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Author Topic: SMALL STORIES  (Read 212407 times)

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Offline Ramesh Ramnani

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Re: SMALL STORIES
« Reply #255 on: April 18, 2008, 12:59:49 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    कछुआ हारा, खरगोश जीता

    प्यारे बच्चों! आज मैं तुम्हें कछुआ और खरगोश की एक नई कहानी सुनाता हूँ। इस कहानी में दौड़ में कछुआ नहीं बल्कि खरगोश ने मारी बाजी। वह कैसे?  तो सुनो :-

    नदी के किनारे के जंगल में एक कछुआ और एक खरगोश साथ-साथ रहते थे। वे साथ-साथ नदी में डुबकी लगाते और एक साथ बैठकर पढ़ाई भी करते।

    एक दिन कछुए ने खरगोश से कहा,  "तुम्हें याद है;  एकबार मेरे दादा ने तुम्हारे दादा को दौड़ में हराया था?" खरगोश ने कहा, "ये भी कोई भूलनेवाली बात है, मित्र। ऐसी ही घटनाओं से हम जीवन में बहुत सारी अच्छी बातें सीख जाते हैं।" कछुए ने कहा, "क्या तुम मेरे साथ दौड़ लगाओगे?" खरगोश ने हामी भर दी।

    दूसरे दिन नियत समय पर एक कौवे की देख-रेख में दौड़-प्रतियोगिता शुरु हुई। कछुआ अपनी धीमी गति से चला जबकि खरगोश तेज दौड़ा और तबतक दौड़ता रहा जबतक दौड़-प्रतियोगिता में निर्धारित मंजिल तक नहीं पहुँचा। कछुआ धीरे-धीरे पर लगातार चलता रहा और जब मंजिल पर पहुँचा तो क्या देखता है कि खरगोश तो मंजिल पर पहुँचकर आराम फरमा रहा है। कछुए ने कहा, "मित्र खरगोश! इसबार तुम जीत गए लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई।" "कौन-सी बात मित्र", खरगोश ने पूछा। कछुए ने कहा, "तुम अपने दादा की तरह बीच में पेड़ की छाँव में आराम क्यों नहीं किए?" खरगोश हँसा और बोला, "मित्र! मेरे दादा हमेशा मुझसे कहते रहते हैं कि 'आराम हराम है'; गाँधीजी ने भी गाया है कि 'जो सोवत है सो खोवत है' और आज का युग भी पहले जैसा नहीं रहा। आज के युग में लक्ष्य-प्राप्ति के लिए तत्परता, निरंतरता के साथ ही साथ शीघ्रता भी अति आवश्यक है। इसलिए मैंने मंजिल पर पहुँचकर ही आराम करना उचित समझा।"

    प्यारे बच्चों! क्या आप हमें बताओगे कि इस कहानी से आपने क्या सीखा?

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline tana

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #256 on: April 19, 2008, 06:53:05 AM »
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  • Om Sai Ram~~~

    Clap and Cheer~~~

    (positive attitude, taking pride in whatever you do)

    A small boy was auditioning with his classmates for a school play. His mother knew that he'd set his heart on being in the play - just like all the other children hoped too - and she feared how he would react if he was not chosen. On the day the parts were awarded, the little boy's mother went to the school gates to collect her son. The little lad rushed up to her, eyes shining with pride and excitement. "Guess what Mum," he shouted, and then said the words that provide a lesson to us all, "I've been chosen to clap and cheer."

    Jai Sai Ram~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #257 on: April 19, 2008, 07:20:49 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    मकड़ी और मख्खी...

