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Author Topic: Gayatri Mantra...  (Read 9638 times)

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Offline tana

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Gayatri Mantra...
« on: April 04, 2007, 09:12:10 AM »
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  • OM SAI RAM...

    GAYATRI MANTRA...

    AUM BHOOR BHUWAH SWAHA,
    TAT SAVITUR VARENYAM
    BHARGO DEVASAYA DHEEMAHI
    DHIYO YO NAHA PRACHODAYAT 

     

    Oh God! Thou art the Giver of Life, Remover of pain and sorrow, The Bestower of happiness, Oh! Creator of the Universe, May we receive thy supreme sin-destroying light, May Thou guide our intellect in the right direction.

    Word to Word Meaning of  Gayatri Mantra...   
     

    Aum- Almighty God 
    Bhoor -Embodiment of vital or spiritual energy 
    Bhuwah -Destroyer of suffering 
    Swah -Embodiment of Happiness 
    Tat -That (Indicating God) 
    Savitur -Bright, Luminous, like Sun 
    Varenyam -Supreme, Best 
    Bhargo- Destroyer of Sins 
    Devasaya -Divine 
    Dheemahi- May receive 
    Dheeyo -Intellect 
    Yo -Who 
    Nah -Our 
    Prachodayat -May inspire 


    JAI SAI RAM...
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #1 on: April 04, 2007, 10:14:15 AM »
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  • गायत्री महामंत्र
    ऊँ भूर्भवः स्वः त्तसवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

    भावार्थ -  उस प्राणस्वरुप, दुःखनाशक, सुखस्वरुप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरुप परमात्मा को हम अंतरात्मा में धारण करें, वह परमात्मा हमारी बुद्घि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे ।
    सबका मालिक एक - Sabka Malik Ek

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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #2 on: April 04, 2007, 10:14:59 AM »
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  • गायत्री उपासना हम सभी के लिये अनिवार्य

    गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी कहा गया है ।  वेदों से लेकर धर्मशास्त्रों तक का समस्त दिवय ज्ञान गायत्री के बीजाक्षरों का ही विस्तार है ।  माँ गायत्री का आँचल पकड़ने वाला साधक कभी निराश नहीं हुआ ।  इस मंत्र के चौबीस अक्षर शक्तियों, सिद्घियों के प्रतीक है ।  गायत्री उपासना करने वाले साधक की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती है, ऐसा ऋषिगणों का अभिमत है ।

    गायत्री वेदमाता है एवं मानव मात्र का पाप का नाश करने की शक्ति उनमें है ।  इससे अधिक पवित्र करने वाला और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है ।  भौतिक लालसाओं से पीड़ित व्यक्ति के लिये भी और आत्मकल्याण की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु के लिये भी एक मात्र आश्रय गायत्री ही है ।  गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु कीर्ति, धन एवं ब्रहमवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गये है, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते है ।

    भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को नित्य नियमित गायत्री उपासना करनी चाहिये ।  विधिपूर्वक की गई उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विभिन्न विपत्तियों, आसन्न विभीषिकाओं से उसकी रक्षा करती है ।  प्रस्तुत समय इक्कीसवीं सदी का ब्रहम मुहूर्त है ।  आगतामी वर्षों में पूरे विश्व में तेजी से परिवर्तन होगा ।  इस विशिष्ट समय में की गयी गायत्री उपासना के प्रतिफल भी विशिष्ट होंगें ।  युगऋषि, वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ पं. श्री राम शर्मा आचार्य जी ने गायत्री के तत्वदर्शन को जन-जन तक पहुँचाया व उसे जन-सुलभ बनाया ।  प्रत्यक्ष कामधेनु की तरह इसका हर कोई पय पान कर सकता है ।  जाति, मत, लिंग भेद से परे गायत्री सार्वजनीन है, सबके लिये उसकी उपासना-साधना करने व लाभ उठाने का मार्ग खुला हुआ है ।
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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #3 on: April 04, 2007, 10:17:41 AM »
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  • गायत्री उपासना का विधि-विधान


