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Author Topic: फकीर की तड़प देखकर भगवान पिघल गए  (Read 10445 times)

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Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू


शैविजी जय साई राम

जो बात आप मुझे कह रही है शायद आपने गौर नहीं किया की मै उसी बात को लगातार कहता आ रहा हूँ की इस फोरम मे इस विषय पर
बात नहीं करना चाहिये . आप केवल  क्रोधावश मेरी बातो को   न समझते हुये मुझे  लगातार सम्पूर्ण विवादों  का दोषी ठहरा रही है या
प्रयास कर रही है.
मैं अनुपमजी को इस विषय को यहाँ ही समाप्त करने की दरख्वास कर चूका हूँ . क्योकि वो नहीं मान रहे थे इसलिए मैंने उनको निवेदन
किया की आप अगर इस विषय पर बात करना चहेते है तो मेरे मेल पर कीजियेगा ,इस फोरम मे नहीं .
आप बताइए कहा मेने गलती की है ? क्या अनुपमजी का  direction बदलना अपराध था मेरा ? मैंने केवल एक गलती की है वो आपके
एक विचार पर असमर्थता दिखा के . फोरम एक वो स्थान है जहा ये तो संभव नहीं है की सभी के विचार एक सामान ही होंगे . विचारो
के अलग -अलग होना भी सवाभिक है .

मुझे खुद को अपराधी बोध मत कराइए. छमा चाहता हूँ भविष्य मे आपके विचारो पर असमर्थतता नहीं दिखने की भूल करूँगा .


Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
क्षमा की याचना करता हूँ
« Reply #16 on: July 23, 2011, 05:06:28 PM »
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  • साई राम आदरनिये विशेषजी

    मैंने अनजाने मे एक बड़ा सा गुनाह कर दिया है . बाबा के वचनों को भूलकर किसी का दिल
    दुखाया है . मैं सबसे पहले अपना सर उनके चरणों मे रखकर क्षमा की याचना करता हूँ फिर
    बाबा से मुझे क्षमा करने की गुहार लगता हूँ . सम्पूर्ण रूप से मे अंजान था .न मुझे कुछ पता
    था पर फिर भी गलती तो गलती ही कहलाती है और उसका प्राश्चित भी क्षमा मांग के ही किया
    जा सकता है. मै इस फोरम के माध्यम से क्षमा की याचना करता हूँ .वो अगर इस फोरम मे
    आये तो आवश्य मेरी इस याचना पे ध्यान दे .

    आज बाबा ने एक नया ज्ञान दिया की अति भावुकता भी कभी-कभी दूसरो और अपने लिये
    बहुत ही दुखदाई हो जाती है.

    मेरी मनः स्थिति अभी आशान्त है इसलिए मै केवल आदरनिये विशेष से क्षमा की याचना फिर से
    करता हूँ. उनका क्षमा करना मेरे लिये बाबा ने मुझे क्षमा किया समझूंगा .

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    साईं राम

    माँ -द्वारकामाई के चरणों मे प्रणाम

    सर्वप्रथम मै आदरणीय श्री .............जी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ कि उन्होंने बहुत बड़ा हृदय रखते हए
    मुझे माफ़ी के काबिल समझा और मुझे क्षमा करदिया . मैं अब जाके बहुत ही शांति का अनुभव कर रहा हूँ .

    बाबा का भी लाख-लाख शुक्रिया अदा करता हूँ कि उनके क्षमा करते ही बाबा ने भी क्षमा अवश्य कर दिया है ,ऐसा मुझे
    महसूस कर रहा हूँ वरना इतनी मानसिक शांति मुझे नहीं रहती.

    बाबा ने अपनी लीला से मुझे इस संसार का सबसे बेहतरीन उपहार भी दिया है जिसके लिये मैं बाबा का आभारी हूँ.
    एक नया ज्ञान भी प्राप्त हुआ कि भावनाओ मे बहकर भावावेश मे किया या बोला गया कार्य या सब्द न दुसरे के लिया
    अच्छा होता है न ही अपने लिये. पीड़ा का एहसास दोनों तरफ ही रहता है.

