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Author Topic: SMALL STORIES  (Read 205358 times)

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Offline tana

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Re: SMALL STORIES
« Reply #210 on: October 05, 2007, 12:33:53 AM »
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  • Om Sai Ram~~~

    JUST BELIEVE~~~

    One night my brother and I sat in our basement discussing our problems, one in particular, our father. Our father had just recently turned himself in for stealing.

    He had stolen from us, (his own sons, which totaled to be quite a large sum), other family members and who knows who else. You see my father has a compulsive gambling problem, which has lead him to lose everything in his life including his family.

    But that night as my brother and I talked, I mentioned to him that although our father has done so many terrible things, I still loved him greatly. My brother said he felt the same but this greatly confused me and made me feel lost.

    As we talked, I brought up the Bible, God, and Jesus Christ. I told him there was a passage I wanted to read to him. So I went and retrieved my Bible from my bedroom. I couldn't remember exactly where the passage was but as I was searching, I came across a passage that has forever changed me. It was "Corinthians 1:13."

    As I read the passage I realized why God can forgive and love us even after we have committed such harsh sins. I don't believe I had stumbled onto this passage by accident. God shows his meanings to all of us, we just have to believe~~~
     
    Jai Sai Ram~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
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    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
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    Offline tana

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #211 on: October 27, 2007, 07:35:58 AM »
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  • Jai Sai Ram~~~

    FATHER & SON

    One day, the father of a very wealthy family took his son on a trip to the country with the express purpose of showing him how poor people live.
    They spent a couple of days and nights on the farm of what would be
    considered a very poor family.
    On their return from their trip, the father asked his son, "How was the trip?"
    "It was great, Dad."
    "Did you see how poor people live?" the father asked.
    "Oh yeah," said the son.
    "So, tell me, what did you learn from the trip?" asked the father.
    The son answered:
    "I saw that we have one dog and they had four.
    We have a pool that reaches to the middle of our garden and they have a creek that has no end.
    We have imported lanterns in our garden and they have the stars at night.
    Our patio reaches to the front yard and they have the whole horizon.
    We have a small piece of land to live on and they have fields that go
    beyond our sight.
    We have servants who serve us, but they serve others.
    We buy our food, but they grow theirs.
    We have walls around our property to protect us, they have friends to
    protect them."
    The boy's father was speechless.
    Then his son added, "Thanks Dad for showing me how poor we are."
    Isn't perspective a wonderful thing? Makes you wonder what would happen if..


    we all gave thanks for everything we have, instead of worrying about whatwe don't have...
    Appreciate every single thing you have, especially your friends!!!


    Jai Sai Ram~~~
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #212 on: November 09, 2007, 07:03:58 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    धन को पूजना आध्यात्मिकता है या उसे छोड़ना
     
    दीवाली के त्योहार से बहुत सी पुराण कथाएं जुड़ी हैं जो मूलत: हिंदू पुराणों से ली गई हैं। हम बरसों से यह त्योहार मना रहे हैं। इसके इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि वे कहानियाँ हमारे अवचेतन का हिस्सा बन गई हैं- हम यंत्रवत उन्हें जीये चले जा रहे हैं- कभी देखते भी नहीं कि वे कहानियां इस त्योहार से क्यों जोड़ी गई हैं। हालांकि इन सभी कथाओं का मूल स्वर यही है कि शुभ की अशुभ पर विजय। इन कहानियों के चरित्र और उनके साथ घटी घटनाओं का आपस में कोई मेल नहीं है- यह एक शोध का विषय होगा कि उन सभी कहानियों को एक माला में पिरोकर दीवाली के पांच दिनों से कैसे जोड़ा गया।

    अब देखिए, पहले दिन चतुर्दशी को कृष्ण के द्वारा नरकासुर का वध, उसके बाद राम का जंगल से अपने राज्य में वापस लौटना- क्या वास्तव में एक दिन नरकासुर का वध हुआ और दूसरे दिन राम अयोध्या वापस लौटे? फिर अमावस के दिन लक्ष्मी का पूजन और प्रतिपदा के दिन विष्णु का वामन के रूप में बलि को पाताल में दबाना- और फिर उसके अगले दिन भाई दूज कहां से आ गया? इसके साथ कोई पुराण कथा नहीं है, यह तो भाइयों को उनकी पारिवारिक जिम्मेदारी का अहसास कराने के लिए एक अवेयरनेस एक्सरसाइज करवा ली- ये सभी घटनाएं ऐसा कतई नहीं हो सकता कि एक के बाद एक घटी हों- इनका आपस में भी कोई सामंजस्य नहीं है।

