Join Sai Baba Announcement List


DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018





Author Topic: किस्से~~~तेनालीराम के ~~~  (Read 15666 times)

0 Members and 1 Guest are viewing this topic.

Offline tana

  • Member
  • Posts: 7074
  • Blessings 139
  • ~सांई~~ੴ~~सांई~
    • Sai Baba
ॐ सांई राम~~~

तेनाली राम ~~~

तेनाली राम के बारे में~~~


      1520 ई. में दक्षिण भारत के विजयनगर राज्य में राजा कृष्णदेव राय हुआ करते थे। तेनालीराम उनके दरबार में अपने हास-परिहास से लोगों का मनोरंजन किया करते थे। उनकी खासियत थी कि गम्भीर से गम्भीर विषय को भी वह हंसते-हंसते हल कर देते थे। 
     विजयनगर के राजा के पास नौकरी पाने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा। कई बार उन्हें और उनके परिवार को भूखा भी रहना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी और कृष्णदेव राय के पास नौकरी पा ही ली। तेनालीराम की गिनती राजा कृष्णदेव राय के आठ दिग्गजों में होती है।)

जय सांई राम~~~
"लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

" Loka Samasta Sukino Bhavantu
Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

Offline tana

  • Member
  • Posts: 7074
  • Blessings 139
  • ~सांई~~ੴ~~सांई~
    • Sai Baba
Re: किस्से~~~तेनालीराम के ~~~
« Reply #1 on: June 30, 2008, 01:06:59 AM »
  • Publish
  • ॐ सांई राम~~~

    तेनालीराम की घोषणा~~~

    एक बार राजा कृष्णदेव राय से पुरोहित ने कहा, ‘महाराज, हमें अपनी प्रजा के साथ सीधे जुड़ना चाहिए।’ पुरोहित की बात सुनकर सभी दरबारी चौंक पड़े। वे पुरोहित की बात समझ न पाए।

    तब पुरोहित ने अपनी बात को समझाते हुए उन्हें बताया, ‘दरबार में जो भी चर्चा होती है, हर सप्ताह उस चर्चा की प्रमुख बातें जनता तक पहुँचाई जाएँ। प्रजा भी उन बातों को जानें।’ मंत्री ने कहा, ‘महाराज, विचार तो वास्तव में बहुत उत्तम है। तेनालीराम जैसे अकलमंद और चतुर व्यक्ति ही इस कार्य को सुचारु रूप से कर सकते हैं। साथ ही तेनालीराम पर दरबार की विशेष जिम्मेदारी भी नहीं है।’

    राजा ने मंत्री की बात मान ली और तेनालीराम को यह काम सौंप दिया। तय किया गया-तेनालीराम जनहित और प्रजा-हित की सारी बातें, जो राजदरबार में होंगी, लिखित रूप से दरोगा को देंगे। दरोगा नगर के चौराहों पर मुनादी कराकर जनता और प्रजा को उन बातों की सूचनाएँ देगा।

    तेनालीराम सारी बात समझ गया था। वह यह भी समझ गया था कि मंत्री ने उसे जबरदस्ती फँसाया है। तेनालीराम ने भी अपने मन में एक योजना बनाई। सप्ताह के अंत में उसने मुनादी करने के लिए दरोगा को एक पर्चा थमा दिया। दरोगा ने पर्चा मुनादी वाले को पकड़ाकर कहा, ‘जाओ और मुनादी करा दो।’

    मुनादी वाला सीधा चौराहे पर पहुँचा और ढोल पीट-पीटकर मुनादी करते हुए बोला, ‘सुनो-सुनो, नगर के सारे नागरिकों सुनो।’ महाराज चाहते हैं कि दरबार में जनहित के लिए जो फैसले किए गए हैं, उन्हें सारे नगरवासी जानें। उन्होंने श्रीमान तेनालीराम को यह कठिन काम सौंपा है। हम उन्हीं की आज्ञा से आपको यह समाचार सुना रहे हैं। ध्यान देकर सुनो।

