जय सांई राम।।।
..यूँ तो शहरों के विकास के साथ हरे पेड़ धीरे धीरे गुम हो रहे हैं और इन्ही के साथ हमारे जीवन से चिडिया, गिलहरियाँ आदि नन्हे जानवर भी गुम होते जा रहे हैं लेकिन सौभाग्य से मेरे घर के सामने पार्क है जिसमें चारों तरफ कई बरगद, नींम और बड़ के बडे़-बड़े पेड़ हैं, एक शहतूत का हरा भरा पेड़ है जिसकी टहनियाँ मेरी बालकनी की खिड़की को छू कर मानों सदा अपना आशी्र्वाद मुझे देना चाहती हों। घर मे घोंसला बनाने वाली चिडिया तो अब दिखाई नही देती लेकिन दूसरी छोटी-छोटी चिडिया दिखाई दे जाती है…हमारे रसोई मे एक खिड़की है जिस पर हमने पक्षियों, गिलहरीयों के खाने और पानी के लिये दो बर्तन रखें है। पिछले कई वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी कई गिलहरियों को मैने यहाँ अपना दाना खाते और पानी पीते देखा है। इन्ही से प्रेरित हो मैने अपनी नन्ही चिडिया मित्रों के लिये ये पन्क्तियाँ लिखीं——
बडे बाग के बडे पेड पर छोटी चिडिया रहती है,
मौज-मजे से जीवन जी लो, सबसे वो ये कहती है
दाना चुनती, तिनका चुनती,तिनके से अपना घर बुनती,
आँधी आये,या फिर तूफाँ, सबसे डटकर लडती है!
हल्का फुल्का तन है उसका,चपल और चन्चल मन है उसका
छुपकर कभी ना घर मे बैठे, हरदम आगे रहती है!
खूब भरा है साहस उसमे, खूब भरी है हिम्मत उसमे,
है खुद पर विश्वास गजब का, कभी नही वो डरती है!
उस जैसा साहस मै चाहूँ, उस जैसा संकल्प मै चाहूं,
तपती धूप और भारी बारिश जाने कैसे सहती है!
कभी नही वो घबराती है, कभी नही वो थक जाती है,
नन्हे पंखों से उडकर वो नभ को टक्कर देती है!!
बडे बाग के बडे पेड पर छोटी चिडिया रहती है,
मौज-मजे से जीवन जी लो, सबसे वो ये कहती है!
ॐ सांई राम।।।