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Author Topic: SMALL STORIES  (Read 225698 times)

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Offline tana

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Re: SMALL STORIES
« Reply #225 on: January 07, 2008, 03:03:36 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    कछुए की बहिन~~KUCHHAWE KI BAHIN~~~

    कछुआ तालाब से निकला और धीरे–धीरे सरक कर खेत की मेंड़ पर आकर बैठ गया । उसे तालाब से बाहर का संसार बहुत ही प्यारा लगा । स्कृल से लौटते खिलखिलाते बच्चों को देखकर उसका मन मचल उठा । उसने सोचा– मैं भी बच्चों की तरह खिलखिलाता । कन्धे पर बस्ता लटकाकर स्कूल जाता । उसने अपना सिर निकाल कर बच्चों की तरफ देखा । दो शैतान बच्चों ने उसको देख लिया । फिर क्या था –दोनों उसे बारी–बारी से ढेले मारने लगे । कछुए ने अपने हाथ , पैर, सिर सब एकदम समेट लिये । खोंपड़ी पर लगातार ढेलों की मार से उसे लगा कि वह मर जाएगा । लड़कों के साथ एक छोटी लड़की भी थी । वह चिल्लाई–‘‘ क्यों मार रहे हो ? इसने तुम्हारा कया बिगाड़ा है ?’’ ‘‘ तुम्हें बहुत दु:ख हो रहा है । यह तुम्हारा भाई है क्या ?’’ एक शैतान लड़के ने कहा । ‘‘ इसे राखी बॉंध देना ’’ – दूसरा लड़का कछुए को ढेला मारकर बोला । लड़की की आँखों में आँसू आ गए –‘‘ यह मेरा भाई हो या न हो , पर यह दुश्मन भी नही है ।’’ ‘‘अरे, ओ कछुए की बहिन ! अपने घर चली जा ’’ –दूसरा बोला । सभी–बच्चे ‘कछुए की बहिन , कछुए की बहिन ! कछुए की बहिन!’ कहकर जोर–जोर से हॅंसने लगे । उन दोनों शैतान लड़कों ने कछुए को उल्टा करके ढेलों की बीच में रख दिया । लड़की चुपचाप अपने घर चली गई । घर पहुँचने पर उसका मन बहुत उदास हो गया । वह सोचने लगी– बेचारा कछुआ ! कब तक उल्टा पड़ा रहेगा ? उसे लगा – जैसे वह सचमुच उसका भाई ही हो । वह चुपचाप घर से निकली और तालाब के किनारे जा पहुँची । कछुआ उल्टा पड़ा हुआ था । वह सीधा होने के लिए छटपटा रहा था । लड़की ने चारों तरफ देखा । आसपास कोई नहीं था । वह उसे उठाकर तालाब की तरफ दौड़ी । उसने कछुए को तालाब के पानी में छोड़ दिया । कछुए ने अपनी लम्बी गर्दन निकाली । चमकती छोटी–छोटी आँखों से लड़की की तरफ प्यार से देखा और फिर गहरे पानी में उतर गया । लड़की खुश होकर घर की तरफ दौड़ी । अब उसे कोई ‘ कछुए की बहिन’ कहे तो वह नहीं चिढ़ेगी । कछुए ने भी फिर कभी तालाब से निकल कर घूमने की हिम्मत नहीं की ।

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #226 on: January 10, 2008, 08:53:10 AM »
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  • जय सांई राम़।।।

    एक बार नारदजी एक पर्वत से गुजर रहे थे। अचानक उन्होंने देखा कि एक विशाल वटवृक्ष के नीचे एक तपस्वी तप कर रहा है। उनके दिव्य प्रभाव से वह जाग गया और उसने उन्हें प्रणाम करके पूछा कि उसे प्रभु के दर्शन कब होंगे। नारदजी ने पहले तो कुछ कहने से इनकार किया, फिर बार-बार आग्रह करने पर बताया कि इस वटवृक्ष पर जितनी छोटी-बड़ी टहनियां हैं उतने ही वर्ष उसे और लगेंगे। नारदजी की बात सुनकर तपस्वी बेहद निराश हुआ। उसने सोचा कि इतने वर्ष उसने घर-गृहस्थी में रहकर भक्ति की होती और पुण्य कमाए होते तो उसे ज्यादा फल मिलते। वह बोला, ‘मैं बेकार ही तप करने आ गया।’ नारदजी उसे हैरान-परेशान देखकर वहां से चले गए।

