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Author Topic: SMALL STORIES  (Read 177869 times)

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Offline Ramesh Ramnani

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Re: SMALL STORIES
« Reply #45 on: April 22, 2007, 12:27:45 AM »
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  • जय सांई राम

    दूसरे महायुद्ध की बात है। एक जापानी सैनिक गंभीर रूप से घायल हो गया था, काफी रक्त बह चुका था, ऐसा लग रहा था, वह कुछ ही क्षणों का मेहमान है। एक भारतीय सैनिक की मानवता जागी, शत्रु है तो क्या? मरते हुये को पानी देना, मानवता के नाते धर्म है। म्रत्यु के आखिरी क्षणों में शत्रुता कैसी? उसने अपनी बोतल से पानी निकाला, घायल सैनिक के मुँह से लगाया बोला-मित्र बुद्ध के देश में इस सैनिक के हाथों की वीरता, युद्ध भूमि में देख चुके हो। अब स्नेह भी देखो, जल पीओ।

    किन्तु उस दुष्ट ने दया का बदला यह दिया कि अपने चाकू से भारतीय सैनिक को घायल कर दिया। रक्त की धार बह चली, घायल हो भारतीय सैनिक गिर पडा। दोनों ही सैनिकों को भारतीय अस्पताल पहुँचाया गया। दोनों ही की मरहम पट्टी की गई। धीरे-धीरे दोनों ही ठीक हो गये।

    ठीक होने पर फिर भारतीय सैनिक, जापानी सैनिक से मिलने चला गया। उसकी कुशलक्षेम पूछी और फिर चाय का प्याला दिया, गरम-गरम चाय पिलाई। जापानी सैनिक का मन पश्चाताप से भर उठा, उसे अपने किये पर आत्मग्लानी हो रही थी। उसने भारतीय सैनिक से कहा दोस्त अब मैं समझा कि बुद्ध का जन्म तुम्हारे देश में क्यों हुआ था।
                         
    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #46 on: April 23, 2007, 11:17:01 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    वास्तविक अपराधी

    राजा भोज के राज्य में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसके परिवार में उसके अलावा उसकी पत्नी और मां थी। आजीविका का साधन बेहद सीमित था। वह कहीं से कुछ मांगकर लाता तो सबको भोजन मिलता। एक दिन वह खाली हाथ घर लौटा और पत्नी से बोला, 'आज मुझे कहीं से कुछ नहीं मिला। इधर-उधर भटकने के कारण मैं काफी थक गया हूं और मुझे भूख भी लगी है। जल्दी कुछ खाने को लाओ।'

    यह सुनते ही पत्नी आगबबूला हो गई और बोली, 'मेरे पास है ही क्या जो आपको दूं।' इस पर ब्राह्मण ने कहा, 'मैं नित्य जो लाता हूं वह तुम्हें देता हूं। एक कुशल गृहिणी का कर्त्तव्य है कि वह घर में आई वस्तु में से कुछ बचाकर रखे, ताकि कभी भूखा न रहना पड़े।' इस पर ब्राह्मणी ने जवाब दिया, 'क्या कभी आप इतना अन्न लाए जो बचाया जा सके। आज तक आप जो लाए उससे कभी हमारा पेट भरा क्या? समझ में नहीं आता कि जो लोग अपनी पत्नी को भर पेट खिला नहीं सकते वे विवाह ही क्यों करते हैं।' इस पर दोनों में बहस छिड़ गई और बात बढ़ती गई। क्रोधित होकर ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पीट डाला। मामला राजा भोज के पास पहुंचा।

    राजा ने ब्राह्मण से पूछा, 'क्या तुमने अपनी पत्नी को पीटा। अगर हां तो क्यों?'

