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Author Topic: SMALL STORIES  (Read 216586 times)

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Offline fatima

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Re: SMALL STORIES ---The Power Of A Hug
« Reply #285 on: June 28, 2008, 01:57:08 AM »
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  • A few years ago, a set of twins were born. They were kept in separate incubators as usual, but one of them was not expected to live.

    One of the nurses, going against hospital policy, placed both babies in the same incubator. As soon as they were reunited, the healthier twin threw her arm over her weaker sister in an endearing embrace. What happened? The little sister's temperature rose to normal and her heart rate stabilized, and she survived!

    Both babies thrived and went home together. At home they continued to share a crib and were always snuggling closely. Today they are happy pre-schoolers.

    Did the hospital change its policy? You bet it did! After seeing the effects of putting the two girls together, they now put siblings together. How about that! You can never underestimate the value of a hug!

    Let's not forget to embrace the ones we love. May all your days be filled with hugs!
    Not every heart is capable of finding the secret of God's love.

    There are not pearls in every sea; there is not gold in every mine.


                                       ------Baba Farid

    Offline tana

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #286 on: July 03, 2008, 06:48:01 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~


    जो जैसा करता है, वैसा ही भरता है~~~

    किसी गांव में एक लड़का रहता था वह बहुत अमीर था। उसका नाम प्रिंस था। उसे अपनी अमीरी पर बहुत घमंड था। वह मासूम जानवरों को सताया करता था। प्रतिदिन शिकार करने जंगल में चला जाया करता था। एक दिन वह अपने घोड़े पर चढ़कर शिकार करने जंगल की ओर निकला। वह दिनभर जंगल में घूमते रहा लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। वह काफी थक चुका था। उसे जोरों की प्यास लग चुकी थी। उसने नदी के किनारे जाकर पानी पिया। फिर वह एक पेड़ के नीचे जाकर लेट गया।

    बड़ी सुहावनी हवा चल रही थी। वहीं उसे नींद भी आ गई। आंखें खुली तो नदी किनारे एक जानवर को पानी पीते हुए देखा। यह देखते ही वह तुरंत ही खड़ा हो गया। और धणुष पर तीर चढ़ाकर उस पर चला दिया। थोड़ी देर में जब वह लड़का नदी किनारे गया तो देखा कि जानवर की जगह एक ऋषि घायल पड़ा हुआ है। ऋषि ने उसी समय उस लड़के को श्राप दे दिया कि तुम्हरा चेहरा बंदर जैसा हो जाएगा। यह सुनते ही प्रिंस के होश उड़ गए। वह ऋषि के चरणों में गिर कर गलती के लिए माफी मांगने लगा। ऋषि को उस पर दया आ गई और हमेशा के लिए बंदर नहीं बना रहे इसके लिए एक उपाय सुझाया। उन्होंने कहा कि इस जंगल से एक लड़का गुजरेगा वह तुम्हरा हाथ काटकर दो बूंद खून चूस लेगा। तब तुम्हरा चेहरा पुन: पहले जैसा हो जाएगा। इतना कहते ही ऋषि मर गया। प्रिंस का चेहरा बन्दर जैसा हो गया था। वह इंतजार करता रहा लेकिन उस रास्ते से कोई भी लड़का नहीं गुजरा। और उसका चेहरा बंदर की तरह ही रह गया। इसीलिए कहा गया है कि जो जैसा करता है, वैसा ही भरता है।

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #287 on: July 12, 2008, 08:23:42 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    'टमाटर की कहानी'

    एक बेकार आदमी ने 'ओफिस बाय' की जोब के लिए माईक्रोसोफ्ट में अरजी दी...वहाँ के एचआर मेनेजर ने उसे देखा... और उस बंदे को इंटरव्यु के लिए बुलाया..

    ''अच्छा 'तो तुम माईक्रोसोफ्ट में काम करना चाँहते हो... तुम्हारा ई-मेल ऎड्रस दो...ता कि में तुम्हे जवाब भेज सकु कि कब से तुम्हे काम शुरू करना है... ''

    ''सर मेरा कोई ई-मेल पता नही है... क्योंकि मेरे पास कम्प्युटर ही नही है..''