    गायत्री उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है ।  हर स्थिति में यह लाभदायी है, परन्तु विधिपूर्वक भावना से जुड़े न्यूनतम कर्मकांडों के साथ की गई उपासना अति फलदायी मानी गई है ।  तीन माला नायत्री मंत्र का जप आवश्यक माना गया है ।  शौच-स्नान से निवृत होकर नियत स्थान, नियत समय पर सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहियें ।

    उपासना का विधि विधान इस प्रकार है –

    1. ब्रहम संध्या – जो शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिये की जाती है ।  इसके अन्तर्गत पाँच कृत्य करने पड़ते है ।

    अ. पवित्रीकरण – बाँए हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढक लिया जाए ।  पवित्रीकरण का मंत्रोच्चारण किया जाए ।  तदुपरांत उस ज को सिर तथा शरीर पर छिड़क लिया जाये ।

       ऊँ अपवित्रः पवित्रोवा, सर्वावस्थां गतोडपि वा ।
       यः स्मरेत्पुणडरीकाक्षं, स बाहृाभ्यन्तरः शुचिः ।।
       ऊँ पुनातु पुण्डरीकाक्षः, पुनातु पुण्डरीकाक्षः, पुनातु ।


    आचमन – वाणी, मन व अन्तःकरण की शुद्घि के लिये चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें ।  हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाये ।

       ऊँ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।। 1 ।।
       ऊँ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।। 2 ।।
       ऊँ सत्यं यशः श्रीर्मयि, श्रीः श्रयतां स्वाहा ।। 3 ।।


    स. शिखा स्पर्श एवं विंदन – शिखा के स्थान को भीगी पाँचों अंगुलियों से स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सदविचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे ।  निम्न मंत्र का उच्चारण करें ।

       ऊँ चिदरुपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते ।
       तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्घि कुरुष्व मे ।।


    द. प्रणायाम – श्वास को धीमी गति से बाहर से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के कृत्य में आता है ।  श्वांस खींचने के साथ भावना करें कि प्राणशक्ति की श्रेष्ठता श्वांस के द्घारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वांस के साथ बाहर निकल रहे है ।  प्राणायाम, मंत्र के उच्चारण के बाद किया जाये ।

    ऊँ भूः ऊँ भुवः ऊँ स्वः ऊँ महः ऊँ जनः ऊँ तपः ऊँ सत्यम् ।  ऊँ भूर्भवः स्वः त्तसवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । ऊँ आपोज्योतीरसोडमृतं, ब्रहम भूर्भऊवः स्वः ऊँ ।

    य. न्यास – इसका प्रयोजन है – शरीर के सभी महत्तवपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देवपूजन जैसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके ।  बाँयें हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों को उसमें भिगोकर बताए गये स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।

    ऊँ वाड.मे आस्येडस्तु ।  (मुख को)
    ऊँ नसोर्मेप्राणोडस्तु ।  (नासिका के दोनो छिद्रों को)
    ऊँ अक्ष्णोर्मेचक्षुरस्तु ।  (दोनों नेत्रों को)
    ऊँ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु ।  (दोनों कानों को)
    ऊँ बाहृोर्मे बलमस्तु ।  (दोनों भुजाओं को)
    ऊँ ऊर्वोर्मे ओजोडस्तु । (दोनों जंघाओं को)
    ऊँ अरिष्टानि मेड़्रानि, तनूस्तन्वा में सह सन्तु (समस्त शरीर को)


    आत्मशोधन की ब्रहम संध्या के उपरोक्त पाँचों कृत्यों का भाव यह है कि साधक में पवित्रता एवं प्रखरता की अभिवृद्घि होतथा मलिनाता-अवांछनीयता की निवृत्ति हो ।  पवित्र प्रखर व्यक्ति ही भगतवान के दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते है ।