    साई राम



    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू



    साई राम

    बहुत -बहुत शुक्रिया , आपके आशीर्वाद को  तहें दिल से ग्रहण करता हूँ .

    Offline Anupam

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    SAIRAM Paratapji

    Jaane Anjaane agar kisee kaa dil dukha to uss Vyakti Visesh se main Heartfelt Maafi maangta hoon. Pratapji mere pass naa to unkaa ID hai naa mujhe pata hain wo sajjan kaun hain Atah kripya meri taraf se bhee unse Maafi maang lijiyega

    Aapse interact karke bahut accha laga lekin mujhe lagta hai kee jab kisee kee mental peace, yaa forum kee Garima (dubbed Krantikari Vichar??) disturb ho to main isse BABA kaa ishara samajhta hoon kee pareshani naa paida karoon. Lekin mujhe aapse Baat karke bahut accha laga. Thanks a lot to you. Aapka tahe dil se shukriya hai

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    ॐ  श्री  साईनाथाय: नमः :

    क्या है  सबसे बड़ा त्याग या पूर्ण आत्म बलिदान  ?

    श्रोत : अंग्रेजी से हिंदी मे अनुवादित

    निवेदन  : अंग्रेजी से हिंदी मे अनुवादित करते वक्त ये सम्भव है की मुझसे आपार गलतियाँ  हुई होंगी ,इसलिए पूर्व ही माफ़ी की दरखास्त करता हूँ .

    पूर्ण आत्म बलिदान  क्या है इसे एक लघु  प्रेणनादायक  कहानी के माध्यम से दर्शाने की कोशिस की जा रही है .............................. ......

    महाभारत के युद्ध के समाप्ति के पश्च्यात पाण्डवो ने एक विशाल समारोह  का  आयोजन किया और  अपने  महान त्याग को दर्शाने का प्रदर्शन भी किया एवंग गरीबों को बहुत ही कीमती से कीमती उपहार भेट किये. सभी व्यक्तिओ ने बहुत ही विश्मयता  के साथ् पाण्डवो की  महानता और  समृद्धि की प्रशंसा की और कहा की ऐसा न कभी संसार मे हुआ है न ही कभी होगा. लेकिल समारोह समाप्ति के कुछ  क्षण पहले एक छोटा सा नेवला आया जिसका आधा शारीर का हिस्सा सोने का था ओर आधा हिस्सा भुरा था। वह् समारोह स्थल मे जमीन पेर  एक तरफ़् से दुसरी तरफ़् लोटने मे लगा हुआ था.

    वो विस्मय से पाण्डवो को केहने लग की आप सबलोग सबसे बडे मिथ्यावादी हो,यह कोइ त्याग य बलिदान थोडे ही  है ।

    पाण्डवो ने आस्चर्य्चकित हो के कहा की क्या केहते हो । तुमेः क्या मालुम है की कितने बेसकिमति हिरे,मोती,सोने,चांदी ओर न जाने कितनी अमूल्य चिज़े यहा गरिबो को दान मे दी गयी हैं । सभी गरिब् बहुत ही खुस हैं ओर सभी बहुत धन्वान् बन गये हैं। ये दुनिय का सबसे बडा ओर सबसे सफ़ल् त्याग का महा समारोह है।

    नेवला मानने को तैयार नही था ओर पाण्डव उसको मनवाने की बहुत ही कोशिस कर रहे थे। आखिर पाण्डव ने इस कथन का  प्रमाण देने को कहा।

    तब् नेवले ने अपने कथन की पुष्टि एक छोटी सी कहिनी बतलाकार पाण्डवो को समझाई.................................

    एक  गांव  मे एक निर्धन गरिब् ब्रह्मन् अपनी पत्नी,बेटे ओर बहु के साथ् रेह्ता था। वह् उपदेश ओर शिक्षा बाटके जो धन संग्रह करता था उसी से उसके परिवार् का भरन -पोषन हो रहा था . अभग्यवस लगातार तीन वर्षो तक उस गांव  मे  आकाल पडा ओर गरिब् ब्रह्मन् की हालत पेहले से भी अधिक खराब् हो गयी । लगातार  कई दिनो तक परिवार् भूखे  रेहने के बाद गरिब् ब्रह्मन् कुछ जौ का आटा घर लाने मे सक्षम हो गया ओर उसने चार सामान -सामान हिस्सो मे उसको बाट दिया ओर सबको उनका हिस्सा दे दिया । सभी ने उससे भोजन बनाया ओर जैसे ही वो भोजन ग्रेहन करने के लिये जानेवाले ही थे की दरवाजे पर किसी को दस्तक देते सुना ।