    महाराज चाहते हैं कि प्रज्ञा और जनता के साथ पूरा न्याय हो। अपराधी को दंड मिले। इस मंगलवार को राजदरबार में इसी बात को लेकर काफी गंभीर चर्चा हुई। महाराज चाहते थे कि पुरानी न्याय-व्यवस्था की अच्छी और साफ-सुथरी बातें भी इस न्याय प्रणाली में शामिल की जाएँ।

    इस विषय में उन्होंने पुरोहित जी से पौराणिक न्याय-व्यवस्था के बारे में जानना चाहा किंतु पुरोहित जी इस बारे में कुछ न बता सके, क्योंकि वह दरबार में बैठे ऊँघ रहे थे। उन्हें इस दशा में देखकर राजा कृष्णदेव राय को गुस्सा आ गया। उन्होंने भरे दरबार में पुरोहित जी को फटकारा।

    गुरुवार को सीमाओं की सुरक्षा पर राजदरबार में चर्चा हुईं किंतु सेनापति उपस्थित न थे, इस कारण सीमाओं की सुरक्षा की चर्चा आगे न हो सकी। राजा ने मंत्री को कड़े आदेश दिए हैं कि राजदरबार में सारे सभासद ठीक समय पर आएँ।’

    यह कहकर मुनादी वाले ने ढोल बजा दिया। इस प्रकार हर सप्ताह नगर में जगह-जगह मुनादी होने लगी। हर मुनादी में तेनालीराम की चर्चा हर जगह होती थी। तेनालीराम की चर्चा की बात मंत्री,सेनापति और पुरोहित के कानों में भी पहुँची। वे तीनों बड़े चिंतित हो गए,कहने लगे,‘तेनालीराम ने सारी बाजी ही उलटकर रख दी। जनता समझ रही है कि वह दरबार में सबसे प्रमुख हैं। वह जानबूझकर हमें बदनाम कर रहा है।’

    दूसरे ही दिन जब राजा दरबार में थे तो मंत्री ने कहा, ‘महाराज, हमारा संविधान कहता है कि राजकाज की समस्त बातें गोपनीय होती हैं। उन बातों को जनता या प्रजा को बताना ठीक नहीं।’

    तभी तेनालीराम बोल पड़ा, ‘बहुत अच्छे मंत्री जी, आपको शायद उस दिन यह बात याद नहीं थी। आपको भी तभी याद आया, जब आपके नाम का ढोल पिट गया।’

    यह सुनकर सारे दरबारी हँस पड़े। बेचारे मंत्री जी की शक्ल देखने लायक थी। राजा कृष्णदेव राय भी सारी बात समझ गए। वह मन ही मन तेनालीराम की सराहना कर रहे थे।

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

    • Member
    • Posts: 7074
    • Blessings 139
    • ~सांई~~ੴ~~सांई~
      • Sai Baba
    Re: किस्से~~~तेनालीराम के ~~~
    « Reply #2 on: June 30, 2008, 11:36:57 PM »
  • Publish
  • ॐ सांई राम~~~

    तेनालीराम और बहुरूपिया~~~         

    तेनालीराम के कारनामों से राजगुरु बहुत परेशान थे। हर दूसरे-तीसरे दिन उन्हें तेनालीराम के कारण नीचा देखना पड़ता था। वह सारे दरबार में हँसी का पात्र बनता था। उन्होंने सोचा कि यह दुष्ट कई बार महाराज के मृत्युदंड से भी बच निकला है। इससे छुटकारा पाने का केवल एक ही रास्ता है कि मैं स्वयं इसको किसी तरह मार दूँ।

    उन्होंने मन ही मन एक योजना बनाई। राजगुरु कुछ दिनों के लिए तीर्थयात्रा के बहाने नगर छोड़कर चले गए और एक जाने-माने बहुरुपिए के यहाँ जाकर उससे प्रशिक्षण लेने लगे। कुछ समय में वे बहुरुपिए के सारे करतब दिखाने में कुशल हो गए।

    वे बहुरुपिए के वेश में ही वापस नगर चले आए और दरबार में पहुँचे। उन्होंने राजा से कहा कि वे तरह-तरह के करतब दिखा सकते है। राजा बोले, ‘तुम्हारा सबसे अच्छा स्वांग कौन-सा है?’