    2. देवपूजन – क. – गायत्री उपासना का आधार केन्द्र महाप्रज्ञा-ऋतंभरा गायत्री है ।  उनका प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा की वेदी पर स्थापित कर उनका निम्न मंत्र के माध्यम से आवाहन करें ।  भावना करें कि साधक की भावना के अनुरुप माँ गायत्री की शक्ति वहाँ अवतरित हो, स्थापिर हो रही है ।

                      ऊँ आयातु वरदे देवि ।  त्र्यक्षरे ब्रहमवादिनि ।
                      गायत्रिच्छन्दसां मातः, ब्रहृयोने नमोडस्तु ते ।। 3 ।।
                      श्री गायत्र्यै नमः ।  आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।
                                 ततो नमस्कारं करोमि ।


    ख.   गुरु परमात्मा की दिव्य चेतना का अंश है, जो साधक का मार्गदर्शन करता है ।  सदगुरु के रुप में पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी का अभिनन्दन करते हुए उपासना की सफलता हेतु प्रार्थना के साथ गुरु आवाहन् निम्न मंत्रोच्चर के साथ करें ।

       ऊँ गुरुब्रर्हमा गुरुविष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः ।
       गुरुरेव परब्रहृ, तस्मै श्री गुरवे नमः ।। 1 ।।
       अखन्डमणडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम् ।
       तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः ।। 2 ।।
       मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्गदर्शिका ।
       नमोडस्तु गुरु सत्तायै, श्रद्घा-प्रज्ञायुता च या ।। 3 ।।
       ऊँ श्री गुपवे नमः ।  आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि,                          धयायामि ।


    ग.  माँ गायत्री व गुरुसत्ता के आवाहन व नमन के पश्चात् देवपूजन में घनिष्ठता स्थापना हेतु पंचोपचार पूजन किया जाता है ।  इन्हें विधिवत् संपन्न करें ।  जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप तथा नैवेघ प्रतीक के रुप में आराध्य के समक्ष प्रस्तुत किये जाते है ।  एक-एक करके छोटी तश्तरी में इन पांचों को समर्पित करते चलें ।  जल का अर्थ है – नम्रता, सहृदयता ।  अंक्षत का अर्थ है – समयदान, अंशदान ।  पुष्प का अर्थ है – प्रसन्नता, आंतरिक उल्लास ।  धूप-दीप का अर्थ है – सुगंध व प्रकाश का वितरण, पुण्य परमार्थ तथा नैवेघ का अर्थ है – स्वभाव व व्यवहार में मधुरता, शालीनता का समावेश ।

    ये पांचों उपचार व्यक्तित्व को सत्प्रवृत्तियों से संपन्न करने के लिये किये जाते है ।  कर्मकांड के पीछे भावना महत्वपूर्ण है ।

    3. जप – गायत्री मंत्र का जप न्यूनतम तीन माला अर्थात् घड़ी से प्रायः पन्द्रह मिनट नियमित रुप से किया जाये, अधिक बन पड़े तो अधिक उत्तम ।  होंठ हिलते रहे, किंतु आवाज इतनी मंद हो कि पास बैठे व्यक्ति भी सुन न सकें ।  जप प्रकि्या कषाय-कल्मषों-कसंस्कारों को धोने के लिये की जाती है ।


       ऊँ भूर्भवः स्वः त्तसवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

    इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करते हुए भावना की जाए कि हम निरंतर पवित्र हो रहे है ।  दुर्वुद्घि की जगह सदबुद्घि की स्थापना हो रही है ।

    4. ध्यान -  जप तो अंग अवयव करते है, मन को ध्यान में नियोजित करना होता है ।  साकार ध्यान में गायत्री माता के आँचल की छाया में बैठने तथा उनका दुलार भरा प्यार अनवरत रुप से प्राप्त होने की भावना की जाती है ।  निराकार ध्यान में गायत्री के देवता सविता की प्रभातकालीन स्वर्णिम किरणों के शरीर पर बरसने व शरीर में श्रद्घा-प्रज्ञा निष्ठा रुपी अनुदान उतरने की मान्यता परपक्व की जाती है ।  जप और ध्यान के समन्वय से ही चित्त एकाग्र होता है और आत्मसत्ता पर उस कृत्य का महत्वपूर्ण प्रभाव भी पड़ता है ।

