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Author Topic: श्री सरस्वती चालीसा~~~  (Read 2617 times)

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Offline tana

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श्री सरस्वती चालीसा~~~
« on: February 10, 2008, 11:43:19 PM »
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  • ॐ साईं राम~~~

    श्री सरस्वती चालीसा~~~ 
     
    दोहा~~


    जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
    बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
    पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
    दुष्टजनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

    जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
    जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥

    जय जय जय वीणाकर धारी।
    करती सदा सुहंस सवारी॥

    रूप चतुर्भुज धारी माता।
    सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

    जग में पाप बुद्धि जब होती।
    तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥

    तब ही मातु का निज अवतारी।
    पाप हीन करती महतारी॥

    वाल्मीकिजी थे हत्यारा।
    तव प्रसाद जानै संसारा॥

    रामचरित जो रचे बनाई।
    आदि कवि की पदवी पाई॥

    कालिदास जो भये विख्याता।
    तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

    तुलसी सूर आदि विद्वाना।
    भये और जो ज्ञानी नाना॥

    तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।
    केवल कृपा आपकी अम्बा॥

    करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
    दुखित दीन निज दासहि जानी॥

    पुत्र करहिं अपराध बहूता।
    तेहि न धरई चित माता॥

    राखु लाज जननि अब मेरी।
    विनय करउं भांति बहु तेरी॥

    मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
    कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

    मधु-कैटभ जो अति बलवाना।
    बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥

    समर हजार पाँच में घोरा।
    फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥

    मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।
    बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥

    तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
    पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

    चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
    क्षण महु संहारे उन माता॥

    रक्त बीज से समरथ पापी।
    सुरमुनि हृदय धरा सब काँपी॥

    काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।
    बार-बार बिन वउं जगदंबा॥

    जगप्रसिद्ध जो शुंभ-निशुंभा।
    क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥

    भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई।
    रामचन्द्र बनवास कराई॥

    एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।
    सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥

    को समरथ तव यश गुन गाना।
    निगम अनादि अनंत बखाना॥

    विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।
    जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

    रक्त दन्तिका और शताक्षी।
    नाम अपार है दानव भक्षी॥

    दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
    दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

    दुर्ग आदि हरनी तू माता।
    कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

    नृप कोपित को मारन चाहे।
    कानन में घेरे मृग नाहे॥

    सागर मध्य पोत के भंजे।
    अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

    भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
    हो दरिद्र अथवा संकट में॥

    नाम जपे मंगल सब होई।
    संशय इसमें करई न कोई॥

    पुत्रहीन जो आतुर भाई।
    सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥

    करै पाठ नित यह चालीसा।
    होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥

    धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।
    संकट रहित अवश्य हो जावै॥

    भक्ति मातु की करैं हमेशा।
    निकट न आवै ताहि कलेशा॥

    बंदी पाठ करें सत बारा।
    बंदी पाश दूर हो सारा॥

    रामसागर बाँधि हेतु भवानी।
    कीजै कृपा दास निज जानी॥

    दोहा~~

    मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
    डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
    बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
    राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

    (इति शुभम) 

    जय साईं राम~~~
     
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

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    Re: श्री सरस्वती चालीसा~~~
    « Reply #1 on: February 10, 2008, 11:45:18 PM »
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  • ॐ साईं राम~~~


    सरस्वती वंदना~~~
     
    हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
    अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

    जग सिरमौर बनाएँ भारत,
    वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥

    हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
    अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

    साहस शील हृदय में भर दे,
    जीवन त्याग-तपोमर कर दे,
    संयम सत्य स्नेह का वर दे,
    स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥1॥

    हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
    अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

    लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
    मानवता का त्रास हरें हम,
    सीता, सावित्री, दुर्गा माँ,
    फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥2॥

    हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
    अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ 

    जय साईं राम~~~
     
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
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    Offline tana

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    Re: श्री सरस्वती चालीसा~~~
    « Reply #2 on: February 10, 2008, 11:48:32 PM »
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  • ॐ साईं राम~~~

    श्री सरस्वतीजी की आरती~~~ 
     
    आरती करूँ सरस्वती मातु,

    हमारी हो भव भय हारी हो।

    हंस वाहनपदमासन तेरा,

    शुभ वस्त्र अनुपम है तेरा।

    रावण का मान कैसे फेरा,

    वर माँगत बन गया सबेरा।

    यह सब कृपा तिहारी हो,

    उपकारी हो मातु हमारी हो।

    तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो,

    हम अम्बुजन विकास करती हो।

    मंगलभवन मातु सरस्वती हो,

    बहुकूकन बाचाल करती हो।

    विद्या देने वाली वाणी धारी हो,

    मातु हमारी हो।

    तुम्हारी कृपा गणनायक,

    लायक विष्णु भये जग के पालक ।

    अम्बा कहाई सृष्टि ही कारण,

    भये शम्भु संसार ही घालक बन्दों आदि।

    भवानी जग, सुखकारी हो, मातु हमारी हो।

    सद्‍बुद्धि विद्याबल मोही दीजै,

    तुम अज्ञान हटा रख लीजै।

    जन्मभूमि हित अर्पण कीजै,

    कर्मवीर भस्महिं कर दीजै।

    ऐसी विनय हमारी, भवभयहारी हो,

    मातु हमारी हो।

    जय साईं राम~~~

     
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    Offline MANAV_NEHA

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    Re: श्री सरस्वती चालीसा~~~
    « Reply #3 on: February 11, 2008, 01:07:04 PM »
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  • OM HIRIM SHRI SARASWATI BHAGWATI VIDYA PRASADAM KURU SU HA HA   

    OM HIRIM SHRI SARASWATI BHAGWATI VIDYA PRASADAM KURU SU HA HA   
    OM HIRIM SHRI SARASWATI BHAGWATI VIDYA PRASADAM KURU SU HA HA   

    OM HIRIM SHRI SARASWATI BHAGWATI VIDYA PRASADAM KURU SU HA HA   

    OM HIRIM SHRI SARASWATI BHAGWATI VIDYA PRASADAM KURU SU HA HA   

     
    गुरूर्ब्रह्मा,गुरूर्विष्णुः,गुरूर्देवो महेश्वरः
    गुरूर्साक्षात् परब्रह्म् तस्मै श्री गुरवे नमः॥
    अखण्डमण्डलाकांरं व्याप्तं येन चराचरम्
    तत्विदं दर्शितं येन,तस्मै श्री गुरवे नमः॥


    सबका मालिक एक

     


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