    बहुरुपिए ने कहा, ‘मैं शेर का स्वांग बहुत अच्छा करता हूँ, महाराज। लेकिन उसमें खतरा है। उसमें कोई घायल भी हो सकता है और मर भी सकता है। इस स्वांग के लिए आपको मुझे एक खून माफ करना पड़ेगा।’

    महाराज ने उनकी शर्त मान ली। ‘एक शर्त और है महाराज। मेरे स्वांग के समय तेनालीराम भी दरबार में अवश्य उपस्थित रहे,’ बहुरुपिया बोला। ‘ठीक है, हमें यह शर्त भी स्वीकार है,’ महाराज ने सोचकर उत्तर दिया।

    इस शर्त को सुनकर तेनालीराम का माथा ठनका। उसे लगा कि यह अवश्य कोई शत्रु है, जो स्वांग के बहाने मेरी हत्या करना चाहता है। अगले दिन स्वांग होना था। तेनालीराम अपने कपड़ों के नीचे कवच पहनकर आया ताकि अगर कुछ गड़बड़ हो तो वह अपनी रक्षा कर सके। स्वांग शुरू हुआ।

    बहुरुपिए की कला का प्रदर्शन देखकर सभी दंग थे। कुछ देर तक उछलकूद करने के बाद अचानक बहुरुपिया तेनालीराम के पास पहुँचा और उस पर झपट पड़ा। तेनालीराम तो पहले से ही तैयार था। उसने धीरे से अपने हथनखे से उस पर वार किया। तिलमिलाता हुआ बहुरुपिया उछलकर जमीन पर गिर पड़ा।

    तेनालीराम पर हुए आक्रमण से राजा भी एकदम घबरा गए थे। कहीं तेनालीराम को कुछ हो जाता तो? उन्हें बहुरुपिए की शर्तों का ध्यान आया। एक खून की माफी और तेनालीराम के दरबार में उपस्थित रहने की शर्त। अवश्य दाल में कुछ काला है।

    उन्होंने तेनालीराम को अपने पास बुलाकर पूछा, ‘तुम ठीक हो ना? घाव तो नहीं हुआ?’ तेनालीराम ने महाराज को कवच दिखा दिया। उसे एक खरोंच भी न आई थी। महाराज ने पूछा, ‘क्या तुम्हें इस व्यक्ति पर संदेह था, जो तुम कवच पहनकर आए हो?’

    ‘महाराज, अगर इसकी नीयत साफ होती तो यह दरबार में मेरे उपस्थित रहने की शर्त न रखता,’ तेनालीराम ने कहा। महाराज बोले, ‘इस दुष्ट को मैं दंड देना चाहता हूँ। इसने तुम्हारे प्राण लेने का प्रयत्न किया है। मैं इसे अभी फाँसी का दंड दे सकता हूँ लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम स्वयं इससे बदला लो।’

    ‘जी हाँ, मैं स्वयं ही इसको मजा चखाऊँगा।’ तेनालीराम गंभीरता से बोला।‘वह कैसे?’ महाराज ने पूछा। ‘बस आप देखते जाइए’, तेनालीराम ने उत्तर दिया।

    फिर तेनालीराम ने बहुरुपिए से कहा, ‘महाराज, तुम्हारी कला से बहुत प्रसन्न हैं। वह चाहते हैं कि कल तुम सती स्त्री का स्वांग दिखाओ। अगर उसमें तुम सफल हो गए तो महाराज की ओर से तुम्हें पुरस्कार के रूप में पाँच हजार स्वर्णमुद्राएँ भेंट की जाएँगी।’