    5. सूर्याध्र्यदान – जप समाप्ति कके पश्चात् पूजा वेदी पर रखे छोटे कलश का जल सूर्य की दिशा में अर्घ्य रुप में निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ चढ़ाया जाता है ।

       ऊँ सूर्यदेव ।  सहस्त्रांशो, तेजोराशे जगत्पते ।
       अनुकम्पय मां भक्तया, गृहाणार्घ्य दिवाकर ।।
       ऊँ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः ।।


    भावना यह करें कि जल आत्मसत्ता का प्रतीक है एवं सूर्य विराट ब्रहृ का तथा हमारी सत्ता-संपदा समष्टि के लिये समर्पित विर्सजित हो रही है ।

    नमस्कार एवं विसर्जन – इतना सब करने के बाद पूजा स्थल पर विदाई के लिये करबद्घ नतमस्तक हो नमस्कार किया जाए व सब वस्तुओं को समेटकर यथास्थान रख लिया जाये ।  जप के लिये माला तुलसी या चंदन की ही लेनी चाहिये ।  सूर्योदय के दो घंटे पूर्व से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक कभी भी गायत्री उपासना की जा सकती है ।  मौन मानसिक जप चौबीस घंटे कभी किया जा सकता है ।  माला जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें तथा सुमेरु का उल्लंघन न करें ।
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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #4 on: April 04, 2007, 10:18:16 AM »
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  • शांति पाठ

    ऊँ घौः शान्तिरन्तरिक्ष ऊँ शान्तिः, पृथिवि शान्तिरापः, शान्तिरोषधयः शान्तिः ।  वनस्पतयः शान्तिर्विश्र्वेदेवाः, शान्तिब्रर्हशान्तिः, सर्व ऊँ शान्तिः, शान्तिरेवः, सा मा शान्तिरेधि ।।  ऊँ शान्तिः, शान्तिः, शान्ति ।  सर्वारिष्ट-सुशान्तिभर्वतु ।।
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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #5 on: April 04, 2007, 10:20:54 AM »
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  • श्री गायत्री चालीसा

       दोहा

    हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
    शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ।।
    जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।
    प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ।।

    भूर्भुवः स्वः ऊँ युत जननी ।  गायत्री नित कलिमल दहनी ।।
    अक्षर चौबिस परम पुनीता ।  इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ।।
    शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।  सत्य सनातन सुधा अनूपा ।।
    हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।  स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ।।
    पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।  शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ।।
    ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।  सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ।।
    कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।  निराकार की अदभुत माया ।।
    तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।  तरै सकल संकट सों सोई ।।
    सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।  दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ।।
    तुम्हरी महिमा पारन पावें ।  जो शारद शत मुख गुण गावें ।।
    चार वेद की मातु पुनीता ।  तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ।।
    महामंत्र जितने जग माहीं ।  कोऊ गायत्री सम नाहीं ।।
    सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।  आलस पाप अविघा नासै ।।
    सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।  काल रात्रि वरदा कल्यानी ।।
    ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते ।  तुम सों पावें सुरता तेते ।।
    तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।  जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ।।
    महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।  जै जै जै त्रिपदा भय हारी ।।
    पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।  तुम सम अधिक न जग में आना ।।
    तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।  तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ।।
    जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।  पारस परसि कुधातु सुहाई ।।
    तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।  माता तुम सब ठौर समाई ।।
    ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे ।  सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ।।
    सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।  पालक पोषक नाशक त्राता ।।
    मातेश्वरी दया व्रत धारी ।  तुम सन तरे पतकी भारी ।।
    जापर कृपा तुम्हारी होई ।  तापर कृपा करें सब कोई ।।
    मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें ।  रोगी रोग रहित है जावें ।।
    दारिद मिटै कटै सब पीरा ।  नाशै दुःख हरै भव भीरा ।।
    गृह कलेश चित चिंता भारी ।  नासै गायत्री भय हारी ।।
    संतिति हीन सुसंतति पावें ।  सुख संपत्ति युत मोद मनावें ।।
    भूत पिशाच सबै भय खावें ।  यम के दूत निकट नहिं आवें ।।
    जो सधवा सुमिरें चित लाई ।  अछत सुहाग सदा सुखदाई ।।
    घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।  विधवा रहें सत्य व्रत धारी ।।
    जयति जयति जगदम्ब भवानी ।  तुम सम और दयालु न दानी ।।
    जो सदगुरु सों दीक्षा पावें ।  सो साधन को सफल बनावें ।।
    सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी ।  लहैं मनोरथ गृही विरागी ।।
    अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता ।  सब समर्थ गायत्री माता ।।
    ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी ।  आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ।।
    जो जो शरण तुम्हारी आवें ।  सो सो मन वांछित फल पावें ।।
    बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ ।  धन वैभव यश तेज उछाऊ ।।
    सकल बढ़ें उपजे सुख नाना ।  जो यह पाठ करै धरि ध्याना ।।

    यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय ।  तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ।।

       ऊँ भूर्भवः स्वः त्तसवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

                    ।। आरती गायत्री जी की ।।


    जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता ।
    आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री ।
    दुःख, शोक, भय, क्लेश, कलह दारिद्रय दैन्य हर्त्री ।।
    ब्रहृ रुपिणी, प्रणत पालिनी, जगतधातृ अम्बे ।
    भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ।।
    भयहारिणि भव तारिणि अनघे, अज आनन्द रराशी ।
    अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी ।।
    कामधेनु सत् चित् आनन्दा, जय गंगा गीता ।
    सविता की शाश्वती शक्ति, तुम सावित्री सीता ।।
    ऋग्, यजु, साम, अर्थव, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे ।
    कुण्डलिनी सहस्त्रार, सुषुम्ना, शोभा गुण गरिमे ।।
    स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रहाणी, राधा, रुद्राणी ।
    जय सतरुपा, वाणी, विघा, कमला, कल्याणी ।।
    जननी हम है दीन, हीन, दुःख, दारिद के घेरे ।
    यदपि कुटिल, कपटी कपूत, तऊ बालक है तेरे ।।
    स्नेहसनी करुणामयि माता, चरण शरण दीजै ।
    बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै ।।
    काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्घेष हरिये ।
    शुद्घ बुद्घि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ।।
    तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता ।
    सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता ।।
    जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता ।।

            आरती समाप्त होने पर साष्टांग नमस्कार
                   ऊँ नमोडस्त्वनन्ताय
       सहस्त्रमूर्तये, सहम्त्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे ।  सहस्त्रनाम्ने
       पुरुषा शाश्वते, सहस्त्रकोटी युगधारिणे नमः ।।
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    « Reply #6 on: April 04, 2007, 10:22:51 AM »
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  • गायत्री स्तुति

    ऊँ स्तुता मया वरदा वेदमाता, प्रचोदयन्तां पावमानी द्घिजानाम् ।  आयुः प्राणं प्रजां पशुं, कीर्ति द्रविणं ब्रहृवर्चसम् ।  महृं दत्वा ब्रजत ब्रहृलोकम् ।

    अर्थ – ( मेरे द्घारा स्तुत, द्घिजों (संसकारी जनों) को भी पवित्र करने वाली हे वरदायिनी वेदमाता (गायत्री) सन्तमार्ग पर प्रेरित करती हुई हमें दीर्घायु, प्राण (साहस), प्रजा (सन्तान-सहयोगी) पशु कीर्ति द्रविण (समृद्घि) ब्रहृवर्चस (ब्रहृज्ञान एवं बल) प्रदान करके आप (अपने) ब्रहृलोक को प्रस्थान करें । )
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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #7 on: April 04, 2007, 10:23:56 AM »
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  • गायत्री स्तवन


