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Author Topic: सगा बेटा ना हुआ तो क्या हुआ  (Read 3510 times)

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Offline JR

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विश्वनाथ सिरिपुर में रहता था ।  वह अध्यापक है और अपने पेशे की पूजा करता है ।  विघार्थियों को अच्छी तरह से पाठ सिखाता है ।  साथ ही उन्हें अनुशासन भी सिखाता है ।  इसलिये विघार्थी और उनके माता-पिता उसका बड़ा आदर करते है ।

विश्वनाथ की पत्नी लक्ष्मी बड़ी ही सुशील है ।  वह हर विषय में पति का साथ देती है ।  उसने अपने इकलौटे बेटे चैतन्य को बड़े ही लाड़-प्यार से पाला-पोसा ।

गाँव की पढ़ाई के बाद चैतन्य शहर गया, वहीं उच्च शिक्षा प्राप्त की और वहीं अपने लिये नौकरी भी ढूँढ ली ।  और वहीं माता-पिता की अनुमति के बिना ही उसने एक लड़की से शादी कर ली ।

यह जानकर विश्वनाथ के दिल को बड़ा धक्का लगा ।  उसने पत्नी से कहा, देखा चैतन्य ने हमसे बताये बिना शादी कर ली ।  अगव वह हमारी अनुमति माँगता तो हम थोडे ही मना करते ।

हमसे बताता तो अच्छा होता ।  पर उसन बताया नहीं ।  अब हम कर भी क्या सकते है ।  समय बदल गया है ।  जो हुआ, भूल जाएँ ।  उसकी पत्नी ने कहा ।

उस साल गर्मी की छुट्टियों में विश्वनाथ पत्नी समेत तीर्थ यात्रा पर गया और हरिद्वार में कुछ दिनो तक रहा ।  एक दिन भगवान के दर्शन के बाद जब वह मंदिर के सामने बैठा हुआ था, तब दस साल का एक बच्चा भीख माँगते हुए उसके सामने आया ।

बेटे, यह तो पढ़ने लिखने की उम्र है ।  भीख क्यों माँग रहे हो ।  तुम्हारे माता-पिता क्या करते है ।  विश्वनाथ ने पूछा ।

छः साल पहले एक नाव की दुर्घटना में मेरे माता-पिता चल बसे ।  हमारा परिवार गरीब है ।  मैं और मेरे अपाहिज दादा भीख माँगेंगे तभी हमारा पेट भरता है ।  लड़के ने दीन स्वर में कहा ।

विश्वनाथ ने बड़े ही प्यार से लड़के अपने पास बुलाया और पूछा, तुम्हारा क्या नाम है ।  उसने कहा, मल्लिक ।  विश्वनाथ ने पूछ तुम्हें मैं पढ़ाऊँगा तो पढ़ोगे ।  हाँ, हाँ, जरुर पढूँगा ।  तो फिर मेरे दादा का क्या होगा ।  मल्लिक ने पूछा ।

मैं उनकी देखभाल का पूरा इंतजाम करूँगा ।  कोई कमी आने नहीं दूँगा ।  पूरी जिम्मेदारी लूँगा ।  अब बताओ, तुम पढ़ोगे ।  मल्लिक ने खुशी से सिर हिलाया । 

इसके बाद विश्वनाथ ने पत्नी से भी अनुमति माँगी ।  मल्लिक उनके साथ उनके गाँव आया और अच्छी तरह से पढ़ने-लिखने लगा ।  समय तेजी से गुजरता गया ।  दस सालों में मल्लिक ने अच्छी शिक्षा पायी ।  वृद्घ विश्वनाथ का भी एक दिन निधन हो गया ।  लक्ष्मी के साथ पूरा गाँव विषाद-सागर में डूब गया ।  उनका इकलौता बेटा चैतन्य उस समय भी आ नहीं पाया, क्योंकि नौकरी से संबंधित काम पर उसे बहुत दूर के प्रांत में जाना पड़ा ।  मल्लिक ने ही विश्वनाथ की अन्त्येष्टि क्रियायें की ।

दो हफ्तों के बाद चैतन्य सिरिपुर आया ।  जब उसे मालूम हुआ कि उसके पिता ने अपनी पूरी जायदाद मल्लिक के नाम पर लिख दी तो वह क्रोधित हो उठा ।  इस विषय में माँ से लड़ने-झगड़ने बड़ी तेजी से जब वह घर में घुसा तो उसे अंदर से बातें सुनायी पड़ने लगी ।  वह दरवाजे पर ही रुक गया ।

गुरु ने मुझे शिक्षा दी ।  उस शिक्षा के बल पर कोई नौकरी ढूँढ लूँगा ।  अब तक आपने मुझे प्यार दिया, शिक्षा दी, आश्रय दिया, आपकी हर तरह से देखभाल करना मेरा कर्तव्य है, मेरी जिम्मेदारी है ।  गुरुजी ने जो जायदाद दी, उसे आपके बेटे को ही सौंप दूँगा ।  इसके लिये मुझे आपकी अनुमति चाहिये ।  मल्लिक कह रहा था ।  उसकी बातें सुनकर चैतन्य समझ गया कि मल्लिक का दिल कितना साफ है ।

वह अंदर आया और मल्लिक के हाथ पकड़ते हुए कहा, तुम भाई के समान हो ।  जन्म देने मात्र से कोई पुत्र नहीं हो जाता ।  तुमने साबित कर दिया कि जिसको पाला-पोसा है, वह सगे बेटे से कुछ कम नहीं है ।  पिता की दी जायदाद तुम ही संभालो ।  चूँकि माँ मेरे साथ शहर आने के पक्ष में नहीं है, इसीलिये सगी माँ की तरह तुम ही उसकी देखभाल करना ।

लक्ष्मी जब तक जीवित रही, तब तक मल्लिक के साथ गाँव में ही रही ।  मल्लिक ने अपना वचन निभाया ।

जिस पाठशाला मेंउसने शिक्षा प्राप्त की, उसी पाठशाला में वह अध्यापक का काम करता रहाऔर सगे बेटे से भी अधिक लक्ष्मी की देखभाल करने लगा ।  यों सबकी प्रशंसा का पात्र बना ।  सगा बेटा नहीं हुआ तो क्या हुआ ।

सबका मालिक एक - Sabka Malik Ek

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Offline marioban29

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Offline Ishvarya

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OM BHUR BHUWAH SWAHA, TAT SAVITUR VARENYAM BHARGO DEVASAYA DHEEMAHI DHIYO YO NAHA PRACHODAYAAT:
JAI SAI RAM!


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