     बहुरुपिए के वेश में छिपे राजगुरु ने मन ही मन कहा कि इस बार तो बुरे फँसे, लेकिन अब स्वांग दिखाए बिना चारा भी क्या था? तेनालीराम ने एक कुंड बनवाया। उसमें बहुत-सी लकड़ियाँ जलवा दी गईं। वैद्य भी बुलवा लिए गए कि शायद तुरंत उपचार की आवश्यकता पड़े।

    बहुरुपिया सती का वेश बनाकर पहुँचा। उसका पहनावा इतना सुंदर था कि कोई कह नहीं सकता था कि वह असली स्त्री नहीं है। आखिर उसे जलते कुंड में बैठना ही पड़ा। कुछ पलों में ही लपटों में उसका सारा शरीर झुलसने लगा। तेनालीराम से यह देखा न गया। उसे दया आ गई। उसने बहुरुपिए को कुंड से बाहर निकलवाया। राजगुरु ने एकदम अपना असली रूप प्रकट कर दिया और तेनालीराम से क्षमा माँगने लगे।

    तेनालीराम ने हँसते हुए उसे क्षमा कर दिया और उपचार के लिए वैद्यों को सौंप दिया। कुछ ही दिनों में राजगुरु स्वस्थ हो गया। उसने तेनालीराम से कहा, ‘आज के बाद मैं कभी तुम्हारे लिए मन में शत्रुता नहीं लाऊँगा। तुम्हारी उदारता ने मुझे जीत लिया है। आज से हमें दोनों अच्छे मित्र की तरह रहेंगे।’

    तेनालीराम ने राजगुरु को गले लगा लिया। उसके बाद तेनालीराम और राजगुरु में कभी मनमुटाव नहीं हुआ।

    (साभार: तेनालीराम का हास-परिहास, डायमंड प्रकाशन, सर्वाधिकार सुरक्षित।)

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

    • Member
    • Posts: 7074
    • Blessings 139
    • ~सांई~~ੴ~~सांई~
      • Sai Baba
    Re: किस्से~~~तेनालीराम के ~~~
    « Reply #3 on: July 01, 2008, 11:27:52 PM »
  • Publish
  • ॐ सांई राम~~~

    सीमा की चौकसी~~~

    विजयनगर में पिछले कई दिनों से तोड़-फोड़ की घटनाएँ बढ़ती जा रही थीं। राजा कृष्णदेव राय इन घटनाओं से काफी चिंतित हो उठे। उन्होंने मंत्रिपरिषद की बैठक बुलाई और इन घटनाओं को रोकने का उपाय पूछा।

    ‘पड़ोसी दुश्मन देश के गुप्तचर ही यह काम कर रहे हैं। हमें उनसे नर्मी से नहीं, सख्ती से निबटना चाहिए।’ सेनापति का सुझाव था। ‘सीमा पर सैनिक बढ़ा दिए जाने चाहिए ताकि सीमा की सुरक्षा ठीक प्रकार से हो सके।’ मंत्री जी ने सुझाया।

    राजा कृष्णदेव राय ने अब तेनालीराम की ओर देखा। ‘मेरे विचार में तो सबसे अच्छा यही होगा कि समूची सीमा पर एक मजबूत दीवार बना दी जाए और वहां हर समय सेना के सिपाही गश्त करें।’ तेनालीराम ने अपना सुझाव दिया। मंत्री जी के विरोध के बावजूद राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम का यह सुझाव सहर्ष मान लिया।

    सीमा पर दीवार बनवाने का काम भी उन्होंने तेनालीराम को ही सौंप दिया और कहा दिया कि छह महीने के अंदर पूरी दीवार बन जानी चाहिए। इसी तरह दो महीने बीत गए लेकिन दीवार का काम कुछ आगे नहीं बढ़ सका। राजा कृष्णदेव राय के पास भी यह खबर पहुँची। उन्होंने तेनालीराम को बुलवाया और पूछताछ की।