    इस पर ब्राह्मण ने कहा, 'हां महाराज, पीटा। इसके लिए मैं बेहद लज्जित हूं। इसका मुझे बहुत पश्चाताप है। क्या करूं। मैं अपने परिवार के लोगों को संतुष्ट नहीं रख पाता। आप जो चाहें मुझे दंड दीजिए।'

    राजा ने कुछ सोचकर अपना निर्णय सुनाया, 'इस ब्राह्मण को एक हजार स्वर्णमुद्राएं दी जाएं।' वहां उपस्थित लोग आश्चर्य में पड़ गए। राजा ने फिर कहा, 'दंड उसी को देना चाहिए जिसका अपराध हो। इस व्यक्ति को जिस अपराध के लिए यहां उपस्थित किया गया है वह है दरिद्रता। दंड दरिद्रता को दिया जाना चाहिए न कि इस व्यक्ति को। मैंने दरिद्रता को ही समाप्त कर दिया। हां, अगर इसकी जगह कोई संपन्न व्यक्ति ऐसा करता तो मैं उसे कठोर दंड देता।'

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।  
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #47 on: April 26, 2007, 12:12:45 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    साधक की कसौटी

    एक युवक ने एक महात्मा से कहा, 'मुझे आत्म साक्षात्कार का मार्ग बताइए।' महात्मा ने कहा, आत्म साक्षात्कार का मार्ग बड़ा कठिन है। उस पर चलने के लिए साधक को कई कठिनाइयों से होकर गुजरना पड़ता है।' युवक बोला, 'मैं तैयार हूं। आप बताइए।' महात्मा ने कहा, 'एकांत स्थान में बैठकर एक वर्ष तक गायत्री मंत्र का जाप करो। इस दौरान न किसी से बात करना और न ही कोई मतलब रखना। एक साल पूरा होने पर मुझसे मिलने आना।' एक साल बीतने पर महात्मा ने अपनी सफाई करने वाली से कहा, 'आज मेरा शिष्य आने वाला है। तुम उसके ऊपर झाड़ू से खूब धूल उड़ाना।' उसने ऐसा ही किया। वह युवक गुस्से से सफाई करने वाली को मारने दौड़ा पर वह भाग गई। जब युवक नहा-धोकर महात्मा की सेवा में उपस्थित हुआ तो महात्मा ने कहा, 'तुम तो सांप की तरह काटते हो। जाओ एक साल और साधना करो।' युवक बहुत क्रोधित हुआ, मगर उसके पास और कोई रास्ता न था, वह चला गया।

    साल बीतने पर महात्मा ने अपनी सफाई वाली से कहा कि उसके आते ही वह उसके शरीर से अपना झाड़ू सटा दे। उसने ऐसा ही किया। इस बार युवक ने उसे जमकर गालियां दीं। स्नान करके जब वह महात्मा के पास पहुंचा तो उन्होंने कहा, 'अब तुम सांप की तरह काटते तो नहीं, पर फुफकारते जरूर हो। जाओ एक वर्ष और साधना करो।' युवक चल दिया। इस तरह तीसरा वर्ष बीत गया। महात्मा ने सफाई करने वाली से कहा कि वह युवक के आते ही कूड़े से भरी अपनी टोकरी उसके सिर पर डाल दे। उसने ऐसा ही किया, लेकिन इस बार युवक को क्रोध नहीं आया। उसने हाथ जोड़कर कहा, 'माता तुम महान हो। तीन वर्षों से मेरे दुर्गुणों को निकालने का प्रयत्न कर रही हो। मैं तुम्हारे उपकार को कभी भूल नहीं सकता। इसी तरह तुम मेरे उद्धार का प्रयास करती रहना।' यह कहकर वह नहाने चल पड़ा। जब वह नहाकर महात्मा के पास आया तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, अब तुम आत्म साक्षात्कार के योग्य हो गए हो।' 

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #48 on: April 27, 2007, 08:24:00 AM »
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    भारतीय नर्क

    एक बार एक भारतीय व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिकावासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा - क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला - कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... बस ! यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक-एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे जाकर आया, सभी जगह उसे एक से बढकर एक भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में थक-हार कर जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था "भारतीय नर्क" और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे, उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी... तत्काल उसने पहरेदार से पूछा कि यहाँ के नर्क में सजा की क्या व्यवस्था है ? पहरेदार ने कहा - कुछ खास नहीं...सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... बस ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा - यही सब तो बाकी देशों के नर्क में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड क्यों है ? पहरेदार बोला - इलेक्ट्रिक चेयर तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है...और कभी गलती से जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़ मारता है और पचास लिख देता है...चलो आ जाओ अन्दर !!!