    एक राजा था। उसने आज्ञा दी कि संसार में इस बात की खोज की जाय कि कौन से जीव-जंतु निरुपयोगी हैं। बहुत दिनों तक खोज बीन करने के बाद उसे जानकारी मिली कि संसार में दो जीव 'जंगली मक्खी' और 'मकड़ी' बिल्कुल बेकार हैं। राजा ने सोचा, क्यों न जंगली मक्खियों और मकड़ियों को ख़त्म कर दिया जाए।

    इसी बीच उस राजा पर एक अन्य शक्तिशाली राजा ने आक्रमण कर दिया, जिसमें राजा हार गया और जान बचाने के लिए राजपाट छोड़ कर जंगल में चला गया। शत्रु के सैनिक उसका पीछा करने लगे। काफ़ी दौड़-भाग के बाद राजा ने अपनी जान बचाई और थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया। तभी एक जंगली मक्खी ने उसकी नाक पर डंक मारा जिससे राजा की नींद खुल गई। उसे ख़याल आया कि खुले में ऐसे सोना सुरक्षित नहीं और वह एक गुफ़ा में जा छिपा। राजा के गुफ़ा में जाने के बाद मकड़ियों ने गुफ़ा के द्वार पर जाला बुन दिया।

    शत्रु के सैनिक उसे ढूँढ ही रहे थे। जब वे गुफ़ा के पास पहुँचे तो द्वार पर घना जाला देख कर आपस में कहने लगे, "अरे! चलो आगे। इस गुफ़ा में वह आया होता तो द्वार पर बना यह जाला क्या नष्ट न हो जाता।"

    गुफ़ा में छिपा बैठा राजा ये बातें सुन रहा था। शत्रु के सैनिक आगे निकल गए। उस समय राजा की समझ में यह बात आई कि संसार में कोई भी प्राणी या चीज़ बेकार नहीं। अगर जंगली मक्खी और मकड़ी न होतीं तो उसकी जान न बच पाती।

    गौरतलब: इस संसार में कोई भी चीज़ या प्राणी बेकार नहीं।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #258 on: April 21, 2008, 08:23:27 AM »
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    कौआ और कबूतर

    एक कबूतर एक था कौआ
    रहते थे उपवन में भैया
    पास-पास थे दोनों के घर
    बातें करते दोनों अकसर
    दोनों ही की अलग थी जाति
    पर सुख-दुख के अच्छे साथी
    कबूतर बड़ा ही सुस्त था भैया
    बैठा रहता पेड़ की छैया
    पर उतना ही चतुर था कौआ
    न देखे वह धूप न छैया
    कौआ सुबह-सुबह ही जाता
    जो भी मिलता घर ले आता
    दोनों मिलकर खाना खाते
    गाना गाते और सो जाते
    कभी-कभी कहता था कौआ
    तुम भी चलो साथ मेरे भैया
    बड़ा आलसी था वो कबूतर
    बोलता मैं बैठूँगा घर पर
    एक बार गर्मी का मौसम
    सूख गया था सारा उपवन
    ख़त्म हो गया पानी वहाँ पर
    रहते थे वे दोनों जहाँ पर
    गला सूखता था हर पल ही
    पर कबूतर तो था आलसी
    प्यास से वह बेहाल हो गया
    और देखते ही निढाल हो गया
    कौए ने जब देखा उसको
    नहीं रहा था होश भी उसको
    उड़ गया कौआ पानी लाने
    लग गया उसकी जान बचाने
    दूर गाँव वह उड़ कर आया
    चोंच में भर कर पानी लाया
    पानी जो कबूतर को पिलाया
    तो वह थोड़ा होश में आया
    कौए की मेहनत रंग लाई
    और कबूतर को सोझी आई
    वह भी अगर आलस न करता
    तो इतनी तकलीफ़ न जरता
    आज अगर कौआ न होता
    तो वह बस प्यासा ही मरता
    ठान लिया अब तो कबूतर ने
    नहीं बैठेगा वो भी घर में
    वह भी कौए संग जाएगा
    अपना खाना खुद लाएगा
    अब वो दोनों मिलकर जाते
    जो भी मिलता घर ले आते
    दोनों ही मिलजुल कर खाते
    गाना गाते और सो जाते
    ...............................................
    बच्चो तुमने सुनी कहानी
    तुम न करना यह नादानी
    कभी भी तुम न करना आलस
    बढ़ते रहना आगे हरदम

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #259 on: April 24, 2008, 11:41:15 PM »
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    निराशावादी मेढक...

