जय सांई राम।।।
कर्मयोग ही प्रभु की सबसे बड़ी भक्ति
जीवन में अपना कर्तव्य निभाते हुए कर्मयोग के मार्ग पर चलना ही प्रभु की सबसे बड़ी भक्ति है।
संसार में अगर हर मनुष्य अपना कर्तव्य ठीक ढंग से निभाए तो न केवल उसके जीवन का उद्धार होगा, बल्कि बहुत सी मुश्किलें अपने आप समाप्त हो जाएंगी। जीवन में सत्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सत्य के ज्ञान बिना हर ज्ञान बेकार है, ज्ञान की कोई सीमा नहीं, ब्रह्म ज्ञान, काल ज्ञान, ईश्वरीय ज्ञान, भूगोल ज्ञान, गणित ज्ञान और विज्ञान ज्ञान अधिक प्रचलित है लेकिन कर्मयोग के बिना किसी ज्ञान का कोई महत्व नहीं रह जाता।
संसार में हर आदमी अपने-अपने ज्ञान से जीवन का निर्वाह करता है लेकिन कई बार ज्ञानी पुरुष को भी जीवन में शांति नहीं मिल पाती जिसका मुख्य कारण सत्य से दूरी है। उन्होंने कहा कि सत्य को अपने जीवन में उतारना मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा लाभकारी है क्योंकि इससे सफलता तो मिलेगी ही लेकिन साथ ही साथ आत्मिक शांति भी प्राप्त होगी। समय बहुत अमूल्य है और इसे व्यर्थ करना प्रभु का अपमान है क्योंकि हर एक को जीवन में कोई न कोई कर्तव्य देकर ईश्वर ने दुनिया में भेजा है और जीव को अपना कर्तव्य जरूर निभाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्य के मार्ग पर चलने वाले इंसान को आरंभ में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है लेकिन बिना हिम्मत हारे मनुष्य को अपना रास्ता नहीं बदलना चाहिए क्योंकि कष्ट देकर प्रभु अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं।
निंदा जीवित मृत्यु के समान है क्योंकि दूसरों की निंदा करने वाला सबसे पहले अपनी निंदा करता है और पतन की ओर अग्रसर हो जाता है। निंदा करने वाले मनुष्य को न तो समाज ही पसंद करता है और न ही उसे प्रभु के चरणों में स्थान प्राप्त हो पाता है। उन्होंने कहा कि दूसरे के प्रति मन में प्रेम का भाव रखें बिना हर तरह की भक्ति व तपस्या मात्र पाखंड के समान है। दूसरे के प्रति मन में ईष्र्या रखने की बजाए अगर मेहनत करके मनुष्य तरक्की का मार्ग अपनाए तो उसके अपने विकास के साथ-साथ समाज व देश का भी विकास होगा। दूसरे के दुख में झूठी सांत्वना तो सभी दे देते हैं लेकिन सच्चा इंसान वही है जो गिरते हुए को सहारा देकर मंजिल पाने में मदद करे।
ॐ सांई राम।।।