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #49 on: April 28, 2007, 12:20:16 AM »
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    सत्य और धर्म  

    पुराने जमाने की बात है। किसी राज्य में सत्यवर्ती नामक राजा राज करता था। उसने एक बार घोषणा की कि उसके राज्य में कोई भी व्यापारी, शिल्पी और कलाकार अपनी कोई भी चीज बेचने ला सकता है। बाजार में लाई हुई कोई चीज अगर नहीं बिकी तो राजा उन्हें खरीद लेगा। उसे उसकी वस्तु का उचित मूल्य दिया जाएगा। इस तरह उसकी हानि नहीं होने दी जाएगी।

    इस घोषणा के बाद एक कलाकार शनि देवता की मूर्ती बनाकर लाया जो अत्यंत आकर्षक थी। ग्राहक उस मूर्ती के गुण व लाभ पूछते तो वह कहता कि यह अनूठी और अनुपम है, लेकिन जब लोगों को पता चलता कि यह शनि देवता हैं, तो वे उसे खरीदने से इनकार कर देते क्योंकि ऐसी मान्यता है कि जहां शनि होगा, वहां से लक्ष्मी चली जाएगी। ऐसा कौन होता जो मूर्ती रखकर अपने यहां से लक्ष्मी की विदाई करता, सो उसकी मूर्ति नहीं बिकी। बात राजा के पास पहुंची। राजा ने उसे बुलाया और कहा,' मैं अपने वचन पर दृढ़ हूं। मैं इस मूर्ति को अवश्य खरीदूंगा।' मंत्री ने राजा को समझाया कि वह ऐसा अनर्थ न करें, मगर राजा सत्यवर्ती अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए। उन्होंने सवा लाख मुद्राएं देकर मूर्ति खरीद ली।

    रात में राजा के सपने में लक्ष्मी प्रकट हुईं और बोलीं, 'मैं जा रही हूं।'

    ' क्यों?' राजा ने पूछा। 'तुमने मेरे निवास स्थान पर शनि देव को प्रतिष्ठित कर दिया। मैं यहां नहीं रह सकती।' इस पर राजा हंसे। बोले 'मुझे पता है आप यहां से नहीं जाएंगी।'

    ' क्यों, तुम्हें ऐसा क्यों लगता है।'

    ' मैं तो यही जानता हूं कि लक्ष्मी वहां निवास करती है जहां धर्म रहता है। और धर्म वहां रहता है जहां सत्य रहता है। मैंने वचन दिया था कि जो भी चीजें नहीं बिकेंगी मैं उन्हें खरीदूंगा, इसलिए मैंने वह मूर्ति खरीदी। मैंने अपने सत्य की रक्षा की। अगर इसके लिए मुझे आपको खोना भी पड़े तो मैं तैयार हूं।'

    ' तुम मेरी परीक्षा में सफल हुए। मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगी।' लक्ष्मी ने जवाब दिया।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Offline Kavitaparna

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #50 on: April 29, 2007, 12:05:54 PM »
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  • OM SRI SAI RAM

    SRI NARASIMHA JAYANTHI -  01.05.2007


    The fourth and the greatest incarnation of Lord Vishnu amongst his ten prime avataras is Lord Narasimha who emerged out of a pillar as Man-Lion, i.e.,Lion's head on Man's trunk. He devoured Demon-Lord Hiranyakashyapu who was Master Prahalada's father. When Prahalada was in the womb of his mother, Queen Kayaadu, he had the fortune of listening to Devarishi Naradha regarding Lord Vishnu's compassion towards his devotees. Hence right from his birth Prahalada was dedicated to the name of Lord Vishnu.

    Hiranyakashyapu who was an arch rival of Lord Vishnu and a symbol of torture to noble souls, could not bear with his son and started torturing young Prahalada in many ways after trying through his henchmen to advice Prahalada that Hiranyakashyapu himself was the prime god and Lord Vishnu stood null in front of Hiranyakashyapu. Young Prahalada denounced such thoughts and stuck to his wisdom that Lord Vishnu was "Purushothama", the supreme. One day, Hiranyakashyapu screamed at Prahalada and questioned him as to where his Lord Vishnu was present and whether he could save Prahalada from death at his own hands.

