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बुरी संगति
रामदास का एक ही पुत्र था उसका नाम रवि था । रामदास रवि को बहुत प्यार करता था वह उसको सुन्दर कपड़े सिलवाकर देता था । कहानियों की अच्छी पुस्तकें लाकर देता था । बाजार से उसके लिये अच्छे ताजे फल लाकर देता था ।
रवि की माँ भी अपने एकमात्र पुत्र को बहुत प्यार करती थी । वह उसे माखन मलाई खिलाकर प्रसन्न रखती थी । परन्तु रवि बुरी संगत में पड़ गया । वह बुरे लड़कों के साथ बाजार में चाट पकौडी खाने लगा और जुआ भी खेलने लगा ।
माता पिता ने बहुत समझाया मगर रवि पर उनकी बातों का कुछ असर नहीं हुआ । तब पिता ने उसे समझाने का एक उपाय सोचा ।
एक दिन रामदास ने रवि को एक पाँच रुपये का नोट दिया । रामदास ने कहा, बेटा ये लो पाँच रुपये और बाजार से पाँच रुपये के सेब मोल ले आओ । रवि बाजार जाकर पाँच रुपये में सात सेब ले आया । सेब ताजा और बढ़िया थे । तब पिता ने पचास रुपये और देकर कहा, जाओ बाजार से एक सड़ा गला सेब खरीद लाओ ।
रवि एक सड़ा सा सेब खरीद लाया । परन्तु वह चकित था कि पिताजी ने सड़ा सा सेब क्यों मँगवाया । पिता की आज्ञा से रवि ने सब सेब एक टोकरी में रख दिये । पिता के कहने से रवि ने सड़ा सा सेब सब सेबों के बीच में रख दिया । पिता ने कहा कल सुबह हम ये खायेंगे ।
दूसरे दिन रामदास ने रवि से कहा, बेटा हम लोग भोजन कर चुके है जाओ अब हम सब सेब खायेंगे सेब ले आओ ।
रवि सेबों की टोकरी ले आया । वह सेबों की टोकरी देखकर घबरा गया । तब रवि के पिताजी ने कहा बेटा, देखा तुमने बुरी संगति से कितनी हानि होती है । एक सड़े हुए सेब की संगति से अच्छे बढ़िया सेब भी सड़ गये ।
रवि पिताजी का संकेत समझ गया और उस दिन के बाद से किसी ने भी रवि को बुरे लड़कों के साथ नहीं देखा ।
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जय सांई राम।।।
कर्मयोग ही प्रभु की सबसे बड़ी भक्ति
जीवन में अपना कर्तव्य निभाते हुए कर्मयोग के मार्ग पर चलना ही प्रभु की सबसे बड़ी भक्ति है।
संसार में अगर हर मनुष्य अपना कर्तव्य ठीक ढंग से निभाए तो न केवल उसके जीवन का उद्धार होगा, बल्कि बहुत सी मुश्किलें अपने आप समाप्त हो जाएंगी। जीवन में सत्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सत्य के ज्ञान बिना हर ज्ञान बेकार है, ज्ञान की कोई सीमा नहीं, ब्रह्म ज्ञान, काल ज्ञान, ईश्वरीय ज्ञान, भूगोल ज्ञान, गणित ज्ञान और विज्ञान ज्ञान अधिक प्रचलित है लेकिन कर्मयोग के बिना किसी ज्ञान का कोई महत्व नहीं रह जाता।
संसार में हर आदमी अपने-अपने ज्ञान से जीवन का निर्वाह करता है लेकिन कई बार ज्ञानी पुरुष को भी जीवन में शांति नहीं मिल पाती जिसका मुख्य कारण सत्य से दूरी है। उन्होंने कहा कि सत्य को अपने जीवन में उतारना मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा लाभकारी है क्योंकि इससे सफलता तो मिलेगी ही लेकिन साथ ही साथ आत्मिक शांति भी प्राप्त होगी। समय बहुत अमूल्य है और इसे व्यर्थ करना प्रभु का अपमान है क्योंकि हर एक को जीवन में कोई न कोई कर्तव्य देकर ईश्वर ने दुनिया में भेजा है और जीव को अपना कर्तव्य जरूर निभाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्य के मार्ग पर चलने वाले इंसान को आरंभ में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है लेकिन बिना हिम्मत हारे मनुष्य को अपना रास्ता नहीं बदलना चाहिए क्योंकि कष्ट देकर प्रभु अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं।
