DwarkaMai - Sai Baba Forum

Main Section => Little Flowers of DwarkaMai => Topic started by: JR on April 07, 2007, 03:46:14 AM

Title: Samrat ke liye and Sabke liye ek Sabak
Post by: JR on April 07, 2007, 03:46:14 AM
सम्राट के लिये और सबके लिये एक सबक

दूसरी शताब्दी में रोम पर एक बड़ा समर्थ सम्राट राज्य करता था, जिसका नाम था हैड्रियन ।  उस जमाने में कोई सत्ताधारी मनुष्य बिना किसी अंगरक्षक के अकेला घूम सकता था ।  एक दिन दोपहर में जब युवा सम्राट घोडे पर सवार हो एक गाँव से गुजर रहा था तब उसने देखा कि एक वृद्घ व्यक्ति तपती धूप में झुककर कुछ फलों के पौधे रोप रहा है ।

सम्राट ने रुककर पूछा, मेरे प्रिय नागरिक, आप की उम्र क्या होगी ।

निश्चित रुप से तो नहीं कह सकता परन्तु करीब सौ वर्ष तो जरुर होगी ।  ग्रमीण ने सम्राट को सलाम करते हुए कहा ।

मुझे तुम पर रहम आता है, क्या तुमने जवानी में कमा कर बुढ़ापे के लिये कुछ धन नहीं जमाकिया ।  सम्राट ने पूछा ।

मैंने जीवन भर पूरी ईमानदारी से अपने अच्छे खतों पर काम किया और मेरे अच्छे खेतों ने मुझे कभी निराश नहीं किया ।  मैं समझता हूँ कि भगवान से बुलावा आने तक मेरे पास निर्वाह के लिये काफी धन है ।

बिलकुल ठीक, फिर सौ वर्ष की आयु में खेतों में पेड़ रोपने की क्या आवश्यकता है ।  क्या तुम्हें यह उम्मीद है तुम इन पेड़ों के फलने तक जीवित रहोगे ।  सम्राट ने तिरस्कार के भाव से पूछा ।

प्रभु, अपनी युवावस्था मे जब मैंने यह जमीन खरीदी थी, तब इसमें बहुत वृक्ष गे थे ।  इनके फलों को जीवन भर खाता रहा, परन्तु उनमें से किसी वृक्ष को मैंने नहीं लगाया था ।  मैं इन वृक्षों को इसलिये रोप रहा हूँ ताके इसके फलों को मेरे बाद दूसरे लोग खा सकें ।  मुझे फलों का लालच नहीं है, बल्कि इन्हें रोपने में रुचि है ।  फिर भी, इनके फलों का आनन्द लेने वालों में मैं ओभी शामिल हो सका तो मुझे आर्श्चय नहीं होगा ।  और यदि भगवान ने चाहा तोफलों का एक टोकरा अपने सम्राट को भी भेंट करुँगा ।

सम्राट हँस पड़ा ।  मेरी शुभकामना तेरे साथ है, मेरे आदरणीय मित्र ।  इतना कह कर सम्राट चलता बना ।

कुछ वर्षों बाद एक दिन सम्राट अपने महल की खुली छत पर टहल रहा था ।  उसने देखा कि ेक वृद्व व्यक्ति अपनी पीठ पर एक बोरा लादे महल के मुख्य द्वार तक आया जिसे द्वारपालों ने अन्दर आने से रोक दिया ।  सम्राट ने वृद्व आदमी को कुछ देर तक ध्यान से देखा ।

फिर उसने द्वारपालों को ुसे महल के अन्दर ले आने का आदेश दिया ।  और उसके स्वागत के लिये स्वयं नीचे आया ।  सचमुच, यह वही ग्रामीण था, जो अब सौ से ऊपर होगा,  जिसे सम्राट ने कुछ वर्ष पूर्व फलों के वृक्ष रोपते देखा था ।  वह पके फलों की पहली फसल लेकर सम्राट को भेंट देने आया था ।

सम्राट ने भेंट को स्वीकार कर उस व्यक्ति को गले से लगा लिया और उसके टोकरे को स्वर्ण मुद्राओं से भर दिया ।  उसने दरबारियों को बताया कि उसने, सदभावना और आशावादिता की शक्ति क्या होती है, अब समझ लिया है ।