    आज की वैज्ञानिक दुनिया में कहां का बलि और कौन नरकासुर! क्या हमारी जिंदगी से इनका कोई मेल है? या इनकी कोई संगति है? हम क्यों इन कथाओं को इस उत्सव के साथ जोड़ रहे हैं?

    ऐसे दीवाली को दीयों का उत्सव कहा जाता है, पर है यह धन की पूजा करने का उत्सव- भारत की धन पर बहुत गहरी पकड़ है- अन्य किसी देश में धन को सामने रखकर उसे पूजा नहीं जाता सिवाय इस देश के।

    यदि हम वेदों में देखें तो इस त्योहार का कोई उल्लेख नहीं है- हो भी नहीं सकता, क्योंकि तब भारत एक संपन्न देश था- यहां के सभी देवता ऐश्वर्यवान चित्रित किए गए हैं- ऐश्वर्य का प्रदर्शन बुरा नहीं माना जाता था, क्योंकि सभी लोग खुशहाल थे।

    एक तरफ हम धन को पूजते हैं और दूसरी तरफ जिन्होंने धन का त्याग किया, ऐसे संतों का आदर करते हैं- यदि धन को छोड़ना आदरणीय है तो हम धन की पूजा क्यों करते हैं? इस विरोधाभास का हमें अहसास नहीं है? एक और सवाल है- भारत आध्यात्मिक देश है या भौतिकवादी देश? धन को पूजना आध्यात्मिकता है या उसे छोड़ना?

    ओशो इस तरह के बेचैन करने वाले कई सवाल उठाते हैं- और आज के ग्लोबलाइजेशन के दौर में तो हर भारतीय को यह सवाल उठाना चाहिए- यदि विश्व नागरिक बनना है तो इस तरह के दोहरे मापदंड लेकर हम कैसे जी पाएंगे भाई! भारतीय चिंतन में कहीं गहरे जो दोमुँहापन पैठ गया है, उसका इलाज करने का वक्त आ गया है।

    ओशो ने कहा कि 'पश्चिम में भौतिक समृद्धि है- लोगों के पास अच्छे मकान हैं, बड़ी कारें हैं, ज्यादा पैसा है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वे भौतिकवादी हैं। पूरब में लोग गरीब हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि लोग आध्यात्मिक हैं- गरीबी का आध्यात्मिकता से कोई लेना देना नहीं है- सच तो यह है कि जब बहुत पैसा हो तभी आपको पता चलता है कि उसमें कोई खास बात नहीं है- जिंदगी की जो उच्चतम चीजें हैं, जैसे- शांति, प्रेम, आनंद, ध्यान इत्यादि- वे खरीदी नहीं जा सकतीं।

    इसलिए धन के नहीं, स्वयं के मालिक बनिए- आप कितनी ही चीजें खरीद लें मन की दरिद्रता नहीं मिट सकती- इसका अहसास होते ही व्यक्ति भीतर मुड़ने लगता है- पहली बार भीतर का खालीपन दिखाई देता है, जो एक ही बात से भर सकता है- अपने आपसे- आप अगर अपने भीतर रहने लगें।

    तो ध्यान का एक छोटा-सा दीया जला लें और भीतर प्रविष्ट हो जाएं- असली दीवाली यही है!
     


    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #213 on: November 16, 2007, 09:03:27 AM »
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    अकबर-बीरबल की पहली मुलाकात
     
    अकबर को शिकार का बहुत शौक था. वे किसी भी तरह शिकार के लिए समय निकल ही लेते थे. बाद में वे अपने समय के बहुत ही अच्छे घुड़सवार और शिकरी भी कहलाये. एक बार राजा अकबर शिकार के लिए निकले, घोडे पर सरपट दौड़ते हुए उन्हें पता ही नहीं चला और केवल कुछ सिपाहियों को छोड़ कर बाकी सेना पीछे रह गई. शाम घिर आई थी, सभी भूखे और प्यासे थे, और समझ गए थे की वो रास्ता भटक गए हैं. राजा को समझ नहीं आ रहा था की वह किस तरफ़ जाएं.