    दो मेढक थे। वे जंगल में तालाब के किनारे एक पेड क़े नीचे रहते थे। एक दिन उन दोनों ने सोचा ''हमने तो बाहर की दुनिया देखी ही नहीं ज़ंगल के बाहर भी तो कुछ होगा। चलो जरा इनसानों की दुनियां में घूम कर आते है।''खाने पीने का थोडा सा सामान लेकर वे दोनो निकल पडे। उन्होंने बहुत कुछ देखा- बडी बडी ऊंची इमारतें प्रदूषण फैलाते हुए वाहन रोटी कमाने की दौड में भागते हुए लोग ख़ेल कूद और पढाई में मस्त नन्हें नन्हें बच्चे शोर शोर और बहुत शोर। उन्हें अपने घर की याद आने लगी। वे बहुत थक भी गए थे। उनका दिल कर रहा था कि उन्हें पानी मिल जाये और वे एक गीली जगह पर थोडा आराम कर लें। खोजते-खोजते वे एक दूध वाले की दुकान में घुस गए।

    वहां एक बाल्टी रखी थी। उन्हें लगा कि इस बाल्टी में पानी होना चाहिये फिर क्या था झट से दोनों ने एक ऊंची छलांग लगाई और पहुंच गए उस बाल्टी के अन्दर।पर यह क्या? बालटी में तो पानी नहीं था वह तो मलाई से भरी हुई थी।बेचारे दोनो मेढक उस मलाई में डूबने लगे उनका दम घुटने लगा सांस फूलने लगी आखें पलट कर बाहर आने लगीं।एक मेढक ने सोचा'' मेरा तो अंतिम समय आ गया है हाय रे मेरी किस्मत! शहर आकर इन अनजान लोगों के बीच ही मरना था।'' उसने अपने ईश्वर को याद किया और मौत का इन्तजार करने लगा.

    दूसरा मेढक हार मानने को तैयार नहीं था। वह कोशिश करने लगा कि किसी तरह उस मलाई भरी बाल्टी में से वह बाहर निकल आये। वह अपने पैर जोर से चलाने लगा।बहुत कोशिश करने पर भी वह बार्रबार फिसल जाता। फिर भी उसने अपना दिल छोटा नहीं किया हिम्मत का दामन नहीं छोडा वह लगातार कोशिश करता रहा और अपने पैर चलाता रहा।अरे यह क्या! अचानक उसने देखा कि वह ऊपर उठने लगा। उसके लगातार ज़ोर से पैर चलाने से मलाई भी लगातार हिल रही थी और वह मक्खन बनने लगी। मेढक में उम्मीद की लहर दौड ग़ई। वह बहुत थक चुका था पर फिर भी पैर चलाता रहा।फिर क्या था! मक्खन बनता गया और आखिर में उस मक्खन के ढेर पर सवार वह साहसी मेढक ऊपर उठने लगा। जब मक्खन छाछ के ऊपर तैरने लगा तब उस साहसी मेढक ने बाल्टी से बाहर छलांग लगा दी। अपनी हिम्मत लगन मेहनत और जीने की उमंग के कारण वह बच गया परन्तु निराशावादी मेढक उसी मलाई की बाल्टी में डूब कर मर गया।

    गौरतलब: मुश्किलें सब के रास्ते में आती हैं पर ईश्वर ने हमें उनका मुकाबला करने की शक्ति भी दी है। अंत मे जीत उसी की होती है जो कभी हार नही मानता।अधिक बुध्दि या बल ही केवल काम नहीं आते हैं।हिम्मत वाले जीवन का संग्राम जीत जाते हैं।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Offline Sai ka Tej

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #260 on: April 25, 2008, 12:31:35 AM »
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  • JAI SAI RAM

    Don't Give UP

    Two young frogs fell into a bucket of milk. Both tried to jump to freedom, but the sides of the bucket were steep and no foundation was to be had on the surface of the liquid.