    पिता  ने दरवाजा खोला ओर पाया की एक व्यक्ति बहुत ही थका हारा हुआ सामने खडा हुआ है । हमारे भारत देश मे आथिति को भगवान  समझा जाता  है। इसलिये ब्रह्मन् ने बडे ही आदर के साथ् अन्दर आके आसन ग्रहन करने को कहा । आथिति घर से भूखा  लौट जाये ये पाप होगा सोचकर ब्रह्मन् ने आपने हिस्से का भोजन आथिति को खाने को दिया । आथिति ने शिग्रःता से भोजन खतम कर दिया ओर कहने लगा कि महोदय आपने तो मुज्हे मार ही दिया । मै दस दिनो से भूखा हु ओर इतन कं भोजन देकर आपने मेरी भूख ओर बडा दी। ब्रह्मन् कि पत्नी ने कहा कि आप मेरा हिस्सा आथिति  को भोजन के लिये देदे । ब्रह्मन् ने कहा की एसा नही हो सकता। पत्नी ने अपने पति को कहा की गृहस्वामियों होने के नाते इस गरीब को भोजन देना हमारा कर्तव् है और आपकी पत्नी होने के नाते जा मै देख रही हूँ कि आपना भोजन देने के बाद आपके पास और कुछ देने को नहीं है तो पत्नी का कर्तव् निभाते हुये मै अपना भोजन इस गरीब को देती हूँ . अथिति भोजन समाप्त करने के बाद फिर से कहता है कि इससे मेरी भूख और भी बढ गई .तब बेटे ने अपने हिस्से का भोजन देते हुये
    अथिति को कहा कि आप ये ग्रहण करें क्योकि बेटे का फ़र्ज़ होता है कि पिता के कर्तवो का निर्वाह करे. अतिथि ने उसे भी  खाने के पश्च्यात कहा कि मुझे अभी भी संतुष्टि नहीं मिली . बहू ने  भी अपना हिस्सा का भोजन भी अथिति को दे दिया. भोजन करने के बाद अतिथि बहुत ही प्रशन्य हुआ और ढेरो आशीर्वाद देकर चला गया .

    उसी रात भूख के आग्नि ने उन चारो को निगल लिया . भूख के कारण उन सबकी  मौत हो गई . कुछ जौ के दाने जमीन मे पड़े हुये थे और जैसे ही मैंने उन दानो के उपर लोटना शुरू किया. मेरा आधा सरीर सोने का हो गया ,जो आपलोग देख रहे हो . उसके बाद से मैं सम्पूर्ण संसार मे घूमता फिर रहा कि मुझे कोई ऐसा ही त्याग (बलिदान) देखनो को मिले जिससे मेरा बचा हुआ आधा सरीर भी सोने का हो सके . पांडवो की और देखते हुये उसने कहा की इसी वजह से मैं कह रहा था की ये कोई त्याग नहीं है.




    ॐ साई राम   ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम     ॐ साई राम

    « Last Edit: July 24, 2011, 12:46:51 PM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    SAIRAM Paratapji

    Jaane Anjaane agar kisee kaa dil dukha to uss Vyakti Visesh se main Heartfelt Maafi maangta hoon. Pratapji mere pass naa to unkaa ID hai naa mujhe pata hain wo sajjan kaun hain Atah kripya meri taraf se bhee unse Maafi maang lijiyega

    Aapse interact karke bahut accha laga lekin mujhe lagta hai kee jab kisee kee mental peace, yaa forum kee Garima (dubbed Krantikari Vichar??) disturb ho to main isse BABA kaa ishara samajhta hoon kee pareshani naa paida karoon. Lekin mujhe aapse Baat karke bahut accha laga. Thanks a lot to you. Aapka tahe dil se shukriya hai