    आगे जाकर संयोग से वह एक ऐसे जंगल में पहुंचे, जहां एक और तपस्वी तप कर रहा था। वह एक प्राचीन और अनंत पत्तों से भरे हुए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था। नारदजी को देखते ही वह उठ खड़ा हुआ और उसने भी प्रभु दर्शन में लगने वाले समय के बारे में पूछा। नारदजी ने उसे भी टालना चाहा, मगर उसने बार-बार अनुरोध किया। इस पर नारदजी ने कहा कि इस वृक्ष पर जितने पत्ते हैं उतने ही वर्ष अभी और लगेंगे। हाथ जोड़कर खड़े उस तपस्वी ने जैसे ही यह सुना, वह खुशी से झूम उठा और बार-बार यह कहकर नृत्य करने लगा कि प्रभु उसे दर्शन देंगे। उसके रोम-रोम से हर्ष की तरंगें उठ रही थीं।

    नारदजी मन ही मन सोच रहे थे कि इन दोनों तपस्वियों में कितना अंतर है। एक को अपने तप पर ही संदेह है। वह मोह से अभी तक उबर नहीं सका और दूसरे को ईश्वर पर इतना विश्वास है कि वह वर्षों प्रतीक्षा के लिए तैयार है। तभी वहां अचानक अलौकिक प्रकाश फैल गया और प्रभु प्रकट होकर बोले, ‘वत्स! नारद ने जो कुछ बताया वह सही था पर तुम्हारी श्रद्धा और विश्वास में इतनी गहराई है कि मुझे अभी और यहीं प्रकट होना पड़ा।’
     
    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।। 
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #227 on: January 17, 2008, 01:52:38 AM »
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  • जय सांई राम़।।।

    विचारों की पवित्रता

    एक राजा और नगर सेठ में गहरी मित्रता थी। वे रोज एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह पाते थे। नगर सेठ चंदन की लकड़ी का व्यापार करता था। एक दिन उसके मुनीम ने बताया कि लकड़ी की बिक्री कम हो गई है। तत्काल सेठ के मन में यह विचार कौंधा कि अगर राजा की मृत्यु हो जाए, तो मंत्रिगण चंदन की लकडि़यां उसी से खरीदेंगे। उसे कुछ तो मुनाफा होगा। शाम को सेठ हमेशा की तरह राजा से मिलने गया। उसे देख राजा ने सोचा कि इस नगर सेठ ने उससे दोस्ती करके न जाने कितनी दौलत जमा कर ली है, ऐसा कोई नियम बनाना होगा जिससे इसका सारा धन राज खजाने में जमा हो जाए।

    दोनों इसी तरह मिलते रहे, लेकिन पहले वाली गर्मजोशी नहीं रही। एक दिन नगर सेठ ने पूछ ही लिया, ‘पिछले कुछ दिनों से हमारे रिश्तों में एक ठंडापन आ गया है। ऐसा क्यों?’ राजा ने कहा, ‘मुझे भी ऐसा लग रहा है। चलो, नगर के बाहर जो महात्मा रहते हैं, उनसे इसका हल पूछा जाए।’ उन्होंने महात्मा को सब कुछ बताया। महात्मा ने कहा, ‘सीधी सी बात है। आप दोनों पहले शुद्ध भाव से मिलते रहे होंगे, पर अब संभवत: एक दूसरे के प्रति आप लोगों के मन में कुछ बुरे विचार आ गए हैं इसलिए मित्रता में पहले जैसा सुख नहीं रह गया।’