    Seeing little chance of escape, the first frog soon despaired and stopped jumping. After a short while he sunk to the bottom of the bucket and drowned.


    The second frog also saw no likelihood of success, but he never stopped trying. Even though each jump seemed to reach the same inadequate height, he kept on struggling. Eventually, his persistent efforts churned some milk into butter. From the now hardened surface of the milk, he managed to leap out of the bucket.


    Those who don't give up and persevere
    may be in for a pleasant surprise!


    SAI RAM
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    Offline tana

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #261 on: April 28, 2008, 12:34:04 AM »
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    ऊँट की गर्दन क्यों मुडी है~~~

    अकबर बीरबल की हाज़िर जवाबी के बडे कायल थे. एक दिन दरबार में खुश होकर उन्होंने बीरबल को कुछ पुरस्कार देने की घोषणा की. लेकिन बहुत दिन गुजरने के बाद भी बीरबल को धनराशि (पुरस्कार) प्राप्त नहीं हुई. बीरबल बडी ही उलझन में थे कि महारज को याद दिलायें तो कैसे?

    एक दिन महारजा अकबर यमुना नदी के किनारे शाम की सैर पर निकले. बीरबल उनके साथ था. अकबर ने वहाँ एक ऊँट को घुमते देखा. अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल बताओ, ऊँट की गर्दन मुडी क्यों होती है”?

    बीरबल ने सोचा महाराज को उनका वादा याद दिलाने का यह सही समय है. उन्होंने जवाब दिया - महाराज यह ऊँट किसी से वादा करके भूल गया है, जिसके कारण ऊँट की गर्दन मुड गयी है. महाराज, कहते हैं कि जो भी अपना वादा भूल जाता है तो भगवान उनकी गर्दन ऊँट की तरह मोड देता है. यह एक तरह की सजा है.

    तभी अकबर को ध्यान आता है कि वो भी तो बीरबल से किया अपना एक वादा भूल गये हैं. उन्होंने बीरबल से जल्दी से महल में चलने के लिये कहा. और महल में पहुँचते ही सबसे पहले बीरबल को पुरस्कार की धनराशी उसे सौंप दी, और बोले मेरी गर्दन तो ऊँट की तरह नहीं मुडेगी बीरबल. और यह कहकर अकबर अपनी हँसी नहीं रोक पाए.

    और इस तरह बीरबल ने अपनी चतुराई से बिना माँगे अपना पुरस्कार राजा से प्राप्त किया|

    जय सांई राम~~~
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #262 on: April 28, 2008, 12:49:44 AM »
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    दर्पण की सीख

    पुराने जमाने की बात है। एक गुरुकुल के आचार्य अपने शिष्य की सेवा भावना से बहुत प्रभावित हुए। विद्या पूरी होने के बाद शिष्य को विदा करते समय उन्होंने आशीर्वाद के रूप में उसे एक ऐसा दिव्य दर्पण भेंट किया, जिसमें व्यक्ति के मन के भाव को दर्शाने की क्षमता थी। शिष्य उस दिव्य दर्पण को पाकर प्रसन्न हो उठा। उसने परीक्षा लेने की जल्दबाजी में दर्पण का मुंह सबसे पहले गुरुजी के सामने कर दिया। वह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि गुरुजी के हृदय में मोह, अहंकार, क्रोध आदि दुर्गुण परिलक्षित हो रहे थे। इससे उसे बड़ा दुख हुआ। वह तो अपने गुरुजी को समस्त दुर्गुणों से रहित सत्पुरुष समझता था।