    कुछ दूर जाने पर उन्हें एक तिराहा नज़र आया. राजा बहुत खुश हुए चलो अब तो किसी तरह वे अपनी राजधानी पहुँच ही जायेंगे. लेकिन जाएं तो जायें किस तरफ़. राजा उलझन में थे. वे सभी सोच में थे किंतु कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी. तभी उन्होंने देखा कि एक लड़का उन्हें सड़क के किनारे खड़ा-खडा घूर रहा है. सैनिकों ने यह देखा तो उसे पकड़ कर राजा के सामने पेश किया. राजा ने कड़कती आवाज़ में पूछा, “ऐ लड़के, आगरा के लिए कौन सी सड़क जाती है”? लड़का मुस्कुराया और कहा, “जनाब, ये सड़क चल नहीं सकती तो ये आगरा कैसे जायेगी”. महाराज जाना तो आपको ही पड़ेगा और यह कहकर वह खिलखिलाकर हंस पड़ा.

    सभी सैनिक मौन खड़े थे, वे राजा के गुस्से से वाकिफ थे. लड़का फ़िर बोला,” जनाब, लोग चलते हैं, रास्ते नहीं”. यह सुनकर इस बार राजा मुस्कुराया और कहा,” नहीं, तुम ठीक कह रहे हो. तुम्हारा नाम क्या है, अकबर ने पूछा. मेरा नाम महेश दास है महाराज, लड़के ने उत्तर दिया, और आप कौन हैं? अकबर ने अपनी अंगूठी निकाल कर महेश दास को देते हुए कहा, “तुम महाराजा अकबर - हिंदुस्तान के सम्राट से बात कर रहे हो”. मुझे निडर लोग पसंद हैं. तुम मेरे दरबार में आना और मुझे ये अंगूठी दिखाना. ये अंगूठी देख कर मैं तुम्हें पहचान लूंगा. अब तुम मुझे बताओ कि मैं किस रास्ते पर चलूँ ताकि मैं आगरा पहुँच जाऊं.

    महेश दास ने सिर झुका कर आगरा का रास्ता बताया और जाते हुए हिंदुस्तान के सम्राट को देखता रहा.

    और इस तरह अकबर भविष्य के बीरबल से मिला.

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #214 on: December 06, 2007, 05:42:08 AM »
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    FROGS

    A number of frogs were traveling through the woods. Two of them fell into a deep pit. All the other frogs gathered around the pit. When they saw how deep the pit was, they told the two frogs that they were as good as dead.

    The two frogs ignored the comments and tried to jump up out of the pit with all of their might. The other frogs kept telling them to stop, that they were as good as dead.

    Finally, one of the frogs took heed to what the other frogs were saying and gave up. He fell down and died.

    The other frog continued to jump as hard as he could. Once again, the crowd of frogs yelled at him to stop the pain and just die. He jumped even harder and finally made it out.

    When he got out, the other frogs said, "Did you not hear us?" The frog explained to them that he was deaf. He thought they were encouraging him the entire time.

    This story teaches two lessons:



    There is the power of life and death in the tongue. An encouraging word to someone who is down can lift them up and help them make it through the day.


    A destructive word to someone who is down can be the push over the edge. Be careful of what you say. Speak life to those who cross your path. Anyone can speak words that can rob another of the spirit to push forward in difficult times.
    Special is the individual who will take the time to encourage another.
    Be kind to others. 