    नगर सेठ और राजा ने अपने-अपने मन की बातें कह सुनाईं। महात्मा ने सेठ से कहा,’ तुमने ऐसा क्यों नहीं सोचा कि राजा के मन में चंदन की लकड़ी का आलीशान महल बनवाने की बात आ जाए? इससे तुम्हारा चंदन भी बिक जाता। विचार की पवित्रता से ही संबंधों में मिठास आती है। तुमने राजा के लिए गलत सोचा इसलिए राजा के मन में भी तुम्हारे लिए अनुचित विचार आया। गलत सोच ने दोनों के बीच दूरी बढ़ा दी। अब तुम दोनों प्रायश्चित करके अपना मन शुद्ध कर लो, तो पहले जैसा सुख फिर से मिलने लगेगा।’
     
    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।। 
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    Offline fatima

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    Good Luck Bad Luck!!!
    « Reply #228 on: January 23, 2008, 01:28:20 AM »
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  • There is a Chinese story of a farmer who used an old horse to till his fields. One day, the horse escaped into the hills and when the farmer's neighbors sympathized with the old man over his bad luck, the farmer replied, "Bad luck? Good luck? Who knows?" A week later, the horse returned with a herd of horses from the hills and this time the neighbors congratulated the farmer on his good luck. His reply was, "Good luck? Bad luck? Who knows?"

    Then, when the farmer's son was attempting to tame one of the wild horses, he fell off its back and broke his leg. Everyone thought this very bad luck. Not the farmer, whose only reaction was, "Bad luck? Good luck? Who knows?"

    Some weeks later, the army marched into the village and conscripted every able-bodied youth they found there. When they saw the farmer's son with his broken leg, they let him off. Now was that good luck or bad luck?

    Who knows?

    Everything that seems on the surface to be an evil may be a good in disguise. And everything that seems good on the surface may really be an evil. So we are wise when we leave it to God to decide what is good fortune and what misfortune, and thank him that all things turn out for good with those who love him.
    Not every heart is capable of finding the secret of God's love.

    There are not pearls in every sea; there is not gold in every mine.


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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #229 on: January 25, 2008, 04:52:42 AM »
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    चरवाहे की सीख

    पुराने जमाने की बात है। एक राजा था। वह यूं तो जनता की भलाई में लगा रहता था पर उसकी सबसे बड़ी कमी यह थी कि वह बहुत जल्दी किसी की बातों पर भरोसा कर लेता था, चाहे वह अच्छी बात हो या बुरी। एक बार एक व्यक्ति ने उसके सामने एक चरवाहे की खूब प्रशंसा की। बस फिर क्या था, राजा ने तत्काल चरवाहे को राज्य का खजांची बनाने की घोषणा कर दी। चरवाहे ने काम तो संभाल लिया पर उसे पता चल गया कि राजा कान का कच्चा है इसलिए वह बेहद सावधान रहता था। उसे इस बात का अंदेशा रहता था कि कभी भी उसे काम से हटाया जा सकता है। वह हमेशा अपना सामान तैयार रखता था। उसने अपने रहने के लिए एक कोठरी पर्याप्त समझी। वह उसी में रहता और दिन भर ताला बंद रखता।

    चुगलखोरों ने राजा के कान भरे कि इसने बहुत दौलत बटोर ली है और अपनी सारी संपत्ति कोठरी में जमा कर रखी है। राजा ने इस बात की जांच कराए बगैर इसे सच मान लिया और चरवाहे को खजांची के पद से हटा दिया गया। फिर उसने सैनिकों से कहा कि वे उसके कमरे की तलाशी लें। तलाशी ली गई। कोठरी में केवल उसके वे कपड़े और जूते मिले, जिन्हें वह घर से लेकर आया था। सिपाहियों ने पूछा कि आखिर उसने ये चीजें क्यों जमा कर रखी हुई हैं? चरवाहे ने कहा, 'मैं जानता था कि महाराज कान के कच्चे हैं। ऐसे स्वभाव वाले व्यक्ति के घर किसी का ज्यादा दिनों तक टिकना संभव नहीं, सो मैं जिस हैसियत में आया, उसी में घर लौट जाने के लिए हमेशा तैयार रहा।'