    To this, Prahalada replied that Lord Vishnu is omnipresent. Hiranyakashyapu pointed out at a pillar in his palace and asked Prahalada whether Vishnu was present in it. Prahalada's reply was affirmative.The Demon using his Gadha(Mace) broke open the pillar and there emerged Lord Narasimha who slained the demon using his sharp paws and blessed Prahalad as his topmost devotee on earth.To mark the above incidence and to pay our respect to the Lord, Narasimha Jayanthi is celebrated at several temples.

    Lakshmi Nrisimha Mama Dehi Karavalambam!!

    JAI SRI SAI RAM

    OM SAI NAMO NAMAHA SRI SAI NAMO NAMAHA
    JAI JAI SAI NAMO NAMAHA SADGURU SAI NAMO NAMAHA



    kavita

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    • Ek tu hee sahara, ek tu hee bharosa...
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    « Reply #51 on: April 29, 2007, 08:38:36 PM »
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    भारतीय नर्क

    एक बार एक भारतीय व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिकावासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा - क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला - कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... बस ! यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक-एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे जाकर आया, सभी जगह उसे एक से बढकर एक भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में थक-हार कर जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था "भारतीय नर्क" और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे, उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी... तत्काल उसने पहरेदार से पूछा कि यहाँ के नर्क में सजा की क्या व्यवस्था है ? पहरेदार ने कहा - कुछ खास नहीं...सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... बस ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा - यही सब तो बाकी देशों के नर्क में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड क्यों है ? पहरेदार बोला - इलेक्ट्रिक चेयर तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है...और कभी गलती से जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़ मारता है और पचास लिख देता है...चलो आ जाओ अन्दर !!!

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
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    Jai Sai Ram!!!
    Ramesh bhai.....mazaa aa gaya!!! I hope ki kaheen bharatiya swarg ke bhi aise haal na ho....
    Om Sai Ram!!!
    Radha.

    Offline tana

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    « Reply #52 on: April 29, 2007, 09:50:38 PM »
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    भारतीय नर्क

    एक बार एक भारतीय व्यक्ति मरकर नर्क में पहुँचा, तो वहाँ उसने देखा कि प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश के नर्क में जाने की छूट है । उसने सोचा, चलो अमेरिकावासियों के नर्क में जाकर देखें, जब वह वहाँ पहुँचा तो द्वार पर पहरेदार से उसने पूछा - क्यों भाई अमेरिकी नर्क में क्या-क्या होता है ? पहरेदार बोला - कुछ खास नहीं, सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... बस ! यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत घबराया और उसने रूस के नर्क की ओर रुख किया, और वहाँ के पहरेदार से भी वही पूछा, रूस के पहरेदार ने भी लगभग वही वाकया सुनाया जो वह अमेरिका के नर्क में सुनकर आया था । फ़िर वह व्यक्ति एक-एक करके सभी देशों के नर्कों के दरवाजे जाकर आया, सभी जगह उसे एक से बढकर एक भयानक किस्से सुनने को मिले । अन्त में थक-हार कर जब वह एक जगह पहुँचा, देखा तो दरवाजे पर लिखा था "भारतीय नर्क" और उस दरवाजे के बाहर उस नर्क में जाने के लिये लम्बी लाईन लगी थी, लोग भारतीय नर्क में जाने को उतावले हो रहे थे, उसने सोचा कि जरूर यहाँ सजा कम मिलती होगी... तत्काल उसने पहरेदार से पूछा कि यहाँ के नर्क में सजा की क्या व्यवस्था है ? पहरेदार ने कहा - कुछ खास नहीं...सबसे पहले आपको एक इलेक्ट्रिक चेयर पर एक घंटा बैठाकर करंट दिया जायेगा, फ़िर एक कीलों के बिस्तर पर आपको एक घंटे लिटाया जायेगा, उसके बाद एक दैत्य आकर आपकी जख्मी पीठ पर पचास कोडे बरसायेगा... बस ! चकराये हुए व्यक्ति ने उससे पूछा - यही सब तो बाकी देशों के नर्क में भी हो रहा है, फ़िर यहाँ इतनी भीड क्यों है ? पहरेदार बोला - इलेक्ट्रिक चेयर तो वही है, लेकिन बिजली नहीं है, कीलों वाले बिस्तर में से कीलें कोई निकाल ले गया है, और कोडे़ मारने वाला दैत्य सरकारी कर्मचारी है, आता है, दस्तखत करता है और चाय-नाश्ता करने चला जाता है...और कभी गलती से जल्दी वापस आ भी गया तो एक-दो कोडे़ मारता है और पचास लिख देता है...चलो आ जाओ अन्दर !!!