    मंत्री भी वहाँ उपस्थित था। ‘तेनालीराम, दीवार का काम आगे क्यों नहीं बढ़ा?’ ‘क्षमा करें महाराज, बीच में एक पहाड़ आ गया है, पहले उसे हटवा रहा हूँ।’ ‘पहाड़...पहाड़ तो हमारी सीमा पर है ही नहीं।’ राजा बोले। तभी बीच में मंत्री जी बोल उठे-‘महाराज, तेनालीराम पगला गया है।’

    तेनालीराम मंत्री की फब्ती सुनकर चुप ही रहे। उन्होंने मुस्कुराकर ताली बजाई। ताली बजाते ही सैनिकों से घिरे बीस व्यक्ति राजा के सामने लाए गए। ‘ये लोग कौन है?’ राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम ने पूछा।

    ‘पहाड़! तेनालीराम बोला-‘ये दुश्मन देश के घुसपैठिए हैं महाराज। दिन में जितनी दीवार बनती थी, रात में ये लोग उसे तोड़ डालते थे। बड़ी मुश्किल से ये लोग पकड़ में आए हैं। काफी तादाद में इनसे हथियार भी मिले हैं। पिछले एक महीने में इनमें से आधे पाँच-पाँच बार पकड़े भी गए थे, मगर...।’

    ‘इसका कारण मंत्री जी बताएँगे इन्हें दंड क्यों नहीं दिया गया?’ क्योंकि इन्हीं की सिफारिश पर इन लोगों को हर बार छोड़ा गया था।’ तेनालीराम ने कहा। यह सुनकर मंत्री के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। राजा कृष्णदेव राय सारी बात समझ गए। उन्होंने सीमा की चौकसी का सारा काम मंत्री से ले लिया और तेनालीराम को सौंप दिया।

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

    • Member
    • Posts: 7074
    • Blessings 139
    • ~सांई~~ੴ~~सांई~
      • Sai Baba
    Re: किस्से~~~तेनालीराम के ~~~
    « Reply #4 on: July 13, 2008, 01:43:33 AM »
  • Publish
  • ॐ सांई राम~~~

    मनहूस कौन~~~

    रामैया नाम के आदमी के विषय में नगर-भर में यह प्रसिद्ध था कि जो कोई प्रातः उसकी सूरत देख लेता था, उसे दिन-भर खाने को नहीं मिलता था। इसलिए सुबह-सुबह कोई उसके सामने आना पसंद नहीं करता था।

    किसी तरह यह बात राजा कृष्णदेव राय तक पहुँच गई। उन्होंने सोचा, ‘इस बात की परीक्षा करनी चाहिए।’ उन्होंने रामैया को बुलवाकर रात को अपने साथ के कक्ष में सुला दिया और दूसरे दिन प्रातः उठने पर सबसे पहले उसकी सूरत देखी।

    दरबार के आवश्यक काम निबटाने के बाद राजा जब भोजन के लिए अपने भोजन कक्ष में गए तो भोजन परोसा गया। अभी राजा ने पहला कौर ही उठाया था कि खाने में मक्खी दिखाई दी। देखते-ही-देखते उनका मन खराब होने लगा और वह भोजन छोड़कर उठ गए। दोबारा भोजन तैयार होते-होते इतना समय बीत गया कि राजा की भूख ही मिट गई।

    राजा ने सोचा-‘अवश्य यह रामैया मनहूस है, तभी तो आज सारा दिन भोजन नसीब नहीं हुआ।’ क्रोध में आकर राजा ने आज्ञा दी कि इस मनहूस को फाँसी दे दी जाए। राज्य के प्रहरी उसे फाँसी देने के लिए ले चले। रास्ते में उन्हें तेनालीराम मिला। उसने पूछा तो रामैया ने उसे सारी बात कह सुनाई।