    ''तो फिर मुझे माफ करना... में तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सकता... अगर तुम्हारे पास ई-मेल पता ही नहीं है तो... तुम इस नोकरी के लायक नहीं..'I'm sorry',''

    वह लड़्का बिना कुछ बोले उस आफिस से बहार निकल गया... उसकी जेब में सिर्फ 10 रुपैये थे... वह बेकार था और काम करके कुछ कमाना चाँहता था..अचानक उसके मन में एक विचार आया...वह सिधा सब्जी मार्केट गया और वहा से उसने 10 रुपैये के टमाटर खरीद लिए...

    टमाटर खरीदकर वह उसी मंडी में बेठ गया.. दो घंटे में उसके सारे टमाटर बिक गए..अब उसके पास 20 रूपैये हो गए थे...

    इस व्यापार में उसको बहुत मजा आया...फिर तो उसने 20 के टमाटर खरीदे और घर घर जाकर उसको बेंचने लगा...घीरे धीरे उसका व्यापार बढ़ने लगा... उसने एक दुकान खरीद ली...फिर उसने ट्रक खरीद लिया..और वह उस मंडी का सबसे बड़ा व्यापारी बन गया.. ...

    पाँच साल में तो वह शहर के सबसे धनी व्यक्तिओ की सूचि में सामिल हो गया.. उसने अपने परिवार के भविष्य के लिए कुछ योजना बनाई और उसके चलते उसने अपना बीमा करने के लिए सौचा...उसने एक वीमा ऎजन्ट को बुलाया...

    वात वात में ऎजन्ट ने उससे उसका ई-मेल पता पुछ डाला...व्यापारी ने हसकर कहाँ..न तो मेरा कोई ई-मेल पता है और ना ही मेरे पास कोई कम्य्युटर है...

    ऎजन्ट सकते में पड़ गया... ''क्यां आपके पास ई-मेल पत्ता नही है ? शायद आप मजाक कर रहे हो...आप शहर के सबसे बड़े आदमी है... कभी आपने सोचा है कि अगर आप के पास ई-मेल पता न होता तो आज आप क्यां होते ?

    '' हा.... तो शायद माईकोसोफ्ट कंपनी का ऑफिस बाय होता'' व्यापारी हसते हुए बोला..

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #288 on: July 13, 2008, 01:09:09 AM »
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    इनाम

    हिरन का मांस खाते-खाते भेड़ियों के गले में हाड़ का एक काँटा अटक गया.  बेचारे का गला सूज आया. न वह कुछ खा सकता था, न कुछ पी सकता था. तकलीफ के मारे छटपटा रहा था. भागा फिरता था-इधर से उधर, उधर से इधऱ। न चैन था, न आराम था. इतने में उसे एक सारस दिखाई पड़ा-नदी के किनारे। वह घोंघा फोड़कर निगल रहा था.

    भेड़िया सारस के नजदीक आया. आँखों में आँसू भरकर और गिड़गिड़ाकर उसने कहा-‘‘भइया, बड़ी मुसीबत में फँस गया हूँ. गले में काँटा अटक गया है, लो तुम उसे निकाल दो और मेरी जान बचाओ. पीछे तुम जो भी माँगोगे, मैं जरूर दूँगा. रहम करो भाई!’’

    सारस का गला लम्बा था, चोंच नुकीली और तेज थी. भेड़िये की वैसी हालत देखकर उसके दिल को बड़ी चोट लगी भेड़िये ने मुँह में अपना लम्बा गला डालकर सारस ने चट् से काँटा निकाल लिया और बोला-‘‘भाई साहब, अब आप मुझे इनाम दीजिए !’’

    सारस की यह बात सुनते ही भेड़िये की आँखें लाल हो आई, नाराजी के मारे वह उठकर खड़ा हो गया. सारस की ओर मुँह बढ़ाकर भेडिया दाँत पीसने लगा और बोला-‘‘इनाम चाहिए ! जा भाग, जान बची तो लाखों पाये ! भेड़िये के मुँह में अपना सिर डालकर फिर तू उसे सही-सलामत निकाल ले सका, यह कोई मामूली इनाम नहीं है. बेटा ! टें टें मत कर ! भाग जा नहीं तो कचूमर निकाल दूँगा.’’

    सारस डर के मारे थर-थर काँपने लगा. भेड़िये को अब वह क्या जवाब दे, कुछ सूझ ही नहीं रहा था. गरीब मन-ही-मन गुनगुना उठा-

    रोते हों, फिर भी बदमाशों पर करना न यकीन....मीठी बातों से मत होना छलियों के अधीन....करना नहीं यकीन, खलों पर करना नहीं यकीन.