    अनुपमजी जय साई राम

    मुझे भी बहुत ही अच्छा लगता है आपसे बात करके . अनुपमजी ये बाबा का संकेत अवश्य है की हमलोग अपने पे नियंत्रण रखे पर ये नहीं है की फोरम को ही त्याग दे. त्यागने की बात से याद आया की मैंने आज ही एक अंग्रेजी मे कही गई कहानी को हिंदी मे अनुवाद करके फोरम मे पोस्ट किया है ,इस त्याग और बलिदान पर ही . अनुपमजी हर चीज़ का एक समय निर्धारित है और वो तबही ही फलीभूत होता है . रही बात फोरम की शांति और गरिमा को बनाये रखने की तो मुझे नहीं लगता की आपने कोई ऐसा कार्य किया है जिससे फोरम की कोई  हानि पहुची हो .हां मुझसे और आपसे केवल एक ही गुना हुआ है की इन विचारो पर बात करते वक़्त भावावेश मे अन्य सदशो को अपने सब्दो से दुखी किया.मेरा आपसे अनुरोध है की फोरम छोड़ने की बात तो सोचिये भी नहीं. मैंने एक दिन आपसे कहा था की किनारे पर नाव तो सभी चला लेते है पर बहुत कम होते है जो नाव को तूफान मे बीच मजधार मे ले जाते है . आपकी बातो से नहीं लगता की आप किनारे पर नाव चलने वालो मेसे हो.

    अनुपमजी पराधीन भारत और स्वाधीन भारत की परिस्थियाँ ,सोच ,लोगो की समाज और देश के प्रति निष्ठा ,निस्वाथ सेवा और त्याग की भावना इत्यादि सबका अभी भी क्या एक सामान ही है .नहीं सम्पूर्ण रूप से बदल चुकी है . "आपना काम निकलता तो भाड़ मे जाये जनता " वाला सिधांत है. हर तरफ बलि के बकरे की तलाश है . ये नेता, देश के दलाल ,क्रन्तिकारी के ठेकेदार या पैसो के पिसाच  सबका मकसद हम और आप जैसे बकरे की बलि चढ़ाके आपना मकसद पूरा करना होता है नाकि देश का. इनको पता है ये जनता है भेड़ की तरह ही है ,एक जिधर चलेगी सब उसी तरफ चलने लगेंगी . क्यों अपने को बकरा बना रहे है हम . बलि पे चढ़ जायेगे तो इनका ही फायदा होगा न की देश का .केवल नुकसान तो हमारे घरवालो का ही होगा. माँ को बेटा खोना होगा ,बहन को भाई ,पत्नी को पति और बच्चो को पिता . कोई नहीं याद रखता किसी को . एक बात और भी सोचने की है की क्या हमारा इनके प्रति भी  कोई कर्तव् नहीं बनता है.जब हमारे जिन्दा रहते हुये भी कोई अपने को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं महसूस करता है तो न रहने पर क्या होगा . आपने देखा होगा  चौहराए पे  बड़े -बड़े कर्न्तिकरियो की प्रतिमा लगी  हुई है और केवल एक दिन छोड़कर साल भर कौए,कबूतर और  अन्य पंछी उसपर बीट करते रहते हैं. जन्मदिन या मरणदिन के  दिन कुछ देर पहले सफाई होती है ,नेता आते है फूल-माला गले मे डालते है ,एक दो सुंदर सुंदर सी बाते बोले है ,तालिया बजती है और सब घर को .एक साल के लिये छुट्टी  भालू का जैसे नाच हुआ तालिया बजी और तमाशा ख़तम .

    अनुपमजी यहाँ रहकर भी बहुत से सामाजिक कार्य आप कर सकते है . अगर सही मे आप जागरूक है और चहेते है की कुछ सामाजिक कार्य करे तो जहा चाह वहा राह . आप क्या समझते है की आध्यात्मिक जगत मे कोई गड़बड़ी नहीं है . बहुत सारी खामिया है जो इंसानों द्वारा रची गई है नाकि भगवान के द्वारा . एक जागरूक इंसान जो आप है क्यों नहीं यही से शरू करते है अपना कार्य.मैं आपको सहयोग करूँगा.अकेले चले थे मंजिल को,लोग आते गये कारवां बनता गया . क्या न आप इसको शुरू करे और धीरे धीरे सम्पूर्ण समाज मे पहलाये. आध्यामिक समाज भी हमारे समाज का एक विशेष अंग है.