    तेनालीराम ने उसे धीरज बँधाया और उसके कान में कहा, ‘तुम्हें फाँसी देने से पहले ये तुम्हारी अंतिम इच्छा पूछेंगे। तुम कहना, ‘मैं चाहता हूँ कि मैं जनता के सामने जाकर कहूँ कि मेरी सूरत देखकर तो खाना नहीं मिलता, पर जो सवेरे-सवेरे महाराज की सूरत देख लेता है, उसे तो अपने प्राण गँवाने पड़ते हैं।’

    यह समझाकर तेनालीराम चला गया। फाँसी देने से पहले प्रहरियों ने रामैया से पूछा, ‘तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?’ रामैया ने वही कह दिया, जो तेनालीराम ने समझाया था। प्रहरी उसकी अनोखी इच्छा सुनकर चकित रह गए। उन्होंने रामैया की अंतिम इच्छा राजा को बताई।

    सुनकर राजा सन्न रह गए। अगर रामैया ने लोगों के बीच यह बात कह दी तो अनर्थ हो जाएगा। उन्होंने रामैया को बुलवाकर बहुत-सा पुरस्कार दिया और कहा-‘यह बात किसी से मत कहना।’

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

    • Member
    • Posts: 7074
    • Blessings 139
    • ~सांई~~ੴ~~सांई~
      • Sai Baba
    Re: किस्से~~~तेनालीराम के ~~~
    « Reply #5 on: July 30, 2008, 07:29:25 AM »
  • Publish
  • ॐ सांई राम~~~

    तेनालीराम और राजा का तोता~~~

    किसी ने महाराज कृष्णदेव राय को एक तोता भेंट किया। वह तोता बड़ी भली और सुंदर-सुंदर बातें करता था। वह लोगों के प्रश्नों के उत्तर भी देता था। राजा को वह तोता बहुत पसंद था।

    उन्होंने उसे पालने और उसकी रक्षा का भार अपनी एक विश्वासी नौकर को सौंपते हुए कहा-‘इस तोते की सारी जिम्मेदारी अब तुम्हारी है। इसका पूरा ध्यान रखना। तोता मुझे बहुत प्यारा है। इसे कुछ हो गया तो याद रखो, तुम्हारे हक में वह ठीक नहीं होगा। अगर तुमने या किसी और ने कभी आकर मुझे यह समाचार दिया कि यह तोता मर गया है, तो तुम्हें अपने प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे।’

    उस नौकर ने तोते की खूब देखभाल की। हर तरह से उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखा, पर तोता बेचारा एक दिन चल बसा। बेचारा नौकर थर-थर काँपने लगा। सोचने लगा कि अब मेरी जान की खैर नहीं। वह जानता था कि तोते की मौत का समाचार सुनते ही क्रोध में महाराज उसे मृत्युदंड दे देंगे।

    बहुत दिन सोचने पर उसे एक ही रास्ता सुझाई दिया। तेनालीराम के अलावा कोई उसकी रक्षा नहीं कर सकता था। वह दौड़ा-दौड़ा तेनालीराम के पास पहुँचा और उन्हें सारी बात कह सुनाई।

    तेनालीराम ने कहा-‘बात सचमुच बहुत ही गंभीर है। वह तोता महाराज को बहुत प्यारा था, पर तुम चिंता मत करो। मैं कुछ उपाय निकाल ही लूँगा। तुम शांत रहो। तोते के बारे में तुम्हें महाराज से कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है। मैं स्वयं सँभाल लूँगा।’

    तेनालीराम महाराज के पास पहुँचा और घबराया हुआ बोला, ‘महाराज आपका वह तोता....!’ ‘क्या हुआ तोते को?तुम इतने घबराए हुए क्यों हो तेनालीराम? बात क्या है?’ महाराज ने पूछा।