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #289 on: July 24, 2008, 04:25:24 AM »
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    एक संत ने बचपन में ही घर बार छोड़कर संन्यास ले लिया था। बाल ब्रह्मचारी रहकर उन्होंने घोर तपस्या की। गृहस्थ जीवन को वह जीवन का बंधन मानते थे। अपना अधिक समय भगवान की उपासना में व्यतीत करते और भिक्षाटन से भोजन करते।

    एक दिन उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। उन्हें लेकर यमदूत चित्रगुप्त के पास गए। चित्रगुप्त ने उनका बहीखाता देख कर कहा, आप को दोबारा पृथ्वी पर जन्म लेना होगा। संत ने कहा, मैंने मोह, माया, घृणा, अहंकार आदि तमाम बुराइयों को तिलांजलि देकर शुद्ध मन से भगवान की आराधना की है। प्रभु की उपासना के सिवाय मैंने ज़िंदगी में कुछ नहीं किया, ताकि मुझे दोबारा पृथ्वी पर जन्म नहीं लेना पड़े। मुझे मोक्ष चाहिए। चित्रगुप्त ने कहा, यह सही है कि आपने मोह माया त्यागकर सच्चे मन से प्रभु की आराधना की है। किसी को दुख नहीं पहुंचाया, फिर भी आप को मोक्ष नहीं मिल सकता।

    क्यों? संत ने पूछा। चित्रगुप्त ने कहा, इसका जवाब तो धर्मराज ही दे सकते हैं। यमदूत उन्हें लेकर धर्मराज के पास पहुंचे। धर्मराज ने भी उनका बही खाता देख कर कहा, वत्स, चित्रगुप्त का निर्णय सही है। आप को मोक्ष नहीं मिल सकता। संत ने कहा, यह हमारे साथ अन्याय है। धर्मराज ने कहा, वत्स यहां किसी के साथ अन्याय नहीं होता। सभी को उचित न्याय मिलता है। आप यही जानना चाहते हैं कि आप को मोक्ष क्यों नहीं मिल रहा है। हां, मैं जानना चाहता हूं कि मुझमें कमी कहां रह गई कि मैं मोक्ष से वंचित हो रहा हूं, संत ने कहा।

    धर्मराज ने कहा, वत्स! पृथ्वी पर जितने प्राणी जन्म लेते हैं उनका कुछ न कुछ समाज के प्रति उत्तरदायित्व होता है। मनुष्य योनि में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म है कि वह सबसे पहले मानवता की सेवा करे, अपने परोपकार से दूसरों के दुख-दर्द को दूर करे। आपने तो इनमें से एक भी कर्म नहीं निभाया। आप का ध्यान तो सिर्फ अपने मोक्ष पर था। इसलिए अपना कर्म पूरा करने के लिए आपको पुन: पृथ्वी पर भेजा जा रहा है।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Offline tana

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #290 on: July 26, 2008, 03:16:30 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    चतुराई से कठिन काम भी संभव~~~

    एक जंगल में महाचतुरक नामक सियार रहता था। एक दिन जंगल में उसने एक मरा हुआ हाथी देखा। उसकी बांछे खिल गईं। उसने हाथी के मृत शरीर पर दांत गड़ाया पर चमड़ी मोटी होने की वजह से, वह हाथी को चीरने में नाकाम रहा।

    वह कुछ उपाय सोच ही रहा था कि उसे सिंह आता हुआ दिखाई दिया। आगे बढ़कर उसने सिंह का स्वागत किया और हाथ जोड़कर कहा, “स्वामी आपके लिए ही मैंने इस हाथी को मारकर रखा है, आप इस हाथी का मांस खाकर मुझ पर उपकार कीजिए।” सिंह ने कहा, “मैं तो किसी के हाथों मारे गए जीव को खाता नहीं हूं, इसे तुम ही खाओ।”

    सियार मन ही मन खुश तो हुआ पर उसकी हाथी की चमड़ी को चीरने की समस्या अब भी हल न हुई थी।

    थोड़ी देर में उस तरफ एक बाघ आ निकला। बाघ ने मरे हाथी को देखकर अपने होंठ पर जीभ फिराई। सियार ने उसकी मंशा भांपते हुए कहा, “मामा आप इस मृत्यु के मुंह में कैसे आ गए? सिंह ने इसे मारा है और मुझे इसकी रखवाली करने को कह गया है।

    एक बार किसी बाघ ने उनके शिकार को जूठा कर दिया था तब से आज तक वे बाघ जाति से नफरत करने लगे हैं। आज तो हाथी को खाने वाले बाघ को वह जरुर मार गिराएंगे।”

