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Author Topic: ~~~All Chalisa's In Hindi~~~चालीसा~~~  (Read 15214 times)

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Offline tana

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~~~All Chalisa's In Hindi~~~चालीसा~~~
« on: May 11, 2008, 02:23:55 AM »
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  • ॐ साँई राम~~~

    श्री हनुमान चालीसा~~~

    दोहा~~

    श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
    बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
    बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
    बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

    चौपाई~~

    जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
    राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
    महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
    कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥
    हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
    संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥
    बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
    प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
    सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
    भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे॥
    लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
    रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
    सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
    सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
    जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
    तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।
    तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥
    जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
    प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही। जलधि लाँधि गये अचरज नाहीं॥
    दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
    राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
    सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥
    आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥
    भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥
    नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
    संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
    सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
    और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥
    चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
    साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥
    अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
    राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
    तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
    अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त  कहाई॥
    और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
    संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
    जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
    जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥
    जो यह पढै़ हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
    तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

    दोहा

    पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
    राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥



    जय साँई राम~~~

    « Last Edit: May 24, 2008, 12:04:02 AM by tana »
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #1 on: May 11, 2008, 02:25:16 AM »
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  • ॐ साईं राम~~~

    श्री सरस्वती चालीसा~~~ 
     
    दोहा~~


    जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
    बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
    पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
    दुष्टजनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

    जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
    जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥

    जय जय जय वीणाकर धारी।
    करती सदा सुहंस सवारी॥

    रूप चतुर्भुज धारी माता।
    सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

    जग में पाप बुद्धि जब होती।
    तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥

    तब ही मातु का निज अवतारी।
    पाप हीन करती महतारी॥

    वाल्मीकिजी थे हत्यारा।
    तव प्रसाद जानै संसारा॥

    रामचरित जो रचे बनाई।
    आदि कवि की पदवी पाई॥

    कालिदास जो भये विख्याता।
    तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

    तुलसी सूर आदि विद्वाना।
    भये और जो ज्ञानी नाना॥

    तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।
    केवल कृपा आपकी अम्बा॥

    करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
    दुखित दीन निज दासहि जानी॥

    पुत्र करहिं अपराध बहूता।
    तेहि न धरई चित माता॥

    राखु लाज जननि अब मेरी।
    विनय करउं भांति बहु तेरी॥

    मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
    कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

    मधु-कैटभ जो अति बलवाना।
    बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥

    समर हजार पाँच में घोरा।
    फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥

    मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।
    बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥

    तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
    पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

    चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
    क्षण महु संहारे उन माता॥

    रक्त बीज से समरथ पापी।
    सुरमुनि हृदय धरा सब काँपी॥

    काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।
    बार-बार बिन वउं जगदंबा॥

    जगप्रसिद्ध जो शुंभ-निशुंभा।
    क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥

    भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई।
    रामचन्द्र बनवास कराई॥

    एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।
    सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥

    को समरथ तव यश गुन गाना।
    निगम अनादि अनंत बखाना॥

    विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।
    जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

    रक्त दन्तिका और शताक्षी।
    नाम अपार है दानव भक्षी॥

    दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
    दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

    दुर्ग आदि हरनी तू माता।
    कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

    नृप कोपित को मारन चाहे।
    कानन में घेरे मृग नाहे॥

    सागर मध्य पोत के भंजे।
    अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

    भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
    हो दरिद्र अथवा संकट में॥

    नाम जपे मंगल सब होई।
    संशय इसमें करई न कोई॥

    पुत्रहीन जो आतुर भाई।
    सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥

    करै पाठ नित यह चालीसा।
    होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥

    धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।
    संकट रहित अवश्य हो जावै॥

    भक्ति मातु की करैं हमेशा।
    निकट न आवै ताहि कलेशा॥

    बंदी पाठ करें सत बारा।
    बंदी पाश दूर हो सारा॥

    रामसागर बाँधि हेतु भवानी।
    कीजै कृपा दास निज जानी॥

    दोहा~~

    मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
    डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥
    बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
    राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

    (इति शुभम) 

    जय साईं राम~~~
     

    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #2 on: May 11, 2008, 02:31:10 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री दुर्गा चालीसा   

    नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ।।

    निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ।।

    शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।।

    रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ।।

    तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ।।

    अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ।।

    प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।।

    शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रहृ विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ।।

    रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ।।

    धरा रुप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भई फाड़कर खम्बा ।।

    रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।।

    लक्ष्मी रुप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ।।

    क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ।।

    हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ।।

    मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ।।

    श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ।।

    केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ।।

    कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ।।

    सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ।।

    नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ।।

    शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ।।

    महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ।।

    रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ।।

    परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ।।

    अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ।।

    ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ।।

    प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ।।

    ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताको छुटि जाई ।।

    जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ।।

    शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ।।

    निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ।।

    शक्ति रुप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ।।

    शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ।।

    भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ।।

    मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ।।

    आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ।।

    शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ।।

    करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ।।

    जब लगि जियौं दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ।।

    दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ।।

    देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।

    जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
    जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~


    जय सांई राम~~~

    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

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    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

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    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #3 on: May 11, 2008, 02:37:08 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    साई चालीसा~~~

    पहले साई के चरणों में, अपना शीश नवाऊँ मैं । कैसे शिरडी आये साई, सारा हाल सुनाऊ मै ।।

    कौन है माता, पिता कौन है, यह ना किसी ने भी जाना । कहाँ जन्म साई ने धारा, प्रश्न पहेली बना रहा ।।

    कोई कहे अयोध्या के, ये रामचन्द्र भगवान है । कोई कहता साईबाबा, पवनपुत्र हनुमान है ।।

    कोई कहता मंगलमूरति, श्री गजानन है साई । कोई कहता गोकुलमोहन, देवकी नन्दन है साई ।।

    शंकर समझ भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते । कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साई की करते ।।

    कुछ भी मानो उनका तुम, पर साई है सच्चे भगवान । बडे दयालु दीनबंधु, कितनों को दिया जीवन दान ।।

    कई बरस पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मै बात । किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात ।।

    आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुन्दर । आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर।।

    कई दिनों तक रहा भटकता, भिक्षा मांगी उसने दर-दर । और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर ।।

    जैसे-जैसे उमर बढी़, बढती ही वैसे गई शान । घर-घर होने लगी नगर में, साईबाबा का गुणगान ।।