    ‘महाराज, आपका वह तोता तो अब बोलता ही नहीं। बिलकुल चुप हो गया है। न कुछ खाता है, न पीता है, न पंख हिलाता है। बस सूनी-सूनी आँखों से ऊपर की ओर देखता रहता है। उसकी आँखें तक झपकती नहीं।’ तेनालीराम ने कहा।

    महाराज तेनालीराम की बात सुनकर बहुत हैरान हुआ। वह स्वयं तोते के पिंजरे के पास पहुँचे। उन्होंने देखा कि तोते के प्राण निकल चुके हैं। झुँझलाते हुए वे तेनालीराम से बोले-‘तुमने सीधी तरह से यह क्यों नहीं कह दिया कि तोता मर गया है। तुमने सारी महाभारत सुना दी, पर असली बात नहीं कही।’

    ‘महाराज, आप ही ने तो कहा था कि अगर तोते के मरने का समाचार आपको दिया गया तो तोते के रखवाले को मृत्युदंड दे दिया जाएगा। अगर मैंने आपको यह समाचार दे दिया होता, तो वह बेचारा नौकर अब तक मौत के घाट उतार दिया गया होता।’ तेनालीराम ने कहा।

    राजा इस बात से बहुत प्रसन्न थे कि तेनालीराम ने उन्हें एक निर्दोष व्यक्ति को मृत्युदंड देने से बचा लिया था।

    जय सांई राम~~~

    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

    • Member
    • Posts: 7074
    • Blessings 139
    • ~सांई~~ੴ~~सांई~
      • Sai Baba
    Re: किस्से~~~तेनालीराम के ~~~
    « Reply #6 on: August 05, 2008, 06:04:06 AM »
  • Publish
  • ॐ सांई राम~~~

    तेनालीराम और लाल मोर~~~

    विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय को अनोखी चीजों को जमा करने का बहुत शौक था। हर दरबारी उन्हें खुश करने के लिए ऐसी ही चीजों की खोज में लगे रहते थे, ताकि राजा को खुश कर उनसे मोटी रकम वसूल सके।

    एक बार कृष्णदेव राय के दरबार में एक दरबारी ने एक मोर को लाल रंग में रंग कर पेश किया और कहा, “महाराज इस लाल मोर को मैंने बहुत मुश्किल से मध्य प्रदेश के घने जंगलों से आपके लिए पकड़ा है।” राजा ने बहुत गौर से मोर को देखा। उन्होंने लाल मोर कहीं नहीं देखा था।

    राजा बहुत खुश हुए...उन्होंने कहा, “वास्तव में आपने अद्भुत चीज लाई है। आप बताएं इस मोर को लाने में कितना खर्च पड़ा।” दरबारी अपनी प्रशंसा सुनकर आगे की चाल के बारे में सोचने लगा।

    उसने कहा, “मुझे इस मोर को खोजने में करीब पच्चीस हजार रुपए खर्च करने पड़े।”

    राजा ने तीस हजार रुपए के साथ पांच हजार पुरस्कार राशि की भी घोषणा की। राजा की घोषणा सुनकर एक दरबारी तेनालीराम की तरफ देखकर मुस्कराने लगा।

    तेनालीराम उसकी कुटिल मुस्कराहट देखकर समझ गए कि यह जरूर उस दरबारी की चाल है। वह जानते थे कि लाल रंग का मोर कहीं नहीं होता। बस फिर क्या था, तेनालीराम उस रंग विशेषज्ञ की तलाश में जुट गए।

    दूसरे ही दिन उन्होंने उस चित्रकार को खोज निकाला। वे उसके पास चार मोर लेकर गए और उन्हें रंगवाकर राजा के सामने पेश किया।

    “महाराज हमारे दरबारी मित्र, पच्चीस हजार में केवल एक मोर लेकर आए थे, पर मैं उतने में चार लेकर आया हूं।”