    यह सुनते ही बाघ वहां से भाग खड़ा हुआ। पर तभी एक चीता आता हुआ दिखाई दिया। सियार ने सोचा चीते के दांत तेज होते हैं। कुछ ऐसा करूं कि यह हाथी की चमड़ी भी फाड़ दे और मांस भी न खाए।

    उसने चीते से कहा, “प्रिय भांजे, इधर कैसे निकले? कुछ भूखे भी दिखाई पड़ रहे हो।” सिंह ने इसकी रखवाली मुझे सौंपी है, पर तुम इसमें से कुछ मांस खा सकते हो। मैं जैसे ही सिंह को आता हुआ देखूंगा, तुम्हें सूचना दे दूंगा, तुम सरपट भाग जाना”।

    पहले तो चीते ने डर से मांस खाने से मना कर दिया, पर सियार के विश्वास दिलाने पर राजी हो गया।

    चीते ने पलभर में हाथी की चमड़ी फाड़ दी। जैसे ही उसने मांस खाना शुरू किया कि दूसरी तरफ देखते हुए सियार ने घबराकर कहा, “भागो सिंह आ रहा है”। इतना सुनना था कि चीता सरपट भाग खड़ा हुआ। सियार बहुत खुश हुआ। उसने कई दिनों तक उस विशाल जानवर का मांस खाया।

    सिर्फ अपनी सूझ-बूझ से छोटे से सियार ने अपनी समस्या का हल निकाल लिया। इसीलिए कहते हैं कि बुद्धि के प्रयोग से कठिन से कठिन काम भी संभव हो जाता है।


    जय सांई राम~~~

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #291 on: July 29, 2008, 08:10:45 AM »
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    बालिका की वाणी

    भगवान बुद्ध श्रावस्ती में ठहरे हुए थे। वहां उन दिनों भीषण अकाल पड़ा था। यह देखकर बुद्ध ने नगर के सभी धनिकों को बुलाया और कहा, ‘नगर की हालत आप लोग देख ही रहे हैं। इस भयंकर समस्या का समाधान करने के लिए आगे आइए और मुक्त हाथों से सहायता कीजिए।’ लेकिन गोदामों में बंद अनाज को बाहर निकालना सहज नहीं था। श्रेष्ठि वर्ग की करुणा जाग्रत नहीं हुई। उन्होंने उन अकाल पीडि़त लोगों की सहायता के लिए कोई तत्परता नहीं दिखाई।

    उन धन कुबेरों के बीच एक बालिका बैठी थी। भगवान बुद्ध की वाणी ने उसको झकझोर दिया। वह उठकर बुद्ध के सामने पहुंची और सिर झुका कर बोली, ‘हे प्रभु, मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं लोगों के इस दुख को हल्का कर सकूं।’ उस बालिका के ये शब्द सुनकर भगवान बुद्ध चकित रह गए। उन्होंने कहा कि बेटी जब नगर के सेठ कुछ नहीं कर पा रहे तो तुम क्या करोगी? तुम्हारे पास है ही क्या? तब हाथ जोड़कर लड़की बोली, ‘भगवन, आप मुझे आशीर्वाद तो दीजिए। मैं घर-घर जाकर एक-एक मुट्ठी अनाज इकट्ठा करूंगी और उस अनाज से मैं भूखों की मदद करूंगी। भगवन, जो मर रहे हैं वे भी तो हमारे ही भाई-बहन हैं। उनकी भलाई में ही हमारी भलाई है।’ इतना कहकर वह बालिका फूट पड़ी। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी।

    भगवान बुद्ध अवाक रह गए। सारी सभा स्तब्ध रह गई। आंसुओं के बीच लड़की ने कहा, ‘बूंद-बूंद से घट भर जाता है। सब एक-एक मुट्ठी अनाज देंगे, तो उससे इतना अनाज इकट्ठा हो जाएगा कि कोई भूखा नहीं मरेगा। मैं शहर-शहर घूमूंगी, गांव-गांव में चक्कर लगाऊंगी और घर-घर झोली फैलाऊंगी।’ बालिका की वाणी ने धनपतियों के भीतर के सोते इंसान को जगा दिया। उन्हें बालिका की निर्मलता और सामाजिक सरोकार देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। फिर क्या था! अनाज के गोदामों के दरवाजे खुल गए और अकाल की समस्या जल्दी ही समाप्त हो गई।