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    Jai Sai Ram!!!
    Ramesh bhai.....mazaa aa gaya!!! I hope ki kaheen bharatiya swarg ke bhi aise haal na ho....
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    Radha.

    om sai ram....

    sach main hamare desh ka kya haal hai....kab ho ga sab theek...narak tak toh theek hai ...par........
    yha k toh hospitals, ralway  station , bas stands, goverment offices, aur................list bahut lambi hai ka bhi yhe haal hai...
    JEETE JAGTE HE NARAK K DARSHAN HAI.....

    jai sai ram...
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #53 on: April 30, 2007, 03:05:10 AM »
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    महात्मा की अग्नि

    सूत्र एक महान संत थे। उनके बारे में प्रसिद्ध है कि जन्म के समय ही उनके मुंह में पूरे दांत थे। इसे देखकर पंडितों ने कहा कि यह बालक माता-पिता के लिए अमंगलकारी होगा। यह सुनकर सूत्र के मां-बाप ने उन्हें घर से निकाल दिया। सूत्र घर से निकल कर ईश्वर की साधना में लग गए। उनकी कीर्ति फैलने लगी। सभी धर्मों और समुदायों के लोग उनके अनुयायी बनने लगे। एक बार सूत्र से मिलने एक महात्मा आए। उनके साथ कई शिष्य भी थे। वे महात्मा सूत्र के प्रति ईर्ष्या का भाव रखते थे। इसे सूत्र ने भांप लिया था। महात्मा से थोड़ी देर बातचीत के बाद सूत्र ने कहा, 'मुझे धुएं की गंध आ रही है। कृपया मुझे अग्नि दीजिए।' महात्मा ने कहा, 'मेरे पास अग्नि नहीं है।' सूत्र ने फिर कहा, 'अपनी अग्नि दे दीजिए।'

    महात्मा ने दोहराया कि उनके पास अग्नि नहीं है। इस पर बहस बढ़ने लगी। महात्मा आगबबूला हो गए। अचानक उन्होंने चिल्ला कर कहा, 'मेरे सामने से हट जाओ, वरना जान से मार दूंगा।' सूत्र ने हंसते हुए कहा, 'अरे, कितनी प्रचंड अग्नि है आपके पास और आप इसे देने से इनकार कर रहे हैं।' महात्मा को अपनी भूल का अहसास हो गया। उन्होंने सूत्र से क्षमा मांगी।
                         
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    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #54 on: May 01, 2007, 11:08:45 AM »
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    जनक की सीख
     
    शुकदेव राजा जनक के यहां ज्ञान प्राप्त करने के लिए आए। जनक को ऊंचे सिंहासन पर बैठे देख सोचने लगे कि माया में लिप्त यह राजा उन्हें क्या ज्ञान देगा? तभी खबर आई कि महल में आग लग गई है। राजा जनक यह सुनकर किंचित भी नहीं घबराए। वह उसी तरह प्रसन्न बैठे रहे, पर शुकदेव चिंतित हो गए। जनक ने पूछा, 'महल में आग लगने से आपको चिंता क्यों हो गई है?' शुकदेव जी ने उत्तर दिया, 'मेरा दंड और कमंडल द्वार पर ही रखा है। कहीं वे जल न जाएं।'

    इस पर राजा ने कहा, 'मुझे महल के जलने की भी चिंता नहीं है और आपको दंड और कमंडल की चिंता हो गई। इसका कारण समझे? यही कि मैं राज्य करता हुआ और महल में रहता हुआ भी इनसे तटस्थ रहता हूं। मैं इनको अपना नहीं मानता और आप दंड-कमंडल को अपना मानते हैं। मेरा ज्ञान और शिक्षा यही है कि जिस प्रकार मैं निर्लिप्त रहता हूं, उसी प्रकार आप भी तटस्थ रहें। संसार के किसी भी पदार्थ को अपना मत समझें, न किसी पदार्थ से अपना स्थायी संबंध मानें, बल्कि यह समझें कि आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है और संसार के समस्त पदार्थ नाशवान हैं।' 