    दर्पण लेकर वह गुरुकूल से रवाना हो गया। उसने अपने कई मित्रों तथा अन्य परिचितों के सामने दर्पण रखकर परीक्षा ली। सब के हृदय में कोई न कोई दुर्गुण अवश्य दिखाई दिया। और तो और अपने माता व पिता की भी वह दर्पण से परीक्षा करने से नहीं चूका। उनके हृदय में भी कोई न कोई दुर्गुण देखा, तो वह हतप्रभ हो उठा। एक दिन वह दर्पण लेकर फिर गुरुकुल पहुंचा। उसने गुरुजी से विनम्रतापूर्वक कहा, ‘गुरुदेव, मैंने आपके दिए दर्पण की मदद से देखा कि सबके दिलों में नाना प्रकार के दोष हैं।’ तब गुरु जी ने दर्पण का रुख शिष्य की ओर कर दिया।

    शिष्य दंग रह गया. क्योंकि उसके मन के प्रत्येक कोने में राग,द्वेष, अहंकार, क्रोध जैसे दुर्गुण विद्यमान थे। गुरुजी बोले, ‘वत्स यह दर्पण मैंने तुम्हें अपने दुर्गुण देखकर जीवन में सुधार लाने के लिए दिया था दूसरों के दुर्गुण देखने के लिए नहीं। जितना समय तुमने दूसरों के दुर्गुण देखने में लगाया उतना समय यदि तुमने स्वयं को सुधारने में लगाया होता तो अब तक तुम्हारा व्यक्तित्व बदल चुका होता। मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वह दूसरों के दुर्गुण जानने में ज्यादा रुचि रखता है। वह स्वयं को सुधारने के बारे में नहीं सोचता। इस दर्पण की यही सीख है जो तुम नहीं समझ सके।’

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #263 on: May 02, 2008, 03:59:09 AM »
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    मूर्तिकार की सीख

    एक विख्यात मूर्तिकार ने अपने बेटे को भी मूर्तिकला सिखाई। उसका पुत्र इस कला में जल्दी ही पारंगत हो गया, क्योंकि वह भी अपने पिता के समान ही परिश्रमी और कल्पनाशील था। जल्दी ही वह सुंदर मूर्तियां बनाने लगा। फिर भी मूर्तिकार अपने पुत्र द्वारा बनाई गई मूर्तियों में कोई न कोई नुक्स जरूर निकाला करता था। वह कभी खुलकर उसकी प्रशंसा नहीं करता, बल्कि कई बार तो झिड़क भी देता था। कई सालों तक यही सिलसिला चला।

    मूर्तिकार का बेटा अपने पिता जैसी ही मूर्तियां बनाने लगा। सब उसकी सराहना करते, उसकी मूर्तियों की मांग बढ़ने लगी, फिर भी उसके पिता के रवैये में कोई तब्दीली नहीं आई। इससे उसका पुत्र चिंतित रहता था, हालांकि उसकी लगन में कोई कमी नहीं आई। एक दिन उसे एक युक्ति सूझी। उसने एक आकर्षक मूर्ति बनाई और अपने एक मित्र के जरिए उसे अपने पिता के पास भिजवाया। उसके पिता ने सोचा कि यह उसी मित्र की बनाई हुई है। उसने उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। तभी वहां छिपकर बैठा उसका पुत्र निकल आया और गर्व से बोला, 'यह मूर्ति असल में मैंने बनाई है। आखिरकार मैंने वैसी मूर्ति बना ही दी, जिसमें आप कोई खोट नहीं निकाल सके।'