    दिग् दिगन्त में लगा गूँजने, फिर तो साई जी का नाम । दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम ।।

    बाबा के चरणों में जाकर, जो कहता मैं हूँ निरधन । दया उसी पर होती उनकी, खुल जाते दुःख के बन्धन ।।

    कभी किसी ने माँगी भिक्षा, दो बाबा मुझको संतान । एवमस्तु तब कहकर साई, देते थे उसको वरदान ।।

    स्वयं दुःखी बाबा हो जाते, दीन-दुखी जन का लख हाल । अन्तःकरन श्री साई का, सागर जैसा रहा विशाल ।।

    भक्त एक मद्रासी आया, घर का बहुत बडा धनवान । माल खजाना बेहद उनका, केवल नहीं रही सन्तान ।।

    लगा मनाने साईनाथ को बाबा मुझ पर दया करो । झंझा से झंकृत नैया को, तुम ही मेरी पार करो ।।

    कुलदीपक के बिना अंधेरा, छाया हुआ घर में मेरे । इसीलिए आया हूँ बाबा, होकर शरणागत तेरे ।।

    कुलदीपक के अभाव में, व्यरथ है दौलत की माया । आज भिखारी बनकर बाबा, शरण तुम्हारी मैं आया ।।

    दे-दो मुझको पुत्र-दान मै ऋणी रहूँगा जीवन भर । और किसी की आशा न मुझको, सिफ भरोसा है तुम पर ।। 1

    अनुनय-विनय बहुत की उसने, चरणों में धर के शीश । तब प्रसन्न होकर बाबा ने, दिया भक्त को यह आशीश ।।

    अल्ला भला करेगा तेरा, पुत्र जन्म हो तेरे घर । कृपा होगी तुम पर उसकी, और तेरे उस बालक पर ।।

    अब तक नही किसी ने पाया, साई की कृपा का पार । पुत्र-रत्न दे मद्रासी को, धन्य किया उसका संसार ।।

    तन-मन से जो भजे उसु का, जग में होता है उृदार । साँच को आँच नहीं हैं कोई, कदा झूठ की होती हार ।।

    मैं हूँ सदा सहारे उसके, सदा रहूँगा उसका दास । साई जैसा प्रभु मिला हैं, इतनी ही कम हैं आस ।।

    मेरा भी दिन था इक ऐसा, मिलती नही थी मुझे रोटी । तन पर कपडा दूर रहा था, शेष रही नन्ही सी लंगोटी ।।

    सरिता सन्मुख होने पर भी, मैं प्यासा का प्यासा था । दुरदिन मेरा मेरे ऊपर, दावागि्न बरसाता था ।। 2

    धरती के अतिरिक्त जगत में, मेरा कुछ अवलम्ब न था । बना भिखारी मैं दुनिया में, दर-दर ठोकर खाता था ।।

    ऐसे में इक मित्र मिला जो, परम भक्त साई का था । जंजालों से मुक्त मगर, जगती में वह भी मुझसा था ।।

    बाबा के दरशन की खातिर, मिल दोनों ने किया विचार । साई जैसे दया मूरति के, दरशन को हो गए तैयार ।। 4

    पावन शिरडी नगर में जाकर, देखी मतवाली मूरति । धन्य जन्म हो गया कि हमने, जब देखी साई की सूरति ।।

    जब से किये हैं दरशन हमने, दुःख सारा काफूर हो गया । संकट सारे मिटे और, विपदाओं का अन्त हो गया ।।

    मान और सम्मान मिला, भिक्षा हमको बाबा से । प्रतिबिम्बित हो उठे जगत में, हम साई की आभा से ।।

    बाबा ने सम्मान दिया हैं, मान दिया इस जीवन में । इसका ही सम्बल ले मैं हँसता जाऊँगा जीवन में ।।

    साई की लीला का मेरे, मन पर ऐसा असर हुआ । लगता, जगती के कण-कण में, जैसे हो वह भरा हुआ ।।

    काशीराम, बाबा का भक्त, इस शिरडी में रहता था । मैं साई का, साई मेरा, वह दुनिया से कहता था ।।

    सीकर स्वयं वस्त्र बेचता, ग्राम नगर बाजारों में । झंकृत उनकी हृदय तन्त्री थी, साई की झंकारों में ।।

    स्तब्ध निशा थी, थे सोये, रजनी अंचल में चाँद सितारे । नहीं सूझता रहा हाथ का हाथ, तिमिर के मारे ।।

    वस्त्र बेच कर लौट रहा था हाय हाट से काशी। विचित्र संयोग कि उस दिन आता था वह एकाकी ।।

    घेर राह में खडे हो गये, उसे कुटिल अन्यायी । मारो काटो लूटो इसकी, ही ध्वनि पडी सुनायी ।।

    लूट पीटकर उसे वहाँ से, कुटिल गये चम्पत हो । आघातों से मरमागत हो, उसने दी थी संज्ञा खो ।। 5

    बहुत देर तक पडा रहा वह, वहीं उसी हालत में । जाने कब कुछ होश हो उठा, उसे किसी पलक में ।।

    अनजाने ही उसके मुँह से, निकल पडा था साई । जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में, बाबा को पडी सुनाई ।।

    क्षुब्ध उठा हो मानस उसका, बाबा गए विकल हो । लगता जैसे घटना सारी, घटी उन्हीं के सन्मुख हो ।।

    उन्मादी से इधर-उधर तब, बाबा लगे भटकने । सन्मुख चीजें जो भी आई उनको लगे पटकने ।।

    और धधकते अंगारों में, बाबा ने अपना कर डाला । हुए शंशिकत सभी वहाँ, लख तांडव नृत्य निराला ।।

    समझ गए सब लोग कि कोई, भक्त पडा संकट में । क्षुभित खडे थे सभी वहाँ पर, पडे हुए विस्मय में ।।

    उसे बचाने के खातिर, बाबा आज विकल हैं । उसकी ही पीडा से पीडित, उनका अन्त स्थल हैं ।।

    इतने में ही विधि ने अपनी, विचित्रता दिखलाई । लख कर जिसको जनता की, श्रदृा सिरता लहराई ।। 6

    लेकर संज्ञाहीन भक्त को, गाडी एक वहाँ आई । सन्मुख अपने देख भक्त को, साई की आँखें भर आई ।।

    शान्त, धीर, गंभीर सिन्धु सा, बाबा का अन्तःस्तल । आज न जाने क्यों रह-रहकर, हो जाता था चंचल ।।