    ऊँ यन्मंडलं दीप्तिकरं विशालम्, रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम् ।
    दारिद्रय – दुःखक्षय कारणं च, पुनातु मां तत्सवितुवर्रेण्यम् ।। 1 ।।
    यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितम्, विप्रैः स्तुतं मानवमुक्तिकोविदम् ।
    तं देवदेवं प्रणमामि भर्गं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 2 ।।
    यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यं, त्रैलोक्य पूज्यं त्रिगुणात्मरुपम् ।
    समस्त तेजोमय दिव्यरुपं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 3 ।।
    यन्मण्डलं गूढमति प्रबोधं, धर्मस्य वृद्घिं कुरुते जनानाम् ।
    यत् सर्वपापक्षयकारणं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 4 ।।
    यन्मण्डलं व्याधि विनाशदक्षम्, यद्घग् यजुः सासमु सम्प्रगीतम् ।
    प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वः, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 5 ।।
    यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति, गायन्ति यच्चारण सिद्घसंघाः ।
    यघोगिनो योगजुषां च संघाः, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 6 ।।
    यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितं, ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।
    यत्काल कालादिमनादिरुपम, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 7 ।।
    यन्मण्डलं विष्णुचतुर्मुखास्यं, यदक्षरं पापहरं जनानाम् ।
    यत्कालकल्पक्षयकारणं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 8 ।।
    यन्मण्डलं विश्वसृजां प्रसिद्घं, उत्पत्ति रक्षा प्रलयप्रगल्भम् ।
    यस्मिन्जगत् संहरतेडखिलं च, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 9 ।।
    यन्मण्जलं सर्वगतस्य विष्णोंः, आत्मा परंधाम विशुद्घतत्वम् ।
    सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 10 ।।
    यन्मण्डलं ब्रहृविदो वदन्ति, गायन्ति यच्चारण सिद्घसंघाः ।
    यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 11 ।।
    यन्मण्डलं वेद विदोपगीतं, यघोगिनां योग पथानुगम्यम् ।
    तत्सर्ववेदं प्रणमामि दिव्यं, पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ।। 12 ।।


       गायत्री स्तवन (पघानुवाद)


    शुभ ज्योति के पुंज, अनादि अनुपम, ब्रहमाण्ड व्यापी आलोक कर्ता ।
    दारिद्रय दुःख भय से मुक्त कर दो पावन बना दो हे देव सविता ।। 1 ।।
    ऋषि देवताओं से नित्य पूजित, हे भर्ग भव बन्धन मुक्ति कर्ता ।।
    स्वीकार करलो वंदन हमारा, पावन बना दो हे देव सविता ।। 2 ।।
    हे ज्ञान के घन त्रैलोक्य पूजित, पावन गुणों के विस्तार कर्ता । 
    समस्त प्रतिभा के आदि कारण, पावन बना दो हे देव सविता ।। 3 ।।
    हे गूढ़ अंतःकरण में विराजित, तुम दोष-पापादि संहार कर्ता ।
    शुभ धर्म का बोध हमको करा दो, पावन बना दो हे देव सविता ।। 4 ।।
    हे व्याधि नाशक हे पुष्टि दाता, ऋग्, साम, यजु वेद संचार कर्ता ।
    हे भूर्भुवः स्वः में स्व प्रकाशित, पावन बना दो हे देव सविता ।। 5 ।।
    सब वेद विद, चारण, सिद्घ योगी, जिसके सदा से है गान कर्ता ।
    हे सिद्घ संतों के लक्ष्य शाश्वत, पावन बना दो हे देव सविता ।। 6 ।।
    हे विश्व मानव से आदि पूजित, नश्वर जगत् मेंशुभ ज्योति कर्ता ।
    हे काल के काल-अनादि ईश्वर, पावन बना दो हे देव सविता ।। 7 ।।
    हे विष्णु, ब्रहादि द्घारा प्रचारित, हे भक् पालक, हे पाप हर्ता ।
    हे काल-कल्पादि के आदि स्वामी, पावन बना दो हे देव सविता ।। 8 ।।
    हे विश्व मंडल के आदि कारण, उत्पत्ति-पालन-संहार कर्ता ।
    होता तुम्ही में लय यह जगत् सब, पावन बना दो हे देव सविता ।। 9 ।।
    हे सर्वव्यापी, प्रेरक नियन्ता, विशुद्घ आत्मा कल्याण कर्ता ।
    शुभ योग पथ पर हम को चलाओ, पावन बना दो हे देव सविता ।। 10 ।।
    हे ब्रहृनिष्ठों से आदि पूजित, वेदज्ञ जिसके गुणगान कर्ता ।
    सदभावना हम सब में जगा दो, पावन बना दो हे देव सविता ।। 11 ।।
    हे योगियों के शुभ मार्गदर्शक, सदज्ञान के आदि संचार कर्ता ।
    प्राणिपात स्वीकार लो हम सभी का, पावन बना दो हे देव सविता ।। 12 ।।
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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #8 on: April 04, 2007, 10:24:46 AM »
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  • ।। एक तुम्हीं आधार सदगुरु ।।