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #292 on: August 02, 2008, 02:14:13 AM »
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    नज़रों का फर्क

    एक गुरुकुल में दो राजकुमार पढ़ते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। एक दिन उनके आचार्य दोनों को घुमाने ले गए। घूमते हुए वे काफी दूर निकल गए। तीनों प्राकृतिक शोभा का आनंद ले रहे थे। तभी आचार्य की नजर आम के एक पेड़ पर पड़ी। एक बालक आया और पेड़ के तने पर डंडा मारकर फल तोड़ने लगा। आचार्य ने राजकुमारों से पूछा, ‘क्या तुम दोनों ने यह दृश्य देखा?’

    ‘हां गुरुदेव।’ राजकुमारों ने उत्तर दिया। गुरु ने पूछा, ‘इस दृश्य के बारे में तुम दोनों की क्या राय है?’ पहले राजकुमार ने कहा, ‘गुरुदेव मैं सोच रहा हूं कि जब वृक्ष भी बगैर डंडा खाए फल नहीं देता, तब किसी मनुष्य से कैसे काम निकाला जा सकता है। यह दृश्य एक महत्वपूर्ण सामाजिक सत्य की ओर इशारा करता है। यह दुनिया राजी-खुशी नहीं मानने वाली है। दबाव डालकर ही समाज से कोई काम निकाला जा सकता है।’

    दूसरा राजकुमार बोला, ‘गुरुजी मुझे कुछ और ही लग रहा है। जिस प्रकार यह पेड़ डंडे खाकर भी मधुर आम दे रहा है उसी प्रकार व्यक्ति को भी स्वयं दुख सहकर दूसरों को सुख देना चाहिए। कोई अगर हमारा अपमान भी करे तो उसके बदले हमें उसका उपकार करना चाहिए। यही सज्जन व्यक्तियों का धर्म है।’ यह कहकर वह गुरुदेव का चेहरा देखने लगा।

    गुरुदेव मुस्कराए और बोले, ‘देखो, जीवन में दृष्टि ही महत्वपूर्ण है। घटना एक है लेकिन तुम दोनों ने उसे अलग-अलग रूप में ग्रहण किया क्योंकि तुम्हारी दृष्टि में भिन्नता है। मनुष्य अपनी दृष्टि के अनुसार ही जीवन के किसी प्रसंग की व्याख्या करता है, उसी के अनुरूप कार्य करता है और उसी के मुताबिक फल भी भोगता है। दृष्टि से ही मनुष्य के स्वभाव का भी पता चलता है।’ गुरु ने पहले राजकुमार से कहा, ‘तुम सब कुछ अधिकार से हासिल करना चाहते हो जबकि तुम्हारा मित्र प्रेम से सब कुछ प्राप्त करना चाहता है।’

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    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #293 on: August 05, 2008, 03:23:58 AM »
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    दीपक और बाती

    पुराने जमाने की बात है। एक कठोर स्वभाव वाला आदमी था। उसकी वाणी बहुत ही कर्कश थी। छोटे-बड़े किसी का लिहाज उसके भीतर नहीं था। इसका जो परिणाम होना चाहिए था, वही हुआ। वह जिधर जाता लोग उसे देखकर मुंह फेर लेते। उसके तने हुए चेहरे से लोगों के दिलों में तिरस्कार का भाव पैदा होता था। उस आदमी को यह सब अच्छा नहीं लगता था पर बेचारा अपने स्वभाव से लाचार था।

    संयोग से एक दिन एक साधु वहां आए। वह आदमी उनसे मिलने गया और बोला, 'यह दुनिया बहुत बुरी है। मुझे उसने इतना सताया है कि आपसे कुछ नहीं कह सकता।' इसके बाद उसने लोगों की उपेक्षा की बात विस्तार से बताते हुए कहा, 'मेरी समझ में नहीं आता कि क्या करूं?' साधु उस आदमी के चेहरे की कठोरता और उसकी तीखी भाषा को सुनकर समझ गए कि उसका रोग क्या है।

    उन्होंने उससे कहा, 'जाओ, एक दीपक लेकर आओ और बाती के लिए रूई भी।' आदमी गया और दीपक तथा रूई ले आया। साधु ने कहा, 'दीपक में बाती डालो।' आदमी ने बाती डाल दी। साधु फिर बोले, 'अब इसमें पानी भरो।' उस आदमी ने पानी भर दिया। साधु ने अब उससे दीपक जलाने को कहा। उस आदमी को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर पानी से दीपक कैसे जलेगा। उस आदमी ने दियासलाई लेकर दीपक जलाने का प्रयत्न किया। लेकिन वह जलता कैसे। उस आदमी ने कहा, 'यह तो जलता नहीं।'