    आज दया की मूरति स्वयं था, बना हुआ उपचारी । और भक्त के लिए आज था, देव बना प्रतिहारी ।।

    आज भक्ति की विषम परीक्षा में, सफल हुआ था काशी । उसके ही दरशन की खातिर, थे उमडे नगर निवासी ।।

    जब भी और जहाँ भी कोई, भक्त पड़े संकट में । उसकी रक्षा करने बाबा, आते है पलभर में ।।

    युग-युग का है सत्य यह, नहीं कोई नई कहानी । आपतग्रस्त भक्त जब होता, आते खुद अन्तरयामी ।। 7

    भेद-भाव से परे पुजारी, मानवता के थे साई । जितने प्यारे हिन्दू मुसि्लम, उतने ही थे सिक्ख ईसाई ।।

    भेद-भाव मंदिर-मसि्जद का तोड़-फोड़ बाबा ने ड़ाला । राम-रहीम सभी उनके थे, कृष्ण करीम अल्लाताला ।।

    घण्टे की प्रतिध्वनि से गूँजा, मसजिद का कौना-कौना । मिले परस्पर हिन्दू मुसि्लम, प्यार बढा दिन-दिन दूना ।।

    चमत्कार था कितना सुन्दर, परिचय इस काया ने दी । और नीम कडुवाहट में भी, मिठास बाबा ने भर दी ।।

    सब को स्नेह दिया साई ने, सब को समतुल प्यार किया । जो कुछ जिसने भी चाहा, बाबा ने उसको वही दिया ।।

    ऐसे स्नेहशील भजन का, नाम सदा जो जपा करे । परवत जैसा दुख न क्यों हो, पलभर में वह दूर टरे ।।

    साईं जैसा दाता हमने, अरे नहीं देखा कोई । जिसके केवल दरशन से ही, सारी विपदा दूर हो गयी ।।

    तन में साईं, मन में साईं, साईं-साईं भजा करो । अपने तन की सुध-बुध खोकर, सुधि उसकी तुम किया करो ।।

    जब तू अपनी सुध तज कर, बाबा की सुध किया करेगा । और रात-दिन बाबा, बाबा ही तू रटा करेगा ।।

    तो बाबा को अरे । विवश हो, सुधि तेरी लेनी ही होगी । तेरी हर इच्छा बाबा को पूरी ही करनी होगी ।।

    जंगल-जंगल भटक न पागल, और ढूँढने बाबा को । एक जगह केवल शिरडी में, तू पायेगा बाबा को ।।

    धन्य जगत में प्राणी हैं वह, जिसने बाबा को पाया । दुःख में, सुख में प्रहर आठ हो, साईं का ही गुण गाया ।।

    गिरे संकटों के परवत, चाहे बिजली ही टूट पड़े । साईं का ले नाम सदा तुम, सन्मुख सबके रहो अड़े ।।

    इस बूढे़ की सुन करामात, तुम हो जाओगे हैरान । दंग रह गए सुन कर जिसको, जाने कितने चतुर सुजान ।।

    एक बार शिरडी में साधु, ढोंगी था कोई आया । भोली-भाली नगर-निवासी, जनता को था भरमाया ।।

    जड़ी-बूटियाँ उन्हें दिखाकर, करने लगा वहाँ भाषण । कहने लगा सुनो श्रोतागण, घर मेरा है वृन्दावन ।।

    औषधि मेरे पास एक है, और अजब इसमें शकित । इसके सेवन करने से ही, हो जाती दुःख से मुकि्त ।।

    अगर मुक्त होना चाहो तुम, संकट से, बीमारी से । तो है मेरा नम्र निवेदन, हर नर से, हर नारी से ।।

    लो खरीद इसको तुम इसकी सेवन विधियाँ हैं न्यारी । यघिप तुच्छ वस्तु हैं यह, गुण इसके अति भारी ।।

    जो हैं संतति हीन यहाँ यदि, मेरी औषधि को खायें । पुत्र-रत्न हो प्राप्त, अरे और वह मुहँ माँगा फल पाये ।।

    औषधि मेरी जो न खरीदे, जीवन भर पछतायेगा । मुझ जैसा प्राणी शायद ही, अरे यहाँ आ पायेगा ।।

    दुनिया दो दिन का मेला हैं, मौज-शौक तुम भी कर लो । गर इससे मिलता हैं, सब कुछ, तुम भी इसको ले लो ।।

    हैरानी बढती जनता की, लख इसकी कारस्तानी । प्रमुदित वह भी मन-ही-मन था, लख लोगों की नादानी ।।

    खबर सुनाने बाबा को यह, गया दौ़ड़कर सेवक एक । सुनकर भृकुटी तनी और विस्मरण हो गया सभी विवेक ।।

    हुक्म दिया सेवक को, सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ । या शिरडी की सीमा से, कपटी को दूर भगाओ ।।

    मेरे रहते भोली-भाली, शिरडी की जनता को । कौन नीच ऐसा जो, साहस करता है छलने को ।।

    पलभर में ही ऐसे ढोंगी, कपटी नीच लुटेरे को । महानाश के महागरत में, पहुँचा दूं जीवन भर को ।।

    तनिक मिला आभास मदारी, क्रूर, कुटिल, अन्यायी को । काल नाचता है अब सिर पर, गुस्सा आया साई को ।।

    पलभर में सब खेल बन्द कर, भागा सिर पर रखकर पैर । सोच था मन ही मन, भगवान नहीं है क्या अब खैर ।।

    सच है साईं जैसा दानी, मिल न सकेगा जग में । अंश ईश का साईं बाबा, उन्हें न कुछ भी मुशिकल जग में ।।

    स्नेह, शील, सौजन्य आदि का, आभूषण धारण कर । बढ़ता इस दुनिया में जो भी, मानव सेवा के पथ पर ।।

    वही जीत लेता हैं जगती, के जन-जन का अन्तःस्तल । उसकी एक उदासी ही जग को, कर देती है विहल ।।

    जब-जब जग में भार पाप का, बढ़-बढ़ ही जाता है । उसे मिटाने की ही खातिर, अवतारी ही आता है ।।

    पाप और अन्याय सभी कुछ, इस जगती का हर के । दूर भगा देता दुनिया के दानव को क्षण भर के ।।

    ऐसे ही अवतारी साईं, मृत्युलोक में आकर । समता का यह पाठ पढ़ाया, सबको अपना आप मिटाकर ।।

    नाम दृारका मसि्जद का रखा शिरडी में साईं ने । दाप, ताप, सन्ताप मिटाया, जो कुछ आया साईं ने ।।