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई।

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    « Reply #55 on: May 02, 2007, 09:10:23 AM »
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    आस्था और विश्वास
     
    एक बार एक राज्य में काफी समय तक वर्षा नहीं हुई। नदी-तालाब सूखने लगे, धीरे-धीरे सारी फसलें सूख गईं। लोगों के लिए खाने का संकट पैदा हुआ। मवेशियों के लिए भी चारा नहीं रह गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मचने लगी। परेशान लोग बारिश के उपाय सोचने लगे। अंत में सभी ने मिलकर निर्णय किया कि राजा इंद्र को प्रसन्न करने के लिए एक विशाल यज्ञ किया जाए। लोग तत्काल तैयारियों में जुट गए। यज्ञ के लिए घी और दूसरी हवन सामग्री लेकर लोग यज्ञ स्थल पर जुटने लगे। राज्य के कोने-कोने से लोग आए। देखते ही देखते वहां मेले जैसा माहौल हो गया। इतने लोगों का जमावड़ा देखकर एक नन्हे बच्चे ने अपनी मां से पूछा, 'मां, यह सब क्या हो रहा है। इतने सारे लोग क्यों आ रहे हैं। 'मां ने बेटे को समझाया, 'बेटा,  लंबे समय से वर्षा न होने से फसलें सूख गई हैं, जिससे आदमी और जानवर भूखे-प्यासे हैं, भारी कष्ट में हैं। इसलिए वर्षा के देवता इंद्र को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है।'

    बच्चे ने कहा,  'मां जब हर आदमी इसमें भाग ले रहा है तो क्यों न हम भी इसमें शामिल हों। 'मां बोली, 'हां, हां क्यों नहीं, जरूर शामिल होना चाहिए। 'बस अगले ही दिन वह बच्चा यज्ञ स्थल पर पहुंच गया। वहां उपस्थित सारे लोग उसे देखकर हंस रहे थे, क्योंकि वह अपने सिर पर छाता ताने हुए था। बच्चे ने उन सबसे पूछा कि आखिर वे क्यों हंस रहे हैं? सब चुप हो गए। तभी एक महात्मा ने उस बच्चे से कहा, 'सुनो बेटे। मैं बताता हूं,  दरअसल ये सभी अपनी नादानी पर ही हंस रहे हैं। इतने बड़े यज्ञ का आयोजन करने के बाद भी इन सब को अपनी मेहनत के परिणाम पर भरोसा नहीं है। जबकि तुम यह पूरा विश्वास करके यहां आए हो कि जब इतने लोग एक साथ मिलकर कोई कार्य कर रहे हैं तो उसका फल अवश्य मिलेगा, यानी पानी जरूर बरसेगा। हमें अपनी मेहनत की सफलता पर भी विश्वास करना चाहिए। उसके परिणाम पर आस्था रखनी चाहिए।'

    इसी तरह हम सबको अपने बाबा सांई पर पूर्ण आस्था और विश्वास रखना चाहिये कि जो भी वो हमारे लिये कर रहे है उससे बेहतर कुछ और हो नही सकता। 
                         
    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Offline Dnarang

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #56 on: May 05, 2007, 04:14:55 AM »
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    DONKEY AND THE FARMER

    One day a farmer's donkey fell down into a well. The animal cried piteously for hours as the farmer tried to figure out what to do. Finally he decided the animal was old and the well needed to be covered up anyway; it just wasn't worth it to retrieve the donkey. He invited all his neighbors to come over and help him. They all grabbed a shovel and began to shovel dirt into the well. At first, the donkey realized what was happening and cried horribly. Then, to everyone's amazement, he quieted down.

    A few shovel loads later, the farmer finally looked down the well and was astonished at what he saw. With every shovel of dirt that hit his back, the donkey was doing something amazing. He would shake it off and take a step up. As the farmer's neighbors continued to shovel dirt on top of the animal, he would shake it off and take a step up. Pretty soon, everyone was amazed as the donkey stepped up over the edge of the well and trotted off!