    वाकई मोर बहुत खूबसूरत थे। राजा ने तेनालीराम को पच्चीस हजार रुपए देने की घोषणा की। तेनाली राम ने यह सुनकर एक व्यक्ति की तरफ इशारा किया, “महाराज अगर कुछ देना ही है तो इस चित्रकार को दें। इसी ने इन नीले मोरों को इतनी खूबसूरती से रंगा है।”

    राजा को सारा गोरखधंधा समझते देर नहीं लगी। वह समझ गए कि पहले दिन दरबारी ने उन्हें मूर्ख बनाया था।

    राजा ने उस दरबारी को पच्चीस हजार रुपए लौटाने के साथ पांच हजार रुपए जुर्माने का आदेश दिया। चित्रकार को उचित पुरस्कार दिया गया। दरबारी बेचारा क्या करता, वह बेचारा सा मुंह लेकर रह गया।


    जय सांई राम~~~

    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

    • Member
    • Posts: 7074
    • Blessings 139
    • ~सांई~~ੴ~~सांई~
      • Sai Baba
    Re: किस्से~~~तेनालीराम के ~~~
    « Reply #7 on: August 18, 2008, 12:21:51 AM »
  • Publish
  • ॐ सांई राम~~~

    तेनालीराम को मौत की सजा~~~

    बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिलशाह को डर था कि राजा कृष्णदेव राय अपने प्रदेश रायचूर और मदकल को वापस लेने के लिए हम पर हमला करेंगे। उसने सुन रखा था कि वैसे राजा ने अपनी वीरता से कोडीवडु, कोंडपल्ली, उदयगिरि, श्रीरंगपत्तिनम, उमत्तूर, और शिवसमुद्रम को जीत लिया था।

    सुलतान ने सोचा कि इन दो नगरों को बचाने का एक ही उपाय है कि राजा कृष्णदेव राय की हत्या करवा दी जाए। उसने बड़े इनाम का लालच देकर तेनालीराम के पुराने सहपाठी और उसके मामा के संबंधी कनकराजू को इस काम के लिए राजी कर लिया।

    कनकराजू तेनालीराम के घर पहुँचा। तेनालीराम ने अपने मित्र का खुले दिल से स्वागत किया। उसकी खूब आवभगत की और अपने घर में उसे ठहराया। एक दिन जब तेनालीराम काम से कहीं बाहर गया हुआ था, कनकराजू ने राजा को तेनालीराम की तरफ से संदेश भेजा-‘आप इसी समय मेरे घर आएँ तो आपको ऐसी अनोखी बात दिखाऊँ, जो आपने जीवनभर न देखी हो।

    राजा बिना किसी हथियार के तेनालीराम के घर पहुँचे। अचानक कनकराजू ने छुरे से उन पर वार कर दिया। इससे पहले कि छुरे का वार राजा को लगता, उन्होंने कसकर उसकी कलाई पकड़ ली। उसी समय राजा के अंगरक्षकों के सरदार ने कनकराजू को पकड़ लिया और वहीं उसे ढेर कर दिया।

    कानून के अनुसार, राजा को मारने की कोशिश करने वाले को जो व्यक्ति आश्रय देता था, उसे मृत्युदंड दिया जाता था। तेनालीराम को भी मृत्युदंड सुनाया गया। उसने राजा से दया की प्रार्थना की।

    राजा ने कहा, ‘मैं राज्य के नियम के विरुद्ध जाकर तुम्हें क्षमा नहीं कर सकता। तुमने उस दुष्ट को अपने यहाँ आश्रय दिया। तुम कैसे मुझसे क्षमा की आशा कर सकते हो? हाँ, यह हो सकता है कि तुम स्वयं फैसला कर लो, तुम्हें किस प्रकार की मृत्यु चाहिए?’

    ‘मुझे बुढ़ापे की मृत्यु चाहिए, महाराज।’ तेनालीराम ने कहा। सभी आश्चर्यचकित थे। राजा हँसकर बोले, ‘इस बार भी बच निकले तेनालीराम।’


    जय सांई राम~~~

    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

     


    Facebook Comments