    मूर्तिकार ने कहा, 'बेटा एक बात गांठ बांध लो। अभिमान व्यक्ति की उन्नति के सारे रास्ते बंद कर देता है। आज तक मैंने तुम्हारी प्रशंसा नहीं की, हर वक्त तुम्हारी मूर्तियों में कमियां निकालता रहा, इसीलिए तुम इतनी अच्छी मूर्तियां बनाते रहे। अगर मैं तुम्हें कह देता कि तुमने बहुत अच्छी मूर्ति बनाई है तो शायद तुम अगली मूर्ति बनाने में पहले से ज्यादा सचेत नहीं रहते, क्योंकि तुम्हें लगता कि तुम पूर्णता को प्राप्त कर चुके हो, जबकि कला के क्षेत्र में पूर्णता की कोई स्थिति ही नहीं होती है। मैं स्वयं अपने को पूर्ण नहीं मानता। लेकिन आज जो तुमने नाटक किया उससे तुम्हारा ही नुकसान होगा।' यह सुनते ही पुत्र लज्जित हो गया। उसने पिता से क्षमा मांगी।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #264 on: May 06, 2008, 09:37:48 AM »
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    शिकागो धर्म सम्‍मेलन में स्वामी विवेकानंद ने जब सबको अपने-अपने धर्म को बड़ा सिद्ध करने हेतु लड़ते देखा तो उन्होने एक कहानी कही।

    एक बार समुन्‍द्र से एक मेंढक कुंए में आता है। कुंए का मेंढक उससे एक छलाँग लगाकर पूछता है-भाई ''क्या तेरा समुन्दर इतना बड़ा है''? समुन्दर का मेंढक कहने लगा-'समुन्दर इससे बहुत बड़ा है।

    कुंए का मेंढक उससे बड़ी छलाँग लगाकर पूछता है-भाई ''क्या तेरा समुन्दर इतना बड़ा है''?

    समुन्दर का मेंढक कहने लगा-समुन्दर तो इससे भी विशाल है। तब कुंए का मेंढक कुंए के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाकर पूछता है-क्या समुन्दर कुंए जितना बड़ा है?

    समुन्दर का मेंढक बोला - अरे! समुन्दर तो इस कुंए से लाखों-करोड़ो गुणा विशाल है। तब कुंए का मेंढक जो कुंए से अधिक विशाल कुछ नहीं समझता था'' कहने लगा- कोई बाहर निकालो इस पागल को ये समुन्दर को कुंए से अधिक विशाल बताता है, अरे कुंए से अधिक विशाल कुछ नहीं होता।"

    स्वामी जी ने कहा यही हाल तुम लोगों का हिन्दू अपने कुंए में, ईसाई अपने कुंए में, मुस्लिम-पारसी अपने-अपने कुओं में कैद हैं और अपने-अपने कुओं को बड़ा सिद्ध करने हेतु लड़ते रहतें हैं।फिर हिन्दू -धर्म तो बड़ा कुंआ है, इसके अन्‍दर सैंकड़ो और भी छोटे-छोटे कुंए हैं। सभी अपने कुंए को बड़ा सिद्ध करने में उलझें रहतें हैं। अध्‍यात्मिक-उन्नति का कार्य अधूरा ही रहता है। मार्गदर्शक साधक को इस तरह जकड़ लेते है कि साधक की गति ही थम जाती है। रथ के पहिये की धुरी से पकड़ तो आवश्‍यक है परन्‍तु अगर रथ के साथ पहिये को जकड़ दिया जाए तो पहिये की गति ही रूक जाएगी।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #265 on: May 07, 2008, 11:31:53 PM »
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    मीठे बोल...  

    एक राजा जंगल की सैर पर निकले , उनके साथ सैनिकों का दल भी था। घूमते-घूमते राजा को प्यास लगी।  यह जानकर सैनिक पानी की तलाश में निकल पड़े।  उन्होंने देखा कि एक कुआँ है जहाँ एक अंधा व्यक्ति राहगीरों को पानी पिला रहा है। सैनिकों ने उसे निर्देश के स्वर में कहा- “अंधे!  एक बड़े लोटे में पानी भर कर दो।”