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #215 on: December 06, 2007, 11:08:31 PM »
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    सेवा का तरीका

    पुरानी लोककथा है । गंगा के किनारे हरे-भरे वृक्षों के बीच गुरु अभेन्द का विख्यात आश्रम था। दूर-दूर के नगरों से लोग उनके आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने आते थे। एक बार भयंकर अकाल पड़ा। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। अभेन्द्र ने अपने तीन वरिष्ठ शिष्यों को बुलाया और कहा, 'संकट की घड़ी में हमें अकाल पीड़ितों की सहायता करनी चाहिए। मेरी इच्छा है कि तुम लोग अलग-अलग इलाकों में जाओ और भूखों को भोजन कराओ।' उनकी बात सुनकर शिष्य बोले, 'गुरुदेव, हम इतने सारे लोगों को भोजन किस प्रकार कराएंगे? न तो हमारे पास अन्न का भंडार है और न ही अनाज खरीदने के लिए धन।'

    यह सुनकर अभेन्द्र ने शिष्यों को एक-एक थाली देते हुए कहा, 'यह साधारण थाली नहीं है। तुम जितना भोजन मांगोगे, यह थाली उतना भोजन प्रदान करेगी।' तीनों शिष्य थाली लेकर निकल पड़े। दो शिष्यों ने तो अपने लिए एक जगह चुन ली और वहीं बैठ गए। उधर से जो गुजरता उसे वे भरपेट भोजन कराते। लेकिन तीसरा शिष्य गोपाल बैठा नहीं बल्कि घूम-घूमकर लोगों को खाना बांटता रहा। कुछ दिनों के बाद तीनों आश्रम में लौट आए। अभेन्द ने उन सब से उनके अनुभव के बारे में पूछा। सबने बताया कि किस तरह उन्होंने लोगों की सेवा की। लेकिन अभेन्द्र ने सिर्फ गोपाल की प्रशंसा की। कई दिनों तक वह गोपाल की भूमिका की सराहना करते रहे। यह बाकी दो शिष्यों को अटपटा लगा। उन्हें अहसास हुआ कि अभेन्द्र पक्षपात कर रहे हैं। आखिर एक दिन उन्होंने अपनी शंका रख ही दी और कहा, 'गुरुदेव हमने भी तो पीड़ितों की सेवा की। पर गोपाल अधिक प्रशंसा का पात्र क्यों बना?' इस पर अभेन्द्र बोले, 'तुमने एक निश्चित स्थान पर बैठकर लोगों की सहायता की। तुम्हारे ऐसा करने से वे लोग तुम्हारी मदद से वंचित रह गए जो चलकर तुम्हारे पास नहीं आ सकते थे। जबकि गोपाल ने घूम-घूमकर लोगों को भोजन कराया। उसकी सहायता से कोई भी वंचित नहीं रहा। उसका प्रयास ज्यादा महत्वपूर्ण है।'
     
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    Offline Sai ka Tej

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #216 on: December 07, 2007, 01:22:49 AM »
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    Birbal's Khichri

    On a cold winter day Akbar and Birbal took a walk along the lake. A thought came to Birbal that a man would do anything for money. He expressed his feelings to Akbar. Akbar then put his finger into the lake and immediately removed it because he shivered with cold.

    Akbar said "I don't think a man would spend an entire night in the cold water of this lake for money."

    Birbal replied "I am sure I can find such a person."

    Akbar then challenged Birbal into finding such a person and said that he would reward the person with a thousand gold coins. 

    Birbal searched far and wide until he found a poor man who was desperate enough to accept the challenge. The poor man entered the lake and Akbar had guards posted near him to make sure that he really did as promised.

    The next morning the guards took the poor man to Akbar. Akbar asked the poor man if he had indeed spent the night in the lake. The poor man replied that he had. Akbar then asked the poor man how he managed to spend the night in the lake. The poor man replied that there was a street lamp near by and he kept his attention affixed on the lamp and away from the cold. Akbar then said that there would be no reward as the poor man had survived the night in the lake by the warmth of the street lamp. The poor man went to Birbal for help.

    The next day, Birbal did not go to court. The king wondering where he was sent a messenger to his home. The messenger came back saying that Birbal would come once his Khichri was cooked. The king waited hours but Birbal did not come. Finally the king decided to go to Birbal's house and see what he was upto.

    He found Birbal sitting on the floor near some burning twigs and a bowl filled with Khichri hanging five feet above the fire. The king and his attendants couldn't help but laugh.

    Akbar then said to Birbal "How can the Khichri be cooked if it so far away from the fire?"

    Birbal answered "The same way the poor man received heat from a street lamp that was more than a furlong away."

    The King understood his mistake and gave the poor man his reward.