    सदा याद में मस्त राम की, बैठे रहते थे साईं । पहर आठ ही राम नाम को, भजते रहते थे साईं ।।

    सूखी-रूखी, ताजी-बासी, चाहे या होवे पकवान । सदा प्यार के भूखे साईं की, खातिर थे सभी समान ।।

    स्नेह और श्रदा से अपनी, जन जो कुछ दे जाते थे । बडे़ चाव से उस भोजन को, बाबा पावन करते थे ।।

    कभी-कभी मन बहलाने को, बाबा बाग में जाते थे । प्रमुदित मन निरख प्रकृति, छटा को वे होती थे ।।

    रंग-बिरंगे पुष्प बग के, मन्द-मन्द हिल-डुल करके । बीहड़ वीराने मन में भी, स्नेह सलिल भर जाते थे ।।

    ऐसी सुमधुर बेला में भी, दुःख आपात, विपदा के मारे । अपने मन की व्यथा सुनाने, जन रहते बाबा को घेरे ।।

    सुनकर जिनकी करूण कथा को नयन कमल भर आते थे । दे विभूति हर व्यथा, शानति उनके उर में भर देते थे ।।

    जाने क्या अद्भभुत शकित, उस विभूति में होती थी । जो धारण करते मस्तक पर, दुःख सारा हर लेती थी ।।

    धन्य मनुज वे साक्षात दरशन, जो बाबा साईं के पाये । धन्य कमल कर उनके जिनसे, चरण-कमल वे परसाये ।।

    काश निरभय तुमको भी, साक्षात साईं मिल जाता । बरसों से उजड़ा चमन अपना, फिर से आज खिल जाता ।।

    गर पकड़ता मैं चरण श्री के, नहीं छोड़ता उम्र भर । मना लेता मैं जरुर उनको, गर रुठते साईं मुझ पर ।।

    ।।समाप्त ।।


    जय सांई राम~~~
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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #4 on: May 11, 2008, 02:39:47 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री शिव चालीसा~~~

    दोहा~~

    जय गणेश गिरिजासुवन मंगल मूल सुजान ।
    कहत अयोध्यादास तुम देउ अभय वरदान ॥

    जय गिरिजापति दीनदयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
    भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नाग फनी के ॥
    अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाये ॥
    वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
    मैना मातु कि हवे दुलारी । वाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
    कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
    नंदी गणेश सोहैं तहं कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
    कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि कौ कहि जात न काऊ ॥
    देवन जबहीं जाय पुकारा । तबहिं दुख प्रभु आप निवारा ॥
    किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
    तुरत षडानन आप पठायउ । लव निमेष महं मारि गिरायउ ॥
    आप जलंधर असुर संहारा । सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
    त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । तबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
    किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
    दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
    वेद माहि महिमा तुम गाई । अकथ अनादि भेद नहीं पाई ॥
    प्रकटे उदधि मंथन में ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ॥
    कीन्ह दया तहं करी सहाई । नीलकंठ तब नाम कहाई ॥
    पूजन रामचंद्र जब कीन्हां । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
    सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं त्रिपुरारी ।
    एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
    कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
    जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सबके घट वासी ॥
    दुष्ट सकल नित मोहि सतावैं । भ्रमत रहौं मोहे चैन न आवैं ॥
    त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यह अवसर मोहि आन उबारो ॥
    ले त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहिं आन उबारो ॥
    मात पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
    स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ॥
    धन निर्धन को देत सदा ही । जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
    अस्तुति केहि विधि करों तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
    शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
    योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । शारद नारद शीश नवावैं ॥
    नमो नमो जय नमः शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
    जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत हैं शम्भु सहाई ॥
    रनियां जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
    पुत्र होन की इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
    पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
    त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । तन नहिं ताके रहै कलेशा ॥
    धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
    जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
    कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुख हरहु हमारी ॥

    दोहा~~

    नित नेम उठि प्रातःही पाठ करो चालीस ।
    तुम मेरी मनकामना पूर्ण करो जगदीश ॥

    जय सांई राम~~~
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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #5 on: May 11, 2008, 03:01:26 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री राम चालीसा~~~

    श्री रघुबीर भक्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥
    निशि दिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ॥
    ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥
    जय जय जय रघुनाथ कृपाला । सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥
    दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥
    तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥
    तुम अनाथ के नाथ गोसाईं । दीनन के हो सदा सहाई ॥
    ब्रह्मादिक तव पार न पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥
    चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥
    गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ॥
    नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ॥
    राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥
    गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥
    शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ॥
    फूल समान रहत सो भारा । पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥
    भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुँ न रण में हारो ॥
    नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥
    लषन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ॥
    ताते रण जीते नहिं कोई । युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥
    महा लक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ॥
    सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥
    घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ॥
    सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥
    सिद्धि अठारह मंगल कारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ॥
    औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥
    इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ॥
    जो तुम्हरे चरनन चित लावै । ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥
    सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥
    तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥
    जो कुछ हो सो तुमहीं राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥
    रामा आत्मा पोषण हारे । जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥
    जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा । निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥
    सत्य सत्य जय सत्य- ब्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥
    सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ॥
    सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥
    ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा । नमो नमो जय जापति भूपा ॥
    धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ॥
    सत्य शुद्ध देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥
    सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥
    याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥
    आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिव मेरा ॥
    और आस मन में जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥
    साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्धता पावै ॥
    अन्त समय रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
    श्री हरि दास कहै अरु गावै । सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥

    दोहा~~~

    सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।
    हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥
    राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।
    जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥

    जय सांई राम~~~
     

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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #6 on: May 11, 2008, 03:04:41 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री शनि चालीसा~~~

    दोहा~~

    जय गणेश गिरिजा सुवन मंगल करण कृपाल ।
    दीनन के दुख दूर करि कीजै नाथ निहाल ॥
    जय जय श्री शनिदेव प्रभु सुनहु विनय महाराज ।
    करहु कृपा हे रवि तनय राखहु जनकी लाज ॥

    जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
    चारि भुजा तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥
    परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
    कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमकै ॥
    कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
    पिंगल कृष्णो छाया नन्दन । यम कोणस्थ रौद्र दुख भंजन ॥
    सौरी मन्द शनी दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
    जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं । रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥
    पर्वतहू तृण होइ निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
    राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
    बनहूँ में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ॥
    लषणहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा ॥
    रावण की गति- मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
    दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ॥
    नृप विक्रम पर तुहिं पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
    हार नौंलखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ॥
    भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
    विनय राग दीपक महँ कीन्हयों । तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
    हरिश्चंद्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरें डोम घर पानी ॥
    तैसे नल पर दशा सिरानी । भूंजी- मीन कूद गई पानी ॥
    श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई । पारवती को सती कराई ॥
    तनिक वोलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥
    पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रौपदी होति उघारी ॥
    कौरव के भी गति मति मारयो । युद्ध महाभारत करि डारयो ॥
    रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ॥
    शेष देव- लखि विनति लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
    वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
    जम्बुक सिंह आदि नख धारी । सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥
    गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं ॥
    गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
    जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
    जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ॥
    तैसहि चारी चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चाँदि अरु तामा ॥
    लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
    समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी ॥
    जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥
    अद्भूत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशिब बलि ढीला ॥
    जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
    पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
    कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥

    दोहा~~

    पाठ शनीश्चर देव को कीन्हों ' विमल ' तय्यार ।
    करत पाठ चालीस दिन हो भवसागर पार ॥
    जो स्तुति दशरथ जी कियो सम्मुख शनि निहार ।
    सरस सुभाष में वही ललिता लिखें सुधार ।

    जय सांई राम~~~
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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #7 on: May 11, 2008, 05:23:36 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री कृष्ण चालीसा~~~


    बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।

    अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम ।।

    पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज ।

    जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ।।

    जय यदुनन्दन जय जगवन्दन । जय वसुदेव देवकी नन्दन ।।

    जय यशुदा सुत नन्द दुलारे । जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ।।

    जय नट-नागर नाग नथइया । कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया ।।

    पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो । आओ दीनन कष्ट निवारो ।।

    वंशी मधुर अधर धरि टेरो । होवे पूर्ण विनय यह मेरो ।।

    आओ हरि पुनि माखन चाखो । आज लाज भारत की राखो ।।

    गोल कपोल, चिबुक अरुणारे । मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ।।

    राजित राजिव नयन विशाला । मोर मुकुट वैजन्ती माला ।।

    कुण्डल श्रवण पीत पट आछे । कटि किंकणी काछनी काछे ।।

    नील जलज सुन्दर तनु सोहे । छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ।।

    मस्तक तिलक, अलक घुंघराले । आओ कृष्ण बांसुरी वाले ।।

    करि पय पान, पूतनहि तारयो । अका बका कागासुर मारयो ।।

    मधुबन जलत अगिन जब ज्वाला । भै शीतल, लखतहिं नन्दलाला ।।

    सुरपति जब ब्रज चढ्यो रिसाई । मसूर धार वारि वर्षाई ।।

    लगत-लगत ब्रज चहन बहायो । गोवर्धन नख धारि बचायो ।।

    लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई । मुख महं चौदह भुवन दिखाई ।।

    दुष्ट कंस अति उधम मचायो । कोटि कमल जब फूल मंगायो ।।

    नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें । चरणचिन्ह दै निर्भय कीन्हें ।।

    करि गोपिन संग रास विलासा । सबकी पूरण करि अभिलाषा ।।

    केतिक महा असुर संहारयो । कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ।।

    मात-पिता की बन्दि छुड़ाई । उग्रसेन कहं राज दिलाई ।।

    महि से मृतक छहों सुत लायो । मातु देवकी शोक मिटायो ।।

    भौमासुर मुर दैत्य संहारी । लाये षट दश सहसकुमारी ।।

    दै भीमहिं तृण चीर सहारा । जरासिंधु राक्षस कहं मारा ।।

    असुर बकासुर आदिक मारयो । भक्तन के तब कष्ट निवारयो ।।

    दीन सुदामा के दुख टारयो । तंदुल तीन मूंठि मुख डारयो ।।

    प्रेम के साग विदुर घर मांगे । दुर्योधन के मेवा त्यागे ।।

    लखि प्रेम की महिमा भारी । ऐसे याम दीन हितकारी ।।

    भारत के पारथ रथ हांके । लिए चक्र कर नहिं बल ताके ।।

    निज गीता के ज्ञान सुनाये । भक्तन हृदय सुधा वर्षाये ।।

    मीरा थी ऐसी मतवाली । विष पी गई बजा कर ताली ।।

    राना भेजा सांप पिटारी । शालिग्राम बने बनवारी ।।

    निज माया तुम विदिहिं दिखायो । उर ते संशय सकल मिटायो ।।

    तब शत निन्दा करि तत्काला । जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ।।

    जबहिं द्रौपदी टेर लगाई । दीनानाथ लाज अब जाई ।।

    तुरतहिं बसन बने नन्दलाला । बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ।।

    अस नाथ के नाथ कन्हैया । डूबत भंवर बचावइ नइया ।।

    सुन्दरदास आस उर धारी । दया दृष्टि कीजै बनवारी ।।

    नाथ सकल मम कुमति निवारो । क्षमहु बेगि अपराध हमारो ।।

    खोलो पट अब दर्शन दीजै । बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ।।


    दोहा~~

    यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि ।

    अष्ट सिद्घि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि ।।

    जय सांई राम~~~
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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #8 on: May 11, 2008, 05:25:45 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री गणेश चालीसा~~~

    जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल ।

    विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ।।

    जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभ काजू ।।

    जै गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायक बुद्घि विधाता ।।

    वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ।।

    राजत मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ।।

    पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ।।

    सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ।।

    धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्व-विख्याता ।।

    ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ।।

    कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ।।

    एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ।

    भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ।।

    अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ।।

    अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ।।

    मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ।।

    गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ।।

    अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ।।

    बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना । लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ।।

    सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ।।

    शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ।।

    लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ।।

    निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ।।

    गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ।।

    कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ।।

    नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ।।

    पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ।।

    गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ।।

    हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ।।

    तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ।।

    बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ।।

    नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे । ।

    बुद्घि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ।।

    चले षडानन, भरमि भुलाई । रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ।।

    चरण मातु-पितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ।।

    तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ।।

    मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ।।

    भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ।।

    अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ।।


    दोहा~~

    श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान । नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ।।

    सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश । पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ।।

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #9 on: May 11, 2008, 05:27:39 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री भैरव चालीसा~~~