    एक तुम्हीं आधार सदगुरु, एक तुम्हीं आधार सदगुरु ।
    जब तक मिलो न तुम जीवन में ।  शांति कहां मिल सकती मन में ।।
    खोज फिरा संसार सदगुरु ।  एक तुम्हीं आधार सदगुरु ।।
    कैसा भी हो तैरन हारा ।  मिले न जब तक शरण सहारा ।।
    हो न सका उस पार सदगुरु ।  एक तुम्हीं आधार सदगुरु ।।
    हे प्रभु तुमहिं विविध रुपों में ।  हमें बचाते भव कूपों से ।।
    ऐसे परम उदार सदगुरु ।  एक तुम्हीं आधार सदगुरु  ।।
    हम आए है द्घार तुम्हारे ।  अब उद्घार करो दुःखहारे ।।
    सुन लो दास पुकार सदगुरु । एक तुम्हीं आधार सदगुरु ।।
    छा जाता जग में अंधियारा ।  तब पाने प्रकाश की धारा ।।
    आते तेरे द्घार सदगुरु ।  एक तुम्हीं आधार सदगुरु ।।
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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #9 on: April 04, 2007, 10:26:06 AM »
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  • महाकाल स्तवन

    असंभवं संभव-कर्त्तुमुघतं, प्रचण्ड-झंझावृतिरोधसक्षमम् ।
    युगस्य निर्माणकृते समुघतं, परं महाकालममुं नमाम्यहम् ।।
    यदा धरायामशांतिः प्रवृद्घा, तदा च तस्यां शांतिं प्रवर्धितुम् ।
    विनिर्मितं शांतिकुंजाख्य-तीर्थकं, परं महाकालममुं नमाम्यहम् ।।
    अनाघनन्तं परमं महीयसं, विभोः स्वरुपं परिचाययन्मुहुः ।
    यगगानुरुपं च पंथं व्यदर्शयत्, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।।
    उपेक्षिता यज्ञ महादिकाः क्रियाः, विलुप्तप्राय खलु सान्ध्यमाहिकम् । 
    समुद्धृतं येन जगद्धिताय वै, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।।
    तिरस्कृतं विस्मडतमप्युपेक्षितं, आरोग्यवहं यजन प्रचारितुंम् ।
    कलौ कृतं यो रचितुं समघतः, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।।
    तपः कृतं येन जगद्घिताय, विभीषिकायाश्च जगन्नु रक्षितुम ।
    समुज्ज्वला यस्य भविष्य-घोषणा, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।।
    मृदुहृदारं हृदयं नु यस्य यत्, तथैव तीक्ष्णं गहनं च चिन्तनम् ।
    ऋषेश्चरित्रं परमं पवित्रकं, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।।
    जनेष देवत्ववृतिं प्रवर्धितुं, वियद् धरायाच्च विधातुमक्षयम् ।
    युगस्य निर्माणकृता च योजना, परं महाकालममुं नामाम्यहम् ।।
    यः पठेच्चिन्त येच्चापि, महाकाल-स्वरुपकम् । लभेत परमां प्रीति, महाकाल कृपादृशा ।।