    अंधे को सैनिकों का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा।  उसने कहा -  “मैं आप लोगों को पानी नहीं दे सकता।” राजा के सिपाही गुस्से में वापस आ गये। पानी नहीं ला पाने की कहानी जब सेनापति ने सुना तो वह भी कुएँ की ओर चल पड़ा। अंधा लोगों को पानी पिला ही रहा था । सेनापति ने उससे कहा- “अंधे भाई, जरा मुझे एक लोटा पानी तो देना, प्यास से हाल बेहाल है! ”अंधे को लगा कि यह सैनिक का सरदार है जरूर पर मन से कपटी है और ऊपर से मीठा-मीठा बोलता है।  उसने सेनापति को भी साफ कह दिया कि पानी नहीं मिल सकेगा।

    जब यह घटना राजा के कानों तक पहुँची तो वे चुपचाप कुँए की ओर चल पड़े। उन्होंने अभिवादन कर बोला, “बाबा जी, प्यासा हूँ, थोड़ा पानी पिलाने की कृपा कर देंगें क्या ?” इस पर अंधे को बहुत प्रसन्नता हुई। उसने कहा, “जी राजा साहब, अभी पानी पिलाता हूँ,  आप यहाँ विराजें।”

    अपनी प्यास बुझाने के बाद उन्होंने अंधे व्यक्ति से पूछा,  “बाबा, आप देख नहीं पाते फिर भी कैसे जान पाये कि एक सिपाही, एक सेनापति और मैं राजा हूँ ?”

    अंधे व्यक्ति से बड़ी सहजता से कहा, “महाराज, आपकी वाणी ने ही आपका परिचय कराया। "

    गौरतलब :  व्यक्ति की वाणी ही उसके व्यक्तित्व का ज्ञान कराती है कि वह कितना शिष्ट और सभ्य है।”

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    « Reply #266 on: May 07, 2008, 11:40:23 PM »
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    Two friends were walking through the desert. During Some point of the journey they had an argument, and one friend slapped the other one in the face.

    The one who got slapped was hurt, but without saying anything, wrote in the sand:

    TODAY MY FRIEND SLAPPED ME ON THE FACE~~

    They kept on walking until they found an oasis, where they decided to take a
    bath. While bathing all of a sudden the one who had been slapped got stuck in and started drowning, but his friend saved him he didn't let him drown in...

    After he recovered from the near drowning he wrote on a stone:

    TODAY MY FRIEND SAVED MY LIFE~~

    The friend who had slapped and saved his friend asked him,
    "After I hurt you, you wrote in the sand and now, you write on a stone, why?"

    The other friend replied..

    "When someone hurts us we should write it down in sand where winds of forgiveness can erase it away.
    But, when someone does something good for us, we must engrave it in stone where no wind can ever erase it."

    LEARN TO WRITE YOUR HURTS IN THE SAND AND TO CARVE YOUR GAINS IN STONE.

    Jai Sai Ram~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #267 on: May 08, 2008, 03:54:06 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    Happy BABA's day to you all.   On this Guruwaar May BABA SAI shower you with love, and fill your home with love, happiness and joy.
     
    Baba's love is a downpour of nectar.  His love for us cannot be compared with anything or anybody.  It is selfless, unconditional love, aching for the betterment and success of HIS devotees.  All HE wants us in life is to cast our burden on HIM and for us to march ahead to fulfil our spiritual goal.  He is there to ward of every danger, peril, disappointment and hurdle in our life.  All He wants us is to trust HIM and give HIM our burdens, HE is there to carry them for us all our life. Here is the message of the week from baba......
     
    "This is our Dwarakamayi, where you are sitting. She wards off all dangers and anxieties of the children, who sit on her lap. This Masjidmayi is very merciful, she is the mother of the simple devotees, whom she will save in calamities. Once a person sits on her lap, all his troubles are over. He, who rests in her shade, gets Bliss".

    MAY BABA SAI BLESS YOU ALL......