    दोहा~~

    श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ।

    चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ ।।

    श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।

    श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल ।।


    जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी-कुतवाला ।।

    जयति बटुक भैरव जय हारी । जयति काल भैरव बलकारी ।।

    जयति सर्व भैरव विख्याता । जयति नाथ भैरव सुखदाता ।।

    भैरव रुप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण ।।

    भैरव रव सुन है भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ।।

    शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो ।।

    जटाजूट सिर चन्द्र विराजत । बाला, मुकुट, बिजायठ साजत ।।

    कटि करधनी घुंघरु बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत ।।

    जीवन दान दास को दीन्हो । कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो ।।

    वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्यो वर राख्यो मम लाली ।।

    धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन ।।

    कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा ।।

    जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत ।।

    रुप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ।।

    अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोतल ।।

    रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू के हो काला ।।

    बटुक नाथ हो काल गंभीरा । श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा ।।

    करत तीनहू रुप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ।।

    रत्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ।।

    तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ।।

    जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमानन्द जय ।।

    भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय । बैजनाथ श्री जगतनाथ जय ।।

    महाभीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय ।।

    अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय ।।

    निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ।।

    त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ।।

    श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ।।

    रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ।।

    करि मद पान शम्भु गुणगावत । चौंसठ योगिन संग नचावत ।

    करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ।।

    देयं काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटा से मोटा ।।

    जाकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा ।।

    श्री भैरव भूतों के राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा ।।

    ऐलादी के दुःख निवारयो । सदा कृपा करि काज सम्हारयो ।।

    सुन्दरदास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ।।

    श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो ।।




    दोहा ~~

    जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।

    कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार ।।

    जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।

    उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार ।।

    जय सांई राम~~~
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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #10 on: May 12, 2008, 11:13:38 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री लक्ष्मी चालीसा~~~

    दोहा~~

    मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास ।
    मनो कामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस ॥
    सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार ।
    ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार ॥

    सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही । ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि ॥
    तुम समान नहिं कोई उपकारी । सब विधि पुरबहु आस हमारी ॥
    जै जै जगत जननि जगदम्बा । सबके तुमही हो स्वलम्बा ॥
    तुम ही हो घट घट के वासी । विनती यही हमारी खासी ॥
    जग जननी जय सिन्धु कुमारी । दीनन की तुम हो हितकारी ॥
    विनवौं नित्य तुमहिं महारानी । कृपा करौ जग जननि भवानी ।
    केहि विधि स्तुति करौं तिहारी । सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥
    कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी । जगत जननि विनती सुन मोरी ॥
    ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता । संकट हरो हमारी माता ॥
    क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो । चौदह रत्न सिंधु में पायो ॥
    चौदह रत्न में तुम सुखरासी । सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी ॥
    जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा । रूप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥
    स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा । लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥
    तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं । सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥
    अपनायो तोहि अन्तर्यामी । विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥
    तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी । कहँ तक महिमा कहौं बखानी ॥
    मन क्रम वचन करै सेवकाई । मन- इच्छित वांछित फल पाई ॥
    तजि छल कपट और चतुराई । पूजहिं विविध भाँति मन लाई ॥
    और हाल मैं कहौं बुझाई । जो यह पाठ करे मन लाई ॥
    ताको कोई कष्ट न होई । मन इच्छित फल पावै फल सोई ॥
    त्राहि- त्राहि जय दुःख निवारिणी । त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि ॥
    जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे । इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै ॥
    ताको कोई न रोग सतावै । पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ।
    पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना । अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना ॥
    विप्र बोलाय कै पाठ करावै । शंका दिल में कभी न लावै ॥
    पाठ करावै दिन चालीसा । ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥
    सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै । कमी नहीं काहू की आवै ॥
    बारह मास करै जो पूजा । तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥
    प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं । उन सम कोई जग में नाहिं ॥
    बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई । लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥
    करि विश्वास करैं व्रत नेमा । होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ॥
    जय जय जय लक्ष्मी महारानी । सब में व्यापित जो गुण खानी ॥
    तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं । तुम सम कोउ दयाल कहूँ नाहीं ॥
    मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै । संकट काटि भक्ति मोहि दीजे ॥
    भूल चूक करी क्षमा हमारी । दर्शन दीजै दशा निहारी ॥
    बिन दरशन व्याकुल अधिकारी । तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी ॥
    नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में । सब जानत हो अपने मन में ॥
    रूप चतुर्भुज करके धारण । कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥
    कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई । ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई ॥
    रामदास अब कहाई पुकारी । करो दूर तुम विपति हमारी ॥

    दोहा~~

    त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास ।
    जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश ॥
    रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर ।
    मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर ॥

    जय सांई राम~~~
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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #11 on: May 12, 2008, 11:15:52 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री संतोषी चालीसा~~~

    दोहा~~


    बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार ।
    ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार ॥
    भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम ।
    कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम ॥

    जय सन्तोषी मात अनूपम । शान्ति दायिनी रूप मनोरम ॥
    सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा । वेश मनोहर ललित अनुपा ॥
    श्वेताम्बर रूप मनहारी । माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥
    दिव्य स्वरूपा आयत लोचन । दर्शन से हो संकट मोचन ॥
    जय गणेश की सुता भवानी । रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥
    अगम अगोचर तुम्हरी माया । सब पर करो कृपा की छाया ॥
    नाम अनेक तुम्हारे माता । अखिल विश्व है तुमको ध्याता ॥
    तुमने रूप अनेकों धारे । को कहि सके चरित्र तुम्हारे ॥
    धाम अनेक कहाँ तक कहिये । सुमिरन तब करके सुख लहिये ॥
    विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी । कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥
    कलकत्ते में तू ही काली । दुष्ट नाशिनी महाकराली ॥
    सम्बल पुर बहुचरा कहाती । भक्तजनों का दुःख मिटाती ॥
    ज्वाला जी में ज्वाला देवी । पूजत नित्य भक्त जन सेवी ॥
    नगर बम्बई की महारानी । महा लक्ष्मी तुम कल्याणी ॥
    मदुरा में मीनाक्षी तुम हो । सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो ॥
    राजनगर में तुम जगदम्बे । बनी भद्रकाली तुम अम्बे ॥
    पावागढ़ में दुर्गा माता । अखिल विश्व तेरा यश गाता ॥
    काशी पुराधीश्वरी माता । अन्नपूर्णा नाम सुहाता ॥
    सर्वानन्द करो कल्याणी । तुम्हीं शारदा अमृत वाणी ॥
    तुम्हरी महिमा जल में थल में । दुःख दारिद्र सब मेटो पल में ॥
    जेते ऋषि और मुनीशा । नारद देव और देवेशा ।
    इस जगती के नर और नारी । ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी ॥
    जापर कृपा तुम्हारी होती । वह पाता भक्ति का मोती ॥
    दुःख दारिद्र संकट मिट जाता । ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता ॥
    जो जन तुम्हरी महिमा गावै । ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै ॥
    जो मन राखे शुद्ध भावना । ताकी पूरण करो कामना ॥
    कुमति निवारि सुमति की दात्री । जयति जयति माता जगधात्री ॥
    शुक्रवार का दिवस सुहावन । जो व्रत करे तुम्हारा पावन ॥
    गुड़ छोले का भोग लगावै । कथा तुम्हारी सुने सुनावै ॥
    विधिवत पूजा करे तुम्हारी । फिर प्रसाद पावे शुभकारी ॥
    शक्ति- सामरथ हो जो धनको । दान- दक्षिणा दे विप्रन को ॥
    वे जगती के नर औ नारी । मनवांछित फल पावें भारी ॥
    जो जन शरण तुम्हारी जावे । सो निश्चय भव से तर जावे ॥
    तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे । निश्चय मनवांछित वर पावै ॥
    सधवा पूजा करे तुम्हारी । अमर सुहागिन हो वह नारी ॥
    विधवा धर के ध्यान तुम्हारा । भवसागर से उतरे पारा ॥
    जयति जयति जय सन्कट हरणी । विघ्न विनाशन मंगल करनी ॥
    हम पर संकट है अति भारी । वेगि खबर लो मात हमारी ॥
    निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता । देह भक्ति वर हम को माता ॥
    यह चालीसा जो नित गावे । सो भवसागर से तर जावे ॥