    यह बात राजा तक पहुंचाई गई। राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने चरवाहे को बुला लाने का आदेश दिया लेकिन तब तक चरवाहा जा चुका था। उसने जाते-जाते राजा को एक बड़ी सीख दी थी। राजा ने तय किया कि वह किसी बात को जांच-परख कर ही उस पर विश्वास करेगा। 

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #230 on: February 02, 2008, 08:47:07 AM »
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    न देने वाला मन

    एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए। टोटके या अंधविश्वास के कारण भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। थैली देख कर दूसरों को लगता है कि इसे पहले से किसी ने दे रखा है। पूर्णिमा का दिन था, भिखारी सोच रहा था कि आज ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी।

    अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती दिखाई दी। भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा, राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से सारे दरिद्र दूर हो जाएंगे, जीवन संवर जाएगा। जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई, भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई। जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया, राजा ने अपना रथ रुकवाया, उतर कर उसके निकट पहुंचे। भिखारी की तो मानो सांसें ही रुकने लगीं। लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उलटे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और भीख की याचना करने लगे। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुन: याचना की। भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला, मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था। जैसे-तैसे कर उसने दो दाने जौ के निकाले और उन्हें राजा की चादर पर डाल दिया। उस दिन भिखारी को रोज से अधिक भीख मिली, मगर वे दो दाने देने का मलाल उसे सारे दिन रहा। शाम को जब उसने झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो जौ वह ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे। उसे समझ में आया कि यह दान की ही महिमा के कारण हुआ है। वह पछताया कि काश! उस समय राजा को और अधिक जौ दी होती, लेकिन नहीं दे सका, क्योंकि देने की आदत जो नहीं थी।
     
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #231 on: February 08, 2008, 08:40:51 AM »
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    मन की आवाज

    एक बुढ़िया बड़ी सी गठरी लिए चली जा रही थी। चलते-चलते वह थक गई थी। तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है। उसे देख बुढ़िया ने आवाज दी, ‘अरे बेटा, एक बात तो सुन।’ घुड़सवार रुक गया। उसने पूछा, ‘क्या बात है माई?’ बुढ़िया ने कहा, ‘बेटा, मुझे उस सामने वाले गांव में जाना है। बहुत थक गई हूं। यह गठरी उठाई नहीं जाती। तू भी शायद उधर ही जा रहा है। यह गठरी घोड़े पर रख ले। मुझे चलने में आसानी हो जाएगी।’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘माई तू पैदल है। मैं घोड़े पर हूं। गांव अभी बहुत दूर है। पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी। मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा। वहां पहुंचकर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा?’ यह कहकर वह चल पड़ा। कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा, ‘तू भी कितना मूर्ख है। वह वृद्धा है, ठीक से चल भी नहीं सकती। क्या पता उसे ठीक से दिखाई भी देता हो या नहीं। तुझे गठरी दे रही थी। संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो। तू उसे लेकर भाग जाता तो कौन पूछता। चल वापस, गठरी ले ले। ‘

    वह घूमकर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला, ‘माई, ला अपनी गठरी। मैं ले चलता हूं। गांव में रुककर तेरी राह देखूंगा।’ बुढ़िया ने कहा, ‘न बेटा, अब तू जा, मुझे गठरी नहीं देनी।’ घुड़सवार ने कहा, ‘अभी तो तू कह रही थी कि ले चल। अब ले चलने को तैयार हुआ तो गठरी दे नहीं रही। ऐसा क्यों? यह उलटी बात तुझे किसने समझाई है?’

