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Main Section => Little Flowers of DwarkaMai => Topic started by: JR on April 08, 2007, 02:41:36 AM

Title: भागीरथ और गंगा
Post by: JR on April 08, 2007, 02:41:36 AM
भागीरथ और गंगा

सूर्यवंशी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हिमालय पर तपस्या कर रहे थे ।  वे गंगा को धरती पर लाना चाहते थे ।  उनके पूर्वज कपिल मुनि के शाप से भस्म हो गये ।  गंगा ही उनका उद्वार कर सकती थी ।  भागीरथ अन्न जल छोड़कर तपस्या कर रहे थे ।

गंगा उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हो गई ।  भागीरथ ने धीरे स्वर में गंगा की आवाज सुनी ।  महाराज मैं आपकी इच्छानुसार धरती पर आने के लिये तैयार हूँ, लेकिन मेरी तेज धारा को धरती पर रोकेगा कौन ।  अगर वह रोकी न गई तो धरती के स्तरों को तोड़ती हुई पाताल लोक में चली जायेगी ।

भागीरथ ने उपाय पूछा तो गंगा ने कहा, महाराज भागीरथ, मेरी प्रचन्ड धारा को सिर्फ शिव रोक सकते है ।  यदि वे अपने सिर पर मेरी धारा को रोकने के लिये मान जाये तो मैं पृथ्वी पर आ सकती हूँ ।

भागीरथ शिव की अराधना में लग गये ।  तपस्या से प्रसन्न हुए शिव गंगा की धारा को सिर पर रोकने के लिये तैयार हो गये ।

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के दशहरे के दिन जटा खोलकर, कमर पर हाथ रख कर खड़े हुए शिव अपलक नेत्रों से ऊपर आकाश की ओर देखने लगे ।  गंगा की धार हर हर करती हुई स्वर्ग से शिव के मस्तक पर गिरने लगी ।  जल की एक भी बूँद पृथ्वी पर नहीं गिर रही थी ।  सारा पानी जटाओं में समा रहा था ।

भागीरथ के प्रार्थना करने पर शिव ने एक जटा निचोड़ कर गंगा के जल को धरती पर गिराया ।  शिव की जटाओं से निकलने के कारण गंगा का नाम जटाशंकरी पड़ गया ।

गंगा के मार्ग में जहृु ऋषि की कुटिया आयी तो धारा ने उसे बहा दिया ।  क्रोधित हुए मुनि ने योग शक्ति से धारा को रोक दिया ।  भागीरथ ने प्रार्थना की तो ऋषि ने गंगा को मुक्त कर दिया ।  अब गंगा का नाम जाहृनवी हो गया ।

कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचकर गंगा ने भागीरथ के महाराज सगर आदि पूर्वजों का उद्वार किया ।  वहाँ से गंगा बंगाल की खाड़ी में समाविष्ट हुई, उसे आज गंगासागर कहते है । 
 

शिक्षा – परिश्रम और साधना से कठिन से कठिन कार्य भी सम्भव है ।