ़ गया और दोनो लटक गये । दोनों लटके-लटके इन्तजार कर रहे थे कि कोई वहाँ से निकले, तो उससे उतारने का आग्रह करें । इतने में एक नर्तकी उधर से निकली । वह ताँगे पर सवार थी ।
वे दोनो बोल उठे, हमें उतार लो । जो कहोगी हम करेंगे, जो माँगोगी हम देंगें ।
नर्तकी ने सोचा कि चलो इन्हें उतार लेते है । वह ताँगे पर खड़ी हो गयी और नीचे वाले आदमी के पैर पकड़कर उतारने लगी । पर उसके मुँह से आदतन टिक-टिक शब्द निकलने लगा, जिसे सुनकर घोड़ा आगे बढ गया । इस प्रकार तीनों लोग लटक गये ।
बीच वाले आदमी ने कहा कि तुम तो नर्तकी हो कोई गाना गाओ ।
नर्तकी बोली पहले ऊपर वाले आदमी को गाने को कहो ।
बुद्घुराम ने कहा – मैं गाऊँगा तो पर तुम सँभले रहना । इस पर दोनों ने कहा हाँ हम सँभले रहेंगे ।
बुद्घूराम ने विरहा गाना शुरु कर दिया । विरहा गाते समय कान पर हाथ रखना जरुरी होता है । जैसे ही उसने कान पर हाथ रखने के लिये हाथ से जटा छोड़ी, तीनों धरती पर आ गिरे । ऊपर बुद्घूराम तो साफ बच गया, क्योंकि वह सबसे ऊपर था । बीच वाले को भी कम चोट आयी, पर नर्तकी नीचे थी, उसका पैर टूट गया वह हाय हाय करने लगी । नर्तकी ने बुद्घू से अपने पैर पर मालिश करने के लिये तेल लाने को कहा ।
बुद्घू तेल लेने गया । तेल खरीदा तो कटोर भर गया । उसने बनिये से घलुआ (लुभाव) माँगा । बनिये ने कहा कि किसमें लोगे । बुद्घू ने तेल का कटोरा उलट दिया और उसके पेंदे में लुभाव ले लिया । वह तेल लेकर लौटा तो नर्तकी ने बोला कि इतने पैसे में सिर्फ इतना ही तेल आया ।
बुद्घू बोला – नहीं यह तो लुभाव है तेल तो यहाँ है । यह कहकर उसने कटोर उलट दिया और कहा तेल तो यहाँ है ।
नर्तकी ने कहा जाओ, तुम्हारी बुद्घि बलिहारी है । मैं तुम्हें अपने साथ नहीं रख सकती ।