    बुढ़िया मुस्कराकर बोली, ‘उसी ने समझाई है जिसने तुझे यह समझाया कि माई की गठरी ले ले। जो तेरे भीतर बैठा है वही मेरे भीतर भी बैठा है। तुझे उसने कहा कि गठरी ले और भाग जा। मुझे उसने समझाया कि गठरी न दे, नहीं तो वह भाग जाएगा। तूने भी अपने मन की आवाज सुनी और मैंने भी सुनी।’

     
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #232 on: February 17, 2008, 10:36:51 PM »
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  • जय सांई राम़।।।

    विचारों की पवित्रता

    एक बूढ़ा बगीचे में काम कर रहा था। तभी उधर से गुजरता हुआ एक नौजवान वहां आया। उसने बूढ़े से पूछा, 'आप क्या कर रहे हैं?' बूढ़े ने जवाब दिया, 'आम लगा रहा हूं।' इस पर नौजवान को हंसी आ गई। उसने कहा, 'ये पेड़ आपके किस काम आएंगे? कौन खाएगा इनके फल। आप फालतू मेहनत कर रहे हैं।' इस पर बूढ़े ने कहा, 'बेटे! यही बात मेरे बड़े-बूढ़े सोचते तो भला मैं आज कैसे आम खाता? यह बगीचा जो इतने फलों से लदा है, हमारे पूर्वजों के श्रम की कहानी कहता है।' यह सुनकर नौजवान का सिर शर्म से झुक गया। उसने बूढ़े से क्षमा मांगी और उसके काम में हाथ बंटाने लगा।...
     
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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #233 on: February 17, 2008, 11:01:42 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    सच-झूठ का अंतर~~~
     
    एक बार भरा हुआ था अकबर का दरबार, बीरबल भी थे अन्य दरबारियों के साथ। अकबर ने पूछा एक सवाल, जिससे दरबारियों का हो गया बुरा हाल। अकबर ने पूछा-'सच और झूठ में होता है कितना अंतर, दो तीन या चार शब्दों में बताओ उत्तर।

    सवाल सुनकर सभी दरबारियों की हो गई बोलती बंद, यूँ तो सभी बनते थे बड़े अक्लमंद। अकबर ने देखा फिर बीरबल की ओर, बीरबल प्रश्न के बारे में ही कर रहे थे गौर। अकबर ने कहा-'बीरबल तुम बताओ, मेरे प्रश्न का जवाब सुझाओ।'

    बीरबल ने कहा-'महाराज! आपके प्रश्न का है उत्तर, सच और झूठ में होता है चार उँगलियों का अंतर।'     

    अकबर और दरबारियों को बात समझ में नहीं आई, अकबर ने कहा-'बीरबल जरा खुलकर समझाओगे कि नहीं।' बीरबल ने दिया उत्तर,-'श्रीमान आँखें कान से चार उँगलियाँ तो होती हैं दूर। कान से सुनी बात होती है झूठ और आँखों देखी बात होती है सच।'

    अकबर बीरबल की बात सुनकर हो गए बाग-बाग, उन्होंने खुलकर दी बीरबल की अक्ल की दाद। 

    जय सांई राम~~~
     
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    Offline fatima

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #234 on: February 23, 2008, 02:47:01 AM »
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  • Life is like baking a cake!


    A little boy is telling his Grandma how "everything" is going wrong. School, family problems, health problems, problems with friends, etc.

    Meanwhile, Grandma is baking a cake. She asks her grandson if he would like a snack, which, of course, he does.

    "Here, have some cooking oil." *"Yuck" says the boy.
    "How about a couple raw eggs? " "Gross, Grandma!"
    "Would you like some flour then? Or maybe baking soda?"

    "Grandma, those are all yucky!"

    To which Grandma replies: "Yes, all those things seem bad all by themselves. But when they are put together in the right way, they make a wonderfully delicious cake!

    God works the same way. Many times we wonder why he would let us go through such bad and difficult times.