निंदा जीवित मृत्यु के समान है क्योंकि दूसरों की निंदा करने वाला सबसे पहले अपनी निंदा करता है और पतन की ओर अग्रसर हो जाता है। निंदा करने वाले मनुष्य को न तो समाज ही पसंद करता है और न ही उसे प्रभु के चरणों में स्थान प्राप्त हो पाता है। उन्होंने कहा कि दूसरे के प्रति मन में प्रेम का भाव रखें बिना हर तरह की भक्ति व तपस्या मात्र पाखंड के समान है। दूसरे के प्रति मन में ईष्र्या रखने की बजाए अगर मेहनत करके मनुष्य तरक्की का मार्ग अपनाए तो उसके अपने विकास के साथ-साथ समाज व देश का भी विकास होगा। दूसरे के दुख में झूठी सांत्वना तो सभी दे देते हैं लेकिन सच्चा इंसान वही है जो गिरते हुए को सहारा देकर मंजिल पाने में मदद करे।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
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जय सांई राम।।।
स्वच्छ जीवन व शुद्ध विचार ही मनुष्य को उन्नति की ओर ले जाते हैं। जीवन में तमोगुण, रजोगुण का वर्चस्व आसुरी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देता है।
मनुष्य जैसा अन्न खाता है वैसे ही उसके मन में विचार उत्पन्न होते हैं। हमें शुद्ध व शाकाहारी खान-पान पर ध्यान देना होगा तभी जीवन स्वच्छ बनेगा। स्वच्छ जीवन ही मनुष्य को उन्नति की ओर ले जाता है। सद्गुण मरता नहीं है कुछ समय के लिए दब जरूर जाता है लेकिन सद्गुण का प्रभाव मनुष्य जीवन पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है जो समय-समय पर मनुष्य को बुराईयों से बचाता है। श्री राम अयोध्या के राजमहल में जन्में लेकिन महल की मानसिकता उन्हें रोक नहीं पाई और वनवासी बनकर भारत को स्वच्छ एवं निष्कंटक बनाया और आसुरी वृत्तियों का नाश किया। ठीक इसी प्रकार शुद्ध विचार मनुष्य के अंदर से तमोगुण व रजोगुण का नाश करते हैं और मनुष्य को प्रभु से जोड़ने का काम करते हैं। रामचरित मानस को सुनकर जीवन को भक्ति मय बनाना चाहिए।
रामकथा सुनकर ही पार्वती, गरुड़ को ज्ञान हुआ कि राम ब्रह्म है और मानव को शुद्ध, सात्विक एवं देश प्रेमी बनाने के लिए मनुज के रूप में अवतार लिया। उन्होंने मनुष्य को शुद्ध कर्म करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि मनुष्य जो भी कार्य करता है उसका फल उसे इसी जीवन में भोगना पड़ता है। अगर मनुष्य अच्छी संगत में रहकर अच्छे विचार व संस्कार ग्रहण करता है तो वही मनुष्य आगे चलकर जीवन में तरक्की का मार्ग तो प्रशस्त करता ही है साथ ही समाज में व्याप्त बुराईयों का डटकर विरोध भी करता है।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।
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जय सांई राम।।।
एक घड़ी ,आधी घड़ी, आधी में पुनि आधि,
तुलसी संगति साधु की हरै कोटि अपराध।
अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई
ॐ सांई राम।।।