जय सांई राम
चोर का बलिदान
बहुत पुरानी बात है। तीन दोस्त थे, जिनकी आपस में गहरी मित्रता थी। इनमें से एक राजा का छोटा लड़का था, दूसरा राजा के मंत्री का बेटा था और तीसरा था-किसी अमीर सेठ का बेटा। तीनों ही कोई काम नहीं करते और हमेशा व्यर्थ की बातों में समय बिताते। उन तीनों के माता-पिता इन बच्चों से बहुत परेशान थे, इसीलिए उन्होंने तीनों को कई बार समझाया, लेकिन वे नहीं माने और अंत में उनके माता-पिता ने उन्हें घर से निकालने का निर्णय लिया। इस निर्णय को सुनकर तीनों दोस्त परेशान हो गए और सोचने लगे कि अब क्या होगा! उनमें से एक ने कहा कि हमें किसी दूसरे शहर में जाकर व्यापार करना चाहिए, लेकिन व्यापार के लिए पैसा तीनों में से किसी के पास नहीं था। दूसरे दोस्त ने कहा कि थोड़ी दूर जो पहाड़ है, उसकी सबसे ऊंची चोटी से महंगे पत्थर लाकर बेचते हैं, तभी तीसरा दोस्त चीखकर बोला कि हमें डरने की कोई जरूरत नहीं है। हम पहाड़ से महंगे पत्थर लाऐंगे, जिन्हें बेचकर हमें पैसा मिलेगा और उन्होंने अपनी यात्रा शुरू कर दी।
यात्रा लंबी और कठिन जरूर थी, लेकिन वे तीनों घने जंगल और नदी को पार करते हुए पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच गए। भाग्य उनके साथ था। उन्होंने कुछ महंगे पत्थर खोजे और वापस लौटने लगे, लेकिन वापस आने में रात हो गई और तीनों सोचने लगे कि कोई चोर उनसे पत्थर छीन सकता है। इसीलिए तीनों ने पत्थर छुपाने का निर्णय लिया। उन्होंने पत्थरों को अपने भोजन के साथ अपने-अपने पेट में छुपा लिया और फिर जंगल के रास्ते वापस जाने लगे। एक चोर तीनों दोस्तों का पीछा कर रहा था, क्योंकि उसे कीमती पत्थर के बारे में पता लग गया था। चोर ने तीनों को मारकर पत्थर छीनने का प्लान बनाया। जब तीनों दोस्त जंगल के रास्ते से होकर आगे की ओर बढ़ने लगे, तो चोर ने पीछे से आवाज लगाते हुए कहा, 'मुझे अकेले जंगल पार करने में डर लगेगा, यदि आप बुरा न मानें, तो मैं आपके साथ जंगल पार कर लूं।' तीनों दोस्तों ने हामी भरी, तो वह चोर उनके साथ चलने लगा।
जंगल के बीच में एक गांव था, जिसके मुखिया के पास एक ऐसा तोता था, जो हमेशा सच बोलता था। मुखिया उस तोते की हर बात समझता था। जैसे ही वे चारों मुखिया के घर से आगे निकले, तोता चिल्लाने लगा कि इन लोगों के पास कीमती पत्थर है। मुखिया ने तुरंत तीनों दोस्तों और चोर को पकड़ लिया और फिर उनके पास से पत्थर खोजने लगा, लेकिन उसे कुछ नहीं मिला। मुखिया ने सोचा कि तोते से कोई गलती हुई है और इसीलिए उसने उन चारों को छोड़ दिया।
उन चारों ने अपनी यात्रा दोबारा शुरू कर दी। उनके वहां से निकलते ही तोता फिर बोलने लगा कि उनके पास स्टोन है। अब मुखिया ने सोचा कि तोता कभी झूठ नहीं बोलता, इसीलिए उसने चारों को दोबारा बुलवा लिया, लेकिन अथक प्रयास के बाद भी पत्थर नहीं मिला। मुखिया बोला, अगर मुझे कल तक पत्थर नहीं मिला, तो मैं तुम चारों के पेट फाड़कर स्टोन निकाल लूंगा। मुखिया ने चारों को एक कमरे में बंद कर दिया। चोर सोचने लगा कि यदि मुखिया सबसे पहले मेरा पेट काटे, तो उसे कुछ भी नहीं मिलेगा और ये तीनों बच जाएंगे, लेकिन यदि पहले इनमें से किसी एक का पेट चीरा गया, तो हम सब एक के बाद एक मारे जाएंगे, क्योंकि इनके पेट से स्टोन मिलेंगे। मुझे तो हर तरह से मरना ही है, तो क्यों न मैं इन तीनों की जान बचा लूं।
अगले दिन जब मुखिया ने चारों को बुलाया, तो चोर ने मुखिया से कहा कि आप सबसे पहले मुझे मार दो, क्योंकि मैं अपने दोस्तों को मरते हुए नहीं देख सकता। मुखिया इस बात के लिए तैयार हो गया और उसने सबसे पहले चोर का ही पेट काटा, लेकिन उसे कुछ भी नहीं मिला। मुखिया को बहुत दुख हुआ, उसने सोचा कि मैंने एक आदमी को व्यर्थ में ही मार डाला, इसीलिए उसने बाकी तीनों को छोड़ दिया। तीनों दोस्त घर लौट गए और उन स्टोन को बेचकर वे बहुत अमीर बन गए, लेकिन तीनों दोस्त चोर के बलिदान को कभी नहीं भूले। इस घटना से तीनों दोस्त जान गए कि छोटा व्यक्ति भी बड़ा काम कर सकता है। सच ही है, कोई भी व्यक्ति अपने कर्म से बड़ा बनता है न कि अपनी पारिवारिक प्रतिष्ठा या धन की बहुतायत से।
ॐ सांई राम।।।