    Life is going to shovel dirt on you, all kinds of dirt. The trick to getting out of the well is to shake it off and take a step up. Each of our troubles is a stepping stone. We can get out of the deepest wells just by not stopping, never giving up! Shake it off and take a step up!
    Mere Sai ki Deepali

    श्री साईनाथ । आपके ऋण हम किस प्रकार चुका सकेंगें । आपके श्री चरणों में हमारा बार-बार प्रणाम है । हम दीनों पर आप सदैव कृपा करते रहियेगा, क्योंकि हमारे मन में सोते-जागते हर समय न जाने क्या-क्या संकल्प-विकल्प उठा करते है । आपके भजन में ही हमारा मन मग्न हो जाये, ऐसा आर्शीवाद दीजिये ।

    Baba mujh Dasi ko apne Charankamalon ki Sheetal Chaaya me Sthan de do.

    Offline Ramesh Ramnani

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    « Reply #57 on: May 05, 2007, 07:14:10 AM »
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    आत्मनिर्भरता की भावना

    उन दिनों स्वामी विवेकानंद पैरिस में थे। एक दिन वह बग्घी में सैर के लिए निकले। ज्यों ही बग्घी एक गली में पहुंची, एक नौकरानी दो छोटे खूबसूरत बच्चों के साथ आती दिखी। उन्हें देखते ही कोचवान ने बग्घी रोक दी। उसने उतरकर उन बच्चों को प्यार किया, फिर अपनी सीट पर आकर बैठ गया। वे बच्चे पहनावे से ऊंचे घराने के दिखते थे। उनके साथ कोचवान की इतनी घनिष्ठता देखकर विवेकानंद प्रसन्न हुए। उन्होंने पूछा, 'कौन हैं ये?'

    ' ये मेरे बच्चे हैं।' कोचवान ने मुस्कारते हुए कहा और बग्घी आगे बढ़ा दी। कुछ दूर चलने के बाद उसने स्वामी जी को अपने बारे में बताना शुरू किया, 'मैं पैरिस बैंक का मालिक था। आजकल उसकी हालत खस्ता हो गई है। मैंने महसूस कर लिया कि मुझे अपनी लेनदारियां वसूलने और देनदारियां चुकाने में वक्त लगेगा। लेकिन मैं दूसरों पर बोझ नहीं बनना चाहता। मैंने गांव में एक छोटा सा मकान किराए पर ले रखा है। मेरे और मेरी पत्नी के पास जो कुछ था उससे यह बग्घी खरीद ली है। मेरी पत्नी भी उपार्जन कर लेती है। दोनों की आय से बच्चों का खर्च चल जाता है। जब कर्ज चुका दूंगा और लेनदारी वसूल कर लूंगा, बैंक चालू कर दूंगा।'

    स्वामी जी आनंदित होकर बोले, ' मैं तुम्हें सच्चा वेदांती मानता हूं। तुम हैसियत से गिर कर भी परिस्थितियों से नहीं हारे। यह है आत्मनिर्भरता की सच्ची भावना।' 
                         
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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #58 on: May 12, 2007, 02:09:47 AM »
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    श्रेष्ठ कौन
     
    एक राजा अपने राज्य में आने वाले हर ज्ञानी व्यक्ति से पूछता था कि संन्यास श्रेष्ठ है या गृहस्थाश्रम। एक बार उसके राज्य में दूर से एक संत आए। राजा ने उनसे भी यही प्रश्न किया। संत ने कहा, 'अपनी-अपनी जगह दोनों श्रेष्ठ हैं।' राजा ने कहा, 'क्या आप इसे सिद्ध कर सकते हैं?' संत ने कहा, 'इसके लिए तुम्हें मेरे साथ कुछ दिन रहना होगा।' राजा संत के साथ चलकर किसी दूसरे राज्य में पहुंच गया। वहां की राजकुमारी एकत्रित जन समुदाय में से अपने लिए वर चुनने जा रही थी। वह इकलौती संतान थी और उसके पति को ही उस राज्य का शासक बनना था। संत राजा को साथ लेकर समारोह स्थल पर पहुंच गए। नियत समय पर राजकुमारी आई और उसने वहां उपस्थित एक युवा संन्यासी के गले में वरमाला डाल दी।