    इस पर साधु ने कहा, 'अरे पगले, जब तक दीये में स्नेह अथवा तेल नहीं पड़ेगा, यह जलेगा कैसे। तुम्हारे दीये में पानी पड़ा है। उसे फेंक दो और स्नेह डालो। तभी वह जलेगा और प्रकाश देगा।' उस आदमी को साधु की बातों का अर्थ समझ में आ गया। उस दिन से उसने अपने ऊपर नियंत्रण करना शुरू किया और लोगों से मीठा बोलने लगा। धीरे-धीरे लोगों का उसके प्रति व्यवहार भी बदल गया।


    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Offline fatima

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #294 on: September 02, 2008, 05:05:59 AM »
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  • This lesson was learned by a very great early Sufi whose name was Ibrahim Adham Balkhi. He was the king of Balkh which was a kingdom in Afghanistan. At that time it was a rich, composite culture in Afghanistan which included a strong Buddhist element. I am sure you are familiar with those incredible Buddha monuments that were destroyed by the Taliban regime that were the legacy of that period. And Ibrahim Adham himself was a saint in the footsteps of the Buddha. If you study the Sufi tradition you will find the trace of Buddhism. The Sufis in their Persian poetry speak of the but 1, the idol, as a manifestation of the divine beloved. And this word but comes from Buddha.

    Like Buddha, Ibrahim Adham was a great king living in opulence. Of course, each of us in this contemporary era live, by comparison to the people of former times, like kings. So in some sense, Ibrahim Adham was a person just like any one of us. But he was the king of the court of a mighty kingdom. And this king was visited by another strange mystic from the dessert. This was Khizr, the green man of the dessert. He blew in, evaded the guards, and made his way into the inner court. Instead of bowing in obeisance as was the protocol, he impudently went up to the throne. The king was deeply offended and said, “What brings you to the court of the great king?”

    And Khizr replied, “Oh, I’m just passing through this caravanserai,” which means motel. You can imagine how angry the king was to hear his palace called a motel.

    He said, “How dare you say that!”

    And Khizr said, “Well, who sat on that throne before you?”

    The king answered, “My father.”

    Khizr said, “And before him?”

    “His father,” said the king.

    “And before him?”

    “His father.”

    And Khizr replied, “And you mean to tell me that this isn’t a motel with people constantly coming and going all the time?”

    Suddenly a revelation came to the king. He realized that all he had invested himself in, his persona of grandeur and wealth and power, was ephemeral; it was trifling in the grand scheme of things. He was just passing through a motel. The words of Khizr went straight into his heart, like a barb. He was compelled to leave his crown and his throne and live as a wandering dervish. For many years he wandered. One time, he came upon a dervish who was complaining about his poverty and the ex-king said, “You must have bought your poverty very cheaply.”

    The dervish said, “Does one buy poverty?”

    Ibrahim Adham said, “I paid all the wealth in the world and still I feel I got a very good deal.”

    Then he became a disciple of Fuzail bin Ayaz who was a highway robber turned Sufi. There at the khanqua, he was made to renounce his false pride. His murshid, his teacher, was very strict with him, and he made him carry out the garbage; this, for a man who was pampered all his life. But Ibrahim Adham took it in stride and carried the garbage. The other students couldn’t bear to see that great noble being subjected to humiliation so they said, “Please, take it easy on him.”

    The murshid said, “Well, alright, well have a test.”

    He sent someone to knock over the garbage while Ibrahim Adham was carrying it. The former king looked at him very sternly and said, “When I was king, I would have never put up with that.”

    This report went back to the murshid and he said, “He’s not ready yet.”

    Some months later, they did it again. This time, Ibrahim Adham just looked at the one who knocked over the garbage. When he heard this report, the murshid said, “Hes still not ready.”

    Then, finally, months later when they again knocked over the garbage, Ibrahim Adham didn’t even look to see who did it. He just picked up the garbage and continued with his chore. His murshid went and embraced him and gave him a very high initiation. He became successor in that order. In fact, that is the order that we are continuing in this line. So he followed in the footsteps of the Buddha who was also a great king who renounced his worldly position to discover an eternal reality.
    Not every heart is capable of finding the secret of God's love.

