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Author Topic: करवा चौथ का व्रत, विधि, उजमन, व्रतकथा (Krava Chauth Ka Vrat)  (Read 1395 times)

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कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है|यह स्त्रियों का मुख्य त्यौहार है| सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं|


विधि:

एक पटटे पर जल से भरा लोटा एवं एक करवे में गेहूँ भरकर रखते हैं| दीवार पर या कागज पर चन्द्रमा उसके नीचे शिव तथा कार्तिकेय की चित्रावली बनाकर पूजा की जाती है| चन्द्रमा को देखकर अध्ये देते हैं फिर भोजन करते हैं|


करवा चौथ का उजमन:

उजमन करने के लिए एक थाली को तेरह जगह चार-चार पूड़ी और थोड़ा सा सीरा राख लें|उसके ऊपर एक साडी ब्लाउज और रुपए जितना चाहें रख लें उस थाली के चारो ओर रोली, चावल से हाथ फेर कर अपनी सासू जी के पांव लगकर उन्हें दें दे| उसके बाद तेरह ब्रह्मणों को भोजन करवाए और दक्षिणा देकर तथा बिन्दी लगाकर उन्हें विदा करें|


करवा चौथ व्रतकथा:

एक साहुकार के सात लडके और एक लडकी थी । सेठानी केसहित उसकी बहुओ और बेटी  ने करवा चौथ का व्रत रखा था । रात्रि का साहुकार के लडके भोजन करने लगे तो उन्होने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने उत्तर दिया- भाई! अभी चाँद नही निकला है । उसके निकलने पर अर्ध्य देकर भोजन करूँगी। बहन की बात सुनकर भाइयो ने क्या काम किया कि नगर मे बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी से जाकर उसमे से प्रकाश दिखाते हुए उन्होने बहन से कहा- बहन! चाँद निकल आया है, अर्ध्य देकर भोजन जीम लो । यह सुन उसने अपनी भाभियो से कहा कि आओ तुम भी चन्द्रमा के अर्ध्य दे लो परन्तु वे इस काण्ड को जानती थी उन्होने कहा कि बहन! अभी चाँद नही निकला, तेरे भाई तेरे से धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे है भाभियो की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान नही दिया और भाइयो द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्ध्य देकर भोजन कर लिया । इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर मे था उसकी बीमारी मे लग गया । जब उसे अपने किए हुए दोषो का पता लगा तो उसने पश्चाताप किया। गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया । श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आर्शीवाद ग्रहण करने मे ही मन को लगा दिया । इस प्रकार उसके श्रद्धा-भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान् गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति का जीवन दान दिया । उसे आरोग्य करने क पश्चात् धन-सम्पति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेगे वे सब इस प्रकार से  सुखी होते हुए क्लेशो से मुक्त हो जायेगे।

गणेशजी विनायकजी की कहानीः एक अन्धी बुढिया थी जिसका एक लडका था और लडके की बहु थी । वह बहुत गरीब थी । वह अन्धी बुढिया नित्यप्रति गणेशजी की पूजा करती थी । गणेशजी साक्षात् सन्मुख आकर कहते थे की बुढिया माई तु जो चाहे माँग ले । बुढिया कहती थी मुझे माँगना नही आता सो कैसे और क्यु माँगू। तब गणेशजी बोले कि अपने बहू-बेटे से पूछकर माँग लो । तब बुढिया ने अपने पुत्र और पूत्रवधू से पूछा तो बेंटा बोला कि धन माँग ले और बहु ने कहा पोता माँग ले। तब बुढिया ने सोचा की बेटा बहू तो अपने अपने मतलब की बाते कह रहे है अतः उस बुढिया ने पडोसियों से पुछा तो पडोसियो ने कहा कि बुढिया मेरी थोडी सी जिन्दगी है क्या माँगे धन और पोता, तु तो केवल अपने नेत्र माँग ले जिससे तेरी शेष जिन्दगी सुख से व्यतीत हो जाये । उस बुढिया ने बेटे और पडोसियो की बात सुनकर घर मे जाकर सोचा, जिससे बेटा बहु और सबका भला हो वह भी माँग लूँ और अपने मतलब की चीज भी माँगलो । जब दूसरे दिन श्री गणेशजी आये और बोले, बोल बुढिया क्या माँगती है हमारा वचन है जो तू माँगेगी सो ही पायेगी । गणेशजी के वचन सुनकर बुढिया बोली- हे गणेशराज! यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे नौ करोड की माया दे, नाती पोता दे, निरोगी काया दें, अमर सुहागदें, आँखो में प्रकाश द और समस्त परिवार को सुख दे ंऔर अन्त में मोक्ष दे। बुढिया की बात सुनकर गणेशजी बोले बुढिया माँ तुने तो मुझे ठग लिया । खैर जो कुछ तूने माँग लिया वह सभी तुझे मिलेगा । यूँ कहकर गणेशजी अन्तर्ध्यान हो गए ।

हे गणेशजी जैसे बुढिया माँ को माँगे अनुसार सब कुछ दिया है वैसे ही सबको देना और हमको देना की कृपा करना ।



Source: http://spiritualworld.co.in/hindu-vrat-aur-vidhi-aur-katha/hindu-krava-chauth-ka-vrat.html#ixzz1hPyAm2JE
Love one another and help others to rise to the higher levels, simply by pouring out love. Love is infectious and the greatest healing energy. -- Shri Sai Baba Ji

 


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