जय सांई राम
एक गाँव में एक बनिया रहता था। वो बनिया बहुत कन्जूस था। खाना खाने के समय अक्सर वो सैर पर निकलता था और रास्ते में जिस घर में उसे कोई खाना खाता हुआ दिखता बस उसी के घर घुस जाता और खाना खाने बैठ जाता। गाँव वाले उसकी इस आदत से बहुत परेशान थे पर कुछ कर नहीं पाते थे क्योंकि वो उसकी दुकान से उधार सामान लेते थे। इस सब से बनिया बडा खुश था दुकान भी चल रही थी और खाने के पैसे भी बच रहे थे।
एक बार उस बनिये के घर उसका कोई दूर का रिश्तेदार तोताराम आया। अब गाँव वाले मन ही मन बडे खुश थे कि आज बनिया बुरा फंसा। लेकिन बनिया था बडा तेज। कुछ देर तोताराम से यहाँ-वहाँ की बातें करने के बाद बनिया बोला, चलो तोताराम हम तुम्हें अपने गाँव के मिठे मिठे अमरूद खिलाएं। “अमरूद अरे वाह”, तोताराम बोला। अब दोनों सुक्खन माली के बाग की तरफ चल पडे।
सुक्खन चाचा अरे ओ सुक्खन चाचा बनिये ने दुर से ही आवाज़ दी। देखो हमारे यहाँ मेहमान आए हैं इन्हें कुछ ताज़े और मीठे अमरूद खिलाओ। माली बोला हाँ हाँ क्यों नहीं ये लो एकदम ताज़े और मीठे हैं। मीठे क्या हैं पेड़े हैं पेड़े!! बनिया बोला, “क्या कहा पेड़े हैं”? तो इसका मतलब क्या पेड़े अमरूद से भी बढिया होते हैं। हाँ जी होते तो हैं माली ने कहा। तो फिर हम इन्हें पेड़े ही खिलाएंगे। सुनकर तोताराम के मुहँ में पानी आ गया।
अब बनिया चल दिया मोटेराम हलवाई की दुकान पर और बोला मोटेराम जी, ये हमारे मेहमान हैं इन्हें ताज़े पेड़े खिलाओ। हाँ जी ये लो एकदम ताज़े पेड़े हैं। अजी, पेड़े क्या हैं मक्खन हैं मक्खन! यह सुनते ही बनिया फिर बोला, “क्या कहा मक्खन”? तो इसका मतलब क्या मक्खन पेड़ों से भी बढिया होते हैं। हाँ जी मक्खन होता तो बढिया है। तो फिर हम इन्हें मक्खन खिलाएंगे। सुनकर तोताराम के मुहँ एक बार फिर उतर गया।
अब बनिया चला हरिया ग्वाले के घर। इधर तोताराम का भूख के मारे बुरा हाल हो रहा था और उधर बनिया मन ही मन बहुत खुश हो रहा था। उसके पैसे जो बच रहे थे।
हरिया अरे ओ हरिया, जरा हमारे तोताराम जी को मक्खन खिलाओ। और हाँ देखो मक्खन जरा ताज़ा लाना, बाहर से ही बनिया चिल्लाया। “अभी लाया हुज़ूर”, हरिया ने हुक्म बजाया। ये लिजिए, ये रहा मक्खन। मक्खन ताज़ा है न हरिया - बनिया मुस्कुराते हुए बोला। अजी साहब बिल्कुल ताज़ा है मेरा मेक्खन्, एकदम पानी की तरह। सुनते ही बनिया बोला - क्या कहा? पानी है! हाँ जी एकदम पानी है, हरिया ने घबराते हुए जवाब दिया। तो फिर हम तोताराम को पानी ही पिलायेंगे। और अब तो तोताराम की शक्ल देखनेवाली थी। खैर अब बनिया चला बाबा गुदना की प्याउ पर।
प्याऊ पर पहुँच कर बनिया बोला - बाबा ओ बाबा - जरा हमारे मेहमान को थोडा पानी पिला दो। और हाँ पानी ताज़ा पिलाना। हाँ-हाँ बेटा मेरा पानी एकदम ताज़ा है ताज़ा। और बेटा पानी क्या है हवा है हवा। क्या कहा - बनिया बोला, तुम्हारा पानी हवा है। हाँ साहब मेरा पानी हवा है जितना भी पियो पेट ही नहीं भरता। तब तो हम अपने मेहमान को हवा ही खिलाएंगे। चलो तोताराम हम तुम्हें हवा खिलाएंगे।
बस-बस बहुत हुआ, अब मुझे कुछ नहीं खाना, भूख के मारे मेरा दम निकला जा रहा है। ये कहता हुआ तोताराम वहाँ से खिसक लिया। और बनिया मन ही मन बहुत खुश हुआ।
बेटा तेजल तुम कभी ऐसा तो नही करोगी जब फोरम के आंटी-अंकल कभी तुम्हारे घर चन्दीगढ़ आये? पता चले सिर्फ चन्दीगढ़ की हवा खाके ही बन के बुद्धु वापस घर को लौटना पड़े। हाहाहाहाहाहाहाहा
ॐ सांई राम।।।