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    Offline Vikram_Rana

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #295 on: September 02, 2008, 05:58:57 AM »
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  • काँच की बरनी और दो कप चाय - एक बोध कथा


    जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा, "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक-अप करवाओ..टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे.. अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #296 on: September 19, 2008, 09:20:50 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    अनन्य भक्त।

    देवता वरदान बॉंटने धरती पर आए, तो लोगों की अपार भीड़ अपनी-अपनी मनोकानाएं लेकर आ जुटी। किसी ने यष माँगा, किसी ने धन, किसी ने पद तो किसी ने कुछ और। देवता सबकी वांछित मनोकामनाएं पूरी करते चले गए। एक विद्रुप सा व्यक्ति हाथ जोड़े कोने में खड़ा था। देवता ने पास बुलाकर कहा-``तात्!  तुम्हें भी जो कुछ माँगना हो, माँग लो।

    उसने कहा- "मेरी याचना तो छोटी सी है। जिन लोगों ने धन माँगा हैं, उनके पते मुझे बताने की कृपा करें। फिर मैं अपनी मनोकामना स्वयं ही पूरी कर लूँगा।"

    देवता ने आश्चर्य से पूछा - "आखिर तुम हो कौन? "उस व्यक्ति ने कहा-`` व्यसन, अनावश्यक धन को विकेंद्रित करने में संलग्न आपका अनन्य भक्त।"

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #297 on: November 14, 2008, 07:53:52 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    भगवद्दर्शन किसे होता है


    एक समय की बात है एक सन्त की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली कि उन्हें भगवान के दर्शन होते हैं। वह कहते थे कि वे भगवान से रोज साक्षात्कार करते हैं। उनकी इस प्रसिद्धि से प्रभावित होकर एक दिन दो जिज्ञासु उनके पास आए और उनसे याचना की कि उनका भी प्रभु से साक्षात्कार करवाऐं। सन्त ने उन्हें कुछ देर ठहरने को कहा। फिर अपने साथ एक छोटा सा डिब्बा लेकर, उन्हें लेकर वे चल पड़े। कुछ दूर पर एक झोंपड़ी के सामने जाकर रुके और उन जिज्ञासुओं को बाहर ही ठहरने का इशारा करके स्वयं भीतर चले गए। वहाँ एक कोढ़ी खाट पर पड़ा कराह रहा था। सन्त ने उसका हाल चाल पूछा फिर अपना डिब्बा खोलकर उसमें से कुछ ओषधियाँ का लेप निकालकर उसके घावों को साफ करके उन पर लगाया। पट्टी बाँधीं और जब कोढ़ी कुछ राहत महसूस करने लगा तब उससे कहा, चलो! अब ध्यान लगाते हैं। सन्त तथा कोढ़ी दोनों ध्यान लगाकर बैठ गए। कुछ देर ऐसे ही निश्चल बैठे रहे। दोनों जिज्ञासु वहाँ से देख रहे थे। फिर सन्त ने कोढ़ी से पूछा, 'क्या तुम्हें भगवद्दर्शन हुए?' उसने कहा, 'हाँ' हुए'। सन्त ने फिर पूछा कि भगवान कैसे दिख रहे थे? कोढ़ी ने उत्तर दिया, "बिल्कुल आप जैसे महाराज।'' फिर उसने सन्त से पूछा कि आपने भी तो भगवान के दर्शन किए होंगे। वह कैसे दिख रहे थे? सन्त ने कहा, "बिल्कुल तुम्हारे जैसे।'' बाहर खड़े जिज्ञासु अब रहस्य की बात समझ गए थे। सन्त और कोढ़ी दोनों एक दूसरे में परमात्मा को देख रहे थे। मर्म तो यही है कि सबमें परमात्मा का वास है। बस हम ही अपने अहंकार और अज्ञान में उसे देख नहीं पाते।

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    Offline shirsi

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    • Jai Jai Shree Sai!
    Re: SMALL STORIES
    « Reply #298 on: August 22, 2009, 05:37:06 AM »
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  • om sai ram




    The Echo of Life



    A son and his father were walking on the mountains. Suddenly, the son falls, hurts himself and screams, "AAAhhhhhhhhhhh!!!"



    To his surprise, he hears the voice repeating, somewhere in the mountain: "AAAhhhhhhhhhhh!!!"



    Curious, he yells, "Who are you?"
    He receives the answer, "Who are you?"