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #217 on: December 11, 2007, 11:25:07 PM »
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    संयम की सीख

    गौतम बुद्ध भ्रमण करते हुए एक गांव में पहुंचे। उस गांव का प्रमुख बुद्ध को पसंद नहीं करता था। वह नहीं चाहता था कि लोग बुद्ध की बातें सुनें। उसे जैसे ही पता चला कि बुद्ध अपने शिष्यों के साथ गांव में आ रहे हैं, उसने लोगों को आदेश दिया कि वे अपने दरवाजे बंद रखें और बुद्ध को भिक्षा न दें। वह स्वयं दरवाजे बंद कर घर के चबूतरे पर बैठ गया। बुद्ध इस बात से अवगत थे। वह मुस्कराते हुए ग्राम प्रमुख के घर के सामने खड़े हो गए और उन्होंने भिक्षा की मांग की।

    ग्राम प्रमुख आगबबूला होता हुआ उठा और बोला, 'अरे मुस्टंडे संन्यासी, भागो यहां से। काम धंधा कुछ करते नहीं और भीख मांग कर पेट भरते हो। क्यों अपना और नौजवान शिष्यों का जीवन नष्ट कर रहे हो। कुछ कष्ट उठाओ काम करो और पेट भरो। भागो यहां से।' बुद्ध स्थिर खड़े सब कुछ सुनते रहे, फिर बोले, 'महोदय, मेरी एक शंका है। क्या उसका निवारण करेंगे?'

    ' क्या शंका है?' ग्राम प्रमुख ने तेज स्वर में पूछा। बुद्ध बोले, 'महोदय, आपके घर में आकर कोई कुछ मांगता है। आप उस पर दया करके कुछ पदार्थ थाली में रखकर लाते हैं और वह उसे स्वीकार किए बिना ही चला जाता है, तो बताइए कि आप उस थाली और उसमें रखे पदार्थ का क्या करेंगे?' उसने कहा, 'मैं उसे वापस अपने घर में रख लूंगा, कोई नष्ट थोड़े ही करूंगा।' बुद्ध मुस्कराते हुए बोले, 'महोदय, उस दशा में आपका सामान आपके पास ही रहा न।' वह बुद्ध की बात समझ नहीं पाया, इसलिए उसने उनसे अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए कहा। बुद्ध ने समझाते हुआ कहा, 'आपके घर आकर मैंने भिक्षा मांगी और आपने उसके उतर में हमें गालियां दीं और भला बुरा कहा। आपने हमें भिक्षा में अपशब्द दिए जो हमें स्वीकार्य नहीं। इसलिए यह आपके पास ही रह गया, जैसा कि आप स्वयं स्वीकार कर चुके हैं।' ग्राम प्रमुख को अपनी गलती का अहसास हो गया। उसने उनसे क्षमा याचना की।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #218 on: December 12, 2007, 05:29:53 AM »
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    Depressed ??

    One day a child saw a young pupa struggling to come out of its cocoon. With a thought of helping the poor thing , he broke open the and the young butterfly came out fluttering her wings. But within minutes of coming out , she was dead. She was not able to fly.
    Can you guess WHY ?
    The process of struggling out of the cocoon gave her wings the strength to survive.

    So the moral of the story is that the obstacles of our life give us strength to live our life. We all are born with some hidden energy; they serve as clarion calls to arouse what is lantern inside .
    Initially we may get disheartened by the obstacles and failures but REMEMBER , these obstacles are going to catapult us towards our goals.

     

    Jai Sai Ram~~~
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #219 on: December 13, 2007, 01:59:56 AM »
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    परमात्मा की प्राप्ति

    एक दिन एक सेठ ने सूफी संत फरीद से कहा, 'मैं घंटों पूजा-पाठ करता हूं, लाखों रुपये दान-पुण्य में खर्च करता हूं। गरीबों को खाना खिलाता हूं, फिर भी मुझे भगवान के दर्शन नहीं होते। आप मार्गदर्शन कीजिए।'