    But Allah(God) knows that when He puts these things all in His order, they always work for good! We just have to trust Him and, eventually, they will all make something wonderful!"
    « Last Edit: February 23, 2008, 02:51:31 AM by fatima »
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #235 on: February 26, 2008, 02:00:40 AM »
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  • जय सांई राम़।।।

    राजा कृष्णदेव राय के राज्य में एक कंजूस सेठ रहता था। उसके पास धन की कोई कमी न थी, पर एक पैसा भी जेब से निकालते समय उसकी नानी मर जाती थी। एक बार उसके कुछ मित्रों ने हँसी-हँसी में एक कलाकार से अपना चित्र बनवाने के लिए उसे राजी कर लिया, उसके सामने वह मान तो गया, पर जब चित्रकार उसका चित्र बनाकर लाया, तो सेठ की हिम्मत न पड़ी कि चित्र के मूल्य के रूप में चित्रकार को सौ स्वर्णमुद्राएँ दे दे।

    यों वह सेठ भी एक तरह का कलाकार ही था। चित्रकार को आया देखकर सेठ अंदर गया और कुछ ही क्षणों में अपना चेहरा बदलकर बाहर आया। उसने चित्रकार से कहा, ‘तुम्हारा चित्र जरा भी ठीक नहीं बन पड़ा। तुम्हीं बताओ, क्या यह चेहरा मेरे चेहरे से जरा भी मिलता है?’ चित्रकार ने देखा, सचमुच चित्र सेठ के चेहरे से जरा भी नहीं मिलता था।

    तभी सेठ बोला, ‘जब तुम ऐसा चित्र बनाकर लाओगे, जो ठीक मेरी शक्ल से मिलेगा, तभी मैं उसे खरीदूँगा।’ दूसरे दिन चित्रकार एक और चित्र बनाकर लाया, जो हूबहू सेठ के उस चेहरे से मिलता था, जो सेठ ने पहले दिन बना रखा था। इस बार फिर सेठ ने अपना चेहरा बदल लिया और चित्रकार के चित्र में कमी निकालने लगा। चित्रकार बड़ा लज्जित हुआ। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस तरह की गलती उसके चित्र में क्यों होती है?

    अगले दिन वह फिर एक नया चित्र बनाकर ले गया, पर उसके साथ फिर वही हुआ। अब तक उसकी समझ में सेठ की चाल आ चुकी थी। वह जानता था कि यह मक्खीचूस सेठ असल में पैसे नहीं देना चाहता, पर चित्रकार अपनी कई दिनों की मेहनत भी बेकार नहीं जाने देना चाहता था। बहुत सोच-विचारकर चित्रकार तेनालीराम के पास पहुँचा और अपनी समस्या उनसे कह सुनाई। कुछ समय सोचने के बाद तेनालीराम ने कहा-‘कल तुम उसके पास एक शीशा लेकर जाओ और कहो कि आपकी बिलकुल असली तस्वीर लेकर आया हूँ। अच्छी तरह मिलाकर देख लीजिए। कहीं कोई अंतर आपको नहीं मिलेगा। बस, फिर अपना काम हुआ ही समझो।’ अगले दिन चित्रकार ने ऐसा ही किया।

    वह शीशा लेकर सेठ के यहाँ पहुँचा और उसके सामने रख दिया। ‘लीजिए, सेठ जी, आपका बिलकुल सही चित्र। गलती की इसमें जरा भी गुंजाइश नहीं है।’ चित्रकार ने अपनी मुस्कराहट पर काबू पाते हुए कहा। ‘लेकिन यह तो शीशा है।’सेठ ने झुँझलाते हुए कहा। ‘आपकी असली सूरत शीशे के अलावा बना भी कौन सकता है? जल्दी से मेरे चित्रों का मूल्य एक हजार स्वर्णमुद्राएँ निकालिए।’ चित्रकार बोला। सेठ समझ गया कि यह सब तेनालीराम की सूझबूझ का परिणाम है। उसने तुरंत एक हजार स्वर्णमुद्राएँ चित्रकार को दे दीं। तेनालीराम ने जब यह घटना महाराज कृष्णदेव राय को बताई तो वह खूब हँसे।
     
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    Offline fatima

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #236 on: February 26, 2008, 02:20:48 AM »
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  • Is there a God?

    Once upon a time there was a king and he was a wise man too. In his kingdom used to live many other wise men. Now some of these would not agree to believe that God did exist, while others not only agreed but argued to the satisfaction of the King that there was 'God'. The King, being a wise man, arranged for a discussion.