       महाकाल स्तुति (पघानुवाद)

    असंभव पराक्रम के हेतु तत्पर, विध्वंस का जो करता दलन है ।
    नव सृजन पुण्य संकल्प जिसका, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।।
    भू पर भरी भ्रांति की आग के बीच, जो शक्ति के तत्व करता चयन है ।
    विकसित किए शांति कुंजादि युग तीर्थ, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।।
    अनादि अनुपम, अश्वर, अगोचर, जिनका सभी भाँति अनुभव कठिन है ।
    यद शक्ति का बोध सबको कराया, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।।
    विस्मृत उपेक्षित पड़ी साधना का, जिनने किया जागरण उन्नयन है ।
    घर-घर प्रतिष्ठित हुई वेदमाता, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।।
    यज्ञीय विज्ञान, यज्ञीय जीवन, जो सृष्टि पोषक दिव्याचरण है ।
    उसको उबारा प्रतिष्ठित बनाया, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।।
    मनुष्यता के दुःख दूर करने, तपकर कमाया परम पुण्य धन है । 
    उज्जवल भविष्यत् की घोषणा की, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।।
    अनीति भंजक शुभ कोप जिनका, शुभ ज्ञानयुत श्रेष्ठ चिंतन गहन है ।
    ऋषिकल्प जीवन जिनका परिष्कृत, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।।
    देवत्व मानव मन में जगाकर, संकल्प भू पर अमरपपुर सृजन है । 
    युग की सृजन योजना के प्रणेता, ऐसे महाकाल को नित नमन है ।।
    महाकाल की प्रेरणा, श्रद्घायुत चित लाय ।  नर पावे सदगति परम्, त्रिवध ताप मिट जाय ।।
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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #10 on: January 15, 2008, 06:54:08 AM »
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  • ॐ साईं राम~~~

    ऊँ भूर्भवः स्वः त्तसवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्~~~
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    जय साईं राम~~~
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    Offline tana

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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #11 on: January 23, 2008, 06:03:59 AM »
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    Offline SUMITSONI

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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #12 on: January 25, 2008, 05:29:49 PM »
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  • GAYATRI MANTRA...

    AUM BHOOR BHUWAH SWAHA,
    TAT SAVITUR VARENYAM
    BHARGO DEVASAYA DHEEMAHI
    DHIYO YO NAHA PRACHODAYAT 
     OM SHANTI SHANTI SHANTI OM[/font][/color][/font]

    Offline tana

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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #13 on: February 01, 2008, 06:25:32 AM »
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  • ॐ साईं राम~~~

    ऊँ भूर्भवः स्वः त्तसवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्~~~
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    Offline MANAV_NEHA

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    Re: Gayatri Mantra...
    « Reply #14 on: February 01, 2008, 09:56:57 PM »
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  • ऊँ भूर्भवः स्वः त्तसवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।



    ऊँ भूर्भवः स्वः त्तसवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।
    गुरूर्ब्रह्मा,गुरूर्विष्णुः,गुरूर्देवो महेश्वरः
    गुरूर्साक्षात् परब्रह्म् तस्मै श्री गुरवे नमः॥
    अखण्डमण्डलाकांरं व्याप्तं येन चराचरम्
    तत्विदं दर्शितं येन,तस्मै श्री गुरवे नमः॥


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