    फरीद ने कहा, 'यह तो बहुत आसान है। आओ मेरे साथ। मौका मिला तो आज ही भगवान के दर्शन करा दूंगा।' फरीद सेठ को नदी तट पर ले गए, फिर उन्होंने सेठ को डुबकी लगाने को कहा। जैसे ही सेठ ने डुबकी मारी, फरीद सेठ के ऊपर सवार हो गए। संत फरीद काफी तंदुरुस्त थे। उनका वजन सेठ संभाल नहीं पा रहा था। वह बाहर निकलने की कोशिश करता लेकिन और दब जाता था। सेठ तड़पने लगा। उसने सोचा, अब जान नहीं बचेगी। चले थे भगवान के दर्शन करने, अब यह जिंदगी भी गई। सेठ था तो कमजोर, लेकिन मौत नजदीक देख कर उसने गजब का जोर लगाया और एक झटके में ऊपर आ गया। उसने फरीद से कहा, 'तू फकीर नहीं कसाई है। तू मुझे भगवान के दर्शन कराने लाया था या मारने?'

    फरीद ने पूछा, 'यह बताओ कि जब मैं तुम्हें पानी में दबा रहा था तो क्या हुआ?' सेठ बोला, 'होना क्या था। जान निकलने लगी थी। पहले बहुत विचार उठे मन में कि हे, भगवान कैसे बचूं, कैसे निकलूं बाहर। जब प्रयत्न सफल नहीं हुए तो धीरे-धीरे विचार भी खो गए। फिर तो एक ही सवाल आया था कि किसी तरह बाहर निकल जाऊं। फिर विचार भी खो गए, बस भाव रह गया बाहर निकलने का।'

    फरीद ने कहा, 'परमात्मा तक पहुंचने का यह अंतिम मार्ग ही सबसे सरल है। जिस दिन केवल परमात्मा को पाने का भाव बचा रह जाएगा और विचार तथा प्रयास खत्म हो जाएंगे, उसी दिन ईश्वर तुम्हें दर्शन दे देंगे। आदमी केवल सोचता है, विचार करता है, सवाल करता है लेकिन उसके भीतर भाव उत्पन्न नहीं होता, इसलिए उसे संपूर्ण सफलता नहीं मिलती।' सेठ ने फरीद का भाव अच्छी तरह समझ लिया। 
     
    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Offline rajiv uppal

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    « Reply #220 on: December 19, 2007, 04:14:45 AM »
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  • एकता में ही ताकत है



    बच्चों ,आज आपको एक सच्ची धटना बताते हैं-बैंगलोर में एक पार्क में एक पेड़ पर तोते का एक छोटा सा घोंसला था। तोता और तोती बडे प्यार से उसमें रहते थे। उनका एक छोटा सा बच्चा भी था, जिसके नाजुक कोमल से शरीर पर अभी पंख नहीं आये थे।

    तोता और तोती बारी-बारी से उसके लिये खाना लाते और बडे प्यार से उसे खिलाते। तोता खाना लेने गया हुआ था तभी तोती ने सोचा क्यों ना वो भी चली जायें और थोडी बहुत खाने की चीज़ वो भी ले आये फिर वो तीनों मिलकर साथ खाना खायेंगें। लेकिन तोता और तोती को आने में थोडी देर हो गयी।
    मौका देख कर एक सांप घोंसले की और बढ चला मन ही मन वो बहुत खुश था । सोच रहा था कितने दिनों के बाद वो नरम-नरम स्वादिष्ट भोजन करेगा। कल्पना कर-कर के सांप की ज़ुबान पर पानी आ रहा था। बस पक पल की दूरी है अगले ही क्षण वो बच्चा मेरे मुहँ में होगा लेकीन तभी तोता और तोती खाना लेकर आ गये । इस तरह एकाएक दुश्मन को अपने घोंसले के करीब पा कर दोंनो के होश उड गये।तोती तो घबरा कर रोने लगी पर तोते ने हिम्मत नहीं हारी ।उसने तोती को समझाया -ये समय रोने का नहीं है । हमें मिलकर -डटकर उसका मुकाबला करना है और बिना एक पल गंवायें तोते ने सांप पर अपनी चोंच से प्रहार किया सांप निश्चिंत था वो एकाएक हुये हमले की वजह से अपना संतुलन खो बैठा और पेड से नीचे गिर पडा।

