महान पुरुषों के जीवन की घटनाएँ
दिल्ली दूर है ।
दिल्ली के सुल्तान घियासुद्दीन तुगलक की बड़ी इच्छा थी कि उसके किले के चारों ओर एक नई दीवार निर्मित की जाये । यह चौदहवीं शताब्दी की बात है, जब नगर के आस-पास इतने मजदूर उपलब्ध नहीं होते थे । फिर भी सुलतान को पूरा विश्वास था कि उसके हुक्म के नाम पर उसके अधिकारीगण मजदूरों की फौज इकट्ठी कर लेंगे । पर आह । भाग्य में कुछ और बदा था । सारे मजदूर हिन्दू और मुसलमानों के पीर एक बहुत बड़े फकीर निजामुद्दीन औलिया की ख्वाहिश पूरी करने के लिए एक झील की खुदाई करने में लगे थे ।
उन्हें हमारे काम पर लगा दो । औलिया की झाल इन्तजार कर सकती है, नाराज सुलतान ने हुक्म दिया । यह हुक्म फकीर को बताया गया और मजदूरों को भी कहा गया । दीवार इन्तजार कर सकती है, फकीर ने कहा । मजदूरों ने भी सुलतान के हुक्म की परवाह नहीं की । सुलतान इस बात से और भी नाराज था कि मजदूर औलिया का काम बिना मजदूरी लिये कर रहे थे ।
सुलतान ने औलिया को सबक सिखााने का निश्चय किया । लेकिन तभी बंगाल में, जो उसकी सल्तनत का हिस्सा था, विद्रोह हो गया और उसे उसको दबाने के लिये सेना के साथ वहाँ जाना पड़ा । दिल्ली में हुकूमत की जिम्मेदारी उसके बेटे मुहमम्द पर थी । उसे सुलतान से यह निर्देश दिया गया कि किसी भी तरह से, येन केन प्रकारेण, झील से मजदूरों को हटाकर दीवार का निर्माण पहले पूरा करे ।
मुहम्मद के दिल में फकीर के लिये बड़ी इज्जत थी । उसने झील की खुदाई के काम की प्रगति में कोई रुकावट नहीं डाली ।
सुलतान घियासुद्दीन ने बंगाल में विद्रोह को दबा दिया । साथ ही, दिल्ली की खबर भी लेता रहा । उसने फकीर से बदला लेने की कसम खा ली । वह अपने बेटे मुहम्मद पर भी आग बबूला हो रहा था ।
जब सुलतान विजयी होकर लौट रहा था, तब सबको पूरा विश्वास था कि वह फकीर को फाँसी दे देगा । और मुहम्मद को भी माफ नहीं करेगा । फकीर के शुभचिन्तकों ने उसको दिल्ली छोड़कर चले जाने की सलाह दी । फकीर सिर्फ मुस्कुरा कर रह गये ।
हे मालिक । जब क्रोध से पागल सुलतान दिल्ली पहुँचेगा तब आप की क्या दुर्गति होगी, सोचिये जरा, अनेक लोगों ने फकीर को चेतावनी दी ।
दिल्ली दूर है । फकीर ने जवाव दिया ।
इस बीच मुहम्मद राजधानी में विजयी पिता का स्वागत करने के लिये एक शानदार मंच और भड़कीला तोरण द्वार बनाने में लगा गया था । सुलतान तेजी से नगर की ओर बढ रहा था ।
कृपया करके अपनी जिन्दगी के वास्ते यहाँ से चले जाइये, हम आपसे प्रार्थना करते है । फकीर के मुरीदों ने उनसे बड़ी मिन्नत की ।
दिल्ली दूर स्त, (दिल्ली दूर है) फकीर ने बड़ी शान्ति के साथ फिर वही बात दुहरा दी । जब कोई उनसे सुलतान के डर से दिल्ली छोड़ कर चले जाने के लिये कहता तो वे यही कहकर मुस्कुरा देते ।
नगाड़ा और तुरही के जयघोष पर सुलतान ने स्वागत द्वार में प्रवेश किया और मंच की ओर प्रस्थान किया । वहाँ दो अलंकृत सिंहासन रखे हुए थे । एक सिंहासन सुल्तान के लिये था और दूसरा मुहम्मद के लिये । लेकिन सुलतान ने अपने छोटे बेटे को दूसरे सिंहासन पर बैठने का संकेत किया, जिससे यह पता चला कि मुहम्मद अब राज्य का वारिस नहीं रहा ।
तभी अचानक मंच ध्वस्त हो गया । भय से लोग चीखने-चिल्लाने लगे । धूल के एक बवण्डर ने सब को अन्धा कर दिया । जब शोर और तूफान के थम जाने पर सुलतान और उसके चहेते बेटे के शरीरों को मलबे से बाहर घसीट कर लाया गया तब वे मृत पाये गये । आह । दिल्ली सचमुच घियासुद्दीन के लिये बहूत दूर साबित हुई ।
क्या यह मात्र दुर्घटना थी । अफ्रीकी यात्री इब्न बतुता ऐसा नहीं मानता । उसकी मान्यता के अनुसार तोरण द्वार और मंच सुल्तान के लिये मौत के जाल थे ।
दिल्ली दूर स्त एक लोकप्रिय कहावत है, जिसका अर्थ होता है, वह लक्ष्य जो मिलता हुआ प्रतीत होते हुए भी अप्रत्याशित रुप से अप्राप्य रह जाता है ।[/color][/b]