    अंत मे केवल यही कहूँगा की किसी के कहने पर कोई चीज़ न आपने जाती है न ही छोड़ी जाती है . आप की सोच ही आपको आपनाने या छोड़ने की इजाज़ाद देती है .  फोरम मे रहना न रहना ये आप की अपनी सोच है  पर एक बात तो अवश्य कहूँगा अनुपमजी हरिबंस राइ बच्चन की एक लाइन याद आ गई .

    "मन का हुआ तो अच्छा ,अगर नहीं हुआ तो और भी अच्छा"

    Offline ShAivI

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    OM SAI RAM!

    Thank you very much for sharing such an inspirational story with us Pratap ji .

    निवेदन  : अंग्रेजी से हिंदी मे अनुवादित करते वक्त ये सम्भव है की मुझसे आपार गलतियाँ  हुई होंगी ,इसलिए पूर्व ही माफ़ी की दरखास्त करता हूँ .

    मेरे बेटे से जब भी में मेरे हिंदी भाषा में मेरी गलतियों की बात करती थी वोह हमेशा कहा करता था की  "माँ शब्दों को  नहीं भावना को देखो" अतः आपके लिए भी यह उत्तर है प्रताप जी.

    Be Blessed!
    Love & Light!
    Om Sai Ram! :)




    ॐ  श्री  साईनाथाय: नमः :

    क्या है  सबसे बड़ा त्याग या पूर्ण आत्म बलिदान  ?

    श्रोत : अंग्रेजी से हिंदी मे अनुवादित

    निवेदन  : अंग्रेजी से हिंदी मे अनुवादित करते वक्त ये सम्भव है की मुझसे आपार गलतियाँ  हुई होंगी ,इसलिए पूर्व ही माफ़ी की दरखास्त करता हूँ .

    पूर्ण आत्म बलिदान  क्या है इसे एक लघु  प्रेणनादायक  कहानी के माध्यम से दर्शाने की कोशिस की जा रही है .............................. ......

    महाभारत के युद्ध के समाप्ति के पश्च्यात पाण्डवो ने एक विशाल समारोह  का  आयोजन किया और  अपने  महान त्याग को दर्शाने का प्रदर्शन भी किया एवंग गरीबों को बहुत ही कीमती से कीमती उपहार भेट किये. सभी व्यक्तिओ ने बहुत ही विश्मयता  के साथ् पाण्डवो की  महानता और  समृद्धि की प्रशंसा की और कहा की ऐसा न कभी संसार मे हुआ है न ही कभी होगा. लेकिल समारोह समाप्ति के कुछ  क्षण पहले एक छोटा सा नेवला आया जिसका आधा शारीर का हिस्सा सोने का था ओर आधा हिस्सा भुरा था। वह् समारोह स्थल मे जमीन पेर  एक तरफ़् से दुसरी तरफ़् लोटने मे लगा हुआ था.

    वो विस्मय से पाण्डवो को केहने लग की आप सबलोग सबसे बडे मिथ्यावादी हो,यह कोइ त्याग य बलिदान थोडे ही  है ।

    पाण्डवो ने आस्चर्य्चकित हो के कहा की क्या केहते हो । तुमेः क्या मालुम है की कितने बेसकिमति हिरे,मोती,सोने,चांदी ओर न जाने कितनी अमूल्य चिज़े यहा गरिबो को दान मे दी गयी हैं । सभी गरिब् बहुत ही खुस हैं ओर सभी बहुत धन्वान् बन गये हैं। ये दुनिय का सबसे बडा ओर सबसे सफ़ल् त्याग का महा समारोह है।

    नेवला मानने को तैयार नही था ओर पाण्डव उसको मनवाने की बहुत ही कोशिस कर रहे थे। आखिर पाण्डव ने इस कथन का  प्रमाण देने को कहा।

    तब् नेवले ने अपने कथन की पुष्टि एक छोटी सी कहिनी बतलाकार पाण्डवो को समझाई.................................