    संन्यासी ने गले से वरमाला निकालकर फेंकते हुए कहा, 'मैं संन्यासी हूं। मेरे लिए विवाह का कोई अर्थ नहीं है।' वह वहां से निकल कर जंगल की ओर चला गया। उसे अपना पति मान चुकी राजकुमारी भी रोती हुई उसके पीछे भागी। राजा और संत भी उसका पीछा करते हुए चले। संन्यासी जंगल में खो गया। राजकुमारी, संत और राजा एक वटवृक्ष की छाया में रुक गए। उन्होंने तय किया कि अगले दिन रास्ता खोजकर बाहर निकलेंगे। वृक्ष के ऊपर एक पक्षी परिवार रहता था। सदीर् और भूख से पीडि़त तीन अतिथियों को देख पक्षियों ने इधर-उधर से तिनके लाकर आग का प्रबंध किया और उनके भोजन के लिए स्वयं को आग के हवाले कर दिया। तीनों अतिथियों को समझते देर न लगी कि पक्षियों ने अपना बलिदान उनके लिए ही किया है। वे पक्षियों के इस आतिथ्य को स्वीकार न कर सके। सवेरा होते ही संत और राजा ने राजकुमारी को महल का रास्ता दिखाया। तब संत ने राजा से कहा, 'अगर गृहस्थ बनकर रहना है तो इन पक्षियों की तरह रहो जिन्होंने दूसरों के लिए अपनी जान दे दी और अगर संन्यासी होना है तो उस युवा संन्यासी की तरह रहो, जिसके लिए सुन्दर राजकुमारी और राज्य भी तुच्छ था।' 

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #59 on: May 15, 2007, 04:10:04 AM »
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    जीत और हार
     
    विश्वामित्र एक वीर राजा, महाज्ञानी, मगर क्रोधी, अभिमानी और प्रभु के परम भक्त थे। एक बार वह अपनी सेना सहित महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में पहुंचे। दोपहर का समय था। मुनि वशिष्ठ ने राजा का स्वागत किया। थोड़ी ही देर में भोजन तैयार हो गया। विश्वामित्र ने भोजन किया और प्रसन्न होते हुए कहा, हे मुनिश्रेष्ठ! इतना स्वादिष्ट भोजन इतनी जल्दी कैसे तैयार हो गया? वशिष्ठ बोले, राजन, यह सब तो नंदिनी की कृपा है।

    तो फिर नंदिनी को आप हमें दे दो मुनिवर! विश्वामित्र ने कहा। नहीं राजन, ऐसा नहीं हो सकता, वशिष्ठ ने कहा। विश्वामित्र को क्रोध आ गया, गुस्से में बोले, नहीं दोगे तो हम छीन कर ले जाएंगे। उन्होंने अपने सैनिकों से कहा कि नंदिनी को जबरन हांक कर ले चलो।

    जैसे ही विश्वामित्र के सैनिक आगे बढ़े, आश्रम के शिष्य उनके विरोध में खड़े हो गए। दोनों तरफ से संघर्ष शुरू हो गया। इस लड़ाई में विश्वामित्र के सैनिकों को पीछे हटना पड़ा। हार से कुपित होकर विश्वामित्र तप पर बैठ गए। उनके तप से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शंकर प्रकट हुए और बोले, राजन! वर मांगो। विश्वामित्र ने कहा, प्रभु! मुझे शत्रु विजय का वरदान दीजिए।

    तथास्तु कह कर प्रभु लोप हो गए। विश्वामित्र ने बदले की भावना से एक बार फिर वशिष्ठ के आश्रम पर धावा बोल दिया। लेकिन इस बार भी उन्हें सफलता नहीं मिली। विश्वामित्र फिर से तपस्या पर बैठे। इस बार उनकी तपस्या खत्म ही नहीं हो रही थी। आखिर में ब्रह्मादेव विश्वामित्र के पास गए और कहा, मुनिश्रेष्ठ! आपकी आराधना पूरी हो गई। विश्वामित्र ने कहा, प्रभु मेरी इच्छा है कि मुझे सारे वेदों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो और मुनि वशिष्ठ मुझे ब्रह्मर्षि कहें। तभी वशिष्ठ वहाँ उपस्थित हो गए और बोले, हे मुनिश्रेष्ठ! ब्रह्मर्षि तो आप हैं ही, आप जैसा महान ज्ञानी इस संसार में कोई दूसरा नहीं है। हार तो आप के अंदर बैठे राजदंभ, क्रोध, अहंकार, अन्याय और बदले की भावना की हुई थी। 
                         
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