    Angered at the response, he screams, "Coward!"
    He receives the answer, "Coward!"



    He looks to his father and asks, "What's going on?"
    The father smiles and says, "My son, pay attention."



    And then he screams to the mountain, "I admire you!"
    The voice answers, "I admire you!"



    Again the father screams, "You are a champion!"
    The voice answers, "You are a champion!"



    The boy is surprised, but does not understand.Then the father explains: "People call this ECHO, but really this is LIFE.



    It gives you back everything you say or do. Our life is simply a reflection of our actions.If you want more love in the world, create more love in your heart.




    If you want more competence in your team, improve your competence. This relationship applies to everything, in all aspects of life; life will give you back everything you have given to it.Your life is not a coincidence. It's a reflection of you!"


    Jai jai Sai Ram!!
    ||om shree sai nathaya namaha||
    ***************************

    Offline saib

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #299 on: October 04, 2009, 01:47:05 AM »
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  • एक छोटा लड़का था , जो घोडों प्रशिक्षक का बेटा था । वह इस रैंच से उस रैंच जाकर घोडों को ट्रेन करता था । परिणामस्वरूप उस लड़के के स्कूल अक्सर बदलते रहे । जब वह सीनियर क्लास में पंहुचा तो उससे एक निबंध लिखने को कहा गया की 'वह बडा होकर क्या बनना और करना चाहता है ।

    उस रात उस लड़के ने सात पेज का एक निबंध लिखा, जिसमे उसने बताया की उसका लक्ष्य घोडो के रैंच का मालिक बनना है । उसने अपने सपने को पूरे विस्तार से लिखा और २०० एकर के रैंच की एक तस्वीर भी खीची, जिसमें उसने सभी इमारतों , अस्त्बलो और ट्रैक की तस्वीर बनाई । फिर उसने ४,००० वर्ग फुट के मकान की विस्तृत योजना खीची , जिसे वह २०० एकर रैंच पर बनाना चाहता था ।

    उसने उस प्रोजेक्ट में अपना दिल खोलकर रख दिया और अगले दिन टीचर को वह निबंध थमा दिया । दो दिन बाद उसे उसका निबंध वापस मिल गया । सामने वाले पेज पर एक बडा लाल ऍफ़ (फेल) लिखा मिला । उसके निचे लिखा था, 'क्लास के बाद मुझसे मिलो । ' सपने देखने वाला लड़का क्लास के बाद टीचर से मिलने गया । उसने पूछा, 'आपने मुझे फेल क्यो किया ?'टीचर ने कहा , 'यह एक काल्पनिक सपना है । घोडो के रैंच का मालिक बनने के लिए बहुत पैसो की जरुरत होती है । तुम खानाबदोश परिवार के हो, तुम्हारे पास संसाधन नही हैं , पैसे नही हैं । तुम यह काम किसी हालत में नही कर सकते । अगर तुम इस निबंध को दोबारा लिख दो और कोई वास्तविक लक्ष्य बना लो , तो मैं तुम्हारे ग्रेड पर विचार करने के लिए तैयार हूँ । '

    वह लड़का घर गया और उसने इस बारे में काफी देर तक सोचा । आख़िर तक विचार करने के बाद उसने टीचर को वही निबंध ज्यों का त्यों दे दिया और कहा , ' आप अपने एफ ग्रेड को कायम रखें और मैं अपने सपने को कायम रखूंगा । '

    बीस साल बाद शिक्षक को एक अंतरराष्ट्रिये घुड़दौड़ देखने का मौका मिला । दौड़ ख़त्म हुई तो एक वयक्ति ने आकर शिक्षक के पैर छुए । घुड़दौड़ की दुनिया में एक बडा नाम, यह वयक्ति वही छोटा लड़का था जिसने अपना सपना पूरा कर लिया था ।

    कभी किसी को अपना सपना चुराने न दें । अपने दिल की बात सुनें , चाहे जो भी हो । खुली आंखों से जो सपने देखा करते हैं उनके सपने पूरे होते ही है।

    om sai ram!
    Anant Koti Brahmand Nayak Raja Dhi Raj Yogi Raj, Para Brahma Shri Sachidanand Satguru Sri Sai Nath Maharaj !
    Budhihin Tanu Janike, Sumiro Pavan Kumar, Bal Budhi Vidhya Dehu Mohe, Harahu Kalesa Vikar !
    ........................  बाकी सब तो सपने है, बस साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है, साईं ही तेरे अपने है !!

     


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