    एक  गांव  मे एक निर्धन गरिब् ब्रह्मन् अपनी पत्नी,बेटे ओर बहु के साथ् रेह्ता था। वह् उपदेश ओर शिक्षा बाटके जो धन संग्रह करता था उसी से उसके परिवार् का भरन -पोषन हो रहा था . अभग्यवस लगातार तीन वर्षो तक उस गांव  मे  आकाल पडा ओर गरिब् ब्रह्मन् की हालत पेहले से भी अधिक खराब् हो गयी । लगातार  कई दिनो तक परिवार् भूखे  रेहने के बाद गरिब् ब्रह्मन् कुछ जौ का आटा घर लाने मे सक्षम हो गया ओर उसने चार सामान -सामान हिस्सो मे उसको बाट दिया ओर सबको उनका हिस्सा दे दिया । सभी ने उससे भोजन बनाया ओर जैसे ही वो भोजन ग्रेहन करने के लिये जानेवाले ही थे की दरवाजे पर किसी को दस्तक देते सुना ।

    पिता  ने दरवाजा खोला ओर पाया की एक व्यक्ति बहुत ही थका हारा हुआ सामने खडा हुआ है । हमारे भारत देश मे आथिति को भगवान  समझा जाता  है। इसलिये ब्रह्मन् ने बडे ही आदर के साथ् अन्दर आके आसन ग्रहन करने को कहा । आथिति घर से भूखा  लौट जाये ये पाप होगा सोचकर ब्रह्मन् ने आपने हिस्से का भोजन आथिति को खाने को दिया । आथिति ने शिग्रःता से भोजन खतम कर दिया ओर कहने लगा कि महोदय आपने तो मुज्हे मार ही दिया । मै दस दिनो से भूखा हु ओर इतन कं भोजन देकर आपने मेरी भूख ओर बडा दी। ब्रह्मन् कि पत्नी ने कहा कि आप मेरा हिस्सा आथिति  को भोजन के लिये देदे । ब्रह्मन् ने कहा की एसा नही हो सकता। पत्नी ने अपने पति को कहा की गृहस्वामियों होने के नाते इस गरीब को भोजन देना हमारा कर्तव् है और आपकी पत्नी होने के नाते जा मै देख रही हूँ कि आपना भोजन देने के बाद आपके पास और कुछ देने को नहीं है तो पत्नी का कर्तव् निभाते हुये मै अपना भोजन इस गरीब को देती हूँ . अथिति भोजन समाप्त करने के बाद फिर से कहता है कि इससे मेरी भूख और भी बढ गई .तब बेटे ने अपने हिस्से का भोजन देते हुये
    अथिति को कहा कि आप ये ग्रहण करें क्योकि बेटे का फ़र्ज़ होता है कि पिता के कर्तवो का निर्वाह करे. अतिथि ने उसे भी  खाने के पश्च्यात कहा कि मुझे अभी भी संतुष्टि नहीं मिली . बहू ने  भी अपना हिस्सा का भोजन भी अथिति को दे दिया. भोजन करने के बाद अतिथि बहुत ही प्रशन्य हुआ और ढेरो आशीर्वाद देकर चला गया .

    उसी रात भूख के आग्नि ने उन चारो को निगल लिया . भूख के कारण उन सबकी  मौत हो गई . कुछ जौ के दाने जमीन मे पड़े हुये थे और जैसे ही मैंने उन दानो के उपर लोटना शुरू किया. मेरा आधा सरीर सोने का हो गया ,जो आपलोग देख रहे हो . उसके बाद से मैं सम्पूर्ण संसार मे घूमता फिर रहा कि मुझे कोई ऐसा ही त्याग (बलिदान) देखनो को मिले जिससे मेरा बचा हुआ आधा सरीर भी सोने का हो सके . पांडवो की और देखते हुये उसने कहा की इसी वजह से मैं कह रहा था की ये कोई त्याग नहीं है.




    ॐ साई राम   ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम    ॐ साई राम     ॐ साई राम


    « Last Edit: July 25, 2011, 03:43:19 PM by ShAivI »

    JAI SAI RAM !!!

     


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