    The date and time for discussion was fixed. The king held his court at the appointed time on the appointed date. The non-believers assembled in his presence but the believing wise man did not come at the appointed time

    The people waited and waited till they lost their patience and uttered the words: "He has no arguments to advance in support of his conviction, so he will not come. He has lost, we have won."

    At last, the wise man arrived and there was an uproar in the court of the king. The people cried: "Why are you late? You have lost".

    The king asked him to explain the cause of his delay. The believing wise man explained, saying: "I started from my home in time, but when I came by the side of the river which I had to cross before reaching here, I did not find a single boat, by which I could cross and reach the opposite bank".

    Upto this point the disbelieving men heard him patiently and did not say a single word. The believing man then continued:


    "I waited and waited till at last I saw some planks of wood coming out of the river".

    And the unbelieving men began to shout "O, It is a lie. It is unbelievable. It is unthinkable".

    Continued the believing wise man: "Plank by plank came out of the river and then I saw the planks were cut to proper size and shape and joined to each other with nails by themselves until they formed a boat. And then I took my seat in it and came over to the other bank. I am late because of the delay in the availability of the boat".

    Amid a roar of the non-believing men, the believing wise man tried to convince them of the cause of the delay; but the opponents would not believe him. Then he said:

    "You do not believe what I say. It appears the story of the boat forming by itself is something impossible for you to believe. Now in the name of justice, I ask you. Do you see the earth, the sun, the moon, the stars and the skies? Every thing is set according to a plan. But you say it came into existence without a Creator. In other words you deny the existence of God. How far is your statement reasonable and justified?

    This silenced them all and there was no answer to this. So the non-believers lost and the believer won.
    Not every heart is capable of finding the secret of God's love.

    There are not pearls in every sea; there is not gold in every mine.


                                       ------Baba Farid

    Offline fatima

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #237 on: February 27, 2008, 04:00:06 AM »
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  • All the time in the world!!!


    While at the park one day, a woman sat down next to a man on a bench near a playground. "That's my son over there," she said, pointing to a little boy in a red sweater who was gliding down the slide.

    "He's a fine looking boy," the man said. "That's my son on the swing in the blue sweater." Then, looking at his watch, he called to his son. "What do you say we go, Todd?"

    Todd pleaded, "Just five more minutes, Dad. Please? Just five more minutes." The man nodded and Todd continued to swing to his heart's content.

    Minutes passed and the father stood and called again to his son. "Time to go now?"

    Again Todd pleaded, "Five more minutes, Dad. Just five more minutes." The man smiled and said, "Okay."

    "My, you certainly are a patient father," the woman responded.

    The man smiled and then said, "My older son Tommy was killed by a drunk driver last year while he was riding his bike near here. I never spent much time with Tommy and now I'd give anything for just five more minutes with him. I've vowed not to make the same mistake with Todd.

    "He thinks he has five more minutes to swing. The truth is ...

    I get five more minutes to watch him play." 
     


     
    Not every heart is capable of finding the secret of God's love.

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    Offline fatima

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #238 on: February 29, 2008, 04:08:09 AM »
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  • The Tale of the Sands

    A stream, from its source in far-off mountains, passing through every kind and description of countryside, at last reached the sands of the desert. Just as it had crossed every other barrier, the stream tried to cross this one, but it found that as fast as it ran into the sand, its waters disappeared.

    It was convinced, however, that its destiny was to cross this desert, and yet there was no way. Now a hidden voice, coming from the desert itself, whispered: "The Wind crosses the desert, and so can the stream."

    The stream objected that it was dashing itself against the sand, and only getting absorbed: that the wind could fly, and this was why it could cross a desert.

    "By hurtling in your own accustomed way you cannot get across. You will either disappear or become a marsh. You must allow the wind to carry you over, to your destination."

    "But how could this happen?"

    "By allowing yourself to be absorbed in the wind."

    This idea was not acceptable to the stream. After all, it had never been absorbed before. It did not want to lose its individuality. And, once having lost it, how was one to know that it could ever be regained?

