DwarkaMai - Sai Baba Forum

Main Section => Little Flowers of DwarkaMai => Topic started by: JR on April 20, 2007, 09:12:03 AM

Title: Pandavo ke Gend
Post by: JR on April 20, 2007, 09:12:03 AM
पांडवों की गेंद

पांडव पाँच भाई थे, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव ।  एक दिन पाँचों पांडव मैदान में गेंद खेल रहे थे ।  अचानक गेंद उछली और पास के ही कुएँ में जा गिरी ।  खेल बन्द हो गया ।  वे बड़े दुखी हुए ।

अभी वे बच्चे ही तो थे ।  वे सोचने लगे की गेंद को कुएँ से बाहर कैसे निकाले ।  पाँचों पांडव कुएँ में झाँकने लगे ।  गेंद पानी के ऊपर तैर रही थी ।  परन्तु कुआँ बहुत गहरा था किसी का भी उसमें उतरने की हिम्मत नहीं हुई ।

इतने में एक ब्राहमण वहाँ आया और बालकों को उदास देखकर उसने उसने उसका कारण पूछा ।

बड़े भाई युधिष्टिर ने उत्तर दिया हम गेंद खेल रहे थे तो गेंद कुएँ में जा गिरी ।  हम उसे निकाल नहीं सकते इसीलिये हम उदास है ।

ब्राहमण ने कहा लो मैं अभी तुम्हारी गेंद निकाल देता हूँ ।

इतना कहकर ब्राहमण ने धनुष पर बाण चढ़ाया और कुएँ में छोड़ा ।  वह गेंद में चुभ गया और ब्राहमण ने दूसरा बाण छोड़ा ।  वह पहले बाण के पिछले भाग में चुभ गया ।  इसी तरह ब्राहमण ने बाण पर बाण छोड़े ।  वे बाण एक दूसरे से जुड़ते गये ।  अन्त में ब्राहमण ने ऊपर वाले बाण को पकड़कर गेंद को कुएँ से बाहर निकाल ली ।

पांडव बहुत चकित हुए उन्होंने सारी बात अपने ताऊ धृतराष्ट्र से कही ।  धृतराष्ट्र ने उस ब्राहमण को अपने भतीजे – पांडवों और अपने पुत्रों कौरवों को धनुविर्धा सिखाने का कार्य सौंप दिया ।

उस ब्राहमण का नाम था गुरु द्रोणाचार्य ।
Title: Re: Pandavo ke Gend
Post by: Ramesh Ramnani on April 22, 2007, 01:19:47 AM
जय सांई राम

दुर्योधन ने पाँच गाँव नही दिए पर अपना पूरा साम्राज्य, पूरा वंश, और अपना जीवन दे दिया .....कुमति के कारण हम छोटी छोटी बातों को, ख़ुशियों को यूँ ही जाने देते है। झूठी त्रिष्णा के पीछे भाग कर अपने जीवन के कई सुखो को खो देते हैं... ज़िन्दगी बहुत छोटी है। इसमें ज्यादा से ज्यादा खुशियाँ बटोर के किसी को बिना दुख पहुँचाए हम अपना जीवन जी ले यही ज़िन्दगी जीना सही अर्थो में कहलाएगा !!
                     
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।
Title: Re: Pandavo ke Gend
Post by: pam99999 on April 22, 2007, 01:31:48 AM
AUM SAI RAM!
Title: Re: Pandavo ke Gend
Post by: Ramesh Ramnani on April 23, 2007, 03:25:08 AM
जय सांई राम

युधिष्ठिर का यज्ञ
 
कुरुक्षेत्र युद्ध में विजय पाने की खुशी में पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया। दूर-दूर से हजारों लोग आए। बड़े पैमाने पर दान दिया गया। यज्ञ समाप्त होने पर चारों तरफ पांडवों की जय-जयकार हो रही थी। तभी एक नेवला आया। उसका आधा शरीर सुनहरा था और आधा भूरा। वह यज्ञ भूमि पर इधर-उधर लोटने लगा। उसने कहा, 'तुम लोग झूठ कहते हो कि इससे वैभवशाली यज्ञ कभी नहीं हुआ। यह यज्ञ तो कुछ भी नहीं है।' लोगों ने कहा, 'क्या कहते हो, ऐसा महान यज्ञ तो आज तक संसार में हुआ ही नहीं'

नेवले ने कहा, 'यज्ञ तो वह था जहां लोटने से मेरा आधा शरीर सुनहरा हो गया था।' लोगों के पूछने पर उसने बताया, 'एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्रवधू के साथ रहता था। कथा कहने से जो थोड़ा बहुत मिलता था, उसी में सब मिल जुल कर खाते थे। एक बार वहां अकाल पड़ गया। कई दिन तक परिवार में किसी को अन्न नहीं मिला। कुछ दिनों बाद उसके घर में कुछ आटा आया। ब्राह्मणी ने उसकी रोटी बनाई और खाने के लिए उसे चार भागों में बांटा। किंतु जैसे ही वे भोजन करने बैठे,  दरवाजे पर एक अतिथि आ गया। ब्राह्मण ने अपने हिस्से की रोटी अतिथि के सामने रख दी,  मगर उसे खाने के बाद भी अतिथि की भूख नहीं मिटी। तब ब्राह्मणी ने अपने हिस्से की रोटी उसे दे दी। इससे भी उसका पेट नहीं भरा तो बेटे और पुत्रवधू ने भी अपने-अपने हिस्से की रोटी दे दी। अतिथि सारी रोटी खाकर आशीष देता हुआ चला गया। उस रात भी वे चारों भूखे रह गए। उस अन्न के कुछ कण जमीन पर गिरे पड़े थे। मैं उन कणों पर लोटने लगा तो जहां तक मेरे शरीर से उन कणों का स्पर्श हुआ, मेरा शरीर सुनहरा हो गया। तब से मैं सारी दुनिया में घूमता फिरता हूं कि वैसा ही यज्ञ कहीं और हो, लेकिन वैसा कहीं देखने को नहीं मिला इसलिए मेरा आधा शरीर आज तक भूरा ही रह गया है।' उसका आशय समझ युधिष्ठिर लज्जित हो गए। 
                     
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


ॐ सांई राम।।।