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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #12 on: May 12, 2008, 11:18:30 PM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री गायत्री चालीसा~~~

    ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड ॥
    शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड ॥ १॥
    जगत जननी मङ्गल करनिं गायत्री सुखधाम ।
    प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥ २॥
    भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी । गायत्री नित कलिमल दहनी ॥ ३॥
    अक्षर चौविस परम पुनीता ।इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ॥ ४॥
    शाश्वत सतोगुणी सत रूपा ।सत्य सनातन सुधा अनूपा ।
    हंसारूढ सितंबर धारी ।स्वर्ण कान्ति शुचि गगन- बिहारी ॥ ५॥
    पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला ।शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥ ६॥
    ध्यान धरत पुलकित हित होई ।सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई ॥ ७॥
    कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।निराकार की अद्भुत माया ॥ ८॥
    तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।तरै सकल संकट सों सोई ॥ ९॥
    सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥ १०॥
    तुम्हरी महिमा पार न पावैं ।जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥ ११॥
    चार वेद की मात पुनीता ।तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥ १२॥
    महामन्त्र जितने जग माहीं ।कोई गायत्री सम नाहीं ॥ १३॥
    सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।आलस पाप अविद्या नासै ॥ १४॥
    सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥ १५॥
    ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।तुम सों पावें सुरता तेते ॥ १६॥
    तुम भक्तन की भकत तुम्हारे ।जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥ १७॥
    महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥ १८॥
    पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।तुम सम अधिक न जगमे आना ॥ १९॥
    तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।तुमहिं पाय कछु रहै न कलेसा ॥ २०॥
    जानत तुमहिं तुमहिं है जाई ।पारस परसि कुधातु सुहाई ॥ २१॥
    तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।माता तुम सब ठौर समाई ॥ २२॥
    ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे ।सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥२३॥
    सकल सृष्टि की प्राण विधाता ।पालक पोषक नाशक त्राता ॥ २४॥
    मातेश्वरी दया व्रत धारी ।तुम सन तरे पातकी भारी ॥ २५॥
    जापर कृपा तुम्हारी होई ।तापर कृपा करें सब कोई ॥ २६॥
    मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें ।रोगी रोग रहित हो जावें ॥ २७॥
    दरिद्र मिटै कटै सब पीरा ।नाशै दूःख हरै भव भीरा ॥ २८॥
    गृह क्लेश चित चिन्ता भारी ।नासै गायत्री भय हारी ॥२९॥
    सन्तति हीन सुसन्तति पावें ।सुख संपति युत मोद मनावें ॥ ३०॥
    भूत पिशाच सबै भय खावें ।यम के दूत निकट नहिं आवें ॥ ३१॥
    जे सधवा सुमिरें चित ठाई ।अछत सुहाग सदा शुबदाई ॥ ३२॥
    घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥ ३३॥
    जयति जयति जगदंब भवानी ।तुम सम थोर दयालु न दानी ॥ ३४॥
    जो सद्गुरु सो दीक्षा पावे ।सो साधन को सफल बनावे ॥ ३५॥
    सुमिरन करे सुरूयि बडभागी ।लहै मनोरथ गृही विरागी ॥ ३६॥
    अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।सब समर्थ गायत्री माता ॥ ३७॥
    ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी ।आरत अर्थी चिन्तित भोगी ॥ ३८॥
    जो जो शरण तुम्हारी आवें ।सो सो मन वांछित फल पावें ॥ ३९॥
    बल बुधि विद्या शील स्वभाओ ।धन वैभव यश तेज उछाओ ॥ ४०॥

    सकल बढें उपजें सुख नाना ।जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥
    यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई ।तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥


    ॥ इति ॥

    जय सांई राम~~~
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    Re: ~~~Chalisa~~~ चालीसा~~~
    « Reply #13 on: May 19, 2008, 05:28:49 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा~~~

    दोहा~~~


    नमो नमो विन्ध्येश्वरी नमो नमो जगदम्ब ।
    सन्तजनों के काज में माँ करती नहीं विलम्ब ॥