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #268 on: May 10, 2008, 10:22:52 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    एक बार भगवान बुद्ध को प्यास लगी। उन्होंने अपने शिष्य आनंद को पास के तालाबसे पानी लेने भेजा। उस तालाब में थोड़ी देर पहले कुछ पशु नहाये थे, जिनसे उस तालाब का पानी गंदा हो गया था। शिष्य बिना पानी लिये वापस आ गया और बुद्ध को हाल सुनाकर बोला – मैं किसी और नदी से पानी ले आता हूँ।

    किंतु बुद्ध ने उसी तालाबसे पानी लाने को पुनः कहा। पानी तो अब भी गंदा था। तीन बार ऐसा करने के बाद जब चौंथी बार आनंद पानी लेने गया तो पानी तब तक साफ हो चुका था क्योंकि सारी गंदगी निचे बैठ चुकी थी। तब स्वच्छ जल लेकर बुद्ध के पास आ गये।

    पानी पीते हुये भगवान बुद्ध ने कहा – आनंद, हमारे जीवन का जल भी कुविचार रूपी पशु लौटने से गंदा होता रहता है। हम उससे डरकर भाग खड़े होते हैं। यदि हम भागें नही, मन के शांत होने की प्रतीक्षा करें तो सब कुछ साफ हो जायेगा। बिलकुल तालाब के पानी की तरह।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #269 on: May 11, 2008, 05:59:14 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    एक सबक

    एक आदमी पत्थर काटने का काम करता था , लेकिन वह ख़ुद से खुश नही था । उसे लगता था की काम बहुत ही निचले दर्जे का है और वह इससे भी बेहतर कुछ कर सकता है ।उसने पत्थर काटने का काम बंद दिया और नौकरी खोजने के लिए निकल पड़ा ।

    एक दिन वह नौकरी के सिलसिले में एक व्यापारी से मिलने गया । वहा उसने एक व्यापारी का घर देखा । घर देखते ही उसके मन में ख्याल आया की काश ! वह भी एक आमिर व्यापारी बन पता और उसके पास भी इतना ही आलिशान मकान होता । भगवान ने उसकी सुन ली और उसे एक व्यापारी बना दिया । दिन बीतते गए और एक दिन राजा का मंत्री राज्य के दोरे पर निकला । उसने देखा की राजा का एक मंत्री दुसरे व्यापारी के घर आ रहा हैं । डरा हुआ व्यापारी मंत्री के आगे घुटने के बल झुक गया । मंत्री कितना शक्तिशाली हैं । उसने सोचा की काश ! भगवन मुझे भी एक मंत्री बना देता और भगवान् ने एक बार फिर से उसकी सुन ली और उसे मंत्री बना दिया ।

    मंत्री बनाने के बाद उसे लगातार राज्य के दौरे करने पड़ते । एक दिन भरी दोपहरी में जब सूरज अपनी पुरी गरमी के साथ चमक रहा था । मंत्री बने आदमी को लगा की सूरज ही सबसे ज्यादा शक्तिशाली हैं और उसने सूरज बनाने की इच्छा की । भगवान् ने उसे सूरज भी बना दिया । सूरज बनने के बाद उसने महसूस किया की बादल सूरज की किरण को रोक देते हैं उसे लगा की बादल बनकर वह ज्यादा खुश होगा और भगवान् ने उसे बादल बना दिया ।

    तब उसने सोचा की हवा सबसे ज्यादा शक्तिशाली है ।बादलों को उड़ाकर ले जाती है और हवा मकान को भी गिरा सकती है , लेकिन चट्टान को नही हिला सकती । उसने सोंचा काश ! मैं चट्टान होता ! जो सबसे ज्यादा मजबूत है । और भगवान् ने उसे चट्टान बना दिया ।फिर एक दिन चट्टान ने देखा , हथोड़ा और छैनी लिए एक पत्थर काटने वाला चट्टान की तरफ चला आ रहा था । शायद वो उसी चट्टान को काटने आ रहा था ।

    गौरतलब : कोई भी सम्पूर्ण नही होता, प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में विशिष्ट है। अपने गुण और संसाधन पहचान कर उनका बेहतरीन उपयोग कीजिये, आप एक संतुष्ट व्यक्ति होंगे ।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

     


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