    तोती को ये सब देखकर हिम्मत बंधी और वो भी तोते के साथ मिलकर सांप पर आक्रमण करने लगी। दूसरी तरफ सांप इस तरह मुहं में आये निवाले को जाता देख कर गुस्से से आग बबूला था । अब वो दुगनी तेजी से घोंसले की तरफ बडा पर तोते और तोती ने "एक और एक ग्यारह होते हैं" वाली कहावत को सच करते हुये हिम्मत से उसका सामना किया। सांप को उन दोंनो ने अपनी चोंच से हमला कर- कर के अधमरा कर दिया कि आखिर में सांप को मैदान छोड कर सिर पर पांव रख कर अपनी जान बचानी पडी।

    बच्चे जानते हो तोता और तोती अपने बच्चे की जान बचाने में क्यों सफल हुये? क्योंकि उनमें एकता और हिम्मत थी ।दोंनो ने मिलकर बिना डरे शत्रु का सामना किया और अपने नन्हे से बच्चे की जान बचायी।

    शत्रु कितना भी बलवान या चतुर क्यों ना हो यदि हम उसका सामना निडर हो कर करते हैं तो निश्चय ही जीत हमारी होगी ।यदि सांप को देख कर तोता और तोती हिम्मत हार जाते और सोचते की वो उनसे ज्यादा ताकतवर है तो क्या वो अपने बच्चे की जान बचा पाते ? नहीं ना। इसलिये तुम भी ध्यान रखना कभी भी हिम्मत
    मत हारना।

    एकता में ही ताकत है ये भी जान लो।
    ..तन है तेरा मन है तेरा प्राण हैं तेरे जीवन तेरा,सब हैं तेरे सब है तेरा मैं हूं तेरा तू है मेरा..

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #221 on: December 22, 2007, 01:49:28 AM »
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    वट वृक्ष के नीचे एक दार्शनिक अपने एक शिष्य के साथ बैठा था। शिष्य ने कहा, 'यह वृक्ष कितना पक्षपाती है। देखिए, नीचे की टहनियां मोटी हैं और ऊपर की पतली। इसका अर्थ यह है कि वृक्ष पोषक तत्वों का वितरण समान रूप से नहीं करता।' दार्शनिक ने जवाब दिया, 'वत्स, तुम्हारा विचार सही नहीं है। यह सत्य है कि जड़ें पोषक तत्वों को एकत्रित करती हैं और अन्य जितनी भी शाखाएं हैं वे उनसे पोषक तत्व ग्रहण करती हैं। जो मोटी शाखाएं हैं वे पोषक तत्व अधिक मात्रा में ग्रहण करती हैं पर वे शाखाएं अधिक ऊंचा स्थान प्राप्त नहीं कर पातीं। ऊंचा स्थान उन्हीं को प्राप्त होता है जो कम से कम में संतुष्ट होना जानता है।'  पेड़ के बहाने शिष्य को जीवन के एक महत्वपूर्ण रहस्य का ज्ञान मिल गया।

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    Offline Ramesh Ramnani

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    « Reply #222 on: December 23, 2007, 05:49:36 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    कुँए का पानी
     
    एक बार एक आदमी ने अपना कुँआ एक किसान को बेच दिया. अगले दिन जब किसान ने कुँए से पानी खिंचना शुरू किया तो उस व्यक्ति ने किसान से पानी लेने के लिये मना किया. वह बोला, “मैने तुम्हें केवल कुँआ बेचा है ना कि कुँए का पानी”.

    किसान बहुत दुखी हुआ और उसने अकबर के दरबार में गुहार लगाई. उसने दरबार में सबकुछ बताया और अकबर से इंसाफ माँगा.

    अकबर ने यह समस्या बीरबल को हल करने के लिये दी. बीरबल ने उस व्यक्ति को बुलाया जिसने कुँआ किसान को बेचा था. बीरबल ने पूछा, “तुम किसान को कुँए से पानी क्यों नहीं लेने देते? आखिर तुमने कुँआ किसान को बेचा है.” उस व्यक्ति ने जवाब दिया, “बीरबल, मैंने किसान को कुँआ बेचा है ना कि कुँए का पानी. किसान का पानी पर कोई अधिकार नहीं है”.

