ॐ श्री साईनाथाय: नमः :
क्या है सबसे बड़ा त्याग या पूर्ण आत्म बलिदान ?
श्रोत : अंग्रेजी से हिंदी मे अनुवादित
निवेदन : अंग्रेजी से हिंदी मे अनुवादित करते वक्त ये सम्भव है की मुझसे आपार गलतियाँ हुई होंगी ,इसलिए पूर्व ही माफ़ी की दरखास्त करता हूँ .
पूर्ण आत्म बलिदान क्या है इसे एक लघु प्रेणनादायक कहानी के माध्यम से दर्शाने की कोशिस की जा रही है .............................. ......
महाभारत के युद्ध के समाप्ति के पश्च्यात पाण्डवो ने एक विशाल समारोह का आयोजन किया और अपने महान त्याग को दर्शाने का प्रदर्शन भी किया एवंग गरीबों को बहुत ही कीमती से कीमती उपहार भेट किये. सभी व्यक्तिओ ने बहुत ही विश्मयता के साथ् पाण्डवो की महानता और समृद्धि की प्रशंसा की और कहा की ऐसा न कभी संसार मे हुआ है न ही कभी होगा. लेकिल समारोह समाप्ति के कुछ क्षण पहले एक छोटा सा नेवला आया जिसका आधा शारीर का हिस्सा सोने का था ओर आधा हिस्सा भुरा था। वह् समारोह स्थल मे जमीन पेर एक तरफ़् से दुसरी तरफ़् लोटने मे लगा हुआ था.
वो विस्मय से पाण्डवो को केहने लग की आप सबलोग सबसे बडे मिथ्यावादी हो,यह कोइ त्याग य बलिदान थोडे ही है ।
पाण्डवो ने आस्चर्य्चकित हो के कहा की क्या केहते हो । तुमेः क्या मालुम है की कितने बेसकिमति हिरे,मोती,सोने,चांदी ओर न जाने कितनी अमूल्य चिज़े यहा गरिबो को दान मे दी गयी हैं । सभी गरिब् बहुत ही खुस हैं ओर सभी बहुत धन्वान् बन गये हैं। ये दुनिय का सबसे बडा ओर सबसे सफ़ल् त्याग का महा समारोह है।
नेवला मानने को तैयार नही था ओर पाण्डव उसको मनवाने की बहुत ही कोशिस कर रहे थे। आखिर पाण्डव ने इस कथन का प्रमाण देने को कहा।
तब् नेवले ने अपने कथन की पुष्टि एक छोटी सी कहिनी बतलाकार पाण्डवो को समझाई.................................
एक गांव मे एक निर्धन गरिब् ब्रह्मन् अपनी पत्नी,बेटे ओर बहु के साथ् रेह्ता था। वह् उपदेश ओर शिक्षा बाटके जो धन संग्रह करता था उसी से उसके परिवार् का भरन -पोषन हो रहा था . अभग्यवस लगातार तीन वर्षो तक उस गांव मे आकाल पडा ओर गरिब् ब्रह्मन् की हालत पेहले से भी अधिक खराब् हो गयी । लगातार कई दिनो तक परिवार् भूखे रेहने के बाद गरिब् ब्रह्मन् कुछ जौ का आटा घर लाने मे सक्षम हो गया ओर उसने चार सामान -सामान हिस्सो मे उसको बाट दिया ओर सबको उनका हिस्सा दे दिया । सभी ने उससे भोजन बनाया ओर जैसे ही वो भोजन ग्रेहन करने के लिये जानेवाले ही थे की दरवाजे पर किसी को दस्तक देते सुना ।
पिता ने दरवाजा खोला ओर पाया की एक व्यक्ति बहुत ही थका हारा हुआ सामने खडा हुआ है । हमारे भारत देश मे आथिति को भगवान समझा जाता है। इसलिये ब्रह्मन् ने बडे ही आदर के साथ् अन्दर आके आसन ग्रहन करने को कहा । आथिति घर से भूखा लौट जाये ये पाप होगा सोचकर ब्रह्मन् ने आपने हिस्से का भोजन आथिति को खाने को दिया । आथिति ने शिग्रःता से भोजन खतम कर दिया ओर कहने लगा कि महोदय आपने तो मुज्हे मार ही दिया । मै दस दिनो से भूखा हु ओर इतन कं भोजन देकर आपने मेरी भूख ओर बडा दी। ब्रह्मन् कि पत्नी ने कहा कि आप मेरा हिस्सा आथिति को भोजन के लिये देदे । ब्रह्मन् ने कहा की एसा नही हो सकता। पत्नी ने अपने पति को कहा की गृहस्वामियों होने के नाते इस गरीब को भोजन देना हमारा कर्तव् है और आपकी पत्नी होने के नाते जा मै देख रही हूँ कि आपना भोजन देने के बाद आपके पास और कुछ देने को नहीं है तो पत्नी का कर्तव् निभाते हुये मै अपना भोजन इस गरीब को देती हूँ . अथिति भोजन समाप्त करने के बाद फिर से कहता है कि इससे मेरी भूख और भी बढ गई .तब बेटे ने अपने हिस्से का भोजन देते हुये
अथिति को कहा कि आप ये ग्रहण करें क्योकि बेटे का फ़र्ज़ होता है कि पिता के कर्तवो का निर्वाह करे. अतिथि ने उसे भी खाने के पश्च्यात कहा कि मुझे अभी भी संतुष्टि नहीं मिली . बहू ने भी अपना हिस्सा का भोजन भी अथिति को दे दिया. भोजन करने के बाद अतिथि बहुत ही प्रशन्य हुआ और ढेरो आशीर्वाद देकर चला गया .
उसी रात भूख के आग्नि ने उन चारो को निगल लिया . भूख के कारण उन सबकी मौत हो गई . कुछ जौ के दाने जमीन मे पड़े हुये थे और जैसे ही मैंने उन दानो के उपर लोटना शुरू किया. मेरा आधा सरीर सोने का हो गया ,जो आपलोग देख रहे हो . उसके बाद से मैं सम्पूर्ण संसार मे घूमता फिर रहा कि मुझे कोई ऐसा ही त्याग (बलिदान) देखनो को मिले जिससे मेरा बचा हुआ आधा सरीर भी सोने का हो सके . पांडवो की और देखते हुये उसने कहा की इसी वजह से मैं कह रहा था की ये कोई त्याग नहीं है.