    "The wind," said the sand, "performs this function. It takes up water, carries it over the desert, and then lets it fall again. Falling as rain, the water again becomes a river."

    "How can I know that this is true?"

    "It is so, and if you do not believe it, you cannot become more than a quagmire, and even that could take many, many years; and it certainly is not the same as a stream."

    "But can I not remain the same stream that I am today?"

    "You cannot in either case remain so," the whisper said. "Your essential part is carried away and forms a stream again. You are called what you are even today because you do not know which part of you is the essential one."
    Not every heart is capable of finding the secret of God's love.

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #239 on: February 29, 2008, 09:04:49 AM »
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  • जय सांई राम़।।।

    एक राजा ने किसी सामान्यत: स्वस्थ और संतुलित व्यक्ति को कैद कर लिया था- एकाकीपन का मनुष्य पर क्या प्रभाव होता है, इस अध्ययन के लिए। वह व्यक्ति कुछ समय तक चीखता रहा चिल्लाता रहा। बाहर जाने के लिए रोता था, सिर पटकता था- उसकी सारी सत्ता जो बाहर थी। सारा जीवन तो 'पर' से अन्य बंधा था। अपने में तो वह कुछ भी नहीं था। अकेला होना न होने के ही बराबर था।
    वह धीरे-धीरे टूटने लगा। उसके भीतर कुछ विलीन होने लगा, चुप्पी आ गई। रुदन भी चला गया। आंसू भी सूख गये और आंखें ऐसे देखने लगीं, जैसे पत्थर हों। वह देखता हुआ भी लगता जैसे नहीं देख रहा है।

    दिन बीते, वर्ष बीत गया। उसकी सुख सुविधा की सब व्यवस्था थी। जो उसे बाहर उपलब्ध नहीं था, वह सब कैद में उपलब्ध था। शाही आतिथ्य जो था! लेकिन वर्ष पूरे होने पर विशेषज्ञों ने कहा, 'वह पागल हो गया है।'

    ऊपर से वह वैसा ही था। शायद ज्यादा ही स्वस्थ था, लेकिन भीतर?

    भीतर एक अर्थ में वह मर ही गया था।

    मैं पूछता हूं : क्या एकाकीपन किसी को पागल कर सकता है? एकाकीपन कैसे पागल करेगा? वस्तुत: पागलपन तो पूर्व से ही है। बाह्य संबंध उसे छिपाये थे। एकाकीपन उसे अनावृत कर देते हैं।

    मनुष्य को भीड़ में खोने की अकुलाहट उससे बचने के लिए ही है।

    प्रत्येक व्यक्ति इसलिए ही स्वयं से पलायन किये हुए है। पर यह पलायन स्वस्थ नहीं कहा जा सकता है। तथ्य को न देखना, उससे मुक्त होना नहीं है। जो नितांत एकाकीपन में स्वस्थ और संतुलित नहीं है, वह धोखे में है। यह आत्मवंचन कभी न कभी खंडित होगी ही और वह जो भीतर है, उसे उसकी परिपूर्ण नग्नता में जानना होगा। यह अपने आप अनायास हो जाए, तो व्यक्तित्व छिन्न-भिन्न और विक्षिप्त हो जाता है। जो दमित है, वह कभी न कभी विस्फोट को भी उपलब्ध होगा।

    धर्म इस एकाकीपन में स्वयं उतरने का विज्ञान है। क्रमश: एक-एक परत उघाड़ने पर अद्भुत सत्य का साक्षात होता है। धीरे-धीरे ज्ञात होता है कि वस्तुत: हम अकेले ही हैं। गहराई में, आंतरिकता के केंद्र पर प्रत्येक एकाकी है। परिचित होते ही भय की जगह अभय और आनंद ले लेता है। एकाकीपन के घेरे में स्वयं सच्चिदानंद विराजमान है।

    अपने में उतरकर स्वयं प्रभु को पा लिया जाता है। इसलिये कहता हूं - अकेलेपन से, अपने से भागो मत, वरन अपने में डूबो। सागर में डूब कर ही मोती पाये जाते हैं।
     
    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।। 
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

     


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