    जय जय जय विन्ध्याचल रानी । आदि शक्ति जग विदित भवानी ॥
    सिंहवाहिनी जै जग माता । जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ॥
    कष्ट निवारिनी जय जग देवी । जय जय जय जय असुरासुर सेवी ॥
    महिमा अमित अपार तुम्हारी । शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥
    दीनन के दुःख हरत भवानी । नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी ॥
    सब कर मनसा पुरवत माता । महिमा अमित जगत विख्याता ॥
    जो जन ध्यान तुम्हारो लावै । सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥
    तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी । तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी ॥
    रमा राधिका शामा काली । तू ही मात सन्तन प्रतिपाली ॥
    उमा माधवी चण्डी ज्वाला । बेगि मोहि पर होहु दयाला ॥
    तू ही हिंगलाज महारानी । तू ही शीतला अरु विज्ञानी ॥
    दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता । तू ही लक्ष्मी जग सुखदाता ॥
    तू ही जान्हवी अरु उत्रानी । हेमावती अम्बे निर्वानी ॥
    अष्टभुजी वाराहिनी देवी । करत विष्णु शिव जाकर सेवी ॥
    चोंसट्ठी देवी कल्यानी । गौरी मंगला सब गुण खानी ॥
    पाटन मुम्बा दन्त कुमारी । भद्रकाली सुन विनय हमारी ॥
    वज्रधारिणी शोक नाशिनी । आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी ॥
    जया और विजया बैताली । मातु सुगन्धा अरु विकराली ।
    नाम अनन्त तुम्हार भवानी । बरनैं किमि मानुष अज्ञानी ॥
    जा पर कृपा मातु तव होई । तो वह करै चहै मन जोई ॥
    कृपा करहु मो पर महारानी । सिद्धि करिय अम्बे मम बानी ॥
    जो नर धरै मातु कर ध्याना । ताकर सदा होय कल्याना ॥
    विपत्ति ताहि सपनेहु नहिं आवै । जो देवी कर जाप करावै ॥
    जो नर कहं ऋण होय अपारा । सो नर पाठ करै शत बारा ॥
    निश्चय ऋण मोचन होई जाई । जो नर पाठ करै मन लाई ॥
    अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावे । या जग में सो बहु सुख पावै ॥
    जाको व्याधि सतावै भाई । जाप करत सब दूरि पराई ॥
    जो नर अति बन्दी महं होई । बार हजार पाठ कर सोई ॥
    निश्चय बन्दी ते छुटि जाई । सत्य बचन मम मानहु भाई ॥
    जा पर जो कछु संकट होई । निश्चय देबिहि सुमिरै सोई ॥
    जो नर पुत्र होय नहिं भाई । सो नर या विधि करे उपाई ॥
    पांच वर्ष सो पाठ करावै । नौरातर में विप्र जिमावै ॥
    निश्चय होय प्रसन्न भवानी । पुत्र देहि ताकहं गुण खानी ।
    ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै । विधि समेत पूजन करवावै ॥
    नित प्रति पाठ करै मन लाई । प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥
    यह श्री विन्ध्याचल चालीसा । रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥
    यह जनि अचरज मानहु भाई । कृपा दृष्टि तापर होई जाई ॥
    जय जय जय जगमातु भवानी । कृपा करहु मो पर जन जानी ॥

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

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    Re: ~~~Chalisa in Hindi~~~चालीसा~~~
    « Reply #14 on: May 20, 2008, 10:29:48 AM »
  • Publish
  • ॐ सांई राम~~~


    श्री शीतला चालीसा~~~

    दोहा~~


    जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान ।
    होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥
    घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार ।
    शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार ॥

    जय जय श्री शीतला भवानी । जय जग जननि सकल गुणधानी ॥
    गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती । पूरन शरन चंद्रसा साजती ॥
    विस्फोटक सी जलत शरीरा । शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥
    मात शीतला तव शुभनामा । सबके काहे आवही कामा ॥
    शोक हरी शंकरी भवानी । बाल प्राण रक्षी सुखदानी ॥
    सूचि बार्जनी कलश कर राजै । मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥
    चौसट योगिन संग दे दावै । पीड़ा ताल मृदंग बजावै ॥
    नंदिनाथ भय रो चिकरावै । सहस शेष शिर पार ना पावै ॥
    धन्य धन्य भात्री महारानी । सुर नर मुनी सब सुयश बधानी ॥
    ज्वाला रूप महाबल कारी । दैत्य एक विश्फोटक भारी ॥
    हर हर प्रविशत कोई दान क्षत । रोग रूप धरी बालक भक्षक ॥
    हाहाकार मचो जग भारी । सत्यो ना जब कोई संकट कारी ॥
    तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा । कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा ॥
    विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो । मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो ॥
    बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा । मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा ॥
    अब नही मातु काहू गृह जै हो । जह अपवित्र वही घर रहि हो ॥
    पूजन पाठ मातु जब करी है । भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥
    अब भगतन शीतल भय जै हे । विस्फोटक भय घोर न सै हे ॥
    श्री शीतल ही बचे कल्याना । बचन सत्य भाषे भगवाना ॥
    कलश शीतलाका करवावै । वृजसे विधीवत पाठ करावै ॥
    विस्फोटक भय गृह गृह भाई । भजे तेरी सह यही उपाई ॥
    तुमही शीतला जगकी माता । तुमही पिता जग के सुखदाता ॥
    तुमही जगका अतिसुख सेवी । नमो नमामी शीतले देवी ॥
    नमो सूर्य करवी दुख हरणी । नमो नमो जग तारिणी धरणी ॥
    नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी । दुख दारिद्रा निस निखंदिनी ॥
    श्री शीतला शेखला बहला । गुणकी गुणकी मातृ मंगला ॥
    मात शीतला तुम धनुधारी । शोभित पंचनाम असवारी ॥
    राघव खर बैसाख सुनंदन । कर भग दुरवा कंत निकंदन ॥
    सुनी रत संग शीतला माई । चाही सकल सुख दूर धुराई ॥
    कलका गन गंगा किछु होई । जाकर मंत्र ना औषधी कोई ॥
    हेत मातजी का आराधन । और नही है कोई साधन ॥
    निश्चय मातु शरण जो आवै । निर्भय ईप्सित सो फल पावै ॥
    कोढी निर्मल काया धारे । अंधा कृत नित दृष्टी विहारे ॥
    बंधा नारी पुत्रको पावे । जन्म दरिद्र धनी हो जावे ॥
    सुंदरदास नाम गुण गावत । लक्ष्य मूलको छंद बनावत ॥
    या दे कोई करे यदी शंका । जग दे मैंय्या काही डंका ॥
    कहत राम सुंदर प्रभुदासा । तट प्रयागसे पूरब पासा ॥
    ग्राम तिवारी पूर मम बासा । प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा ॥
    अब विलंब भय मोही पुकारत । मातृ कृपाकी बाट निहारत ॥
    बड़ा द्वार सब आस लगाई । अब सुधि लेत शीतला माई ॥

    यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय ।
    सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय ॥
    बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू ।
    जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू ॥

    ॥ इति ॥


    जय सांई राम~~~
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