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Main Section => Little Flowers of DwarkaMai => Topic started by: JR on April 02, 2007, 01:34:37 AM

Title: मुरली का जादू
Post by: JR on April 02, 2007, 01:34:37 AM
मुरली का जादू



नुटुंगा स्कूल के हेड मास्टर ने अपनी आँफिस में दीवार-घड़ी पर नजर डाली ।  एक बज चुका ।  लंच ब्रेक का समय ।  लेकिन उसने घन्टे की आवाज नहीं सुनी ।  क्या प्यून घन्टा लगाना भूल गया उसे सन्देह हुआ ।


अचानक मुरली की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ी ।  करीब उसके साथ-साथ ही घन्टे की आवाज आई ।  बच्चे रिसेस का आनन्द लेने के लिये दौड़कर बाहर आने लगे ।  कुछेक बच्चे स्कूल के कम्पाउन्ड में एक पेड के नीचे एक नौ बर्ष के लड़के को घेरकर खड़े हो गये ।  वह मुरली बेचनेवाला राधू था ।


वह हर रोज लंच के समय स्कूल में आया करता था ।  वह जैसे ही मुरली बजाना आरम्भ करता, प्यून समझ जाता कि घन्टा बजाने का समय हो गया ।  उसे घड़ी देखने की जरुरत नहीं पड़ती थी ।  यह दोनों के लिये आदत बन चुकी थी ।


राधू की मुरली के संगीत के बहुत बच्चे प्रशंसक बन गये थे ।  कुछेक तो अपना टिफिन भी उसके साथ मिलकर खाने लगे ।  कुछ अध्यापको ने इसे पसन्द नहीं किया, जैसे चौथी कक्षा केक्लास टीचर मि- पात्रो ।  उसे लगा कि मुरली बेचनेवाला अवांछनीय तत्व होने के साथ-साथ बच्चों को खराब भी कर रहा है ।  उसने हेडमास्टर को शिकायत की । 


हेड मास्टर राधू के पास गया और वहाँ एकत्र बच्चों को डाँटकर क्लास में भेज दिया ।  फिर राधू को आँखे दिखाते हुए कहा, यहाँ से चले जाओ ।  और स्कूल में फिर कभी नहीं आना ।


राधू कुछ दिनों तक स्कूल नहीं आया ।  प्यून को उसकी कमी खटकने लगी, हालांकि दोपहर का घनटा बजाने के लिये वह बहुत सावधानी बरतने लगा ।  बच्चो उदास होगये क्योंकि वे अब राधू की मुरली के संगीत से वंचित हो गये थे और हर रोज उसका साथ भी छूट गया था, यघपि वह कुछ मिनटों के लिये ही होता था ।


एक दिन, मानो कोई चमत्कार हो गया हो, मुरली की चिर परिचित धुन फिर सुनाई पड़ी ।  साथ-साथ लंच का घन्टा भी बज उठा ।  बच्चे सीधे राधू की तरफ दौड़े ।  आज उसकी बहुत मुरलियाँ बिक गई ।  वह बच्चों को मुरली बजाना सिखा भी रहा था ।


मि. पात्रों को मुरलीवाले की वापसी अच्छी नहीं लगी ।  वह हेड मास्टर को बुला कर ले आया ।  उसे आते देखकर बच्चों की भीड़े तितर-बितर हो गई ।  कुछ बच्चे अब भी राधू के पास मंडरा रहे थे ।  हेड मास्टर गुस्से से तमतमाता हुआ सीधा राधू के पास गया और बिना कुछ बोले उसके गाल पर कसकर एक तमाचा जड़ दिया ।  वह कुछ क्षणों के लिये हक्का-वक्का हो गया ।  उसकी आँखों से आँसुओं की गंगा-जमुना बह पड़ी ।


हेड मास्टर घबरा गया ।  क्या उसने उसे ज्यादा कठोर सजा दे दी ।  उसने अपना पर्स निकाल ाऔर राधू को ओर एक नोट बढ़ा दिया ।  किन्तु उसने विनयपूर्वक अस्वीकार कर दिया ।  सर, मैं कभी इस स्कूल में तीसरी कक्षा का छात्र था ।  एक सड़क दुर्घटना में मेरे माता-पिता की अचानक मृत्यु के कारण मेरी पढ़ाई रुक गई क्योंकि अपने माता पिता की मैं एकमात्र सन्तान था, और मेरे परिवार में मेरी देखभाल करने वाला कोई और नहीं था । मुझे गरीबी का सामना करना पड़ा, इसलिये मैंने मुरली बेचने का फैसला किया ।  सर, मैं अपने स्कूल को किसी तरह भूल नहीं पा रहा हूँ और यहाँ के बच्चो के साथ दोस्ती करना अच्छा लगता है ।  इसी आकर्षण के कारण मैं यहाँ खिंचा चला आता हूँ ।  मैं स्कूल से दूर कैसे रह सकता हूँ ।  किन्तु यदि आपको ऐसा महसूस होता हो कि मैं आपके लिये एक समस्या हूँ तो मैं चला जाऊँगा ।  हेड मास्टर राधू की दुखभरी कहानी सुनकर अबाक रह गया ।  उसने मि. पात्रों की ओर देखा ।  वह भी स्तंभित था ।


मुझे खेद है मेरे बच्चे ।  मुझे क्रोध नहीं करना चाहिये था ।  मत सोचो कि तुम अनाथ हो ।  हमलोग तुम्हारी देखभाल करेंगे ।  तुम्हें अपनी पढाई जारी रखनी चाहिये ।  कल स्कूल में आ जाना ।  तुम्हें चौथी कक्षा में दाखिला मिल जायेगा ।  हेड मास्टर ने सान्तवना देते हुए प्यार से राधू से कहा ।


दूसरे दिन प्रातः असेम्वली के समय हेड मास्टर को राधू के पाकेट से एक मुरली झाँकती हुई दिखाई पड़ी ।  उसने राधू से असेम्बली आरम्भ होने से पहले मुरली पर एक प्रार्थना की धुन बजाने के लिये कहा ।  वास्तव में, तब से यह दैनिक कार्यक्रम का हिस्सा बन गया ।