    बीरबल मुस्कुराया और बोला,”बहुत खूब, लेकिन देखो, क्योंकि तुमने कुँआ किसान को बेच दिया है, और तुम कहते हो कि पानी तुम्हारा है, तो तुम्हे अपना पानी किसान के कुँए में रखने का कोई अधिकार नहीं है. अब या तो अपना पानी किसान के कुँए से निकाल लो या फिर किसान को किराय दो.”

    वह आदमी समझ गया, कि बीरबल के सामने उसकी दाल नहीं गलने वाली और वह माफी माँग कर खिसक लिया.

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #223 on: December 25, 2007, 01:35:58 AM »
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    आत्मा की ज्योति
     
    एक दिन राजा जनक ने महर्षि याज्ञवल्क्य से पूछा, ‘महात्मन्! बताइए कि एक व्यक्ति किस ज्योति से देखता है और काम लेता है?’ याज्ञवल्क्य ने कहा, ‘यह तो बिल्कुल बच्चों जैसी बात पूछी आपने महाराज। यह तो हर व्यक्ति जानता है कि मनुष्य सूर्य के प्रकाश में देखता है और उससे अपना काम चलता है।’ इस पर जनक बोले, ‘और जब सूर्य न हो तब?’

    याज्ञवल्क्य बोले, ‘तब वह चंद्रमा की ज्योति से काम चलाता है।’ तभी जनक ने टोका, ‘और जब चन्द्रमा भी न हो तब।’ याज्ञवल्क्य ने जवाब दिया, ‘तब वह अग्नि के प्रकाश में देखता है।’ जनक ने फिर कहा, ‘और जब अग्नि भी न हो तब।’ याज्ञवल्क्य ने मुस्कराते हुए कहा, ‘तब वह वाणी के प्रकाश में देखता है।’ जनक ने गंभीरतापूर्वक उसी तरह पूछा, ‘महात्मन् यदि वाणी भी धोखा दे जाए तब।’ याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, ‘राजन् तब मनुष्य का मार्ग प्रशस्त करने वाली एक ही वस्तु है-आत्मा। सूर्य, चंद्रमा, अग्नि और वाणी चाहे अपनी आग खो दें पर आत्मा तब भी व्यक्ति के मार्ग को प्रशस्त करती है।’ इस बार जनक संतुष्ट हो गए।

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #224 on: December 26, 2007, 04:36:08 AM »
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  • JAI SAI RAM!!!

    This is the story of Robby. He was a young boy who lived with his elderly mother. His mother wanted him to learn how to play the piano because she longed to hear her son play for her. She sent her son to a piano teacher who took Robby in under her guidance. However, there was one small problem because Robby was not musically inclined and therefore was very slow in learning. The teacher did not have much faith in the boy because of his weakness. The mother was very enthusiastic and every week she would send Robby to the teacher.

    One day Robby stopped attending the piano lessons. The teacher thought that he had given up and in fact she was quite pleased since she did not give  much hope to Robby. Not long after, the piano teacher was given the task to organize a piano concert in town. She sent out circulars to invite the students and public to attend the event. Suddenly, she received a call from Robby who offered to take part in the concert. The teacher told Robby that he was not good enough and that he was no longer a student since he had stopped coming for lessons. Robby begged her to give him a chance and promised that he would not let her down.

    Finally, she gave in and she put him to play last, hoping that he will change his mind at the last minute. When the big day came, the hall was packed and the children gave their best performance. Finally, it was Robby's turn to play and as his name was announced, he walked in. He was not in proper attire and his hair was not properly groomed. The teacher was really nervous since Robby's performance could spoil the whole evening's brilliant performance. As Robby started playing the crowd became silent and was amazed
    at the skill of this little boy. In fact, he gave the best performance of the evening. At the end of his presentation the crowd and the piano teacher gave him a standing ovation. The crowd asked Robby how he managed to play so brilliantly. With a microphone in front of him, he said, "I was not able to
    attend the weekly piano lessons as there was no one to send me because my mother was sick with cancer. She just passed away this morning and I wanted her to hear me play. You see, this is the first time she is able to hear me play because when she was alive she was deaf and now I know she is listening
    to me. I have to play my best for her!"

    This is indeed a touching story of love and excellence. When you have a passion and a reason to do Something, you will surely excel. You may not be talented or gifted but if you have a strong enough reason to do something, you will be able to tap into your inner God given potential.

    OM SAI RAM!!!
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

     


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